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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती पर लोकसभा प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आज वीरभूमि में जाकर श्रद्धासुमन अर्पित किए। 

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली:देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती पर लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आज प्रात वीरभूमि में जाकर श्रद्धासुमन अर्पित किए। आज राजीव गांधी की 80वीं जयंती है। उनका राजनीतिक जीवन छोटा लेकिन बेहद महत्वपूर्ण था। मार्च 1985 के बजट में उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसने आर्थिक नीति के प्रति एक नया दृष्टिकोण दिया। शहादत को प्राप्त होने से कुछ सप्ताह पहले तक उन्होंने 1991 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र को तैयार करने में कई घंटे बिताए थे, जिसने जून-जुलाई 1991 में नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह द्वारा लाए गए ऐतिहासिक सुधारों की नींव रखी। असम, पंजाब, मिज़ोरम और त्रिपुरा जैसे देश के अशांत क्षेत्रों में शांति समझौते उनकी उस शासन कला के बदौलत संभव हो पाए, जिन्होंने राष्ट्रीय हित को अपनी पार्टी के तात्कालिक हितों से ऊपर रखा।

उनके पास विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सामाजिक उपयोगिता के लिए एक दृष्टिकोण था जो पेयजल आपूर्ति,टीकाकरण,साक्षरता, तिलहन उत्पादन और दूरसंचार एवं डेयरी विकास में प्रभावशाली प्रौद्योगिकी मिशनों में परिलक्षित हुआ। 1985 में, 165,000 ऐसे गांवों की पहचान हुई थी जहां पीने योग्य पानी के किसी भी स्रोत तक आसान पहुंच नहीं थी। 1989 तक, इनमें से 162,000 गांवों को पीने के पानी का‌ कम से कम एक सुरक्षित स्रोत प्रदान किया गया था। ओरल पोलियो वैक्सीन बनाने की सुविधाएं स्थापित की गईं। भारत को सॉफ्टवेयर निर्यात में महाशक्ति बनाने की दिशा में पहला प्रत्यक्ष कदम उनके कार्यकाल के दौरान उठाया गया था। C-DAC जैसी संस्थाएं जिनपर आज हमें गर्व है, 1980 के दशक के अंत में स्थापित की गई थीं। राष्ट्रीय आवास बैंक और भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक जैसी वित्तीय संस्थाएं अस्तित्व में आईं।प्रगतिशील मूल्यों पर आधारित 1986 की नई शिक्षा नीति पर उनकी व्यक्तिगत छाप थी। आज के नवोदय विद्यालय इसी पहल के तहत सामने आए। मतदान की आयु घटाकर 18 वर्ष कर दी गई और स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित किया गया। हमारे संविधान का अनुच्छेद 243 निर्वाचित पंचायतों और नगर पालिकाओं को सशक्त बनाने की उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता को श्रद्धांजलि है। आज, स्वशासन की इन संस्थाओं में 30 लाख से अधिक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं जिनमें से 40% से अधिक महिलाएं हैं। आज हम न सिर्फ़ एक प्रधानमंत्री को, बल्कि एक बहुत ही नेक दिल और सबकी परवाह करने वाले इंसान को भी याद करते हैं, जिसमें द्वेष नहीं था, प्रतिशोध और बदले की कोई भावना नहीं थी, कोई आडंबर नहीं था, और ख़ुद के महिमा मंडन एवं आत्मप्रशंसा की चाह नहीं थी।

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