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हरियाणा

सीएम मनोहर लाल ने आज 3 महान हस्तियों और प्रसिद्ध साहित्यकारों महाकवि का लोकार्पण किया।

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
चंडीगढ़: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आज तीन महान हस्तियों और प्रसिद्ध साहित्यकारों महाकवि सूरदास, बाबू बालमुकुंद गुप्त और सूर्यकवि पंडित लख्मीचन्द की प्रतिमाओं का लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री ने युवा पीढ़ी से इन महान हस्तियों द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करने और हमारी वर्षों पुरानी समृद्ध संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाने का काम करने का आग्रह किया। इस अवसर पर, मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की कि वे जल्द ही जिला फरीदाबाद में महाकवि सूरदास के पैतृक गाँव सीही, जिला रेवाड़ी में बाबू बालमुकुंद गुप्त के पैतृक गाँव गुडियानी और जिला सोनीपत में सूर्यकवि पंडित लख्मीचन्द के पैतृक गाँव जांटीकलां का दौरा कर इन महान हस्तियों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। मनोहर लाल ने आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला परिरसर में स्थापित होने वाली प्रतिमाओं का लोकार्पण किया। हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष  ज्ञानचंद गुप्ता एवं सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीमती धीरा खंडेलवाल हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला परिसर में मौजूद थे जबकि सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग के महानिदेशक  पी.सी. मीणा यहां चंडीगढ़ में उपस्थित थे। इस अवसर पर  पी.सी. मीणा ने मुख्यमंत्री  मनोहर लाल को शॉल और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।        

 इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकारों और लेखकों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि तीनों कवि हरियाणा के बेटे हैं और तीनों ने अपना जीवन साहित्य व समाज को अर्पित किया तथा भारतीय गौरव व स्वाभिमान को जगाने का काम किया। उन्होंने कहा कि इन महान हस्तियों की प्रतिमाएं उनकी यादों को तो ताजा रखेंगी ही, साथ ही हमारी नई पीढ़ी और आने वाली पीढिय़ों को भी उनके जीवन मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों से सीख लेने की प्रेरणा देती रहेंगी। उनका सारा साहित्य देश और समाज की अमूल्य धरोहर है और इसे सुरक्षित रखना हम सभी का कर्तव्य और जिम्मेदारी है, क्योंकि इससे न केवल वर्तमान बल्कि आने वाली पीढिय़ों को भी लाभ होगा। तीनों महान साहित्यकारों के जीवन पर प्रकाश डालते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन कवियों में महाकवि सूरदास का स्थान सर्वोपरि है। वे भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त और हिन्दी साहित्य के सूर्य थे। इसी प्रकार, महान साहित्यकार, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर सिपाही बाबू बालमुकुन्द गुप्त ने अपनी लेखनी के बल पर अंग्रेजी शासन को चुनौती दी थी। सूर्यकवि पंडित लख्मीचन्द ने भी पराधीनता के समय भारत की प्राचीन संस्कृति के गौरव को पुन: स्थापित करते हुए लोक साहित्य के माध्यम से भारतीयों के स्वाभिमान को जगाने का काम किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि पंडित लख्मीचन्द व बाबू बालमुकुन्द गुप्त 42 साल की अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गए, लेकिन इतने कम समय में ही उन्होंने वह कर दिखाया जिसके लिए सदियों तक उन्हें याद रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि महाकवि सूरदास को वात्सल्य रस का सम्राट माना जाता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का इतना सजीव वर्णन किया है कि उनके साहित्य को पढऩे अथवा उनके काव्य को सुनने वाला व्यक्ति उसी में खो जाता है। भले ही आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी रचनाएं युगों-युगों तक लोगों का मार्गदर्शन करती रहेंगी। साहित्य में उनके योगदान को सर्वाधिक महान माना जाता है।          

मनोहर लाल ने कहा कि बाबू बालमुकुन्द गुप्त एक निडर स्वतंत्रता सेनानी, महान साहित्यकार, कुशल सम्पादक और उच्चकोटि के पत्रकार थे। वे हिन्दी पत्रकारिता के जनक माने जाते हैं। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से आजादी के आंदोलन में एक नई जान फूंकी थी। गुप्त को भारतीय पत्रकारिता में व्यंग्य विद्या का जनक भी माना जाता है। अंग्रेज सरकार के खिलाफ ‘‘शिव शम्भू के चि_े’नाम से व्यंग्य लेख लिखकर उन्होंने तत्कालीन गवर्नर लार्ड कर्जन की नींद हराम कर दी थी। गुप्त के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि था। देश की आजादी, हिन्दी साहित्य और हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने कहा कि पंडित लख्मीचन्द को महाकवि कालीदास और शेक्सपीयर जैसे महान साहित्यकारों की श्रेणी में गिना जाता है। उनकी रचनायें हमारे लिये जीवन का पाठ हैं और हमें आगे बढने की प्रेरणा भी देती हैं। हम उनकी रचनाओं से सीख सकते हैं कि लोक मर्यादाओं का पालन करते हुए परिवार व समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को कैसे निभाएं। उन्होंने 500 से अधिक नई लय व तान बनाई थीं। उन्होंने 1920 से लेकर 1945 तक लगभग एक हजार गांवों और सैनिक छावनियों में अपने सांगों की प्रस्तुति दी। उनके सांगों के दौरान एकत्रित चन्दे से गांवों में एक हजार से भी अधिक स्कूल, तालाब, धर्मशालाएं, चौपालें और गऊशालाएं बनवाई गईं। पंचकूला में अकादमी परिसर में उपस्थित हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने कहा कि यह गर्व की बात है कि पंचकूला तेजी से एक सांस्कृतिक राजधानी के रूप में उभर रहा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल के दूरदर्शी दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप यह संभव हो पाया है। उन्होंने कहा कि लेखकों, साहित्यकारों और पत्रकारों के लिए यह महत्वपूर्ण अवसर है क्योंकि वे इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि पंचकूला साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देता रहेगा। सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीमती धीरा खंडेलवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल के कुशल नेतृत्व में यह एकमात्र वर्तमान राज्य सरकार है, जिसने अलग से कला और संस्कृति विभाग बनाया है और 153 नए पदों को मंजूरी दी है। इसके अलावा, कलाकारों और साहित्यकारों को विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार देने की भी शुरुआत की गई है। इस अवसर पर उन्होंने तीनों महान हस्तियों की प्रतिमाओं के शानदार निर्माण के लिए श्री राम प्रताप वर्मा के शिल्प कौशल की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि महाकवि सूरदास और सूर्यकवि पंडित लखमी चंद के नाते से हरियाणा के पास दो सूरज होने के साथ-साथ बाबू बालमुकुंद गुप्त का गृह राज्य होने का गौरवपूर्ण सौभाग्य है, जिन्होंने युवाओं के दिलों में राष्ट्र के प्रति प्रेम जागृत किया। उन्होंने कहा कि पंडित लख्मीचन्द ने हरियाणवी भाषा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा ने आश्वासन दिया कि हमारी समृद्ध संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाने में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए अकादमी लेखकों और साहित्यकारों का सम्मान करती रहेगी। इस अवसर पर ग्रन्थ अकादमी के उपाध्यक्ष प्रो वीरेंद्र चौहान, पंजाबी साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष  गुरविंदर सिंह धमीजा, संस्कृत अकादमी के निदेशक दिनेश शास्त्री सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
    

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