अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद: ब्रेन स्ट्रोक एक ऐसी गंभीर समस्या है जो अक्सर समय पर सही इलाज न मिलने पर मरीजों के लिए विकलांगता का कारण बनती है, यहां तक कि कई बार मरीज की जान भी जा सकती है। लेकिन अब एडवांस्ड तकनीकों की मदद से स्ट्रोक जैसी गंभीर स्थिति का प्रभावी ढंग से इलाज संभव है। हाल ही में मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में न्यूरोलॉजी टीम के डॉक्टरों ने स्ट्रोक पीड़ित फरीदाबाद निवासी 72 वर्षीय सत्यवीर सिंह के दिमाग की मुख्य धमनियों से क्लॉट (खून का थक्का) निकाल उसे नया जीवन दिया।
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न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोग्राम क्लिनिकल डायरेक्टर एवं एचओडी डॉ. कुणाल बहरानी ने बताया कि जब यह मरीज हमारे पास आया तो उसके दाहिने तरफ के हाथ और पांव काम नहीं कर रहे थे और मरीज बोल भी नहीं पा रहा था। मरीज की हालत को देखते हुए हॉस्पिटल में तुरंत कोड फ़ास्ट को एक्टिवेट किया गया। एमआरआई करने पर पता चला कि ब्रेन में एक तरफ क्लॉट बना है। मरीज को बड़ा स्ट्रोक हुआ था तो तुरंत क्लॉट (खून का थक्का जमना) को पिघलाने के लिए तुरंत दवाई दी गई। खून की नलियों का विशलेषण किया तो एक आर्टरी जिसे एमसीए आर्टरी कहते हैं, बाएं साइड की मुख्य आर्टरी बंद पड़ी थी। इसे मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी तकनीक के जरिए तुरंत ही खोलने का निर्णय लिया गया क्योंकि आईवी थ्रोम्बोलिसिस (खून के थक्के को पिघलाने के लियए दवा का इंजेक्शन देना) से यह नली पूरी तरह खुल नहीं पाती है। फिर तार के जरिए दिमाग की नली तक पहुँच कर क्लॉट को खींचकर बाहर निकाल दिया। उसके बाद पूरी तरह से बंद पड़ी नली खुल गई और खून का फ्लो फिर से शुरू हो गया। ठीक उसी वक्त मरीज के हाथ-पैरों ने थोडा–थोडा काम करना शुरू कर दिया। अगले 48-72 घंटों के अंदर मरीज के हाथ-पैर सामान्य रूप से कार्य करने लगे। डिस्चार्ज होने पर मरीज हॉस्पिटल से खुद चलकर गया। उनकी आवाज भी पूरी तरह से ठीक हो गई। अब मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है। डॉ. कुणाल बहरानी ने आगे बताया कि मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी में लगभग 30-40 मिनट का समय लगा। सबसे जरूरी है कि लकवे के लक्षण आते ही मरीज को तुरंत स्ट्रोक की सुविधाओं से तैयार हॉस्पिटल में ले जाना चाहिए। स्ट्रोक रेडी हॉस्पिटल एक ऐसा हॉस्पिटल होता है जहाँ 24 घंटे न्यूरोलॉजिस्ट, इन्टर्वेन्शनिस्ट, एमआरआई, सीटी स्कैन की सुविधा उपलब्ध होती है ताकि उसी समय क्लॉट को पिघलाने के लिए दवा के इस्तेमाल करने से संबंधित एक्शन लिया जा सके। करीब 10-15 प्रतिशत केस में हमें मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी करने की जरूरत पड़ती है जिसमें तार के जरिए जाकर दिमाग में से क्लॉट को बाहर निकाल पाते हैं। आमतौर पर देखा गया है कि बड़े स्ट्रोक का जोखिम लंबे समय तक स्मोकिंग करने वाले लोगों में अधिक होता है। कैरोटिड आर्टरी गर्दन के दोनों तरफ स्थित दो बड़ी खून की धमनी होती हैं जो दिमाग में खून और ऑक्सीजन पहुंचाती हैं। समय के साथ इस नली के बंद हो जाने पर ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। लोगों को पता ही नहीं चल पाता है क्योंकि ये नली धीरे-धीरे बंद होती रहती है लेकिन इसके बंद होने के संकेत नहीं मिल पाते हैं स्ट्रोक होने पर इस नली के बंद होने का पता चलता है।
सलाह: ट्रीटमेंट के बाद मरीजों को डॉक्टर के द्वारा खून पतला करने के लिए दी गई दवाओं को नियमित रूप से लेना चाहिए। अगर मरीज की पहले से शुगर और ब्लड प्रेशर की चल रही हैं तो उन्हें भी निरंतर लेते रहें क्योंकि ये दवाइयां दोबारा से स्ट्रोक के रिस्क को कम करने में मदद करती हैं। सर्दी के मौसम में अपने शुगर, ब्लड प्रेशर खासकर बीपी को कंट्रोल करना बहुत जरूरी है। धूम्रपान करने से बचें क्योंकि यह स्ट्रोक का एक बड़ा कारण है। स्ट्रोक के लक्षण की पहचान के लिए बी- फ़ास्ट फार्मूला को फॉलो करें। बी का मतलब बैलेंस की समस्या (चाल में लडखडाहट होना)। ई का मतलब है आई-अचानक से डबल दिखाई देना या धुंधला दिखाई देना या अचानक से आँखों से कुछ भी न दिखाई देना। एफ का मतलब फेस-अचानक से चेहरे का सुन्न हो जाना, चेहरा टेढ़ा हो जाना। ए का मतलब आर्म-अचानक से एक हाथ में सुन्नपन्न आ जाना या हाथ न उठा पाना, हाथ की पकड़ कमजोर पड़ना। एस का मतलब बोलना-जुबान का लडखडाना या मरीज की बोली का समझ न आना, एक दम से मरीज की आवाज का चला जाना ये भी स्ट्रोक लक्षण हैं। टी का मतलब है कि उसी समय देखना चाहिए कि किस समय पर मरीज में लक्षण सामने आये हैं ऐसा होने पर मरीज को तुरंत एक स्ट्रोक के लिए तैयार हॉस्पिटल में तुरंत ले जाना चाहिए ताकि मरीज का समय पर इलाज हो सके। स्ट्रोक आने पर साढ़े 4 घंटे का समय गोल्डन आवर होता है। साढ़े 4 घंटे के अंदर मरीज को हॉस्पिटल ले जाना चाहिए लेकिन आज स्ट्रोक के कुछ मरीजों को 24 घंटे के तक भी ट्रीटमेंट दे सकते हैं। सबसे जरूरी है कि अगर स्ट्रोक आने के बाद साढ़े 4 घंटे बीत भी चुके हैं लेकिन मरीज में लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो फिर भी मरीज को एक स्ट्रोक के तैयार हॉस्पिटल ले जाना चाहिए क्योंकि शुरूआती समय में स्ट्रोक के लक्षण को कम किया जा सकता है।