अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
गुरुग्राम:हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि आजादी के बाद अब ऐसा समय आ गया है कि जब हम अपनी पुरानी विद्याओं को सामने लाएं और भूतकाल में जो भी कुछ आज तक हुआ है, जिस विधा या पद्धति को बढावा नहीं दिया गया, उसको अब ज्ञाता आगे ला रहे हैं।मुख्यमंत्री रविवार को गुरुग्राम के सेक्टर-56 स्थित अशोक सिंघल वेद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में द्वि -दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक विज्ञान संगोष्ठी ‘गवेष्णा‘ के दूसरे दिन उपस्थित जनसमूह को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रांत संचालक पवन जिंदल, विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र, महेश भागचंद, हरियाणा संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ. दिनेश शास्त्री सहित संस्कृत के कई विद्वान और वेदों के ज्ञाता उपस्थित थे। अपने संबोधन में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि वर्षों पुरानी दुविधा अब तक चली आ रही है कि भारतवर्ष की आजादी से पहले हमारे वेद विज्ञान और वेद के ज्ञान को विदेशी ताकतों ने खण्डित करने और इनका विनाश करने का काम किया।
वेद विषय पर हमने कई अहम कदम उठाएं हैं जिनमें यह शोध केंद्र स्थापित करने, वेद विश्वविद्यालय के लिए जमीन खरीदने, महर्षि वाल्मीकि के नाम पर कैथल में संस्कृत विश्वविद्यालय शुरू करना, माता मनसा देवी मंदिर परिसर में गुरुकुल शुरू करना, संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना आदि शामिल हैं। इनके माध्यम से हमारे वेदों और प्राचीन विद्याओं को आगे लाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय अशोक सिंघल ने जो सपना देखा था उसे पूरा करने की दिशा में दिनेश चंद्र महान काम कर रहे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि उनके जीवन की दिशा बदलने में स्वर्गीय अशोक सिंघल का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने बताया कि स्वर्गीय सिंहल सन् 1977 से लेकर 1981 तक हरियाणा के संघ के प्रांत प्रचारक थे, उसी समय सन् 1977 में मैं आपातकाल के कारण संघ का स्वयं सेवक बना था, आपातकाल नहीं लगता तो शायद संघ से नहीं जुड़ पाता। उस समय आपातकाल की पीड़ा या जिज्ञासावश बहुत से लोग संघ के नजदीक आए और संगठन को मजबूती मिली। मनोहर लाल ने यह भी बताया कि संघ की शाखाओं में जाते हुए जब भी कभी उनके मन में प्रश्न खड़े होते थे तो उनका समाधान प्राप्त करने के लिए वे स्वर्गीय अशोक सिंहल के पास चले जाते थे। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय अशोक सिंघल बहुत शिक्षित व्यक्ति थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन संघ में लगा दिया और उनका जीवन एक तपस्वी जैसा था।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गोष्ठी में भाषण देने की बजाय उनके मन में उठने वाले प्रश्न रखे, जिनका समाधान ढूंढने के लिए वहां मौजूद विद्वानों का आह्वान किया। उन्होने कहा कि हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति पश्चिमी शिक्षा पद्धति के हिसाब से आगे बढ़ रही है। यदि हम इसे बदलना चाहते हैं तो केवल अपनी पद्धति को श्रेष्ठ बताने से यह काम नहीं होगा बल्कि हमें आज की वर्तमान पद्धति के साथ एक-एक विषय की तुलना करनी होगी। तुलना करने की अपनी पद्धति की विशेषता बतानी पडे़गी और उसके बाद कौन सी पद्धति जनता के लिए उपयोगी है, यह सिद्ध करना पडे़गा। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि जन सामान्य को हिंदु काल गणना और वैदिक काल गणना आनी ही चाहिए। इस पर भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गोष्ठी में उपस्थित ज्ञाताओं के सामने प्रश्न खड़े किए और कहा कि हिंदुकाल गणना में तिथियां दो प्रकार की हैं-एक सौर तिथि तथा दूसरी चंद्रमा तिथि। इसमें भी शूक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं जो चंद्र काल गणना के हिसाब से चलते हैं। उन्होंने कहा कि संक्रांति सौर काल गणना के हिसाब से चलती है। संक्रांति प्रथमा को होती है। मकर संक्रांति को हमारा माघ महीना शुरू होता है लेकिन वह सौर कालगणना का होता है। उसका चंद्र काल गणना से कोई संबंध नहीं होता। हमारे सभी त्यौहार अमावस्या या पूर्णिमा, कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष के हिसाब से होते हैं लेकिन मकर संक्रांति सौर गणना के हिसाब से होती है और अंग्रेजी महीनों की तिथियां भी सौर गणना के हिसाब से ही चलती हैं। इसके अलावा, उत्तर भारत में कृष्ण पक्ष पहले आता है जबकि दक्षिण भारत में शुक्ल पक्ष पहले आएगा तथा उत्तर भारत और दक्षिण भारत में महीना शुरू होने में 15 दिन का अंतर रहता है। ऐसे में देश कौन सी गणना को अपनाए, यह प्रश्न खड़ा होता हैं। इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि संस्कृत को कम्प्यूटर की भाषा कहा जाता है परंतु यह कैसे संभव है, इसे भी दर्शाना जरूरी है। टैक्नोलॉजी को संस्कृत से जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार एलोपैथी और आयुर्वेद में संघर्ष चल रहा है। दोनों स्वयं को एक-दूसरे से उत्तम बताते हैं। आयुर्वेद जहां हमें स्वस्थ रहने की दिशा देता है वहीं एलोपैथी तुरंत ईलाज या राहत पहुंचाती है। अभी भी शैल्य चिकित्सा एलोपैथी में है, आयुर्वेदिक प्रणाली में नहीं है। ऐसे में एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद को आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम ‘भी वादी’ हैं, ‘ही वादी’ नहीं अर्थात हम मानते हैं कि आप भी सही है और हम भी सही हैं। यह नहीं मानते कि हम ही सही हैं।इससे पहले मुख्यमंत्री ने संस्थान द्वारा तैयार की गई ‘श्रुति प्रभा’ नामक पत्रिका का विमोचन किया जिसमें वैज्ञानिकों के आठ शोध निबंध हैं। कार्यक्रम को विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र ने संबोधित करते हुए कहा कि वेद अपने आप में संपूर्ण हैं, समग्र हैं और इनमें अखिल निखिल ब्रह्माण्ड का वर्णन है। वेद सार्वभौमिक, सार्वकालिक व सर्वग्राही हैं। उन्होंने कहा कि महर्षि पतंजलि ने भी लिखा है कि वेद की 1311 शाखाएं थी जिनमें से आज केवल 8 या 9 शाखाएं ही बची हैं। उन्होंने बताया कि पवित्र ग्रंथ गीता के चौथे अध्याय में भी वेद की इन शाखाओं का उल्लेख है। दिनेश चंद्र जी ने सभी का आह्वान किया कि वे वेद के प्रति अपना मन बनाएं और इनका अध्ययन करें।
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