अजीत सिन्हा / नई दिल्ली
कांग्रेस प्रवक्ता श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सबको मेरा नमस्कार और जो हम कहना चाहते थे, मुझे लगता है, इस वीडियो ने कह दिया है, लेकिन कुछ बातें कहनी, सुननी और बोलनी जरुरी हैं, क्योंकि जब आंखों के सामने षडयंत्र होता है, तो उसका पर्दाफाश भी होना चाहिए। राहुल गांधी भारत की राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक हैं। पहले सत्तारुढ़ दल में रहते हुए और फिर विपक्ष में रहते हुए उन्होंने आम जनता की आवाज बुलंदी से उठाने का काम किया है, चार बार के चुने हुए इस देश के सांसद हैं और जब चार बार का चुना हुआ इस देश का सांसद एक विदेशी धरती पर, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी जैसे विश्व विख्यात शैक्षणिक संस्थान में, अमेरिका और चीन के बीच चलते द्वंध में भारत की क्या भूमिका हो सकती है और भारत के लोकतंत्र की चर्चा करते हैं, तो मुझे लगता है कि वो इस देश का मान बढ़ाते हैं। इस देश का सीना चौड़ा करते हैं, गर्व से, और इस देश के लोकतंत्र के, इस देश के मूल्यों के ध्वजवाहक बनते हैं।
उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में, जिसकी एक बड़ी लेगेसी है। 1206 में स्थापित हुई थी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और वहाँ पर पढ़ने वाले लोगों में स्टीफन हॉकिंग, चार्ल्स डार्विन, पंडित नेहरु और राजीव जी जैसे लोग हैं और यहाँ पर भी बताना जरुरी है कि ये राहुल जी का भी अल्मा मैटर है, वो कैम्ब्रिज में पढ़े हैं और वहाँ पर As visiting fellow at the Cambridge Judge Business School वो वक्तव्य देते हैं कि भारत की एक अहम भूमिका है, एक स्ट्राइफ रिडिन, एक डायवर्सन दुनिया में अमेरिका और चीन की खींचतान में भारत समन्वय स्थापित करके एक मजबूत स्तंभ बनेगा, तो मुझे लगता है कि ये देश के लिए गौरव की बात है। ये देश के लिए गौरव की बात है कि विदेश की धरती पर महात्मा गांधी जी की आवाज को गुंजाने का काम राहुल गांधी ने किया कैम्ब्रिज में। उन्होंने बताया कि हमारे देश के क्या मूल्य हैं, जिस पर हमारा संविधान बना है और हमारे राष्ट्र का निर्माण हुआ है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी, उनके आईटी सेल, उनके बददिमाग प्रवक्ताओं, उनकी समझ, उनकी छोटी सोच और क्षुद्र राजनीति इन बातों को समझ नहीं सकती है।
अब मैं सिलसिलेवार तरीके से आपके सामने कुछ तथ्य रखना चाहती हूं, सवाल-जवाब के दौरान अगर आप उसको डिस्प्यूट करना चाहें, तो बिल्कुल करिएगा। कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता होने के नाते टीवी डिबेट पर जाना होता है, शाम को, और कल पूरे दिन भारतीय जनता पार्टी, उनके बददिमाग प्रवक्ता, उनके विक्षिप्त मंत्री लगातार लगे हुए थे, विदेशी धरती पर राहुल गांधी जी ने क्यों बोला, विदेशी धरती पर राहुल गांधी जी ने पेगासस का जिक्र क्यों किया? लेकिन ये सारे मामले धराशायी हो गए, क्योंकि राहुल गांधी जी तो लोकतांत्रिक मूल्यों की बात कर रहे थे। इनके आका ने तो ऐसी-ऐसी बातें की हैं कि सिर शर्म से झुक जाए।15 मई, 2015 को शंघाई गए, चीन के सामने कहते हैं, देश के लोगों का सिर शर्म से झुक जाता है कि वो भारत में क्यों पैदा हुए, हमने क्या पाप किया था कि हम हिंदुस्तान में पैदा हुए। जब ऐसे वक्तव्य हमने दिखलाए तो थोड़ा हमलावर कम हुए। लेकिन जब हम टीवी डिबेट कर रहे थे, 6 बजे तक यही था विदेशी धरती पर, पेगासस पर। पेगासस पर भी बेचारे कुछ नहीं बोल सकते क्योंकि जो जांच समिति सुप्रीम कोर्ट की थी, उसने कोर्ट को बताया कि सरकार ने सहयोग ही नहीं किया। कौन से नर कंकाल छुपाना चाहते हैं, हम नहीं जानते? अगर पाक साफ था आपका दामन, तो आते जांच समिति के सामने, बात करते।
खैर, तो 6, सवा 6 बजे तक यही चल रहा था, विदेशी धरती, पेगासस, जो कि खोखला दावा और खोखले आक्षेप साबित हो रहे थे। एक दम से सवा 6, साढ़े 6 बजे के बीच में ब्रेकिंग न्यूज हर चैनल पर, हर पोर्टल पर आने लगी और ये आने लगा कि कैसे राहुल गांधी जी ने तथाकथित भाजपा के कहे अनुसार और कुछ चरण चुम्बकों के कहे अनुसार, चीन की तारीफ की और पुलवामा के शहीदों की अवहेलना की है। मैं टीवी डिबेट पर थी, मैंने गहन आपत्ति जताई, लेकिन मुझे बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगा समझने में, क्योंकि ऑनलाइन आना शुरु हो गया था कि हर चैनल, हर न्यूज ऑर्गनाइजेशन, प्रिंट के वेब पोर्टल सारे एक साथ यही खबर सवा 6 से, साढ़े 6 के बीच में चलाने लगे, तो थोड़ा बहुत मीडिया का एक्सपीरियंस है, तो समझ में आ गया कि व्हाट्सएप आ चुका है, पर्चा निकल चुका है, सबको नतमस्तक होकर चरण वंदन करके अब ये लाइन पकड़नी है।लेकिन इस लाइन में क्या सच है और क्या झूठ है, ये भी बताना जरुरी है, क्योंकि जब पेगासस से काम नहीं बना, जब विदेशी धरती से काम नहीं बना, तो सहारा अपने परम मित्र चीन का ही लिया गया। आपने खुद देख लिया है किसने क्या कहा, लेकिन दर्शकों के लिए, लोगों तक ये बात पहुंचाने के लिए, मैं दोबारा से दोहरा भी देती हूं- राहुल गांधी जी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के जज बिजनेस स्कूल में बतौर विजिटिंग फैलो और भारत का एक नेता विजिटिंग फैलो बनकर जाता है, ये अपने आपमें गर्व की बात है। इससे सीना चौड़ा होना चाहिए, देश का मस्तक उठता है। बतौर विजिटिंग फेलो कैम्ब्रिज के अपना लेक्चर था और उस लेक्चर का टॉपिक था – ‘Learning to listen in the 21st century’. 21 वीं सदी में लोगों की बात को सुनना कैसे सीखा जाए, इस पर वो वक्तव्य दे रहे थे और उन्होंने जो सीखा भारत जोड़ो यात्रा के दौरान, कैसे उन्होंने अजनबियों की बातें सुनी, कैसे उन्होंने अपनी बातें बंद करके, लोगों की बात की और मुखरित हुए। लोगों ने क्या समस्याएं बताईं, कितनी आत्मीयता से बात की, किसी ने बेरोजगारी पर चर्चा की, किसी ने महंगाई पर की, किसी ने महिला असुरक्षा पर की, किसी ने टूटते ताने-बाने पर की। इस पर लगातार उन्होंने एक वक्तव्य दिया और उस वक्तव्य में उन्होंने ये चर्चा की कि कैसे ये विश्व अमेरिका और चीन की खींचतान में कहीं पर जूझ रहा है और उन्होंने ये भी बोला कि इसी जूझते हुए विश्व में और इसी परिवेश में भारत की एक अहम भूमिका होगी। भारत का एक अहम किरदार होगा, एक अहम भूमिका होगी और भारत की भूमिका होगी, समन्वय स्थापित करने की, लोकतांत्रिक मूल्यों को इस विश्व को याद दिलाने की। उन्होंने, आपने सुना भी होगा, उन्होंने इस वक्तव्य में ये भी कहा, उन्होंने अमेरिका और चीन की तुलना की। अमेरिका के इनोवेशन की, चीन के आईपी रेगुलेशन की। उन्होंने तुलना की कि कैसे अमेरिका जो इकोनॉमी बना जो The land of the free और कैसे चीन जो था, उसने प्रोडक्शन दुनिया का वहाँ पर लाया। उन्होंने कहा कि चीन की सरकार जो एक पार्टी के तौर से चलती है, कोर्सिव सिस्टम है, चीन की सरकार ने चीन के कारोबार में घुसपैठ की है, लोगों के दैनिक जीवन में घुसपैठ की है और इसी से उनके पास डेटा आता है, जो लोकतांत्रिक देश नहीं कर सकता है और नहीं करना चाहिए।उन्होंने कहा कि चाहे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो या साइबर वॉर-फेय़र हो, उसकी आधारशिला यहीं से आती है कि अनलाइक जो कॉर्पोरेशन अमेरिका ने बनाई, चीन ने उन कॉर्पोरेशन में सरकार को, तंत्र को घुसेड़ने का, लोगों के जीवन में घुसने का काम किया और पुरजोर तरीके से कहा कि भारत की क्या अहम भूमिका होगी।उन्होंने आगे एक बहुत अहम बात कही, जो हमने दिखाया। उन्होंने कहा कि दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में 21 वीं सदी में उत्पादन, मतलब, मैन्युफैक्चरिंग करनी ही पड़ेगी, क्योंकि जो मैन्युफैक्चरिंग का हब चीन बन गया है अपने कोर्सिव सिस्टम से, बल पूर्वक, कोई चूं नहीं कर सकता, किसी की जमीन चली जाए, कोई चूं नहीं कर सकता लेबर लॉ के खिलाफ, जिसको उन्होंने कोर्सिव सिस्टम, आपके सामने मैंने दिखाया, उन्होंने जिसको कोर्सिव सिस्मट कहा, उन्होंने कहा विश्व के लोकतांत्रिक देशों में, इंक्लूडिंग भारत में, आपको उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा, जिससे लोगों को नौकरियां मिलें, जिससे आय बढ़े, जिससे लोग क्रियाशील हों और ये इसलिए करना पड़ेगा क्योंकि आर्थिक असमानता इतनी बढ़ गई है, एक प्रतिशत देश के पास 40 प्रतिशत संसाधन है। आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, गरीबी, नहीं तो गुस्सा ऐसे फूटेगा कि संभाले नहीं संभलेगा और इसलिए लोकतांत्रिक देशों में उत्पादन बढ़ाना अनिवार्य है, नहीं तो एक आपदा बनती नजर आ रही है।इससे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है, ये मेरी समझ के बाहर है। असल में तो अगर मैं सरकार में हूं, मैं कहूं बिल्कुल सही बात कर रहे हैं, लगातार दो तिमाही से मैन्युफैक्चरिंग नेगेटिव में चल रही है। जीडीपी का डेटा 4.4 पर आ गया है और ये सुनने को तैयार नहीं हैं, इससे क्या आपत्ति है, मुझे नहीं पता और अब बात कर लेते हैं, उस अमर प्रेम कथा की, जिसके आपने कुछ अंश देखे और वो ये मेरे शब्द नहीं हैं, ये मोदी जी के शब्द हैं। वो कहते हैं कि दो वैश्विक नेताओं की, शी जिनपिंग की और उनके बीच कितना अपनत्व है, कितनी आत्मीयता है, ये लोगों की समझ के बाहर है। बिल्कुल सही कह रहे हैं, हम नहीं समझ पा रहे हैं इस बात को कि ऐसी कौन सी गलबइंया हैं, ऐसा कौन सा इश्क है, ऐसा कौन सा प्रेम है, ऐसा कौन सा भाईचारा है, ऐसी कौन सी आत्मीयता है कि इस देश का प्रधानमंत्री 20 जांबाजों की शहादत के बाद चीन का नाम नहीं ले पाता है? इस देश के प्रधानमंत्री साबरमती के तट पर झूला झूलते हैं, शी जिनपिंग के साथ। महाबलीपुरम में शहनाई सुनते हैं, बाली जाते हैं तो 20 जांबाजों की शहादत का हिसाब नहीं मानते हैं। खाना छोड़कर, जी हजूरी में, लाल शर्ट पहन कर बजाए लाल आंखों के खड़े हो जाते हैं। इस देश के प्रधानमंत्री की चीन से ये आत्मीयता है कि नाम लेना तो दूर, कोई घुसा हुआ नहीं कहकर, उनको क्लीनचिट भी दे देते हैं और कितना दुर्भाग्य है इस देश का कि चीन का पीएलए और हमारे प्रधानमंत्री एक ही भाषा बोलते हैं कि कोई घुसा हुआ नहीं है। लेकिन हमारे पेट्रोलिंग प्वाइंट, बफर जोन बन गए हैं, 20 जांबाजों की शहादत का बदला हमने 100 बिलियन डॉलर व्यापार घाटे से दिया है। इन सब बातों का जवाब कौन देगा- इन सब बातों का एक ही जवाब है- ये प्यार ना होगा कम, सनम तेरी कसम। यही कहना चाह रहे हैं मोदी जी, शी जिनपिंग से और ये मैं नहीं कह रही हूं, ये मेरे शब्द बिल्कुल नहीं हैं, ये मोदी जी के शब्द हैं कि हमारा ऐसा नाता है वो वाडनगर आए तो फिर वो फलाना हुआ। ये समझ नहीं पाएंगे लोग कि दो लोगों में कितनी आत्मीयता हो सकती है। ये मेरे शब्द नहीं हैं, ये मोदी जी के शब्द हैं। उनसे दो हाथ आगे, हमेशा ऐसा होता है ना कि आका कुछ करता है और तो जो प्रजा होती है वो दो हाथ आगे निकल जाती है। उनसे दो हाथ आगे इस देश के विदेश मंत्री श्री जयशंकर जी निकल गए। आपने देखा। मैं फिर से, ना मेरे शब्द हैं, ना कांग्रेस पार्टी के शब्द हैं, श्री जयशंकर जी ने अपने इस इंट्रव्यू में कहा, दो हाथ आगे निकल कर और हमारी सेना के मनोबल को गिराने का काम किया, जब वो कहते हैं कि हम छोटी अर्थव्यवस्था हैं, वो बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, आपको लगता है कि वो इनसे लड़ सकते हैं। बिल्कुल सही कहा राहुल गांधी जी ने, जब आजादी का आंदोलन हम लड़ रहे थे और जब शहादत दे रहे थे, तब हमने ये नहीं सोचा था कि ब्रिटेन की हुकूमत बड़ी है, ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था बड़ी है, उनसे हम कैसे लड़ेंगे। हमने सत्य, अहिंसा और देशभक्ति और राष्ट्र प्रेम के बल पर ब्रितानिया हुकूमत को घुटने टिकवाकर इस देश से विदाई करवा दी थी।
लेकिन ये लोग नहीं समझ सकते, क्योंकि आप जानते हैं कि उस समय माफीनामे और मुखबिरी की जा रही थी।
एक और बयान और ये मेरे लिए थोड़ा सा व्यक्तिगत है, क्योंकि मैं वहाँ पर थी, मैं इस बात का जरुर उल्लेख करना चाहती हूं। ये बात है पुलवामा वाले बयान की। आप विपक्ष के नेता को पॉलिसी पर, विपक्ष के नेता को उनके वक्तव्यों पर बिल्कुल घेरिए, लेकिन आप विपक्ष के नेता को घेरने का काम, लोगों की जो शहादत हुई है, उसके बल पर करेंगे, तो ये स्वीकार्य नहीं है। राहुल गांधी जी ने कहा अपने व्याख्यान के दौरान कि जब हम भारत जोड़ो यात्रा करते हुए कश्मीर पहुंचे तो कश्मीर में हिंसा का माहौल है, कश्मीर में इमरजेंसी है, क्या सरकार इसे नकार सकती है। ये अलग बात है कि पूरी की पूरी सरकार, पूरा तंत्र एक पिक्चर का प्रमोशन करेगा, लेकिन कश्मीरी पंडितों को चुन-चुन कर मारा जाएगा, लेकिन उस पर सरकार एक शब्द नहीं बोलेगी। 6 महीनों से वो आंदोलन कर रहे हैं, एक बार उनसे चर्चा नहीं की जाएगी। कश्मीरी पंडितों ने हमें आकर जो कैमरा पर कहा कि हमें सिर्फ और सिर्फ कैनन फोडर और वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया जाता है, हमारे लिए मोदी सरकार कुछ नहीं करती। ये असलियत है, ये सच है।तो राहुल गांधी जी ने कहा कि हम भारत जोड़ो यात्रा करते हुए जब कश्मीर पहुंचे तो सुरक्षा कर्मियों ने हमसे कहा कि आप यहाँ मत चलिए। यहाँ पर असुरक्षा है, आपके ऊपर हैंड ग्रेनेड पड़ सकते हैं। लेकिन इन बातों के बावजूद उन्होंने कश्मीर में चलना कबूल किया और वो कश्मीर में चले और वो आगे कहते हैं कि तिरंगे के सैलाब को देखकर मुझे समझ आ गया कि जहाँ अहिंसा होगी, जहाँ मोहब्बत होगी, जहाँ प्यार होगा, वहीं विश्वास होगा। मुझसे लोगों ने कहा कि हमें लगा कि आप हमारी बात सुनने आए हैं, इसलिए आप यहाँ सुरक्षित है और मैं सलाम करती हूं ऐसे जज्बे को और उस पर भी और इस पर मैं थोड़ा सा कोट करना चाहूंगी- राहुल गांधी जी बिल्कुल क्लीयरली कहा अपनी फोटो दिखाते हुए – There is me, putting flowers on the spot, where almost 40 soldiers were killed by a car bomb.आपके साथियों को, नोएडा के कमांडो वॉरियर, एंकर गण को बाय ए कार बम, इन कार बम समझ में आता है। अगर ट्रांसलेशन आप गलत कर रहे हैं, तो मेरे नेता के खिलाफ आप ये नहीं कर सकते हैं। राहुल गांधी जी ने कहा 40 सैनिक जहाँ पर मारे गए, एक कार बम से, 300 किलो आरडीएक्स जब आया और 40 जवान जब वहाँ पर मारे गए, उस स्थल पर जाकर उन्होंने पुष्प अर्पित किए। इस बयान पर भी आप राजनीति करिएगा, इस बयान पर भी गंदी, ओच्छी, अमानवीय राजनीति करिएगा? आप भले ही पुलवामा नहीं गए हो, मैं कहना नहीं चाहती थी, जब पुलवामा में सैनिकों की शहादत होती है, तो अमित शाह जी इलेक्शन रैली करते रहते हैं, हमने अपने सारे कार्यक्रम स्थगित कर दिए थे, अमित शाह जी इलेक्शन रैली करते हैं और इस देश का चुना हुआ प्रधानमंत्री ‘मैन वर्सेस वाइल्ड’ जिम कॉर्बेट में बेयर ग्रिल्स के साथ शूटिंग करते रहते हैं।तमामों घंटे के बावजूद भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी शूटिंग नहीं रोकी और जब पुलवामा में शहीदों की शहादत हुई, तो प्रधानमंत्री को कोई उनकी शूटिंग से डिस्टर्ब नहीं कर पाया। हमारे नेता ने जाकर वहाँ पुष्प अर्पित किए, आप उस पर हमें बोलेंगे। इस पर तो हम आपको ऐसा मुँह तोड़ जवाब देंगे कि आपको छुपने की जगह नहीं मिलेगी। अंत में मैं एक बात जरुर कहूंगी कि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जैसे विश्व विख्यात संस्थान में जो 1206 में स्थापित हुआ और जैसा कि मैंने आपको बताया कि जहाँ पर लीडिंग लुमिनरीज ऑफ अवर टाइम्स पढ़कर निकले हैं, उसमें चाहे पंडित नेहरु जी हों, चाहे राजीव गांधी जी हों, चाहे चार्ल्स डार्विन हों, चाहे स्टीफन हॉकिंग हो, चाहे अमर्त्य सेन की एसोसिएशन रही हो, एक जबरदस्त इंस्टीट्यूट है और यहाँ का एक एलिमनी है, उनका अल्मा मेटर हैं, वो खुद वहाँ पर पढ़े हुए हैं। वहाँ पर जाकर जब वो भारत के ध्वजवाहक बनते हैं, जब वो भारत की अहम भूमिका की दुनिया में बात करते हैं, तो सिर्फ एक बात समझ आती है कि भारतीय जनता पार्टी के आरोप और जो उनकी विद्रूप राजनीति है, वो या तो उनको समझ नहीं आया कि वो क्या कह गए, लेकिन मैं उनको जरुर कहूंगी कि नफरत के इस बाजार से निकलिए, अपने ज्ञान चक्षु खोलिए, अपने ऊपर एक अहसान करिए, वो एक घंटे, एक मिनट का वक्तव्य सुनिएगा, आप भी बहुत सीखिएगा, इस देश को सिखाइएगा और अपने बच्चों को सिखाने लायक रहिएगा, क्योंकि चीन पर सवालों की बौछार है और उन सवालों से आप बच नहीं सकते, ये भी एक तथ्य है।