नई दिल्ली/अजीत सिन्हा
शक्ति सिंह गोहिल ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे संविधान के आर्टिकल 14 में ये कहा गया है Equality before law, कानून के सामने समान सब हैं और हमारा आर्टिकल 14 कहता है The state shall not deny to any person equality before the law or the equal protection of the law within the territory of India. हमारे देश में किसी भी नागरिक को कानून के सामने एक समानता का रक्षण मिलता है। संजीव के लिए कुछ और कानून और मेरे लिए कुछ और या इनको कुछ और ट्रीटमेंट, मुझे कुछ और ट्रीटमेंट वो आर्टिकल 14 संविधान का मना करता है कि ये नहीं हो सकता है। हमारे देश के कानून की किसी भी प्रक्रिया में, जिनको अधिकार दिया गया है उनकी भी ये जिम्मेदारी है कि एक समान ट्रीटमेंट… कौन व्यक्ति है नहीं देखना है, कानून के सामने उसको समान ट्रीटमेंट मिलनी चाहिए, चाहे वो इलेक्शन कमीशन हो, चाहे वो स्पीकर हो, चाहे वो प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया हो।
मैं आज एक चीज आपके सामने दिखाना चाहता हूं कि आर्टिकल 14 का उल्लंघन, कानून के सामने सब समान पर बीजेपी का एमपी है तो उसके लिए दूसरी ट्रीटमेंट और कांग्रेस के लिए दूसरी ट्रीटमेंट। मैंने आपको एक बंच दिया है जिसमें पहले ऊपर एक गुजराती है, ये जो गुजराती है, वो गुजरात के अमरेली डिस्ट्रिक्ट का एक क्रिमिनल केस चला, उसके जजमेंट की कॉपी है और उसमें दोषी जो पहला व्यक्ति है, वो है भारतीय जनता पार्टी के मेंबर पार्लियामेंट श्री नारनभाई कछड़िया, अब ये नारनभाई कछड़िया के खिलाफ एक शेड्यूल कास्ट (दलित), जिसे हम अनुसूचित जाति कहते हैं उसके एक डॉक्टर डाबी साहब, उन्होंने एक कंप्लेंट डाली थी कि 1 जनवरी, 2013 को मैं एक सरकारी डॉक्टर के तौर पर, ट्रॉमा सेंटर में, इमरजेंसी में काम कर रहा था। एक एक्सीडेंट हुआ था, बहुत सारे पेशेंट आए थे, मैं उनके ट्रीटमेंट में बिजी था, मेरा फोन मैंने साइलेंट किया था तो मैंने देखा नहीं साइलेंट फोन था, किसका आ रहा है, मैंने छोड़ा था, मैंने देखा नहीं था।
उसी वक्त एक भाई और आया वहां कहने लगा कि एमपी साहब से बात कर लो मोबाइल लेकर, मैंने कहा कि मैं ट्रीटमेंट कर रहा हूं, बाद में करूंगा। थोड़ी मिनटों के बाद बीजेपी के एमपी नारनभाई कछड़िया 15 से 20 लोगों को लेकर आते हैं, कहते हैं डाबी कौन है? डॉक्टर कहते हैं – मैं डॉक्टर डाबी हूं। थप्पड़ लगाते हैं, लातों से मारते हैं, एट्रोसिटीज़ एक्ट बने इस तरह से जातिगत गालियां देते हैं, पीटा जाता है उसका केस है, ये केस चलता है। पुलिस पहले तो एंक्वायरी करती है, जांच करती है, चार्जशीट फाइल करती है कि हां गुनाह बना है, केस चलता है जिसका मैंने आपको जजमेंट दिया और 13 अप्रैल, 2016 श्री नारनभाई कछड़िया, बीजेपी के एमपी को 3 साल की सजा होती है। कितना सीरियस क्राइम है आपने देखा, इंडियन पीनल कोड 143, 332, 504, जान से मारने की भी धमकी दी थी 506 2, 186, एससी, एसटी एक्ट सेक्शन 3 (1) & (10) ये केस था। जिसमें 3 साल की सजा मिलती है इनको। ये सजा मिलने के बाद कोर्ट को ये कहते हैं कि मेरा… सेन्टेंस और कन्विक्शन, दो चीज होती है। ज्यादातर जर्नलिस्ट सब आप जानते ही हो, पर फिर भी क्लीयर करता हूं कि 2 होता है – एक पहले कोर्ट कहती है कि आप इस गुनाह में कसूरवार हो Order of conviction, you are convicted आप इस गुनाह के लिए जिम्मेदार हो, दोषी पाए गए हो। दूसरा होता है कि आप दोषी पाए गए तो क्या? That is order of Sentence. वो कहते हैं कि आप दोषी पाए हो इस गुनाह में इसके लिए आपको 2 साल, 3 साल, 4 साल, आजीवन कैद उसकी सजा देते हैं, That is order of sentence. तो इसको दोनों मिला।उसने कहा कि ये दोनों स्टे करो क्योंकि मैं तो एमपी हूं, मैं माफी भी मांग लेता हूं, जो कहो कर देता हूं, करो। वहां की सेशन कोर्ट ने कहा – No, आपने क्राइम किया है, एक डॉक्टर ऑन ड्यूटी है, अब पेशेंट को देख रहे हैं इमरजेंसी में, उसने फोन नहीं उठाया, आप जाकर गुंडागर्दी करते हो और वो भी एससी डॉक्टर है, दलित डॉक्टर है क्योंकि 3 साल की सजा है, order of sentence आपको bail देते हैं, पर कन्विक्शन का ऑर्डर हम स्टे नहीं करते हैं, ये कोर्ट कहती है। तुरंत हमारे एक्स एमपी वहां से वीरजीभाई थुम्मर, परेश धानाणी उन्होंने कम्युनिकेट किया कि साहब इसको 3 साल की सजा हो गई है, इसका कन्विक्शन का ऑर्डर स्टे नहीं हुआ है, ये सर्टिफाइड कॉपी है ऑर्डर की, स्पीकर को दिया, प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया को दिया, इलेक्शन कमीशन को दिया कि इसकी सदस्यता खत्म हो जाती है, करो। डिसीजन नहीं हुआ। एक हफ्ते बाद श्री नारनभाई कछड़िया हाईकोर्ट में जाते हैं, हाईकोर्ट में 18 अप्रैल, 2016 को जाते हैं और अपील करते हैं कि मैं तो एमपी हूं, मेरी सदस्यता चली जाएगी, मेरा कन्विक्शन पहले स्टे कर दो और अपील मेरी एडमिट करो।
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