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दिल्ली

दिल्ली विधान सभा की याचिका समिति की जांच में हुआ खुलासा।


अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:दिल्ली विधान सभा की याचिका समिति द्वारा की गई एक विस्तृत जांच में एलजी के इशारे पर कुछ अधिकारियों द्वारा जानबूझकर दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं को ठप करने के प्रयास का खुलासा हुआ है। समिति ने सरकारी विभागों द्वारा दायर प्रतिक्रियाओं और अधिकारियों के बयानों, सरकारी अभिलेखों और समिति की बैठकों के विचार-विमर्श के आधार पर कई टिप्पणियां की हैं। समिति ने बुधवार को सदन के समक्ष ‘दिल्ली सरकार के अस्पतालों में दिल्ली के उपराज्यपाल के आदेश पर ओपीडी काउंटरों के कामकाज में गड़बड़ करने’ शीर्षक से एक रिपोर्ट पेश की थी। इसके तहत यह पाया गया कि मैन्युफ़ैक्चर्ड ब्यूरिक्रेटिक बाधाएँ थीं, जिसके कारण दिल्ली के अस्पतालों के ओपीडी काउंटर्स में डाटा एंट्री ऑपरेटरों के लिए निविदाओं के आमंत्रण के लिए अनुमोदन देने में अत्यधिक देरी हुई। साथ ही चिकित्सा सेवाओं की जरूरत वाले दिल्ली के कई लोगों पर इसका असर पड़ा। वित्त विभाग द्वारा निविदा आमंत्रित करने में हुई देरी के कारण अस्पतालों में काफी अफरा-तफरी मच गई, जिससे लाखों गरीब मरीजों को चिकित्सा सुविधायें और ट्रीटमेंट नहीं मिल पाया।

समिति ने भारत के राष्ट्रपति और केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वे इस मामले पर संज्ञान लें और एलजी और मुख्य सचिव के खिलाफ उचित कार्रवाई करें। प्रोजेक्ट्स को पटरी से उतारने में मुख्य सचिव की भूमिका जांच के दायरे में है। उन्हें 30 दिनों में समिति की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है। रिपोर्ट के बाद विधायकों ने जानबूझकर की गई लापरवाही के लिए मुख्य सचिव, स्वास्थ्य सचिव और वित्त सचिव को निलंबित करने की मांग की और इसका सदन में विरोध किया, जिसके चलते अध्यक्ष को सत्र स्थगित करना पड़ा।
रिपोर्ट के बारे में जानकारी देते हुए विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा, “ओपीडी काउंटर मरीजों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, सीएम की छवि खराब करने के लिए एमसीडी चुनाव से पहले सिस्टम से जानबूझकर छेड़छाड़ की गई।

स्वास्थ्य और वित्त सचिवों ने एक दूसरे के बीच फाइलों को स्थानांतरित किया, एक जनशक्ति अध्ययन का आदेश दिया और ओपीडी काउंटर कर्मचारियों को अचानक हटा दिया गया। अस्पतालों के ओपीडी काउंटरों पर डीईओ की सेवाएं अचानक समाप्त करने से अस्पतालों में अराजक स्थिति पैदा हो गई। विधायकों ने डीईओ की अनुपस्थिति में अस्पतालों में ओपीडी काउंटर चलाते हुए सुरक्षा गार्ड और सफाई कर्मचारियों को पाया। एक दशक पुरानी व्यवस्था को जानबूझकर ठप कर दिया गया। वित्त विभाग द्वारा आदेशित अध्ययन में कोई ठोस सिफारिश नहीं मिली, लेकिन लाखों लोगों को पीड़ित होने के लिए छोड़ दिया गया। दिल्ली विधानसभा की याचिका समिति ने ‘उपराज्यपाल के इशारे पर दिल्ली सरकार के अस्पतालों में ओपीडी काउंटरों के कामकाज में गड़बड़ी करने’ के विषय में आज अपनी रिपोर्ट पेश की। याचिका समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एलजी साहब के इशारों पर हेल्थ सेक्रेटरी और फाइनेंस सेक्रेटरी ने सरकारी अस्पतालों के ओपीडी काउंटर में काम करने वालों कॉनट्रेक्ट वर्कर्स के टेंडर रोक दिए। एआर स्टडी के नाम पर 39 अस्पतालों के टेंडर रोके गए। हेल्थ और फाइनेंस सेक्रेटरी ने जानपूछकर दिल्ली की स्वास्थय व्य्वस्था को चौपट किया है। इसके लिए दिल्ली की विधानसभा में याचिका समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की है। उसमें दिल्ली के हेल्थ सक्रेटरी और फाइनेंस सेक्रेटरी द्वारा की गई लापरवाही और गड़बड़ी को उजागर किया है। याचिका समिति को गुमराह करने, अपमानजनक आचरण करने और समिति से जानकारी छिपाने का प्रयास करने के कृत्यों के लिए स्वास्थ्य विभाग के सचिव अमित सिंगला, वित्त विभाग के प्रधान सचिव डॉ. ए.सी. वर्मा और वित्त विभाग के उप सचिव मनोज शर्मा के विरुद्ध विशेषाधिकार कार्यवाही शुरू की जाए। यह दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में ओपीडी काउंटर बंद कराने के षड्यंत्र में शामिल हैं। दिल्ली विधानसभा को समिति द्वारा दी गई सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट को मुख्य सचिव तीस कार्य दिवसों के भीतर प्रस्तुत करें। इसके साथ ही  समिति ने भारत के राष्ट्रपति और गृह मंत्रालय से अनुरोध किया है कि याचिका समिति की इस रिपोर्ट पर संज्ञान लें और मुख्य सचिव और माननीय उपराज्यपाल के खिलाफ उचित कार्रवाई करें।
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दिल्ली विधानसभा सत्र के तीसरे दिन याचिका समिति के अध्यक्ष अखिलेश पति त्रिपाठी ने सदन में चर्चा की मांग की जिसपर याचिका समिति के सदस्य सौरभ भारद्वाज ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि गरीब लोगों के पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं होते वह सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए जाते हैं। दिल्ली के सरकारी अस्पताल में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं। दिल्ली के सरकारी अस्पताल दिल्ली की चुनी हुई सरकार की एक बड़ी उपलब्धि बताई जाती है। मगर दिसंबर में नगर निगम चुनाव होने से कुछ महीने पहल दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के खिलाफ एक बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा गया। इसमें बड़ें-बड़े आईएएस अधिकारी शामिल थे। समिति को त्रिलोकपुरी विधानसभा से एक शिकायत मिली। इसमें बताया गया कि इन सरकारी अस्पालों में जब पहली बार मरीज जाता है तो वह ओपीडी के काउंटर पर पहुंचता है और अपनी तकलीफ बताता है, वहां मरीज का कंप्यूटराइज्ड कार्ड बनता है। काउंटर पर बैठे कर्मचारी उसे बताते हैं कि उसे किस कमरे में जाकर किस डॉक्टर को दिखाना है। ओपीडी काउंटर पर बैठे आदमी को जानकारी होती है कि उसे किस डॉक्टर के पास भेजना है। 6 महीने पहले दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में षड्यंत्र रचा गया कि जहां भी काउंटर पर डेटा एंट्री ऑपरेटर बैठते हैं। इनके जिस भी अस्पताल में टेंडर खत्म हुए, उन अस्पतालों को दोबारा टेंडर बुलाने से मना कर दिया गया। अस्पतालों ने टेंडर कराने की फाइल स्वास्थ्य विभाग में भेजी। हेल्थ सेक्रेटरी अमित सिंघला के पास गई, उन्होंने ये फाइल फाइनेंस डिपार्टमेंट में भेज दी। फाइनेंस डिपार्टमेंट के चीफ यानी प्रिंसिपल सेक्रेटरी फाइनेंस आशीष चिंद्र वर्मा के पास पहुंची। उन्होंने इन 20-20 हजार की नौकरी करने वाले डेटा एंट्री ऑपरेटर के टेंडर रोक दिए। दिल्ली सरकार के फाइनेंस डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी लिखते हैं कि ये टेंडर आप तब कर सकते हैं, जब आप इसके अंदर एक स्टडी करा लें। जिसको एडमिनिसट्रेटिव रिफॉर्मस डिपार्टमेंट स्टडी (एआऱ स्टडी) कहते हैं। स्टडी से पता लगेगा कि इन अस्पताल के अंदर ओपीडी के कितने काउंटर चाहिए। इन एआर स्टडी के नाम पर अस्पताल ने अपने ओपीडी काउंटर पर बैठे ऑपरेटर्स को नौकरी से निकाल दिया। अगले ही दिन से अस्पताल के ओपीडी काउंटर पर बैठने वाले लोग ही हट गए। अस्पताल में अव्यवस्था फैल गई। यही हालात दूसरे अस्पतालों में भी दिखाई देने लगे। ऐसे कहके ज्यादातर अस्पतालों में 6-7 महीनों के अंदर जहां भी पुराने टेंडर खत्म हुए नए टेंडर नहीं किए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि ओपीडी काउंटर पर लोग नहीं है, कंप्यूटर नहीं है क्योंकि कंप्यूटर भी कॉनट्रेक्ट पर थे। मरीजों को कोई कुछ बताने वाला नहीं है। मरीज परेशान होते रहे, भटकते रहे। दिल्ली के लगभग सभी अस्पतालों में 6-7 महीने अव्यवस्था फैली रही। गरीब आदमी इलाज के लिए सरकारी अस्पताल गया उसे कोई सुविधा नहीं मिल पाई। आम आदमी पार्टी के कई विधायक अस्पतालों की वीडियो लेकर आए, वहां देखा गया कि अस्पतालों में सुरक्षा गार्ड और सफाई कर्मचारियों को ओपीडी काउंटर पर बिठाया गया। वह हाथ से पर्ची बना रहे थे। 
इस विषय में समिति ने जांच कर कारण पता करने की कोशिश की तो पता लगा कि स्वास्थ्य विभाग के सेक्रेटरी अमित सिंघला ने शुरुआत में समिति को कोई उत्तर नहीं दिया। वह यह दर्शाते थे कि उन्हें सरकारी अस्पतालों की इस स्थिति के बारे में कोई जानकारी नही है। उसके बाद वित्तीय विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी आशीष चंद्र वर्मा उनको बुलाया गया, तो उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं थी कि सरकारी अस्पतालों में यह अव्यवस्था फैली हुई है। कई बार सवाल करने पर भी वह समिति को कोई जवाब नहीं देते थे। समिति द्वारा बुलाए जाने पर कहते कि मुझे याद नहीं है, मुझे फाइल देखनी पड़ेगी। फाइल मंगवाने पर वह अफसर को फाइल लेने भेजते मगर अफसर कभी फाइल लेके वापस नहीं आते। इस तरीके से कई बार यह कार्यवाही चलती रही। 28 दिसंबर, 3 जनवरी, 9 जनवरी, 16 जनवरी और 17 जनवरी को यह कार्यवाही हुई। अंत में समिति को यह पता चला की दिल्ली में 2014 से एक सिस्टम चल रहा था, उस सिस्टम में जानबूझकर एक कमी निकाली गई। कमी को निकालकर वापस विभाग में भेज दिया गया। अब विभाग उस कमी को दूर करने के बहाने से अस्पताल के सारे काम ठप कर रहा है। समिति सदस्य सौरभ भारद्वाज ने कहा कि एआर स्टडी के परिणाम जानने की कोशिश की गई तो पता लगा कि 7 महीने की एआर स्टडी बताती है कि जिस अस्पताल में 13 ओपीडी के काउंटर थे वो 12 होने चाहिए। इस स्टडी का कोई फायदा नहीं था। इस स्टडी के पीछे फाइनेंस और हेल्थ सेक्रेटरी ने एक षड़्यंत्र दिल्ली के काम को ठप करने के लिए रचा था। 
समिति ने आशीष चंद्र वर्मा से पूछा कि हमने आपको पहली बार नवंबर में नोटिस भेजा था। आपने एक हफ्ते के अंदर उसका जवाब देना था आपने नहीं दिया। फाइनेंस सेक्रेटरी का कहना है कि मुझे याद नहीं। सचिवालय से फाइल मंगवाई गई तो उसमें साफ लिखा था कि नवंबर के बाद दिसंबर में भी याचिका की कॉपी भेजी गई। उन्होंने कहा कि मुझे याद नहीं, मैं फाइल देखकर फैक्ट्स पर बात करूंगा, मगर क्योंकि मेरे पास फाइल नहीं है इसलिए मैं समिति को उत्तर नहीं दे सकता। फाइनेंस के डिप्टी सेक्रेटरी मनोज शर्मा से फाइल लाने को कहा और साथ में समिति के एक सदस्य को भी साथ भेजा गया ताकि इस बार फाइल मिल सके। डिप्टी सेक्रेटरी जब फाइल लेने जा रहे थे तो वह आशीष जी के सामने से एक फाइल ले जाते दिखे। टोके जाने पर कहते है मैं इसके साथ सचिवालय से दूसरी फाइल लेकर आउंगा। उनसे कई बार कहा गया कि आप फाइल लेने जा रहे हैं तो पहले की फाइल यहीं छोड़ जाए, वह नहीं माने। अंत में जब समिति ने डिप्टी सेक्रेटरी से फाइल ली तो पता लगा यह वही फाइल है जिसे लेने डिप्टी सेक्रेटरी सचिवालय जा रहे थे और इसके लिए कई बार समिति को गुमराह किया गया है। 
आशीष चंद्र वर्मा से समिति ने पूछा कि इस फाइल में सबसे पहले नोटिस लगा हुआ है। उन फाइलों में आपके हस्ताक्षर भी हैं। समिति के सदस्य होते हुए हमें बहुत शर्म आई कि हम इतने सीनियर आईएएस अधिकारी को रंगे हाथो झूठ बोलते हुए पकड़ रहे हैं, समिति को गुमराह करते हुए पकड़ रहे हैं। समिति की कार्यवाही की वीडियो भी बनवाई गई है ताकी कोई हमें झूठा साबित ना कर सके। समिति ने फाइनेंस सेक्रेटरी से सीधा सवाल किया है, आपने आईएएस अधिकारी होकर शपथ लेकर झूठ बोला, समिति को गुमराह किया, समिति का समय खराब किया। इस मामले में समिति ने सदन से इन अफसरों के ऊपर उचित कार्यवाही करने की अपील की। समिति ने हेल्थ सेक्रेटरी से पूछा कि यह आपकी मुख्य जिम्मेदारी है, यह किसकी लापरवाही है। इसपर वह आपस में एक से दूसरे विभाग कीगलती बताते रहे और अंत में अस्पतालों के एचओडी के ऊपर सारी गलती डाल दी, कि एमडी और एमएस ने हमें इसकी जानकारी नहीं दी। समिति सदस्य सौरभ भारद्वाज ने बताया कि सभी 39 अस्पतालों के एमडी और एमएस को समिति ने बुलाया। सभी से शपथपूर्वक साक्ष्य लिया गया। एमडी ने भी कहा कि उन्होंने स्वास्थ्य विभाग को अपनी समस्या बताई मगर उनकी बात नहीं सुनी गई। हर बार यही कहा गया कि जबतक एआर स्टडी नहीं होती नया टेंडर जारी नहीं होगा। समिति की जांच के बाद हेल्थ सेक्रेटरी ने तबतक के लिए पुराने टेंडर की अवधि बढ़ा दी है जबतक एआर स्टडी नहीं होती। हालांकि यह कार्य पहले भी हो सकता था। समिति सदस्य सौरभ भारद्वाज ने कहा कि इस षड़्यंत्र पर चीफ सेक्रेटरी नरेश कुमार जी से भी बयान मांगा गया कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। चीफ सेक्रेटरी ने कहा कि बहुत सारे सिसटम खराब है हम उन्हें ठीक करना चाहते हैं। याचिका समिति को अपनी जांच में पता लगा कि मुख्य सचिव दिल्ली के उपराज्यपाल महोदय का नाम लेकर अफसरों को डराते धमकाते हैं, और काम करने से रोकते हैं।

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*रिपोर्ट के हाइलाइट प़ॉइंट* 
वित्त विभाग का जवाब भ्रामक था और कई अस्पतालों में ओपीडी काउंटरों पर ऑपरेटरों की कमी के कारण नहीं बताए गए थे। रिपोर्ट में जब यह सवाल किया गया कि सबसे पहले स्टडी कराने की जरूरत किसे है,  तो स्वास्थ्य विभाग के सचिव कोई सीधा जवाब नहीं दे पाए।स्वास्थ्य सचिव ने समिति को इस संबंध में कोई सीधा जवाब देने से इनकार कर दिया। समिति को बार-बार एक ही सवाल पूछने के लिए मजबूर किया गया और स्वास्थ्य सचिव ने केवल अस्पष्ट और टालामटोल वाले जवाब दिए। इसके फलस्वरूप समिति स्वास्थ्य सचिव के खिलाफ विशेषाधिकार कार्यवाही शुरू करने के लिए विवश थी।स्वास्थ्य सचिव ने बहुत बाद में स्वीकार किया कि वह वित्त विभाग के विशेष सचिव कुलानंद जोशी और निहारिका नियमित रूप से संपर्क में थे। जिनके साथ उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा की। प्रमुख सचिव को भी सूचित किया। स्वास्थ्य सचिव ने आगे कहा कि वित्त विभाग को सौंपी गई सभी फाइलों में डीईओ सेवाओं को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर देने वाला एक नोट था। स्वास्थ्य सचिव अमित सिंगला ने कहा कि वह नियमित रूप से वित्त विभाग के सभी अधिकारियों को ओपीडी काउंटरों पर प्रशिक्षित स्टाफ की अनुपलब्धता के कारण इन अस्पतालों में गरीब मरीजों को आ रही परेशानियों के बारे में अवगत कराते रहे थे।
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*याचिका समिति की सिफ़ारिश*समिति ने विधान सभा से सिफारिश की है कि अस्पतालों को टेंडर जारी करने के बजाय अपने स्वयं के कंप्यूटर सिस्टम खरीदने चाहिए। डीईओ को नियुक्त करने के लिए टेंडर हर 2 साल में बिना असफल हुए फिर से जारी किए जाने चाहिए और किसी भी विस्तार को केवल एमएस स्तर पर ही निपटाया जाना चाहिए। यह भी कि यदि सभी एआर स्टडी किए जाने हैं तो इसे एक साथ या टेंडर जारी करने से पहले किया जाना चाहिए, जबकि डीईओ लगे हुए हैं, इसके बजाय कि पहले डीईओ को हटाया जाए और फिर अध्ययन किया जाए। वही समिति ने यह भी अनुशंसा की है कि मुख्य सचिव , स्वास्थ्य सचिव एवं वित्त विभाग के प्रमुख सचिव के विरुद्ध जानबूझ कर ओपीडी काउंटरों पर डीईओ से संबंधित फाइलों के प्रसंस्करण में देरी करने के लिए कड़ी कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही समिति को गुमराह करने, अपमानजनक आचरण करने और समिति से जानकारी छिपाने का प्रयास करने के कृत्यों के लिए स्वास्थ्य विभाग के सचिव अमित सिंगला, वित्त विभाग के प्रधान सचिव डॉ. ए.सी. वर्मा और वित्त विभाग के उप सचिव मनोज शर्मा के विरुद्ध विशेषाधिकार समिति की कार्यवाही शुरू की जाए। दिल्ली विधानसभा को समिति द्वारा की गई सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट को मुख्य सचिव तीस कार्य दिवसों के भीतर प्रस्तुत करें। इसके साथ ही  समिति ने भारत के राष्ट्रपति और गृह मंत्रालय से अनुरोध किया है कि याचिका समिति की इस रिपोर्ट का संज्ञान लें और मुख्य सचिव और माननीय उपराज्यपाल के खिलाफ उचित कार्रवाई करें।

*समिति की सिफारिशें*

1. समिति अनुशंसा करती है कि अस्पतालों को अपने स्वयं के कम्प्यूटर सिस्टम खरीदने चाहिए बजाए इसके लिए निविदा जारी करने के। 
2. समिति अनुशंसा करती है कि डीईओ को नियुक्त करने के लिए निविदा बिना चूके हर 2 साल में फिर से जारी की जानी चाहिए और किसी भी विस्तार को केवल एमएस स्तर पर ही निपटाया जाना चाहिए।
3. समिति अनुशंसा करती है कि यदि सभी एआर अध्ययन किए जाने हैं तो इसे एक साथ या निविदा जारी करने से पहले किया जाना चाहिए जब डीईओ लगे हुए हैं। बजाय इसके कि पहले डीईओ को हटाया जाए और फिर अध्ययन किया जाए।
4. समिति अनुशंसा करती है कि ओपीडी काउंटरों में डीईओ से संबंधित फाइलों की प्रक्रिया में जानबूझकर देरी करने के लिए मुख्य सचिव, सचिव स्वास्थ्य विभाग और प्रमुख सचिव, वित्त विभाग के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।
5. समिति सिफारिश करती है कि समिति को गुमराह करने के कार्य, अपमानजनक आचरण और समिति से जानकारी छिपाने का प्रयास करने पर (i) अमित सिंगला, सचिव, स्वास्थ्य विभाग (ii) डॉ एसी वर्मा, प्रमुख सचिव, वित्त विभाग और (iii मनोज शर्मा, उप सचिव, वित्त विभाग के खिलाफ विशेषाधिकार कार्यवाही शुरू की जाए। 
6. दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को समिति (संख्या 1 से संख्या 5) की उपरोक्त सिफारिशों पर की गई कार्रवाई के संबंध में तीस कार्य दिवसों के भीतर दिल्ली विधानसभा को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।
7. समिति भारत के राष्ट्रपति और गृह मंत्रालय से विनम्र अनुरोध करती है कि याचिका समिति की इस रिपोर्ट का संज्ञान लें और मुख्य सचिव और उपराज्यपाल के खिलाफ उचित कार्रवाई करें।

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