अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:एलजी और मुख्य सचिव ने हर मामले में दिल्ली की निर्वाचित सरकार को दरकिनार करने के अपने अति उत्साह से ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि राज्य के खिलाफ गंभीर अपराध करने के कई आरोपी छूट सकते हैं।आईपीसी की धारा-196 कहती है कि राज्य के खिलाफ किए गए अपराधों के मामले में कोई भी कोर्ट “राज्य सरकार“ के अनुमोदन या मंजूरी के बिना ऐसे किसी भी मामले का संज्ञान नहीं लेगी। कई जघन्य अपराध इसी श्रेणी में आते हैं। दिल्ली सरकार के विधि विभाग के अनुसार, इस कानून में “राज्य सरकार“ का मतलब निर्वाचित सरकार है। इसका मतलब यह है कि प्रभारी मंत्री ही सक्षम प्राधिकारी हैं और इन सभी मामलों में मंत्री की मंजूरी आवश्यक है। मंत्री की मंजूरी के बाद फाइल एलजी के पास यह तय करने के लिए भेजी जाएगी कि क्या वे मंत्री के फैसले से अलग हैं या वे इसे राष्ट्रपति को भेजना चाहते हैं।
कुछ माह पहले तक यह प्रक्रिया अपनाई जा रही थी। लेकिन पिछले कुछ महीने से मुख्य सचिव ने मंत्री को दरकिनार करते हुए इन सभी फाइलों को सीधे उपराज्यपाल को भेजना शुरू कर दिया। एलजी ने भी इन सभी मामलों में “अनुमोदन“ दे दिया, जबकि उनके पास अनुमोदन देने का अधिकार नहीं हैं। लिहाजा, पिछले कुछ महीनों में ऐसे सभी आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष के लिए दी गई मंजूरी अमान्य है और जब आरोपी इस बात को कोर्ट में उठाएंगे, तो उन्हें छोड़ा जा सकता है।
डिप्टी सीएम एवं प्रभारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने मुख्य सचिव को बुधवार शाम 5 बजे तक ऐसे सभी मामलों की सूची पेश करने का निर्देश दिया है, जिन मामलों में उनसे मंजूरी नहीं ली गई है। इस तरह, मुख्य सचिव और एलजी ने दिल्ली सरकार के लिए यह अजीब स्थिति पैदा कर दी है। डिप्टी सीएम ने ट्वीट कर कहा, “दिल्ली की चुनी हुई सरकार को बाईपास करते हुए हर एक फ़ैसला लेने के अतिउत्साह में एलजी साहब ने एक कानूनी संकट खड़ा कर दिया है। उन्होंने मंत्री- मुख्यमंत्री की मंजूरी के बिना, अवैध रूप से अभियोजन मंज़ूर करना शुरू कर दिया है, जिसका फायदा अपराधी उठाने की कोशिश कर सकते है।”
*सीआरपीसी की धारा-196 यह कहती है-*
सीआरपीसी की धारा 196 (1) के तहत, कुछ अपराधों के मामले में राज्य सरकार से अभियोजन के लिए कानूनी मंजूरी एक आवश्यक शर्त है। इसमें अभद्र भाषा, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, जघन्य अपराध, राजद्रोह, राज्य के खिलाफ विद्रोह करना, दुश्मनी को बढ़ावा देने जैसे अपराध शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार, निर्वाचित सरकार सीआरपीसी की धारा-196 (1) के तहत मुकदमा चलाने हेतु कानूनी मंजूरी देने के लिए कार्य कारी शक्तियों का प्रयोग करेगी और एलजी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे होंगे। एलजी के पास मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से अलग एकतरफा मंजूरी देने की कोई शक्ति नहीं है।
एलजी के इस कार्य ने कानून द्वारा मान्यता प्राप्त कानूनी मंजूरी नहीं मिलने के कारण ऐसे अभियोगों को अमान्य कर दिया है। एलजी की ये कार्रवाई न केवल सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को कमजोर करती हैं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को भी कमजोर करती हैं, जो उपर बताए गए अपराधों के कानूनी रूप से स्थाई अभियोजन के लिए वैध मंजूरी एक आवश्यक शर्त है। निर्वाचित सरकार को दरकिनार कर दी गई मंजूरी परिहार्य कमी छोड़ देती हैं, जिनका अपराधियों द्वारा अपने लाभ के फायदा उठाया जा सकता है।