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फरीदाबाद

दुनिया में हज़ारों लोग सुसाइड का शिकार होते हैं जिससे कई परिवार हिल, और टूट कर बिखर जाते है-प्रीती बोहरा


अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद: हर साल 700 000 से ज़्यादा लोग आत्महत्या करते हैं, यानी हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। आत्महत्या एक वैश्विक घटना है और यह जीवन भर होती रहती है। भारत में आत्महत्या एक प्रमुख राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। वर्ष -2022 में 1.71 लाख आत्महत्याएं दर्ज की गई, जो वर्ष 2021 की तुलना में 4.2% और 2018 की तुलना में 27% की उछाल दर्ज करती हैं। वर्ष -2022 में प्रति एक लाख आबादी पर आत्महत्या की दर बढ़ कर 12.4 हो गई है जो किसी भी वर्ष में सबसे अधिक है। वैश्विक आत्महत्या मौतों में भारत का योगदान वर्ष 1990 में 25.3% से बढ़कर वर्ष 2016 में महिलाओं के मामले में 36.6% और पुरुषों के मामले में 18.7% से बढ़कर 24.3% हो गया है, जो बहुत ही चिंताजनक है।वर्ष -2021 में पुरुष-से-महिला आत्महत्या अनुपात 72.5: 27.4 था। वर्ष -2019 के लिए, जबकि एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) ने भारत की आत्महत्या दर 10.4 बताई है, डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, उसी वर्ष भारत में अनुमानित आयु-मानकीकृत आत्महत्या दर 12.9 है।उन्होंने अनुमान लगाया है कि यह महिलाओं के लिए 11.1 और पुरुषों के लिए 14.7 है।अगर हम राष्ट्रीय स्तर पर रुझानों पर गौर करें तो पाएंगे कि भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या की दर आम तौर पर बहुत ज़्यादा है। मध्यम और वृद्धावस्था में पुरुषों में आत्महत्या की दर ज्यादा है जबकि 15-29 वर्ष की आयु वर्ग में महिलाओं में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है।जहाँ तक युवा आयु वर्ग में महिलाओं की आत्महत्या की उच्च दर का सवाल है, यह देखा गया है कि विवाह की आयु और व्यक्तिगत निर्णय लेने के मूल्य जैसे मुद्दों से संबंधित पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक जीवन शैली के बीच चल रहा टकराव, साथ ही पितृसत्तात्मक मानदंड और महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा इसके लिए योगदान देने वाले कारक हो सकते हैं। दूसरी ओर, मध्यम आयु वर्ग में पुरुषों की आत्महत्या की दर अधिक है, ऐसा कहा जाता है कि “क्योंकि भारत में पुरुष पारंपरिक रूप से “रोटी कमाने वाले” की भूमिका निभाते हैं और मध्यम आयु के दौरान परिवार के लिए प्रदान करने में विफलता, उदाहरण के लिए, रोजगार के नुकसान के कारण, आत्महत्या की दर अधिक हो सकती है”आत्महत्या के लिए एक बड़ा जोखिम कारक मानसिक बीमारी है, खासकर अगर इसका इलाज न किया जाए। औसतन, जिन लोगों को मानसिक बीमारी का पता चलता है, उनमें आत्महत्या का जोखिम अधिक होता है।
पहले तो यह समझते हैं की सुसाइड क्या है?
जब कोई अपनी ज़िन्दगी खत्म  करने की बात दिमाग में लाता है, उसे सुसाइड कहते हैं। इसका उम्र से कोई लेना देना नहीं होता है,बच्चे से लेकर बूढ़े तक अपने जीवन को खत्म करने की कोशिश कर लेते हैं। इसका किसी भी स्थान, प्रदेश या वर्ग से भी कोई मतलब नहीं है। हर शहर, देश, जाति, वर्ग के लोग अपनी ज़िन्दगी को खत्म  करने की बात करते हैं। जैसा मैंने कहा कि अपने दिमाग में यह बात आती है, तो अब प्रश्न यह उठता है की ऐसा क्यों होता है? साफ़ सी बात है की वह परेशान है और उसे इस परेशानी को किसी से अपने परिवार वालों, दोस्तों, शिक्षक या गुरु, किसी से भी कहने की हिम्मत नहीं है और इसे इसका कोई हल नहीं मिला और इसे ज़िन्दगी खत्म  कर लेना ही एक रास्ता दिखाई दिया। न्यूरो भाषाई प्रोग्रामिंग व्यक्तिगत विकास और मनोचिकित्सा के लिए एक छद्म वैज्ञानिक दृष्टिकोण है जिसके अध्ययन से हमें यह जानकारी मिलती है की हमारी सोच का स्वरूप हमारे जीवन के हर पहलू को कैसे प्रभावित कर सकता है। सुसाइड कोई बीमारी या कमज़ोरी नहीं है।  यह समझना ज़रूरी है की घबराहट, बेचैनी, विचारों की उथल पुथल से निराशा, अवसाद, लम्बे समय तक एक ही चीज़ के बारे में बहुत ज़्यादा सोचना, उत्कंठा का रूप ले लेते हैं जो सुसाइड या आत्मघात का भी मोड़ ले सकते हैं। इसलिए बेहतर यह है की हम इसके प्रति सचेत रहें, वक्त आ चुका है जब हम इसे लेकर जितनी भी गलत फहमियां, मानसिकताएं हैं, उन्हें दूर करें और लोगों की मदद करें ताकि वे यह कदम उठाने के बारे में न सोचें। अगर कोई निराशावादी बातें कर रहा है, उसे ज़िन्दगी जीने की कोई वजह नहीं दिख रही, परिवार और दोस्तों से नहीं मिलना छह रहा, उनके साथ नहीं बैठना छह रहा, हर समय धूम्रपान या शराब की आदत लग गई  है, इनमें से कोई भी संकेत आप को दिख रहे हैं तो आप सचेत हो जाइये क्यूंकि वह आत्मघात की तरफ बढ़ रहा है और आप इसे रोक सकते हैं, बचा सकते हैं, उसे अकेला न छोड़ें, किसी कौन्सेल्लोर या थेरेपिस्ट या लाइफ कोच के पास ले कर जाएँ, वो बच सकता है। न्यूरोलॉजिकल पंक्तियोजना में 7 स्तर होते हैं जिन्हे रोबर्ट डिल्ट्स ने खोजै थे  और इसे डिल्ट्स पिरामिड कहते हैं।  इसकी मदद से हम जान सकते हैं की एक व्यक्ति किन चीज़ों से प्रभावित होता है और हम कैसे इन्हें अपने अनुकूल बदल कर अपनी ज़िन्दगी को खुशनुमा बना सकते हैं।  
ये स्तर इस प्रकार हैं :
पहला, परिस्थिति या माहौल: हम जिस माहौल में रहते हैं, उसका हमारी मनस्तिथि पर बहुत प्रभाव पड़ता है।  जहाँ हर समय झगडे, तनाव, अनावश्यक अपेक्षाएं, एक दूसरे की भावनाओं की क़द्र न होना जैसा माहौल होता है, वहां निराशा, गलत सोच और मन की व्याकुलता आम बात है।  वहीँ दूसरी ओर एक दूसरे का साथ निभाना, हर हाल में खुश रहना, एक दूसरे की मनस्तिथि के बारे में बात करना, ऐसा माहौल हो चाहे वह घर हो, शिक्षा संस्थान या दफ्तर, व्यक्ति सम्हल कर जी सकता है, अंदर ही अंदर घुटेगा नहीं।  
दूसरा, व्यवहार: हमें ध्यान देना चाहिए की हम ऐसा कोई व्यवहार न करें जिससे कोई अपने अंदर ग्लानि महसूस करे।  लोगों के दिल की गहराई तक चोट पहुंचाने वाला व्यवहार घातक और जानलेवा हो सकता है। 
तीसरा, कार्यकुशलता: जिनकी मन स्थिति ठीक नहीं होती, वे अपने आप को किसी भी कार्य को करने में कुशल नहीं समझते, उन्हें एनएलपी (NLP) की तकनीक जैसे एंकरिंग (Anchoring) और Reframing (जिसमें विचारों और शब्दों का परिवर्तन सीखा कर हम ऐसे व्यक्ति की मन स्तिथि बदल सकते हैं और उनमें जीने की प्रबल इच्छा जाग्रत कर सकते हैं।  
चौथा, मान्यताएं और धारणाएं: अक्सर लोगों के मन में गलत धारणाएं घर कर जाति हैं जो निराशावादी विचारों को जन्म देती हैं और अंततः आत्मघात का कारण बन जाती हैं।  आत्म चिंतन और थेरेपी से हम इसे बदल सकते हैं। 
पाँचवा, पहचान: ख़राब मनस्तिथि से हम अपनी पहचान खोने लगते हैं, अपनी ही नज़रों में गिर जाते हैं।  अपनी ज़िन्दगी की सफलताएं, दूसरों की उम्मीदों का मापदंड हमारी पहचान की परिभाषा बनने लगता है, जिसे हम काउंसलिंग करके उनकी मदद कर सकते हैं। 
छठा, उद्देश्य: अगर इंसान को उद्देश्य के बारे में एहसास करवाया जाए की उसकी ज़िन्दगी का क्या बड़ा उद्देश्य है, उसे वह पाना ज़रूरी है, उसको पाने की छह में अगर वह लग जाए तो हम देखेंगे की हमने उसकी मनस्तिथि को बदल दिया है। 
सातवां, आध्यात्मिकता: जब इंसान आध्यात्म की ओर चलने लगता है, उसे जीवन में कुछ बड़ा करने की, दूसरों की मदद करने की इच्छा जागरूक होती है तो आशा की किरण जगती है और आत्मघात को छोड़ कर आशावादी जीवन जीने लगता है। इन स्तरों (पहले स्तर से शुरू कर के सातवें स्तर तक) पर हम धीरे काम कर के इंसान को पूर्णतया बदल सकते हैं और नै ज़िन्दगी दे सकते हैं।  इस सितम्बर जो की राष्ट्रीय आत्मघात रोको महीना मन गया है, हमारा फ़र्ज़ है की हम इस के लिए जागरूकता फैलाएं और उन लोगों तक पहुँचने की कोशिश करें जो इससे झूझ रहे हैं, उन्हें बचाएं।  अगर हम सब एक हों तो ऐसी दुनिया बना सकते हैं जहाँ कोई भी मुश्किल घड़ी में अकेला न हो।

प्रीती बोहरा,लाइफ कोच,एनएलपी ट्रेनर

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