अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
चंडीगढ़: सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के तत्वावधान तथा हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (हालसा) के मुख्य संरक्षक और कार्यकारी अध्यक्ष एवं न्यायाधीश संजीव खन्ना के समग्र नेतृत्व में तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, शील नागु तथा कार्यकारी अध्यक्ष अरूण पल्ली, न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मार्गदर्शन और उनके संयुक्त प्रयासों से हरियाणा के सभी 22 जिलों और 34 उपमंडलों में जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से वाद पूर्व प्रकरण और लंबित दोनों न्यायिक मामलों के लिए 167 पीठों का गठन करके राष्ट्रीय लोक अदालत आयोजित की गई। इन लोक अदालतों में व्यवहारिक, वैवाहिक, मोटर दुर्घटना दावे, बैंक उगाही, चैक बाउंस, वाहन चालान, समझौता योग्य आपराधिक मामलों सहित विभिन्न श्रेणियों के मामलों की विस्तार से सुनवाई की गई। लोक अदालतों में वैकल्पिक विवाद समाधान केंद्रों में काम करने वाली स्थायी लोक अदालतों (सार्वजनिक उपयोगिता सेवाएं) के 4.5 लाख से अधिक मामले भी शामिल है। इनको भी आपसी सहमति के माध्यम से निपटाने के लिए लोक अदालती पीठों को भेजा गया। राष्ट्रीय लोक अदालत का मुख्य उद्देश्य वादकारियों के विवादों को बिना किसी देरी के सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए एक मंच प्रदान करना है। लोक अदालत का फैसला अंतिम होता है और लोक अदालत में आपसी समझौता होने पर न्याय शुल्क वापस करने का प्रावधान है। राष्ट्रीय लोक अदालत से पहले न्यायमूर्ति अरुण पल्ली ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सभी जिला और सत्र न्यायाधीशों एवं अध्यक्षों जिला विधिक सेवा प्राधिकरण तथा मुख्य न्यायिक मजिस्टेट्स एवं सचिवों, जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के साथ व्यक्तिगत रूप से वार्ता की और उन्हें अधिक से अधिक मामलों के निपटारे हेतु हर संभव प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश तथा सदस्य सचिव सूर्य प्रताप सिंह, हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने बताया कि आज की राष्ट्रीय लोक अदालत में प्री-लोक अदालत की बैठकों सहित वाद पूर्व और अदालत में लंबित दोनों प्रकार के लगभग 4 लाख मामलों का निपटारा किया गया।करनाल में आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत में वैवाहिक कलह का मामला सामने आया। एक दशक से अधिक समय से शादीशुदा जोड़ा, नीरज और दीक्षा लंबे समय से विवाद में उलझे हुए थे, जिसके कारण नीरज ने तलाक के लिए प्रार्थना-पत्र दाखिल किया। प्रारंभिक चर्चा के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि नीरज और दीक्षा दोनों भावनात्मक रूप से थक गए है। लोक अदालत पीठ ने उन्हें साथ गुजारे गए समय, अपने बच्चों और सुलह की क्षमता पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया। लोक अदालत में, नीरज और दीक्षा ने उन कारणों को फिर से खोजना शुरू किया। एक महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब नीरज, जो विवाह विच्छेदन के अपने फैसले पर अड़े हुए थे, ने पुनर्विचार करना शुरू किया। घटनाओं के एक उल्लेखनीय मोड़ में, नीरज और दीक्षा ने अपने विवाह विच्छेदन की याचिका वापस लेने का फैसला किया। लोक अदालत की मध्यस्थता ने न केवल उन्हें अपने मुद्दों को हल करने के लिए कानूनी रास्ता प्रदान किया, बल्कि एक-दूसरे के प्रति उनकी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता को भी फिर से जागृत किया। नीरज और दीक्षा की कहानी को एक उदाहरण के रूप में उजागर किया गया कि लोक अदालतें न केवल कानूनी निपटान में बल्कि रिश्तों को सुधारने और परिवारों के बीच सद्भाव बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। फरीदाबाद में बारिश भी लोगों के उत्साह को कम नहीं कर सकी। लोक अदालत उत्सव में एक हजार से अधिक लोग आए। एक उल्लेखनीय मामले में, एक व्यक्ति जो जीवन यापन के लिए सब्जियां बेचता था, उसका मामला, अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अमृत सिंह चालिया की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष पेश हुआ। दुर्घटना में घायल होने के कारण उनके पास कोई काम नहीं रहा। ठोस सबूत के बिना, बीमा कंपनी से मुआवजा प्राप्त करने की उनकी संभावना भी कम लग रही थी। हालाँकि, पीठ न्याय दिलानेे लिए दृढ़ संकल्पित रही। इसमें जिला एवं सत्र न्यायाधीश संदीप गर्ग ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अभिषेक वार्ष्णेय की मदद से मौके पर ही आवेदक की विकलांगता का आंकलन करवाया। अदालत द्वारा कुछ बातचीत और अनुनय के बाद, बीमा वकील भी 3.4 लाख रुपए मुआवजे के रूप में प्रदान करने के लिए सहमत हुआ।
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