अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस ने केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा फसलों पर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की कानूनी गारंटी नहीं देने को लेकर तीखा हमला बोला है। पार्टी ने कहा कि भाजपा सरकार किसानों के हितों को नजरअंदाज करते हुए जानबूझकर समय बर्बाद कर रही है, क्योंकि सरकार की इच्छा एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की नहीं है। जबकि उसके पास एमएसपी के कानूनी हक के समर्थन में सारे साक्ष्य मौजूद हैं। नई दिल्ली स्थित कांग्रेस कार्यालय में पत्रकार वार्ता करते हुए कांग्रेस के मीडिया समन्वयक अभय दुबे ने कहा कि संसदीय स्थाई समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की सिफारिश कही है। भाजपा सरकार तुरंत एमएसपी को कानूनी गारंटी दे।
अभय दुबे ने कहा कि भाजपा सरकार की किसानों के प्रति प्रतिशोध की भावना इतनी गहरी हो चुकी है कि पहले वह उनके भूमि के अधिकार को छीनने के लिए अध्यादेश लाती है, फिर कृषि के क्रूर काले कानून बनाती है, फिर उनके रास्तों में कील कांटे बिछाती है, उनके सर लहूलुहान करती है और अब एमएसपी को कानूनी अधिकार देने की मांग को सरकार टाल रही है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि 12 जुलाई 2022 को केंद्र सरकार ने एमएसपी को प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था,जिसमें सीएसीपी यानी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को अधिक स्वायत्तता देने की बात भी कही गई थी। 22 फरवरी 2025 तक इस समिति की सात बैठकें आयोजित की गई तथा इसकी सब-कमेटियों की अब तक 39 बैठकें हुईं हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसान संगठनों से समर्थन मूल्य के कानूनी अधिकार देने के लिए और अधिक प्रामाणिक साक्ष्य देने के लिए कहा है। दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि सरकार के पास सारे साक्ष्य मौजूद होते हुए भी वह किसानों को प्रताड़ित करने के लिए सिर्फ समय व्यतीत करना चाहती है, किसानों को उनका हक नहीं देना चाहती है।एमएसपी के कानूनी हक के समर्थन में अनेक महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखते हुए अभय दुबे ने बताया कि संसदीय स्थाई समिति ने 17 दिसंबर 2024 को सदन में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कहा कि जब तक एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं दी जाएगी, तब तक किसानों को लाभ होने वाला नहीं है। समिति ने यह भी कहा कि सरकार वैसे तो 22 फसलों को समर्थन मूल्य पर खरीदने का दावा करती है, मगर सच्चाई यह है कि कुल उत्पादन के मुकाबले .05 प्रतिशत फसलें ही एमएसपी पर खरीदी जाती हैं। कमेटी ने उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2023-24 में 23 प्रतिशत गेहूं की खरीदी एमएसपी पर हुई, मगर चना 0.37 प्रतिशत ही खरीदा गया।सरसों 9.19 प्रतिशत एमएसपी पर खरीदा गया, जौ और कुसुम तो खरीदा ही नहीं गया। संसदीय समिति ने यह भी बताया कि समर्थन मूल्य स्वामीनाथन सिफारिश के अनुसार सी2+50 प्रतिशत नहीं दिया जाता। समिति ने इस फार्मूले को लागू करने की भी सिफारिश की है। मोदी सरकार ने हाल ही में रबी सीजन 2025-26 के लिए फसलों के समर्थन मूल्य की घोषणा की। पिछले वर्ष की तुलना में यह वृद्धि सिर्फ 2.4 से सात प्रतिशत तक की है।कांग्रेस नेता ने संसदीय समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि विभिन्न राज्यों में फसलों की लागत अलग-अलग आती है। इसका सही तरीके से मूल्यांकन एमएसपी के दृष्टिगत नहीं किया जाता है। उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र ने बताया कि राज्य में गेहूं की लागत 3527 रूपये प्रति क्विंटल आती है, और 2025-26 में 4461 रूपये प्रति क्विंटल एमएसपी दिए जाने की मांग की। इसी प्रकार महाराष्ट्र ने चने की लागत 5402 रूपये प्रति क्विंटल बताई और 7119 रूपये प्रति क्विंटल एमएसपी दिए जाने की मांग की। मगर मोदी सरकार ने महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड जैसे लगभग सभी राज्यों की मांग को खारिज कर दिया। अभय दुबे ने कहा, मोदी सरकार हर वर्ष कुल बजट में कृषि के बजट को कम करती जा रही है, और जितना बजट आवंटित किया जाता है, उसे भी पिछले कई सालों से पूरा खर्च नहीं किया जा रहा। इसके अलावा केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने अनूसूचित जाति वर्ग के किसानों के हक की योजनाओं में भी भारी भरकम कटौती करके उनके साथ कुठाराघात किया। कांग्रेस नेता ने कहा कि बीते दिनों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में सोयाबीन किसानों ने यह आवाज उठाई कि उनकी सोयाबीन समर्थन मूल्य से बहुत कम दामों में बिक रही है। तब विधानसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र के किसानों से वादा किया कि सोयाबीन छह हजार रूपये प्रति क्विंटल खरीदी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सच्चाई यह है कि मोदी सरकार ने पिछले नौ वर्षों में खेती की लागत 25 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर बढ़ा दी। अभय दुबे ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की स्थाई समिति की 69वीं रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कृषि मंत्रालय 2017 से लगातार मोदी सरकार को कह रहा है कि खेती में उपयोग होने वाली मशीनों, कृषि यंत्रों पर लगा जीएसटी कम किया जाए या हटाया जाए। मगर मोदी सरकार ने आज तक कृषि मंत्रालय की बात भी नहीं सुनी।
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