अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद: चिकित्सा क्षेत्र में एसएसबी अस्पताल ने मधुमेह, उच्च रक्तचाप एवं हृदयघात से हार्ट का परदा फटने से ग्रस्त 51 वर्षीय महिला का सफल आप्रेशन कर उसकी जान बचाई। ऐसे मामलों में मरीज की बचने की संभावनाएं कम ही रहती है, लेकिन अस्पताल के डायरेक्टर एवं वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. एस.एस. बंसल के अनुभव के चलते उक्त महिला अब तेजी से रिकवर हो रही है। दरअसल उक्त महिला को एक्यूट एंटीरियर वॉल मायोकार्डियल इंफ्राक्शन नामक बड़ा दिल का दौरा पड़ा। एलएडी में स्टेंटिग के साथ कोरोनरी एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी फरीदाबाद के ही एक दूसरे अस्पताल में की गई, इसके बाद भी मरीज की स्थिति बिगड़ती रही। एसएसबी अस्पताल पहुंचने पर मरीज का बीपी भी काफी कम था। 2डी ईको जांच में खराब धडकऩ के साथ वेंट्रिकुलर सेप्टल फटने का खुलासा हुआ तथा मरीज के रिश्तेदारों ने वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. एस.एस. बंसल से परामर्श किया।
डा. बंसल एवं एसएसबी अस्पताल के मुख्य कार्डियक सर्जन बिग्रेडियर डा. एस.एस. सिद्धू ने मरीज की स्थिति देखकर और जांचों के बाद परिजनों को बताया कि दिल के दौरे पडऩे के दौरान मरीज का सेप्टल फट गया है और मरीज के दिल को गंभीर क्षति हुई है। आईएबीपी नामक इंट्रा-एओर्टिक बैलून पंप का प्रयोग कर पहले मरीज को स्थिर किया गया। मरीज की किडनी भी खराब होने जा रही थी इसलिए उनकी एमरजेंसी सर्जरी की गई। चीफ सर्जन डा. सिद्धू, डा. नीलेश अग्रवाल, कार्डिक एनेस्थिसियोलोजिस्ट डा. पंकज इंगोले और डा. नीलम अग्रवाल द्वारा बैलून सर्पोट के साथ हार्ट अटैक के कारण बाईपास सर्जरी एवं सेप्टल फटने से बने छेद को बंद किया गया। आप्रेशन के बाद मरीज के रक्तचाप में धीरे-धीरे सुधार हुआ। आप्रेशन के तीसरे दिन मरीज को वेंटिलेटर और बैलून पम्प से हटा दिया गया और एमरजेंसी सर्जरी के बाद भी मरीज की रिकवरी काफी तेजी से हुई। अस्पताल के डायरेक्टर एवं वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. एस.एस. बंसल ने बताया कि पोस्ट एमआईवीएसडी (वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट) के ज्यादातर मामलों में रक्तचाप में तेजी से गिरावट होती है, जो आमतौर पर कार्डियोजेनिक शॉक और मौत का कारण बनती है। दिल का दौरा पडऩे के बाद वीएसडी एक सर्जिकल इमरजेंसी होती है, जिसमें तत्काल सर्जिकल या डिवाइस से बंद करने की आवश्यकता होती है, यह संपूर्ण केस एसएसबी अस्पताल की कार्डियक टीम की कुशलता और उनके अनुभव को दर्शााता है। उन्होंने कहा कि केवल समर्पित और प्र्रेरणादायक कार्डियोथोरेसिक टीम ही ऐसे उच्च जोखिम वाले रोगियों की जान बचा सकती है क्योंकि ऐसी स्थिति में यदि आप्रेशन सही समय पर नहीं किया जाता है तो 94 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है और मरीजों के दिल का छेद बंद करने के आप्रेशन में भी केवल 53 फीसदी रोगियों की जान बच पाती है।
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