अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:कांग्रेस ने कहा कि भाजपा सरकार द्वारा आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर किया जा रहा है। इसके अलावा उनकी जमीनें छीनकर पूंजीपतियों को दी जा रही हैं और उन पर अत्याचार किए जा रहे हैं। नई दिल्ली स्थित कांग्रेस कार्यालय में अपनी पहली पत्रकार वार्ता करते हुए आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया ने कहा कि देश के 12 करोड़ आदिवासियों को जो अधिकार मिलने चाहिए, वे नहीं मिल पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार द्वारा 1996 में लागू किए गए पेसा कानून का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज को मजबूत करना था। यह कानून आदिवासी समाज को उनकी ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन का अधिकार देता था; इसके तहत गांवों में किसी भी तरीके के काम के लिए ग्राम सभाओं से अनुमति लेना अनिवार्य होता था। लेकिन आज आदिवासियों से सलाह तक नहीं ली जा रही है। पूरे आदिवासी क्षेत्रों में लगातार खनन किया जा रहा है। इसी कारण से आदिवासियों की जमीन भी छीनी जा रही हैं और जो अपनी जमीन नहीं देना चाहते, उन्हें जेल में डाला जा रहा है।
डॉ. भूरिया ने आगे कहा कि वन अधिकार अधिनियम आदिवासियों को जंगलों पर अधिकार देता है। यदि कोई आदिवासी कहीं भी पट्टा चाहता है तो इस कानून के तहत उसको वह देने का अधिकार वन समितियों को होता है। लेकिन हकीकत में आदिवासियों को आज तक कोई पट्टे नहीं मिले हैं। इसके अलावा उन्हें न सामुदायिक वन अधिकार मिले हैं और न लघु वन उपज पर किसी तरह का अधिकार मिला है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार वन क्षेत्रों का निजीकरण कर रही है और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार 40 प्रतिशत वनों का निजीकरण करने जा रही है, जिसका आदिवासियों द्वारा जबरदस्त विरोध हो रहा है। छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल में वन अधिकार अधिनियम के उल्लंघन का उदाहरण देते हुए भूरिया ने कहा कि वहां अभी तक लगभग एक लाख पेड़ों को काटा जा चुका है, खनन के लिए ढाई से तीन लाख पेड़ों को और काटा जाएगा। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि भाजपा सरकार आदिवासियों को न्याय दिलाने की बजाय उन पर अत्याचार करने वालों का संरक्षण करती है। एनसीआरबी आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में आदिवासियों के खिलाफ सबसे ज्यादा अत्याचार मध्य प्रदेश में हो रहे हैं, इसके बाद राजस्थान और ओडिशा का नंबर आता है। वर्तमान में इन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में 22 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासियों की है, लेकिन तब भी उनका शोषण रुक नहीं रहा है। उन्होंने सीधी कांड का उदाहरण देते हुए बताया कि भाजपा नेता ने एक आदि वासी पर पेशाब कर उसके सम्मान को तार-तार कर दिया, लेकिन भाजपा सरकार आदिवासी की बजाय आरोपी के संरक्षण में लग गई।भूरिया ने आगे कहा कि मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र नेमावर में पांच लोगों को जिंदा गाड़ दिया गया, इस कांड में भाजपा विधायक के लोग शामिल थे। नीमच कांड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि एक आदिवासी को गाड़ी से बांधकर घसीटा गया और मार डाला गया। ये गुनाह करने वाला भाजपा का सरपंच था। मध्य प्रदेश में आदिवासियों के शोषण की नवीनतम घटना के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि राजधानी भोपाल में नाबालिग आदिवासी बच्ची के साथ सरकारी कार्यक्रम में बलात्कार हुआ। लेकिन भोपाल में इस घटना की एफआईआर दर्ज नहीं हुई। बच्ची को एफआईआर लिखाने के लिए परिवार के साथ 600 किलोमीटर दूर अपने घर मऊगंज जाना पड़ा। आदिवासी अस्मिता पर हमले का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि आज मध्य प्रदेश के राघोगढ़ में टंट्या मामा की प्रतिमा लगने वाली थी, लेकिन पुलिस और प्रशासन ने ऐसा करने से रोक दिया। उन्होंने पूछा क्या यह हमारे महापुरुषों का अपमान नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस होता है, जिसे पूरे विश्व के मूल निवासी पर्व की तरह मनाते हैं। लेकिन भाजपा इस त्योहार को मनाने से मना करती है और कई राज्यों में भाजपा की सरकार आने के बाद नौ अगस्त की छुट्टी को समाप्त कर दिया गया। उन्होंने कहा कि कई भाषाओं को राष्ट्रीय स्तर पर संवैधानिक रूप से मान्यता दी गई है, लेकिन आदिवासी भाषाओं को आठवीं सूची में शामिल नहीं किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा-आरएसएस के लोग आदिवासियों को वनवासी कहकर उनका अपमान करते हैं, जबकि कांग्रेस उन्हें मूल निवासी मानती है। आदिवासी सिर्फ जंगलों तक सीमित नहीं हैं, वे डॉक्टर, इंजीनियर और नेता बनकर समाज में अपनी पहचान बना रहे हैं।कांग्रेस नेता ने कहा कि मध्य प्रदेश की जेलों में 60 प्रतिशत से अधिक कैदी आदिवासी समुदाय से हैं। उन्होंने मांग की कि सरकार को एक विशेष आयोग का गठन करना चाहिए और जरूरतमंदों को कानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिए। आदिवासी नेता ने मांग की कि देश के आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाए। सरकार जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ रहे लोगों की मांग स्वीकारे और जंगलों का निजीकरण बंद करे; आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों पर तत्काल कार्रवाई हो। गोंडी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर उसे राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जाए। नौ अगस्त (विश्व आदिवासी दिवस) को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाए।
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