अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: ए. के. एंटोनी, पूर्व रक्षा मंत्री गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं नेता विपक्ष, राज्यसभा, सुशील कुमार शिंदे, पूर्व गृहमंत्री; सलमान खुर्शीद, पूर्व विदेशी मामले एवं कानून मंत्री; पवन खेड़ा, प्रवक्ता, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का बयानः अर्णब गोस्वामी-व्हाट्सऐप चैट प्रकरण ने प्रधानमंत्री,गृहमंत्री और उच्च पदों पर बैठे लोगों द्वारा देश की सुरक्षा से किए अक्षम्य अपराध एवं संविधान की शपथ के साथ सौदेबाजी का भद्दा चेहरा उजागर कर दिया। देश शीर्षस्थ स्थानों पर बैठे सत्तासीनों के निंदनीय व्यवहार द्वारा मर्यादाओं, स्थापित मानदंडों की अवमानना एवं न्यायपालिका के घनघोर अपमान का साक्षी है। भाजपा के सबसे वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री के जीवन से अस्पताल में जिस तरह खिलवाड़ किया गया एवं उन्हें अपमानित किया गया, उससे देश की सरकार की प्रतिष्ठा तार तार हो जाती है एवं भाजपा के नेताओं के चरित्र पर गंभीर प्रश्न खड़ा करती है। मुंबई पुलिस द्वारा टीआरपी घोटाले में की जा रही जाँच के तहत दर्ज की गई चार्जशीट में मोदी सरकार में सर्वोच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार, मिलीभगत एवं सह-अपराध का चौंकानेवाला खुलासा हुआ है।
एक जर्नलिस्ट सरकार में बैठे उच्च पदासीन लोगों के साथ मिलीभगत करता है। अपने चैनल की टीआरपी में हेर फेर करता है और जनता की राय में छलपूर्वक छेड़छाड़ कर उसे सत्तासीन दल के पक्ष में दिखाता है। इस प्रक्रिया में एक उत्तरदायी, पारदर्शी व प्रगतिशील सरकार पाने का, भारत व हर भारतीय का अवसर अनजाने में उनके हाथ से छिन जाता है। इन व्हाट्सऐप चैट्स में प्रधानमंत्री, पीएमओ, गृहमंत्री एवं भाजपा सरकार के सत्ता के गलियारों में व्याप्त कुत्सित व अक्षम्य घोटालों का विवरण देने वाले छः महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानने का हक हर देशवासी को है।
देश की सुरक्षा
लीक हुई चैट्स में सामने आया कि अर्णब गोस्वामी ने पार्थो दासगुप्ता को पुलवामा में हुए घातक आतंकी हमले के बारे में खुशी-खुशी बताया, जिसमें सीआरपीएफ के 40जवान शहीद हुए थे। बालाकोट हवाई हमले से तीन दिन पहले, 23 फरवरी को इस जर्नलिस्ट को अनधिकृत रूप से न केवल रक्षा कार्यों के सबसे गोपनीय भेद पता चल जाते हैं, अपितु वह ये भेद एक दूसरे व्यक्ति के साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा भी कर देता है। इन भेदों की जानकारी केवल प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को ही होती है। अर्णब गोस्वामी और पार्थो दासगुप्ता के बीच हुई इस शर्मनाक बातचीत में यह भी कहा गया, कि ‘‘बड़े आदमी’ के लिए इस बार यह अच्छा होगा’। ‘वह फिर से चुनाव जीतेगा’।
इन हमलों की जानकारी अर्णब गोस्वामी को चार सत्तासीनों में से ही कोई एक दे सकता था। उनमें से हर व्यक्ति ने भारत के सामरिक भेदों की रक्षा व सुरक्षा करने की संवैधानिक शपथ ली है। स्पष्ट है कि उन्होंने अपनी इस संवैधानिक शपथ का उल्लंघन किया। यह राष्ट्रद्रोह से कम नहीं। दुख की बात तो यह है कि जब पूरा देश 14.02.2012 को 40 सीआरपीएफ जवानों के शहीद होने का शोक मना रहा था, तब देश के दो व्यक्तियों का व्यवहार सबसे अलग था – एक अर्णब गोस्वामी, जो प्रसन्न थे और खुशी मना रहे थे और दूसरे प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी, जो जिम कॉर्बेट पार्क में ‘‘मैन वर्सेस वाईल्ड’’ की शूटिंग कर रहे थे (संलग्नक A1)।
o क्या 40 भारतीय जवानों की शहादत किसी भी भारतीय के लिए जीत की बात हो सकती है?
o इन चार सत्तासीनों में से किसने एक आम नागरिक से शीर्ष सैन्य अभियान का संवेदनशील भेद साझा किया, जो यह जानकारी पाने के लिए अधिकृत नहीं है?
o क्या यह राष्ट्र, देश की सेना एवं हर देशभक्त भारतीय के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला नहीं?
o क्या यह ऑफिशियल सीक्रेट्स कानून का उल्लंघन नहीं?
अर्णब गोस्वामी – प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) – प्रधानमंत्रीः
अर्णब गोस्वामी जिस आत्मविश्वास से प्रधानमंत्री और पीएमओ के साथ अपनी निकटता प्रदर्शित करते हैं, वह चौंकानेवाला है। चैट्स से प्रतीत होता है कि अर्णब गोस्वामी आसानी से प्रधानमंत्री तक पहुंच जाते थे और व्यवसायिक समस्याएं सुलझाने एवं प्रतिद्वंदियों पर काबू पाने में उनकी मदद करते थे (संलग्नक A2)।
o प्रधानमंत्री अर्णब गोस्वामी को मित्रवत तरीके से खुद तक एवं पीएमओ तक पहुंचने की अनुमति क्यों देते थे?
o अर्णब गोस्वामी को प्रधानमंत्री एवं पीएमओ के साथ लॉबी बनाने की अनुमति क्यों दी गई?
o उनके बीच किस तरह की लेन-देन थी?
अर्णब गोस्वामी – अमित शाह ने पेडलिंग को प्रभावित किया
इन चैट्स से साफ है कि अर्णब गोस्वामी को न केवल सत्ताधारी दल के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक तक पहुंच थी, अपितु वो बीएआरसी के अध्यक्ष, पार्थो दास गुप्ता को पार्टी अध्यक्ष, अमित शाह से मिलवाने भी लेकर गए।अर्णब गोस्वामी को टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) की नीति एवं नियंत्रण को प्रभावित करने के लिए अमित शाह सहयोग मिल रहा था.
o पार्टी अध्यक्ष अन्य के साथ सौतेला व्यवहार करते हुए किसी खास मीडिया हाउस की मदद करने के लिए नीति के मामलों में हस्तक्षेप कैसे कर सकते हैं?
o अमित शाह स्वायत्त संस्था, ‘ट्राई’ के कामों में हस्तक्षेप क्यों कर रहे थे?
o भारत के दूसरे सबसे शक्तिशाली नागरिक, श्री अमित शाह पर अर्णब गोस्वामी की क्या पकड़ थी?
न्यायपालिकाः
अर्णब गोस्वामी और पार्थो दास गुप्ता के बीच हुई बातचीत में सौदेबाजी को प्रभावित करने और न्यायपालिका पर दबाव बनाने के कुत्सित प्रयास साफ दिखाई देते हैं। पूरा देश अपनी शिकायतों के निवारण के लिए ‘न्याय के मंदिर’ पर आश्रित है। यदि देश के शक्तिशाली लोग न्यायपालिका को प्रभावित करने लगेंगे, तो न्याय देने की प्रक्रिया में आम लोगों का विश्वास समाप्त हो जाएगा। हम देश के न्यायालयों का आदर करते हैं और न्यायालयों ने अपने विरुद्ध सोशल मीडिया पोस्ट्स के प्रति जबरदस्त संवेदनशीलता दिखाई है। देश इन संस्थानों से उचित प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा है, जिनके बारे में सौदेबाजी की बात यह ‘Influence Paddler’ (दलाल) इतनी निर्लज्जता से कर रहा है (संलग्नक A4)।
o क्या कोई व्यापारी इस कथित जर्नलिस्ट से माननीय हाई कोर्ट पर दबाव बनाने के लिए कह रहा था?
o क्या इस मामले में मनोवांछित आदेश पा लिया गया?
o क्या कानून मंत्री (चैट्स में वर्णित) से मुलाकात ने न्यायपालिका पर दबाव बनाकर अपने पक्ष में आदेश प्राप्त करने में कोई मदद की?
o क्या भाजपा और उसके चापलूसों ने मनोवांछित आदेश पाने के लिए जजों को घूस देने या धमकाने का प्रयास किया?
दूरदर्शन के साथ धोखाः
2017 में अर्णब गोस्वामी के चैनल एवं एक अन्य चैनल ने डीडी फ्री डिश पर व्यूअरशिप पाने के लिए प्रसार भारती द्वारा स्थापित नीलामी व्यवस्था में सेंध लगा दिया। एक निजी डीटीएच सेवा, डिश टीवी की मदद से फ्री डीटीएच सेवा में स्लॉट बुक करने के लिए दो चैनलों ने दूरदर्शन को कोई शुल्क नहीं दिया। इस उल्लंघन से सरकारी खजाने को करोड़ों रूपये का चूना लगा। चैट्स से यह खुलासा भी हुआ कि पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री, श्री राजवर्धन सिंह राठौर ने अर्णब गोस्वामी को एक शिकायत के बारे में बताया, जो उनके विभाग को गोस्वामी के चैनल के खिलाफ मिली थी। चैट्स से पता चलता है कि राठौर ने इन शिकायतों को दबा दिया (संलग्नक A5)।
स्वर्गीय अरुण जेटली के बारे में अर्णब गोस्वामी
अगस्त माह में स्वर्गीय अरुण जेटली अस्पताल में कई दिनों तक जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे थे। सबसे अमानवीय और असंवेदनशील तरीके से अर्णब गोस्वामी ने कहा, ‘‘जेटली इसे खींच रहे थे’’ और ‘‘पीएमओ यह करना नहीं चाहता। प्रधानमंत्री बुधवार को फ्रांस जा रहे हैं’’। 19 अगस्त, 2019 को अर्णब गोस्वामी ने दावा किया कि वो‘’उनकी जिंदगी को खींच रहे थे‘’ (संलग्नक A6)।
o प्रधानमंत्री के एक वरिष्ठतम साथी के संबंध में यह कैसी टिप्पणी है?
o जब अर्णब गोस्वामी ने कहा कि वो ‘‘उनकी जिंदगी को खींच रहे थे’’, तो इसका मतलब क्या था?
सर्वोच्च स्तर पर भ्रष्टाचार एवं सहअपराध के ये चौंकानेवाले खुलासे कई सवाल पैदा कर रहे हैं।
1. क्या अर्णब गोस्वामी सरकार को काबू कर रहे थे या सरकार अर्णब गोस्वामी पर नियंत्रण बनाए हुए थी? ये दोनों ही स्थितियां लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं?
2. क्या नरेंद्र मोदी ने ‘लुट्यंस गैंग’ बनाकर अर्णब गोस्वामी को उसका अध्यक्ष बना दिया है?
3. क्या मीडिया यह आत्मविश्लेषण करेगा कि टीआरपी के लालच ने किस प्रकार इस चौथे स्तंभ को कमजोर कर दिया है?
4.अपनी निजी बातचीत में अर्णब गोस्वामी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है, लेकिन यह भी कहते हैं कि वो यह बात टीवी पर नहीं बता सकते। ऐसी क्या मजबूरी है, जो मीडिया अर्थव्यवस्था की असली हालत देश को नहीं बता पा रही?
5. क्या अर्णब गोस्वामी द्वारा सैन्य कार्यवाही का विवरण लीक हुआ था?
इससे पहले कभी भी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से इस तरह से समझौता नहीं हुआ। इससे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय, गृहमंत्री कार्यालय, कानून मंत्री के कार्यालय, सूचना व प्रसारण मंत्री के कार्यालय से इस शर्मनाक तरीके से समझौता नहीं किया गया। इससे पहले कभी भी न्यायपालिका पर हमला नहीं हुआ। इससे पहले कभी भी एक वरिष्ठ राजनेता का उनकी मौत में अपमान नहीं किया गया। क्या प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और केंद्र सरकार को इन शर्मनाक खुलासों के बाद ऑफिस में बने रहने का कोई भी नैतिक, राजनैतिक या संवैधानिक अधिकार है? हम मांग करते हैं कि प्रधानमंत्री जी इन आरोपों का तत्काल जवाब दें और देश के सर्वोच्च कार्यालयों की खोई हुई विश्वसनीयता फिर से स्थापित करें।