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ब्रेकिंग: कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और अभिताभ ने कहा, मेरा सवाल अडानी से नहीं सीधे पीएम नरेंद्र मोदी से हैं-लाइव वीडियो।

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद एंव महासचिव जयराम रमेश ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि 1961 में एक हिट फिल्म बनाई गई थी, उस फिल्म का नाम था – जब प्यार किसी से होता है। देवानंद और आशा पारेख और उस फिल्म का एक हिट गाना था, आपको भी याद होगा – सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, आज भी है, कल भी रहेगा। आज मुझे वो गाना याद आता है – सौ सवाल पहले, जेपीसी की मांग थी, आज भी है और कल भी रहेगी। आज आप जानते हैं कि ये 5 फरवरी से रोज हम तीन सवाल प्रधानमंत्री से पूछते आ रहे हैं। आज सौ सवाल पूरे हो गए हैं। ये सवाल हम अडानी से नहीं पूछ रहे हैं, ये सवाल हम प्रधानमंत्री से पूछ रहे हैं, सरकार से पूछ रहे हैं। इन सौ सवालों के बारे में जो संदर्भ है, कैसे तैयार किया गया, मेरे साथी अमिताभ दुबे इस पर आपको जानकारी देंगे, क्योंकि ये पिछले डेढ़ महीने से सुबह, दोपहर, शाम, रात इन सवालों में लगे हुए हैं।

मैं कहना चाहता हूं सुप्रीम कोर्ट ने जो समिति बैठाई है, विशेषज्ञों की समिति, जाने-माने विशेषज्ञ हैं। ये समिति अडानी केन्द्रीत समिति है, ये अडानी से सवाल पूछंगे। हम जो सवाल कर रहे हैं, अडानी से नहीं कर रहे हैं, हम प्रधानमंत्री से कर रहे हैं, सरकार से कर रहे हैं। ये सवाल सुप्रीम कोर्ट की समिति द्वारा नहीं किए जा सकते हैं। ये सिर्फ जेपीसी में ही उठाए जा सकते हैं। जेपीसी में अध्यक्ष बीजेपी के होंगे, बहुमत बीजेपी का होगा, पर उसके बावजूद विपक्ष को एक मौका मिलेगा इन सवालों को उठाने के लिए, जवाब आएगा सरकार की ओर से और ये सब रिकॉर्ड में जाएगा।

1992 में हर्षद मेहता घोटाले के समय जेपीसी की मांग उठी थी विपक्ष की ओर से। सरकार ने पहले हिचकिचाई, उसका समर्थन नहीं किया। पर दो-तीन महीने बाद आपको याद होगा प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने मंजूरी दे दी और हर्षद मेहता घोटाले में 1992 में एक जेपीसी का गठन हुआ। रिपोर्ट आई, उस पर कार्यवाही हुई, सभी को और अधिकार दिए गए, कैपिटल मार्केट को और मजबूत किया गया। 2001 में एक और घोटाला हुआ, केतन पारेख घोटाला। कांग्रेस विपक्ष में थी। अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे। तब प्रणव मुखर्जी , डॉ मनमोहन सिंह, सभी ने मिलकर जेपीसी की मांग की। वाजपेयी जी ने नहीं मानी, पर बातचीत के बाद जेपीसी का गठन हुआ। तो जेपीसी का गठन हुआ, 1992 में, जब कांग्रेस की सरकार थी। जेपीसी का गठन हुआ 2001 में तब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी और दोनों स्टॉक मार्केट घोटाले थे। ये जो घोटाला है, महाघोटाला, ये सिर्फ स्टॉक मार्केट तक सीमित नहीं है, ये सरकार की नीयत और सरकार की नीतियों से संबंधित है। ये सवाल इसीलिए हम कर रहे हैं। हम ये नहीं कह रहे हैं चुप्पी तोड़िए गौतम अडानी जी, हम कह रहे हैं चुप्पी तोड़िए प्रधानमंत्री जी और यही मौलिक अंतर है सुप्रीम कोर्ट समिति और जेपीसी के बीच में। ये सुप्रीम कोर्ट समिति सरकार से कोई सवाल नहीं करेगी। सरकार को क्लीन चिट दे देगी और हम समझते हैं, मैंने 15 फरवरी को आपको संबोधित किया था और मैंने कहा था आपको, आपको याद होगा कि ये समिति सरकार को, प्रधानमंत्री को दोषमुक्त करने की कवायद के अलावा और कुछ नहीं है। सरकार और प्रधानमंत्री को दोषमुक्त करने की कवायद के अलाना ये समिति और कुछ नहीं है। ये क्लीन चिट समिति होगी सरकार को। तो इसलिए जेपीसी की मांग हम बार-बार कर रहे हैं।

इसके पहले अमिताभ दुबे जी आपको इन सवालों के बारे में और कुछ जानकारी दें, आज का सौवां सवाल हमने निकाल दिया है। आपको मिल गया होगा, अंग्रेजी में और हिंदी में।

मैं एक चीज और कहना चाहता हूं, उसके बाद अमिताभ आपको संबोधित करेंगे। ये जो प्रयास किया जा रहा है पिछले 3-4 दिनों से कि एक फॉर्मूला ढूंढ़ा जाए, एक बीच का रास्ता ढूंढा जाए, एक मिडिल पाथ ढूंढ़ा जाए कि विपक्ष जेपीसी की मांग वापस ले ले तो बीजेपी राहुल गांधी जी की माफी की मांग वापस ले लेंगे। ये हमारे लिए बिल्कुल हम मंजूर नहीं है। इन दोनों के बीच में कोई ताल्लुकात नहीं है, कोई रिश्ता नहीं है। जो सवाल हम पूछ रहे हैं, मौलिक सवाल हैं, बुनियादी सवाल हैं, ये हकीकत है, ये हुआ है। जो माफी मांगने की बात बीजेपी कर रही है, वो बिल्कुल बेबुनियादी है, झूठे आरोप हैं। तो इन दोनों के बीच में कोई बराबरी नहीं हो सकती है। ये कहना कि आप ये वापस लीजिए, तो हम माफी मांगने की बात वापस लेंगे, हम सौदा करने के लिए तैयार नहीं हैं। इन दोनों के बीच में कोई रिश्ता नहीं है। राहुल गांधी ने स्पीकर को लिखा है, लोकसभा के रूल 357 के तहत उन्होंने मांग की है कि उनको बोलने का एक मौका दिया जाए, जो उनका लोकतांत्रिक हक बनता है। स्पीकर उस पर क्या निर्णय लेंगे, वक्त ही बता पाएगा, पर ये कहना कि एक फॉर्मुला है, ये फॉर्मुला हम पहचानते नहीं हैं, हम स्वीकारते नहीं हैं। हम इससे बिल्कुल सहमत नहीं हैं क्योंकि ये बिल्कुल जमीन-आसमां का फर्क है। जेपीसी की मांग और माफी की मांग के बीच में। ये माफी की मांग जो बात आ रही है बार-बार, ये इसलिए कहा जा रहा है ताकि ध्यान अडानी घोटाले से हटाया जाए ताकि जो प्रधानमंत्री की प्राथमिक जिम्मेदारी है, नीयत है, नीतियां हैं, जिसकी वजह से ये घोटाला हुआ है, उससे ध्यान हटाया जाए। डिस्टॉर्ट, डीफेम, डायवर्ट, प्रधानमंत्री की भाषा ये मैं इस्तेमाल कर रहा हूं, 3 डी प्रधानमंत्री, 5 डी, 4 एस, ऐसे बोलते रहते हैं, मैं प्रधानमंत्री को कहना चाहता हूं, 3 डी हैं – डिस्टॉर्ट, डीफेम, डायवर्ट। उन्होंने राहुल गांधी जी के बयानों को डिस्टॉर्ट किया, राहुल गांधी को डीफेम किया, बदनाम किया और अभी डायवर्ट करना चाहते हैं, अडानी के मामले से। तो मैं अमिताभ दुबे जी से निवेदन करूंगा कि आपको कुछ जानकारी दें इन 100 सवालों के बारे में और आगे क्या रास्ता होगा इन 100 सवालों को लेकर।

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