अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
पंचकूला:हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल भ्रष्टाचार मामले में एक और बड़ा खुलासा हुआ है। काउंसिल के पूर्व प्रधान केसी गोयल ने चिट्ठी मुख्यमंत्री मनोहर लाल और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज को भेजकर इस भ्रष्टाचार की कलई खोलकर रख दी है। इस चिट्ठी से साफ हो गया है कि धनेश अदलखा ने फार्मेसी रजिस्ट्रेशन के लिए काउंसिल को रिश्वत का अड्डा बना दिया। पूर्व प्रधान केसी गोयल ने बताया कि फार्मेसी एक्ट के नियम 33 (4) में रजिस्ट्रेशन की पावर केवल काउंसिल रजिस्ट्रार के पास है। प्रधान, उपप्रधान और पूरी काउंसिल में कोई अन्य रजिस्ट्रेशन नहीं करता और कोई दखल नहीं दे सकता। रजिस्ट्रेशन केवल रजिस्ट्रार ही इश्यू कर सकता है।
लेकिन धनेश अदलखा ने फार्मेसी एक्ट की धज्जियां उड़ाते हुए पूरी काउंसिल को गुमराह करते फार्मेसी एक्ट 35 (।) और (।।) के तहत 13 जुलाई को आदेश जारी कर दिए कि मेरी स्वीकृति के बिना कोई भी रजिस्ट्रेशन और नवीनीकरण नहीं होगा। इस नियम का मतलब काउंसिल की बैठकों में जो भी प्रस्ताव पास करते हैं, उस पर प्रधान जो भी निर्णय लेगा, वह फाइनल है। बैठक में जो एजेंडा आया और उसमें कोई विवाद हो गया, तो प्रधान के पास दो वोट होती है और फाइनल निर्णय ले सकता है। रजिस्ट्रेशन के मामले में प्रधान की कोई दखलअंदाजी नहीं होगी। बावजूद इसके नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए धनेश अदलखा ने स्टेट फार्मेसी रूल्स 1951 के 35 (1) (2) के तहत नई रजिस्ट्रेशन और नवीनीकरण मेरी इजाजत के बिना जारी नहीं होगी।
पूर्व प्रधान केसी गोयल ने बताया कि इस मामले में पूर्व रजिस्ट्रार डा. परविंद्रजीत सिंह ने डॉ. परविंद्रजीत सिंह ने 12 जुलाई 2021 को एक आफिस आर्डर निकाल दिया कि सभी पेंडिंग फाइलों को निकाला जाए। उन्होंने आदेश में स्पष्ट लिखा कि हरियाणा के अलावा दूसरे राज्यों से स्कूलिंग, डिप्लोमा, डिग्री करने वालों की फाइलें निकाल कर प्रोसेस की जाएं। आदेश में कहा गया कि यदि बाहरी राज्यों की फाइलें दबाने की कोशिश की गई, तो संबंधित कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। डा. परविंद्रजीत सिंह ने आदेश काउंसिल के सुपरीटेंडेंट सतपाल गर्ग को निर्देश दिए कि सर्टिफिकेटों पर केवल कहीं पर फार्मेसी एक्ट एवं नियमों में चेयरमैन के हस्ताक्षर करवाने का प्रावधान नहीं है, इसलिए चेयरमैन को कोई भी फाइल या अन्य दस्तावेज मेरी इजाजत के बिना भेजा नहीं जाए। इस आदेश की कापी स्वास्थ्य मंत्री, एसीएस स्वास्थ्य विभाग, डायरेक्टर जनरल स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा और फार्मेसी काउंसिल के प्रधान एवं सदस्यों को भी भेजी गई। इसके अगले ही दिन धनेश अदलखा ने 13 जुलाई 2021 को नए आदेश जारी कर डा. परविंद्रजीत सिंह के आदेशों पर रोक लगाने का काम किया था।
जिसके पीछे सीधा सा कारण रिश्वतखोरी था। रजिस्ट्रार को कई लोगों से शिकायत मिल चुकी थी कि धनेश अदलखा और सोहन लाल कांसल रिश्वत लेकर रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। भ्रष्टाचार को बंद करवाने के लिए डा. परविंद्रजीत सिंह ने आदेश जारी किए, लेकिन कुछ दिन बाद धनेश अदलखा ने अपने राजनीतिक आकाओं से मिलकर डा. परविंद्रजीत सिंह का चार्ज वापिस करवा दिया। केसी गोयल ने बताया कि हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल में रजिस्ट्रार रहे पंचकूला के सेक्टर- 6 नागरिक अस्पताल में असिस्टेंट सहायक वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी (एएसएमओ) डा. परविंद्रजीत सिंह ने आदेश जारी किए थे कि बाहरी राज्यों की जितनी भी फाइलें हैं, उन्हें प्रोसेस में लाया जाए और उसके 25 दिन बाद ही उनसे चार्ज वापस ले लिया गया था। प्रदेश सरकार ने एएसएमओ डा. परविंद्रजीत सिंह को 20 नवंबर 2020 को रजिस्ट्रार नियुक्त किया था।
वह चार दिन काउंसिल में कार्य करने के बाद एक महीने के लिए छुट्टी पर चले गए। इस दौरान काउंसिल के सदस्यों ने 1 दिसंबर 2020 से 31 दिसंबर 2020 तक मनोनीत सदस्य अरुण पराशर को काउंसिल का रजिस्ट्रार बना दिया। धनेश अदलखा ने लगभग 10 हजार फाइलों को रिश्वत लेकर पास किया और करोड़ों रुपये रिश्वत ली। आज यही कारण है कि केंद्रीय राज्यमंत्री कृष्ण पाल गुर्जर जैसे नेता खुलेआम धनेश अदलखा को बचाने के लिए बयान दे रहे हैं। मुख्यमंत्री धनेश अदलखा पर एक्शन नहीं लेना चाहते। जिससे भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली भाजपा सरकार के नेताओं से रिश्वत लेने की बू आ रही है। 5 दिन बीत जाने के बाद भी मुख्यमंत्री ने धनेश अदलखा के निलंबन के आदेश जारी नहीं किए। स्वास्थ्य मंत्री के आदेशों को रद्दी टोकरी में फेंकने की कोशिश हो रही है।
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