अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद:जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद के मीडिया एवं तकनीकी विभाग ने बीजेएमसी द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिए 12 और 13 सितंबर को एक दो दिवसीय रेडियो कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का उद्देश्य छात्रों को रेडियो में पारंपरिक मीडिया प्रथाओं और आधुनिक मीडिया के बीच आए बदलावों की समझ देना था। इस अवसर पर मीडिया शिक्षाविद् डॉ. सुरेश वर्मा ने विशेषज्ञ के रूप में शिरकत की, जबकि कार्यशाला का समन्वयन डॉ. तरूणा नरूला द्वारा किया गया। कार्यशाला की शुरुआत डॉ. सुरेश वर्मा ने संचार प्रक्रिया से की, जिसे वे आवाज़ के महत्व तक ले गए। उन्होंने रेडियो में आवाज की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यदि कोई अपनी आवाज़ से किसी दृश्य को जीवंत करने की कला में निपुण हो जाता है, तो उसके लिए रेडियो की दुनिया में नए आयाम खुल सकते हैं। छात्रों को प्रेरित करने के लिए उन्होंने एक एक्टिविटी करवाई और उनकी आवाज़ को बेहतर करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।
डॉ. वर्मा ने छात्रों को रेडियो के चार महत्वपूर्ण तत्वों – बोले गए शब्द, संगीत, ध्वनि प्रभाव, और ठहराव या मौन – की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैसे पुराने समय में ध्वनि प्रभाव के लिए अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया जाता था और अब डिजिटल युग में इन्हें रिकॉर्ड करके दोबारा उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने रेडियो में फॉर्मेट न बदलने की बात पर जोर दिया और बताया कि पुराने फॉर्मेट को रचनात्मकता के जरिए कैसे सुधारा जा सकता है। समापन सत्र में, डॉ. वर्मा ने रेडियो की बदलती तकनीक और इसके भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि डिजिटल युग में रेडियो का महत्व बना हुआ है और पॉडकास्टिंग तथा ऑनलाइन रेडियो चैनल इस माध्यम को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। कार्यशाला के अंत में उन्होंने छात्रों को प्रेरित करते हुए कहा, “रेडियो सिर्फ एक माध्यम नहीं, बल्कि एक ऐसी कला है, जो दिलों को छूने की शक्ति रखती है।” डॉ. तरूणा नरूला ने कार्यशाला के समापन पर सभी प्रतिभागियों को बधाई दी और छात्रों की उत्सुकता और समर्पण की सराहना की।
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