अजीत सिन्हा / नई दिल्ली
दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोगों ने समय निकाला और एक अति महत्वपूर्ण विषय पर हमारी इस प्रेस वार्ता में आप पहुंचे। ये विषय जुड़ा हुआ है देश के किसान- मजदूर से और साथ-साथ कहीं न कहीं बड़े औद्योगिक घरानों से, इसलिए आपके मध्य में जो आज परिस्थिति बनी है, देश की एमएसपी, प्रोक्योरमेंट और पीडीएस व्यवस्था को लेकर, जो देश के सामने एक बहुत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ बनीं हैं, उनके बारे में हम आपको बताना चाहेंगे, सरकार से जवाब मांगना चाहेंगे। भाजपा सरकार एक नारे से चल रही है। बीजेपी सरकार ‘चंद बड़े औद्योगिक घरानों का पोषण और किसान- मजदूर का शोषण’, ये इनका ध्येय बन गया है। ‘कुछ बड़े औद्योगिक घरानों का पोषण और किसान-मजदूर का शोषण’। एमएसपी व्यवस्था और पीडीएस प्रणाली में आज जो चुनौतीपूर्ण परिस्थिति बनी है, ये इनका जो ध्येय है, उसका नतीजा है।
मैं शुरुआत करूँगा, किसान से। बहुत बड़ा धोखा किसान के साथ इस सरकार ने किया है। संयुक्त किसान मोर्चा के साथ चाहे समझौते की बात हो, चाहे किसान की आमदनी दोगुना करने की बात हो, 2022 में, यानि कि इसी वर्ष किसान की आमदनी दोगुनी होनी चाहिए थी और संयुक्त किसान मोर्चा के साथ जो समझौता हुआ था, उसके अंतर्गत एमएसपी पर कमेटी बननी चाहिए थी, अभी तक, अजय कुमार मिश्रा टेनी, उनको मंत्रिमंडल से हटाया जाना चाहिए था, उन पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए थी, लेकिन उन सारे वायदों को सरकार न सिर्फ भूल गई है, मगर ऐसा लगता है कि ये आमदनी दोगुना करने का वायदा और संयुक्त किसान मोर्चा और किसान आंदोलन के साथ, देश के किसान के साथ जो समझौता हुआ था, एमएसपी पर, इन दोनों वायदों को सरकार ने उसी श्रेणी में डाल दिया है, जिस श्रेणी में दो करोड़ रोजगार हर वर्ष देने के और काला धन विदेशों से लाकर 15 लाख रुपए देने के वायदे को डाल दिया, यानि कि उसको अलग-अलग शब्दावली में आप अलग-अलग संज्ञाओं से जुमला भी कह सकते हैं, धोखा भी कह सकते हैं और इसमें जिम्मेदारी, केन्द्र सरकार की आती है।
अब मैं जो संयुक्त किसान मोर्चा के साथ जो धोखा हुआ, उसके बारे में कहना चाहता हूँ कि आज हम ये क्यों कर रहे हैं। आज आपने देखा होगा कि आज नीति आयोग के जो चेयरपर्सन हैं, उनकी एक स्टेटमेंट आई है। उन्होंने कहा है कि He calls for a rethink on procurement based MSP regime. पहले भी इन्होंने ये कहा था कि Legalizing MSP spells doom for market implies takeover of trade by Government. यही किसान आंदोलन की लड़ाई थी कि सरकार की नीयत ही यही है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली, एमएसपी रिजीम, उसको कैसे धीरे-धीरे, उससे सरकार पीछे हटे और निजी खरीद की तरफ भेजी जाए, निजी हाथों में देश के किसान का भविष्य दिया और देश के गरीब का भविष्य दिया, क्योंकि एमएसपी से और प्रोक्योरमेंट से जुड़ी हुई पीडीएस व्यवस्था है। आज जो ये स्टेमेंट आई है rethink on procurement based MSP regime, इसका क्या अर्थ है? इसके कई अर्थ हैं। इसका अर्थ है कि जो एमएसपी पर कमेटी बननी थी, जिसका संयुक्त किसान मोर्चा इंतजार कर रहा है, कमेटी और वो भी मैं जानकारी के लिए बता दूँ, आपके लिए, संयुक्त किसान मोर्चा के लोगों से हमारी बातचीत हुई; 28 मार्च को, इस साल उनको टेलिफोन आया सरकार की तरफ से कि वो 2-3 नाम दे दो, आज हम ये भी खुलासा करना चाहते है, उन्हें कहा कि टर्म ऑफ रेफरेंस क्या है, एमएसपी की गारंटी पर जो कमेटी बनेगी इसका क्या अधिकार क्षेत्र रहेगा, कोई जवाब नहीं आया, मौखिक रुप से टेलिफोन पर उनके नाम मांगे गए थे, लिखित रुप में नाम नहीं मांगे गए। कितना बड़ा धोखा देश के किसान आंदोलन के साथ किया गया और आज नीति आयोग द्वारा ये जो स्टेटमेंट दी गई, इससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकार उसी रास्ते पर चलना चाहती है, जिसकी वजह से तीन कृषि कानून सरकार एमएसपी प्रणाली को तहस-नहस और नष्ट करने के लिए लेकर आई थी। सरकार ने किसान को धोखा तो दे दिया है, आमदनी दोगुनी करने के मामले में और एमएसपी की कमेटी गठित करने के मामले में, संयुक्त किसान मोर्चा के समझौते के मामले में, मगर नीति आयोग का जो वक्तव्य आया है उससे लगता है कि अब जो कसर बाकी थी, नीति आयोग की जो ये स्टेटमेंट आई है, जो किसान के धोखे का जो घाव, विश्वासघात का घाव कमर पर होता है, पीठ पर होता है, किसान से विश्वासघात करके उसकी कमर पर जो घाव सरकार ने दिया है, नीति आयोग ये वक्तव्य देकर उस घाव में नमक फेंकने का, मैं छिड़कना नहीं कहूँगा, नमक फेंकने का काम कर रहा है ताकि किसान कराह रहा है, देश का। सरकार के इस विश्वासघात से और विश्वासघात से भी ज्यादा जिस तरीके से आज ये नीति आयोग का वक्तव्य आया है, जिससे सरकार की किसान, किसानी और कृषि क्षेत्र में क्या नीतियाँ आने जा रही हैं, उसकी एक झलक सरकार ने दी है। इससे जुड़ी हुई बात ये है कि आज आपने एक ओर सारे अखबारों में देखा होगा कि गेहूं को लेकर, सरकार कई प्रदेशों के गेहूँ के आवंटन को कट कर रही है। ये बहुत महत्वपूर्ण बात बता रहा हूँ अब मैं आपको। सरकार ने कई प्रदेशों के गेहूँ के आवंटन को… और ये बता रही है सरकार, जो कि सही भी है कि गेहूँ का जो स्टॉक है, सेन्ट्रल पूल में, जो हम गेहूँ का स्टॉक रखते हैं, वो 2008 के लेवल से भी नीचे चला गया, यानि कि 15 साल से सबसे कम स्टॉक है। ये तो सरकार जो बता रही है, जो सार्वजनिक जानकारी है, वो है। मैं एक और चीज बता रहा हूँ आपको, गेहूँ का जो स्टॉक है, वो 15 साल में सबसे कम है। लेकिन अगर आबादी के अनुपात में देखेंगे, ये तो रियल स्टॉक है, आबादी जितनी बढ़ रही है औऱ कितनी आबादी में कितने गेहूँ की पर कैपिटा अवेलेबिलिटी है, देश में, ये 50 साल का सबसे लोएस्ट स्टॉक में पहुंच गया है। जब आपको याद होगा, 1960 के, 1970 के दशक मे हमें इंपोर्ट करना पड़ा था, गेहूँ का बड़ी तादाद में, उस लेवल के आस-पास प्रति एकड़ व्यक्ति हम गेहूं के स्ट़ॉक को देखेंगे, आबादी के अनुपात में देखेंगे, उस स्तर पर पहुंच गया है। उसके कई कारण बताए जा रहे हैं।
उसके कारण ये बताए जा रहे हैं कि जितनी प्रोक्योरमेंट होनी चाहिए थी, वो प्रोक्योरमेंट इस साल नहीं हुई। उसका सरकार मौसम पर दोषारोपण कर रही है कि मौसम के अनुसार प्रोडक्शन हमारा कम हुआ। सही बात है, जो मौसम की वजह से किसान को एक चोट पहुंची और हमारा गेहूँ का उत्पादन वो नहीं रहा, जो उम्मीद थी, जितना लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इसके अलाबा जो मुख्य इसका कारण रहा, वो मैं आपकी जानकारी में लाना चाहता हूँ, वो है एक्सपोर्ट, एक्सपोर्ट की पॉलिसी।जैसे मैंने कहा कि कुछ बड़े औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए, किसानों को भी और गरीब आदमी को भी, दोनों को चोट कैसे पहुंचाई है। दोनों की चोट उतार दी। लगभग 10 मिलियन टन से ज्यादा एक्सपोर्ट हुआ, गेहूँ। क्यों हुआ- क्योंकि यूक्रेन युद्ध की वजह से, इस सीजन की बता रहा हूं, मैं, इस सीजन में, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूँ की कीमत लगभग 3,500 प्रति क्विंटल तक पहुंची, हमारी एमएसपी लगभग 2,000 क्विंटल पर थी, इसका फायदा किसने उठाया-ट्रेडर्स ने। उन्होंने किसान से लिया, स्टॉक किया और 10 मिलियन से ज्यादा गेहूँ देश से बाहर चला गया। उसके बाद सरकार ने कहा कि अब बंद करो। एक्सपोर्ट बंद किया, आनन-फानन में, बिना सोचे-समझे। पहले हमारी मांग थी कि आप बोनस दो। आप बोनस दो 400 रुपए क्विंटल कम से कम ताकि गेहूँ कि प्रोक्योरमेंट हो, और किसान की जेब में पैसा जाए। प्राईवेट ट्रेडर या एक्सपोर्टर के पास नहीं। बड़ी 3 कंपनियाँ हैं, मैं उनके नाम अभी ले दूँगा, आपको पता है, कौन-कौन सी बड़ी कंपनियां इस वक्त ट्रेड में हैं, उनकी जेब में पैसा न जाए, किसान के पास पैसा जाए, बोनस दो, ताकि आपकी प्रोक्योरमेंट हो सके, लेकिन सरकार ने बोनस नहीं दिया, इसका क्या नतीजा रहा। सरकार का टार्गेट था, प्रोक्योरमेंट का 50 मिलियन टन से ज्यादा और कितनी प्रोक्योरमेंट हुई- 18 मिलियन टन। 56 प्रतिशत प्रोक्योरमेंट कम हुआ इस साल, मगर कुछ तो, जैसे मैंने कहा कि हमारा प्रोडक्शन थोड़ा कम था, मौसम की वजह से मगर मुख्य कारण ये था कि एक्सपोर्ट होकर बाहर चला गया।अब एक्सपोर्ट होकर बाहर चला गया, तो उसके बाद सरकार क्या कह रही है- सरकार कह रही है कि जिस प्रदेश के अंदर फूड ग्रेन, पीडीएस की सप्लाई, यानि की राशन डिपो के माध्यम से जो सप्लाई होती है गरीब आदमी को, एनएफएसए और पीएमजीकेवाई, जो हमारी योजनाएं हैं, जिनका आप जानते हो, जिसका बड़ा ढिंढोरा भी पीटा, कोरोना के टाइम में सरकार ने उनमें जहाँ 60/40 का रेशो था कि 60 प्रतिशत गेहूँ औऱ 40 प्रतिशत पैडी, वहाँ सरकार ने इस साल अब कह रहे हैं कि बदल देंगे हम, अब करेंगे, 40 प्रतिशत गेहूँ औऱ 60 प्रतिशत पैडी। कंज्यूमर की ईटिंग हैबिट्स रहती हैं, उन प्रदेशों के अंदर आज गेहूँ को लेकर लाले पड़ गए देश में। सरकार को अपने रेशो बदलने पड़ रहे हैं और जहाँ पर 75 प्रतिशत गेहूँ भेजा जाता था, पीडीएस में, राशन डिपो पर और 25 प्रतिशत चावल भेजा जाता था, वहाँ पर रेशो बदल दी, 60/40 और इसमें बहुत सारे प्रदेश, 10 प्रदेश मुख्यतः जहाँ पर गेहूँ के आवंटन में भारी कटौती सरकार को करनी पड़ी क्योंकि मैंने जैसे कहा कि इतना कम बफर स्टॉक हो गया देश में गेहूँ का, जो अगर क्वांटिटी के टर्म्स मे लें, तो 15 साल में और प्रति व्यक्ति आबादी के हिसाब से लें तो 50 साल में इतना कम खाद्यान्न का भंडारण नहीं हुआ, गेहूँ का कम भंडारण नहीं हुआ, देश के सामने ऐसी स्थिति पैदा हो गई और उसमें 10 प्रदेशों में कटौती की जो स्टेटमेंट आई है, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु यहाँ ये प्रभावित प्रदेश हैं। मुख्यतः जहाँ पर गेहूँ कि जितनी आवंटन थी, सरकार ने कहा कि आवंटन नहीं करेंगे।इसमें कल भाजपा शाषित प्रदेश उन्होंने मांग की है, कल की स्टेटमेंट है, उत्तर प्रदेश गुजरात की कि हमें और गेहूं चाहिए और मध्य प्रदेश ने भी इनको परसों चिट्ठी लिखी, शिवराज सिंह चौहान जी ने भी कि पूरा कोटा दो, गेहूँ का मध्य प्रदेश को। यूपी वाले कह रहे हैं कि हमें भी गेहूँ का पूरा कोटा दो, जितना पिछले साल दिया था, उतना दो। उतना नहीं तो 10 साल पहले जितना दिया था, उतना तो दो। वो जो कहावत है कि न्याय दो तो पूरा दो, पूरा नहीं तो आधा दो। गेहूँ नहीं मिल रहा। योगी, शिवराज जी और गुजरात, तीन-तीन प्रदेश, गेहूं के लिए लिख रहे हैं, इनके खुद के मुख्यमंत्री लिख रहे हैं और मैंने जैसे कहा कि 10 प्रदेशों में गेहूँ कि कटौती कर दी और अब पैडी पहुंचाएंगे और पीयूष गोयल जी की स्टेटमेंट आई कल, सारे मिनिस्टर से जब बात कर रहे थे, आपने देखा होगा, कल के अखबार में, कह रहे हैं कि He is urging sow more paddy. सारे प्रदेशों को कह रहे हैं कि और पैडी की सोइंग कराइए। मैं सरकार से पूछना चाहता हूँ, पिछले 20-30 वर्षों से डाउन वाटर लेवल की जो परिस्थिति बनी है, उसके बाद प्रदेश पिछले 20-30 साल से सरकार की ये नीति रही है प्रदेश की भी औऱ देश की भी कि पैडी की सोइंग कम की जाए और बाकी ग्रेन्स की तरफ बढ़ा जाए। अब देश में क्या है कि पानी का कोई नया जल स्त्रोत आ गया है कि सरकार कह रही है कि दोबारा से, पीयूष गोयल जी ने या जो ये स्थिति आई, जिसके लिए पूरी तरह सरकार जिम्मेदार है, इनको एक्सपोर्ट किसने करने दिया? इतना फायदा, 3,500 क्विंटल मिला इंटरनेशनल मार्केट में, वो फायदा किसकी जेब में गया? किसान को उसका फायदा हुआ नहीं। किसान पर तो कुदरत की मार पड़ी थी। प्रति एकड़ किसान का जो उत्पादन था, वो कम हुआ था और सरकार को उनको बोनस देकर, किसान से लेकर और अपने सेंट्रल पूल में लेती सरकार ताकि उसको गरीब को भी पहुंचाते और किसान को भी कुछ लाभ पहुंचाते, मगर सरकार ने क्या कहा- सरकार ने एक्सपोर्टर्स को एक्सपोर्ट करने दिया, मुनाफाखोरी करने दी।जैसे मैंने शुरु में एक लाइन बोली थी- बड़े कुछ औद्योगिक घराना एक्सपोर्टर्स का पोषण और किसान-मजदूर का शोषण, ये नीति है सरकार की और इसका खुलासा नीति आयोग ने दोबारा कर दिया, इसके खिलाफ किसान आंदोलन खड़ा हुआ था। इसी के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा की सारी मांगे रहीं थी।तो एक तरफ तो ये आज देश के सामने भयावह, आज अनाज संकट, मैं इसको अनाज संकट कहूँगा, कृषि संकट, अनाज संकट दोनों जुड़े हुए हैं। अनाज संकट देश में, ये आया है, 50 साल के बाद, तो इसके लिए कोई अगर जिम्मेदार है, तो ये सरकार जिम्मेदार है और किसान से भी धोखा अगर किया है, किसान से भी धोखा सरकार ने किया है, विश्वासघात कर किसान की कमर पर बड़े-बड़े घाव छोड़े हैं। न तो आमदनी दोगुनी हुई, खर्चा दोगुना हो गया, जैसा आप जानते हैं। आमदनी दोगुनी हुई नहीं किसान की। मैं आपको बताना चाहता हूँ, उदाहरण के तौर पर, 2014 में गेहूँ बिक रहा था, 1,600 रुपए प्रति क्विंटल, मैं हरियाणा की बता रहा हूँ, 2014 की बात। गन्ना बिक रहा था, 311 रुपए प्रति क्विंटल, धान जो बात एक्सपोर्ट उस टाइम, धान पर पहुंचा था, 5,000- 6,000 क्विंटल तक भी। अगर आमदनी दोगुनी होती, तो इनका भाव दोगुना होना चाहिए था। 311 का 622 होना चाहिए था। गेहूं का 1,600 से बढ़कर 3,200 होना चाहिए था, तभी आमदनी दोगुनी होगी। बात से आमदनी दोगुनी होगी नहीं। 2022 तक वायदा था कि आमदनी दोगुनी करेंगे, अब भाव तो बढ़ाया नहीं, गेहूँ, 2,000 रुपए प्रति क्विंटल पर मुश्किल से पहुंचा है, जैसा मैंने आपको बताया। मौका था इस बार, बाहर प्राइस था, इंटरनेशनल मार्केट में तो भाव तो बढ़ा नहीं, मगर क्या बढ़ गया- खर्चा बढ़ गया, डीजल लगभग दोगुना हो गया, फर्टिलाइजर लगभग दोगुना हो गया, किसान का खर्चा बढ़ गया, किसान का भाव बढ़ा नहीं, किसान का कर्जा बढ़ गया और ऐसी परिस्थिति में ये जुमला साबित हो गया, आमदनी दोगुनी करने वाला वादा। इसलिए आपने देखा होगा, अब इस वायदे की बात करना ही छोड़ गए। कोई इनका नेता का कोई स्टेटमेंट दिखा दो, भाजपा के किसी नेता की स्टेटमेंट जिन्होंने किसान की आमदनी दोगुनी करने की स्टेटमेंट 2022 में दी हो। 2021 तक देते थे, 2022 तक ये भूल गए। एक धोखा वो, दूसरा धोखा, एमएसपी पर जो समझौता हुआ, संयुक्त किसान मोर्चा के साथ की एमएसपी को कानूनी अमली जामा पहनाया जाएगा, सी-2 के फॉर्मूले के आधार पर पूरी एमएसपी दी जाएगी, अजय कुमार मिश्रा टेनी जैसे मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाकर बर्खास्त किया जाएगा, ये समझौता हुआ था, प्रधानमंत्री ने स्वयं घोषणा की थी, लेकिन वो दूसरा धोखा कि इतने बड़े-बड़े विश्वासघात के जख्म किसान की पीठ पर देना काफी नहीं था, कि उन्होंने उन विश्वासघाट के जख्मों पर अब नमक भी छिड़का जा रहा है और इसलिए हम सरकार से कहना चाहते हैं।आखिर में हम सरकार से कहना चाहते हैं कि तुरंत एमएसपी की कमेटी का गठन हो, जैसा संयुक्त किसान मोर्चा का आपका समझौता था। सरकार आज के इस अनाज संकट पर एक व्हाइट पेपर दे, घोषित करे कि किस-किसके पास मुनाफा पहुंचा, गेहूँ के एक्सपोर्ट का? 10 मिलियन टन से ज्यादा गेहूँ देश से बाहर क्यों जाना पड़ा? आज उन्हीं के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि हमारे प्रदेश में गेहूँ दो। योगी जी कह रहे हैं, शिवराज जी कह रहे हैं, गुजरात के मुख्यमंत्री कह रहे हैं। 10-10 प्रदेशों की गेहूँ की जो क्वांटिटी जाती थी, उसमें आपको कटौती करनी पड़ी। तो हम मांग करते हैं व्हाइट पेपर आए प्रोक्योरमेंट पर, पीडीएस पर और साथ में संयुक्त किसान मोर्चा से और किसान आंदोलन से जो एमएसपी की लीगल गारंटी का समझौता था, उसके अनुसार कमेटी गठित हो। एमएसपी को लीगल अमली जामा पहनाया जाए और जब तक ये नहीं होता, हम देश के किसान के साथ हैं। 18 जुलाई से पार्लियामेंट सेशन, संसद सत्र जब से शुरु हो रहा है, संयुक्त किसान मोर्चा 18 से 31 तक पूरे देश में विश्वासघात सेमिनार कर रहा है। हम, हमारा पूरा नैतिक समर्थन, उनके विश्वासघात सेमिनार को भी रहेगा, किसान की मांगो को भी रहेगा।एक प्रश्न पर कि जो इनका आवंटन है, उसमें सरकार ने खरीद कम की है या क्या किया है? श्री दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि मैंने जैसा पहले बताया था सरकार की इस बार खरीद में काफी गिरावट आई है। जितनी खरीद का जो टारगेट था, उससे काफी कम खरीद हुई है। उसके लिए कारण मैं आपको बताता हूं, प्रोक्योरमेंट पिछले साल…, मैं एक और आंकड़ा आपको देता हूं – पिछले साल 43.34 मिलियन टन खरीद हुई थी, इस साल जैसे मैंने कहा 50 मिलियन टन के आस-पास का सरकार का टारगेट। उसके मुकाबले में केवल 18.78 मिलियन टन खरीद हुई है इस साल। 56 प्रतिशत खरीद देश के किसान से कम हुई है, इस साल। आप इमेजिन कर सकते हैं और यही कारण है कि गेहूं का जो स्टॉक है, वो एक्चुअल स्टॉक 15 साल में सबसे लोएस्ट है 2008 के लेवल से भी कम और प्रति व्यक्ति अगर हम स्टॉक देखें देश में, तो 50 साल में सबसे लोएस्ट गेहूं का और यही कारण है कि प्रदेशों को गेहूं नहीं दे रहे हैं। प्रदेशों को कह रहे हैं कि रेशो बदल देंगे और हम ज्यादा चावल भिजवाएंगे। अब सरकार गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, इन प्रदेशों में ऐसे बहुत से प्रदेश में, 10 प्रदेशों के नाम लिए अगर उनकी ईटिंग हैबिट, हर कोई गेहूं चाहता है तो उसको उसी अनुपात में गेहूं और चावल सरकार को भेजना चाहिए, ना कि उसके विपरीत और यही कारण है कि पीयूष गोयल कह रहे हैं कि आप पैडी ग्रो करिए ज्यादा से ज्यादा, हमें चावल की आवश्यकता है। जबकि पिछले 20-30 साल से नीति ये रही थी कि पैडी से डायवर्सिफाई की जाए, क्योंकि पैडी के लायक पानी नहीं है, हमारे देश में। तो इसलिए पैडी की प्रति व्यक्ति खपत देश में कम हो रही है, एनएसएस का सर्वे में गेहूं की खपत बढ़ रही है, क्योंकि पैडी से हम डायवर्सिफाइड कर रहे हैं। मगर अब सरकार ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी, ऐसा अनाज संकट आ गया है देश के सामने कि अब सरकार को पेडी को ज्यादा शोइंग के लिए अपनी जो 20-30 साल की पॉलिसी थी, उसके विपरीत सरकार को जाना पड़ रहा है। तो दुर्भाग्य की स्थिति ये है कि अनाज संकट के लिए पूर्णतया केन्द्र की सरकार जिम्मेदार है और इनकी एमएसपी और पीडीएस ये जो प्रणाली है, ये एक दिन में नहीं बनी। ये प्रणाली दशकों के बाद धीरे-धीरे देश में बनी, मंडी व्यवस्था दशकों के बाद देश में बनी। देश के गरीबो को भी फूड सिक्योरिटी मिली। देश के किसान को भी एमएसपी का कवर मिला, जो अभी पूरी व्यवस्था नहीं है। लेकिन जैसी भी है, हमारे दोनों, किसान और गरीब को राहत मिली इस व्यवस्था से और सरकार इस व्यवस्था के जो पीछे पड़ी है, पूर्णतया सरकार और वो नीयत जिम्मेदार है, आज जो अनाज संकट भी आया एक तरफ और किसान से धोखा भी हुआ है दूसरी तरफ। एक अन्य प्रश्न पर कि कांग्रेस शासित राज्य इस अंतर के लिए क्या करेंगे? श्री दीपेन्द्र हुड़ा ने कहा कि देखिए, अलग-अलग फसल की अलग-अलग न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित होता है और जो कानूनी अमली जामा पहनाने की मांग है किसान आंदोलन की, वो मांग क्या है – वो मांग है कि पारदर्शिता से फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाए और वो जो फसल है, उन फसलों का एम्बिट बढ़ाया जाए। एम्बिट बढ़ाने का ये मतलब नहीं है कि एमएसपी घोषित कर दो, लेकिन खरीद मत करो, उसके कोई मायने नहीं है। जैसा आप जानते हैं- उसका मतलब ये है कि जो एमएसपी घोषित की जाए, वो कानूनी जिम्मेदारी रहे कि उस पर सरकार खरीद करे। ये आंदोलन है, ये आप समझ गए, आपका जो प्रश्न है उसका बड़ा सरल उत्तर है और क्या एमएसपी होनी चाहिए, दूसरी बात वो तो जो असली मांग थी, वो तो थी, जिसको इन्होंने भुला दिया, क्योंकि ये एक के बाद एक जो था वो भी छीनना चाह रहे हैं, तो एमएसपी छीनना चाह रहे हैं, तो किसान एमएसपी पर बैठ गया कि हमें एमएसपी चाहिए। किसान की असली मांग थी कि जो एमएसपी को निर्धारित करने का फॉर्मूला था, वो भी गलत है। वो फॉर्मूला बदला जाए स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार। आप भूल गए, आपने देखा और स्वामीनाथन कमीशन भी भूल रहे हैं कि सी-टू के फॉर्मूले, कॉस्ट पर, सी-टू में क्या होता है कि जमीन की क्या कीमत है क्योंकि कई सारे भूमि, कुछ भूमिहीन किसान भी रहते हैं, जो पट्टे पर खेती करते हैं, तो उनको वो कॉस्ट भी बियर करनी पड़ती है। तो जमीन की कॉस्ट भी और लेबर की कॉस्ट भी कई किसानों को जो, तो ये सारी कोस्ट एड करके और फिर 50 प्रतिशत मुनाफा दिया जाए। असली मांग तो ये थी, ये हमारी असली मांग थी।
इसको लेकर प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आते ही स्वामीनाथन लागू करेंगे, किसान की आमदनी दोगुनी करेंगे, वो भूल गए। अब तो ये कि जो मिल रही थी एमएसपी, वो बचे, उसको लेकर आंदोलन करना पड़ा हम लोगों को। एक साल तक हम आंदोलन कर रहे थे, हमने कहा था नैतिक बल हमें आंदोलन में, मैं आकर प्रेस वार्ता करता था बारी-बारी, कि जायज हक है और एक और मैं इसमें बात बताऊं, जो मैंने अग्निवीर वाले दिन भी कही थी, हिंदुस्तान की परिस्थिति बाकी हर देश से भिन्न है। यहाँ अमेरिका मॉडल नहीं चलेगा, यहाँ इजराइल मॉडल नहीं चलेगा, जो अग्निवीर लेकर आए हैं कि इजरायल में कंपलसरी 4 साल हर किसी को जाना पड़ता है, क्योंकि वहाँ कोई जाना ही नहीं चाहता, फौज में। ये देशभक्त देश है, इजराइल में कोई बेरोजगारी भी नहीं। ये देशभक्त देश है, यहाँ का नौजवान देशभक्ति के लिए और अपने एक पक्के रोजगार के लिए जाना चाहता है। यहाँ 4 साल के लिए नहीं, फौजी बनने के लिए जाना चाहता है, इसलिए उनका ये सपना मत छीनो सरकार, हम ये कह रहे हैं। तो इजराइल मॉडल नहीं चलेगा हिंदुस्तान में। ऐसे ही तीन कृषि कानून और ऑद्योगिक क्षेत्रों के माध्यम से सारी खरीद कराना चाहते हैं, प्राइवेट सेक्टर, आपने देख लिया। अगर ये जो प्राइवेट कंपनियां हैं, इनको देश की भलाई की परवाह होती तो क्या इतना एक्सपोर्ट कर देते 10 मिलियन टन और हमारे देश का जो फूड सिक्योरिटी उसको लचर में छोड़ देते? आज देश के अंदर गेहूं का स्टॉक नहीं बचा। प्राइवेट अपने प्रोफिट से चलता है और अमेरिका में आवश्यकता है कि मात्र 0.5 प्रतिशत खेती पर डिपेंडेड हों, वहाँ हो सकता है कि साढ़े 500 एकड़ का एवरेज किसान के पास इतनी जोत हो और वहाँ इसलिए औद्योगिक क्षेत्र, औद्योगिक सेक्टर को आपके हवाले कर दो आप खरीद, क्योंकि किसान इतना बड़ा उनसे बात कर सकता है, हिंदुस्तान की परिस्थिति ही अलग है। 50 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं, इसलिए यहाँ पर हमारे देश के अनुरुप बहुत दशकों तक जिसमें हर साल सरकार का योगदान रहा हो, चाहे वो कांग्रेस की रही हो, चाहे कोई किसी और पार्टी की भी रही हो। धीरे-धीरे एमएसपी प्रणाली और पीडीएस प्रणाली, पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन प्रणाली ये डेवलप हुई थी। आप इसको तहस-नहस करके, जैसे फौज की नींव आपने हिला दी, आप इसकी नींव हिलाने का बार-बार प्रयास करते हैं। यही कारण है आज देश में अनाज संकट, किसान के साथ धोखा, दोहरी मार, जो मैंने शुरु में कहा, किसान के साथ धोखा, विश्वासघात और अनाज संकट, जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित देश का सबसे गरीब होगा, जो राशन डीपो से जिसका आपने ढिंढोरा पीटा, जब करोना काल में आपने ढिंढोरा पिटा कि हम इतना, यूपी के चुनाव में चलाई वो स्कीम, यूपी चुनाव में वो बहुत बड़ा मुद्दा भी बना कि हम इतना राशन प्रणाली के माध्यम से पहुंचाते हैं, इन परिवार को। वो आप नहीं, देश के किसान, जो कोरोना काल में भी घर नहीं बैठा, जिसने उस समय भी अपने खेत में जाकर देश की फूड सिक्योरिटी के लिए अपनी कुर्बानी दी और देश की प्रणाली है, जिसमें वो किसान से खरीद कर जो आपके भंडारों में आता है, जो आप दे सकते हैं गरीब आदमी को। आप वो भंडार भरे जा रहे हैं, देख लिया आपने। एक्सपोर्टर ने क्या किया, अपने निजी प्रॉफिट में, इसलिए मैं व्हाइट पेपर मांग रहा हूं, इसमें किस एक्सपोर्टर को कितना फायदा हो रहा है, हम नाम भी नहीं ले रहे हैं। आपको पता है तीन कंपनियां हैं, बड़ी। देश के किसान से लेकर किसान को मिला नहीं। हमसे पूछो कि किसान को मिला या नहीं, किसान को नहीं मिला। 2,000 के क्विंटल के लगभग हमारा न्यूनतम समर्थन मूल्य। साढ़े 3,600 क्विंटल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत गई, वहाँ चला गया। बीच में किसने फायदा उठाया। ना तो किसान को मिला, ना वो हमारे भंडारों में आया, ना हमारे सेंटर पूल में आया और इसलिए हमारे हर प्रदेश का स्टॉक काटा जा रहा है पीडीएस का, फूड सिक्योरिटी का। हमारे प्रदेश, सारे कह रहे हैं कि गेहूं की जगह पेडी और कह रहे हैं पेडी लगाओ। पेडी के लिए क्या पानी है आपके पास? पैडी तो जितनी लगती है, उतनी ही लगेगी, पानी का ग्राउंड वाटर तो कम हो रहा है। पैडी में तो बहुत पानी लगता है आपको पता है। तो अब चावल कैसे उगाते हैं किसान, कोई जादू की छड़ी, उसके पानी उसके अनुपात में धरती का सीना चीर कर अपना खून पसीना लगाकर आप जितना सोच भी नहीं सकते हैं, उतना चावल तो उगा देगा, लेकिन जितना आप एकदम से कहो कि गेहूं तो हमने एक्सपोर्ट करा दिया, एक्सपोर्टरों को फायदा पहुंचा दिया। ना कि तुझे कुछ मिला, ना किसान, ना गरीब आदमी को गेहूं मिल रहा है, ऐसे थोड़े ही। तो ये हमारा मुख्य विषय है।एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि पहले लड़े थे किसान के लिए, अब लड़ेंगे जवान के लिए। पहले लड़े थे एमएसपी के लिए, अब लड़ेंगे एमएसपी और पीडीएस के लिए। पहले लड़े थे किसान के हक के लिए, अब किसान और गरीब और जवान के हक के लिए लड़ेंगे, विपक्ष हैं।एक अन्य प्रश्न के उत्तर में दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि देखिए, ये आप दूसरी तरफ डायवर्ट कर रहे हैं। ये तो हमारी जिम्मेदारी दोहरी है। एक जिम्मेदार विपक्ष के नाते और एक ऐसे राजनीतिक दल के सदस्य के नाते, जिस राजनीतिक दल का देश के लिए अपना योगदान रहा है, कुर्बानियां दी हैं। दो प्रश्न हैं, जो आप अलग-अलग पूछ रहे हैं। एक है चुनावी नतीजे और उनका आंकलन, वो अलग से प्रेस वार्ता करेंगे। मगर सही है, हमारा कहीं प्रजातंत्र है, कहीं जीत है, कहीं हमें जितनी उम्मीद होती है, उसके अनुरुप नतीजे नहीं मिल पाते, हम दोनों को स्वीकार करते हैं और आगे अपनी रणनीति बनाते हैं। दूसरा है, देश हित में अगर कोई ऐसा फैसला जिसमें हमें लगा कि देश का अहित है, तो उसको लेकर आप लोगों के माध्यम से जागरुकता बनाई, सड़क से संसद तक लड़ाई लड़ी है। अगर हमें लगेगा कि किसी फैसले से देश की फौज कमजोर हो रही है, तो हम उसका पुरजोर विरोध करेंगे। अगर हमें लगेगा कि सरकार के किसी फैसले से देश की सुरक्षा के साथ कॉम्प्रोमाइज हो रहा है, तो हम उसका पुरजोर विरोध करेंगे। हमें लगेगा कि देश की खाद्य सुरक्षा कमजोर रही है, किसान की आय सुरक्षा कमजोर रहेगी, हम उसका विरोध करेंगे। तो हम ये कहना चाहते हैं, एक अच्छी लाइन मिल गई कि इस सरकार ने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ किया अग्निपथ लाकर, खाद्य सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ किया प्राइवेट एक्सपोर्टर को इस प्रकार से देश के गेहूं को बाहर अपने मुनाफे के लिए भेजने के लिए परमिशन देकर और किसान की आय सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ किया, एमएसपी को, जिस तरीके से बार-बार एमएसपी प्रणाली को सरकार डिस्टर्ब करने की बात करती है। तो आज देश की राष्ट्रीय सुरक्षा भी, राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा भी, किसान की आय सुरक्षा भी आज खतरे में है, ये सरकार की नीतियों की वजह से दिखाई दे रही है। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि कितने सालों के बाद प्रदेशों का कोटा कटा, मैं पूछना चाहता हूं सरकार से। जवाब मांगे, तो वाइट पेपर में बताएं। मैं समझता हूं कि शायद गेहूं का कोटा दशकों के बाद ऐसे-ऐसे, दस-दस प्रदेशों का कोटा काट दिया गया और केवल आप किसान को वंचित रखने के लिए, केवल प्राइवेट उद्योगपति जो एग्रो ट्रेड के अंदर फायदा लेना चाहते हैं, मुनाफा, जिनकी वजह से तीन कृषि कानून लेकर आए थे, उनके हित को साधने के लिए भी आप किसान को नहीं देना चाह रहे हैं। मैं सरकार को चुनौती देता हूं कि जो प्राइवेट कंपनियां, जिनको सरकार ने फायदा पहुंचाया, यही वो कंपनियां हैं, जिनको तीन कृषि कानूनों के माध्यम से प्राइवेट प्रोक्योरमेंट करना चाहती है। सरकार इनसे दिला दे पीडीएस में। सरकार, जो दस मिलियन टन बाहर चला गया, सरकार इनसे दिला दे, पीडीएस के अंदर दिला दे गरीब आदमी को। इसलिए हम कह रहे हैं एमएसपी और पीडीएस की जो व्यवस्था है वो हिंदुस्तान की परिस्थितियों में बनी हुई व्यवस्था है। उस व्यवस्था को सरकार को तहस-नहस नहीं करने देंगे, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा और फौज को हम कमजोर नहीं होने देंगे।एक अन्य प्रश्न पर कि एलपीजी के बढती कीमतों पर क्या कहेंगे? श्री दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि एलपीजी के प्राइस जो बढ़े हैं, उस पर ज्यादा हम कमेंट नहीं करेंगे, कल उस पर प्रेस वार्ता हुई है, पर एक बात जरुर कहूंगा कि भाजपा वाले पहले जब 300 पर थी हमारी तब गैस के सिलेंडर को अपने सिर पर रखकर, अब कई मंत्री बने उनमें से, सिर पर रखकर प्रदर्शन करते थे। अब 1,000 पर पहुंच गए, अब टैंकर को रखकर उनको करना चाहिए, टैंकर को उठाएं। पहले सिलेंडर को सिर पर रखते थे, मैं तो अनुपात में बता रहा हूं, अब 1,000 पहुंच गया है, अब टैंकर को उठाएं और प्रदर्शन करें। हम उनका स्वागत करेंगे और समर्थन करेंगे। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि देखिए, हम तो कह ही रहे हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, किसान की आय सुरक्षा, नौजवान की रोजगार सुरक्षा और अब तो एयरलाइन में यात्रियों की सुरक्षा, ये देश इस सरकार से कहीं ना कहीं, हर वर्ग इस देश का असुरक्षित अपने आपको महसूस कर रहा है। आप भी लगता है रोटी कम खाते हैं, प्लेन में ज्यादा चलते हैं, मगर हमारी जो आज गेहूं से जुड़ी हुई बात है, उसको भी आप प्रमुखता से उठाएं और यात्री सुरक्षा का आपका जो प्रश्न है, उससे हम सहमत है। ये कहाँ ढील हो रही है, अभी तो पीछे एक दिन ऐसा हो गया था कि एक एयरलाइन के 40 प्रतिशत पायलट एक ही दिन में कॉल इन सिक हो गए थे। They called in sick, वो भी एक क्राइसिस हो गया था, वो भी आज तक समझ नहीं आ रहा है। तो इस बारे में क्या चल रहा है एयरलाइन सेक्टर में, सरकार को इस पर भी संज्ञान लेना चाहिए।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि एक करेक्शन में करना चाहता हूं – नीति आयोग के सदस्य हैं, रमेश चंद जी, वो सदस्य हैं, उनकी दो स्टेटमेंट मैं आपको बताना चाहूंगा। स्पष्ट है, वही मैंने कहा कि धोखा दो तरह से हुआ है, विश्वासघात दो तरफ से हुआ है। एक तो इन्होंने जो विश्वासघात के जख्म पर नमक छिड़का है, बल्कि उससे पहले क्या हुआ, संयुक्त किसान मोर्चा के साथ सरकार का एक समझौता हुआ किसान आंदोलन के साथ कि एक कमेटी बनेगी एमएसपी के लिए। हम उस कमेटी का इंतजार कर रहे हैं। पिछले पूरे सेशन में हम पूछ रहे थे, मैंने स्वयं पूछा था, कमेटी कब आएगी। बातचीत चल रही है कि कमेटी बनेगी। अब 28 मार्च को एक संजय अग्रवाल, सचिव, कृषि कल्याण मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली, उनका टेलीफोन गया संयुक्त किसान मोर्चा के पास, उसमें मौखिक रुप से कहा कि आप दो-तीन नाम दे दीजिए। इन्होंने पूछा किसान मोर्चा ने कि इस कमेटी का टर्म ऑफ रेफरेंस क्या रहेगा, इस कमेटी में संयुक्त किसान मोर्चा के अलावा किन संगठन, व्यक्तियों, पदाधिकारियों को शामिल कराया जाएगा, कमेटी के अध्यक्ष कौन होंगे, इसकी कार्यप्रणाली क्या होगी? 5 प्रश्न पूछे उन्होंने। मैंने आज उनसे बात की, कमेटी को अपनी रिपोर्ट देने के लिए कितना समय मिलेगा, क्या कमेटी की सिफारिश सरकार मानेगी, सिंपल बात है। मानेगी या नहीं मानेगी, कब तक रिपोर्ट देगी, ये 20 साल की कमेटी है, 30 साल की हैं, 10 साल की है, 5 साल की है, 1 साल की है, ये पूछने का अधिकार है। मगर इन 5 प्रश्नों को जो उन्होंने पूछा, मौखिक ही उन्होंने पूछा, अभी तक सरकारों ने जवाब ही नहीं दिया। तो स्पष्ट बात है कि विश्वासघात करने का सरकार मन बना चुकी है। नहीं तो कमेटी बनाने में इतना समय, पहली बात। दूसरी बात, आज का जो ट्रिगर है, जो मैंने बोला, ये जो रमेश जी हैं, मैं उनका व्यक्तिगत नाम किसी का नहीं लेना चाहता, नीति आयोग ने ये स्टेटमेंट दी थी नवंबर में, 29 नवंबर कि Legalizing MSP spells doom for market. कोई नीति आयोग में ये नहीं कह रहा है कि…मार्केट कौन, मैंने आपको बता दिया, जो बाहर ले गए आपका गेहूं। ये इनकी स्टेटमेंट आई कि हम कानूनीकरण नहीं करने देंगे एमएसपी का और इनकी कल स्टेटमेंट आई सेम, इन्हीं नीति आयोग की कल स्टेटमेंट आई, इस विषय से जुड़े हुए ये मेंबर हैं। इनकी स्टेटमेंट आई कि call for rethink on procurement based MSP, मतलब एमएसपी को खत्म करने की पहली जो बात थी, वो उसी को, तो अगर एक तरफ नीति आयोग कहे कि ये एमएसपी नहीं होनी चाहिए और दूसरी तरफ आप कमेटी बना रहे हैं कि इसको कानूनी अमली जामा पहनाने की मांग है किसानों की, तो इससे ज्यादा तो स्पष्ट रुप से आपको दिखा नहीं सकता है कि सरकार ने कितना बड़ा विश्वासघात कर दिया है किसान के साथ। तो इसलिए 18 से जब संसद का सत्र शुरु होगा, तो हम इस मामले को उठाएंगे। तो दो प्वाइंट हो गए, एक किसान के साथ विश्वासघात, जिसमें दो प्वाइंट है, एक ये एमएसपी वाला, एक आमदनी दोगुनी पर और दूसरा जो गरीब के साथ विश्वासघात, जिसमें मैंने सभी आंकड़े पढ़ दिए। पता नहीं आपको गेहूं मिलेगा भी या नहीं, आप भी रोटी खाएंगे या नहीं आने वाले दिनों में, अगर सरकार की यही नीतियां चलती रही तो। एक अन्य प्रश्न पर कि पंजाब के मुख्यमंत्री की शादी के संदर्भ में क्या कहेंगे? दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा बिल्कुल। उनको हम बहुत-बहुत शुभकामनाएं देते हैं। उनके जीवन का नया अध्याय शुरु हुआ है, मेरे मित्र रहे हैं। लोकसभा में हमारे साथी सांसद रहे हैं लंबे समय तक। तो मैं शुभकामनाएं देता हूं। जिनसे शादी हो रही हैं, वो परिवार हरियाणा के हैं। तो हरियाणा के वो जमाई हो गए। पंजाब के मुख्यमंत्री हैं, हरियाणा के जमाई हो गए, तो हमें खुशी है, जीवन का नया अध्याय वो शुरु कर रहे हैं, उनको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।