Athrav – Online News Portal
दिल्ली नई दिल्ली राजनीतिक राष्ट्रीय

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने ‘जिम्मेदार कौन’अभियान के तहत ऑक्सीजन संकट पर पूछा सवाल- पढ़े

अजीत सिन्हा /नई दिल्ली
दिल्ली: कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने केंद्र सरकार से अपने सवालों के अभियान “जिम्मेदार कौन” को आगे बढ़ाते हुए ऑक्सीजन संकट पर केंद्र सरकार से पूछा है कि आखिर क्यों आपने महामारी वाले साल 2020 में ऑक्सीजन का निर्यात 700% तक बढ़ा दिया। प्रियंका गाँधी ने कहा कि देश भर के तमाम अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से लोग तड़प- तड़प कर मर गए। अगर केंद्र सरकार ने पहली लहर एवं दूसरी लहर के बीच मिले समय में योजनाबद्ध ढंग से तैयारी की होती तो ऑक्सीजन संकट को टाला जा सकता था।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने आगे पूछा कि मोदी सरकार ने अपने ही एम्पावर्ड ग्रुप- 6 की ऑक्सीजन संकट की सलाह को दरकिनार क्यों किया? उन्होंने आगे कहा कि महामारी की मार के पहले तक ऑक्सीजन को प्राथमिक रूप से औद्योगिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाता था, इसलिए भारत के पास ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट में इस्तेमाल होने वाले विशेष रूप से बनाये गए क्रायोजेनिक टैंकरों की संख्या 1200- 600 थी। कोरोना की पहली लहर एवं दूसरी लहर के बीच मोदी सरकार ने इन टैंकरों की संख्या बढ़ाने या औद्योगिक प्रयोग में आ रही ऑक्सीजन को मेडिकल सुविधाओं में प्रयोग में लाने के लिए आकस्मिक योजना की बारीकियां तैयार करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने केंद्र सरकार से पूछा है कि आपके पास एक साल था। आखिर क्यों सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर का अंदाजा होने के बावजूद ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल होने वाले क्रायोजेनिक टैंकरों की संख्या बढ़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया? कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने कहा कि भारत ऑक्सीजन का सबसे बड़ा ऑक्सीजन उत्पादक देश है, लेकिन केंद्र सरकार की लापरवाही के चलते कोरोना की दूसरी लहर के समय ऑक्सीजन संकट खड़ा हुआ और लोगों की जानें गईं। केंद्र सरकार ने 150 ऑक्सीजन प्लांट चालू करने के लिए बोली लगाई थी, लेकिन उनमें से ज्यादातर प्लांट अभी भी चालू नहीं हो सके हैं। उन्होंने कहा कि इस संकट काल में भी मोदी सरकार ने लोगों की जेब काटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संसद की स्वास्थ्य मामलों की स्थाई समिति ने सरकार को पहले ही सुझाया था कि केंद्र सरकार को ऑक्सीजन सिलेंडर के दाम नियंत्रित करने के प्रयास करने होंगे, लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर की कीमत पिछले साल 4000 रू थी वहीँ एक साल में बढ़कर 7000 रू हो गई। पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों के चलते एक ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिल कराने की कीमत एक साल में 500 रू से बढ़कर 2000 रू हो गई. प्रियंका गाँधी ने कहा कि राज्यों के मुख्यमंत्री ऑक्सीजन की कमी प्रधानमन्त्री को बताते रहे। केंद्र सरकार अपनी गलती न मानकर न्यायालयों में राज्य सरकारों की ऑक्सीजन मांग का कोटा कम करने को लेकर लड़ाई लड़ने लगी। वास्तव में हमारे देश में ऑक्सीजन की कमी नहीं थी। उन्होंने कहा कि पिछले एक साल से कोरोना का तांडव चल रहा है। इस दौरान केंद्र सरकार ने कोरोना पर विजय घोषित की, संसद के अंदर मंत्रियों ने इस विजय के लिए प्रधानमंत्री का स्तुतिगान भी कर किया। मगर देश के वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों से चेतावनी के बावजूद दूसरी लहर के खतरे को आपराधिक लापरवाही के चलते अनदेखा किया। प्रधानमंत्रीजी की प्रचार-पिपासा के आगे बेबस केंद्र सरकार ने आने वाले लहर से निपटने की बेसिक तैयारी भी नहीं की।

प्रियंका गांधी जी की फेसबुक पोस्ट

ऑक्सीजन संकट?

कोरोना वायरस की दूसरी लहर में देश के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के चलते बड़ी संख्या में लोगों के तड़प-तड़प कर दम तोड़ने की खबरें आईं।

जिम्मेदार कौन?

पिछले एक साल से कोरोना का तांडव चल रहा है। इस दौरान केंद्र सरकार ने कोरोना पर विजय घोषित की, संसद के अंदर मंत्रियों ने इस विजय के लिए प्रधानमंत्री का स्तुतिगान भी कर किया। मगर देश के वैज्ञानिकों से चेतावनी के बावजूद दूसरी लहर के खतरे को आपराधिक लापरवाही के चलते अनदेखा किया। प्रधानमंत्रीजी की प्रचार-पिपासा के आगे बेबस केंद्र सरकार ने दूसरी लहर से निपटने की बेसिक तैयारी भी नहीं की।

भारत अपने वैज्ञानिकों, मेहनती नागरिकों व पिछली सरकारों के प्रयासों की वजह से विश्व का सबसे बड़ा ऑक्सीजन उत्पादक देश है। आज बोकारो, भिलाई जैसे बहुत से कारखाने देश में ऑक्सीजन सप्लाई कर रहे हैं। भारत की क्षमता प्रतिदिन 7500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन करने की है। दूसरी लहर के चरम पर भी कुल मिलाकर देश के सारे अस्पतालों में उपयोग में आई ऑक्सीजन के आंकड़ें कुछ इस प्रकार हैं:

1 मई: 7603 मीट्रिक टन/प्रतिदिन
6 मई: 8920 मीट्रिक टन/प्रतिदिन
9 मई: 8944 मीट्रिक टन/प्रतिदिन
20 मई: 8344 मीट्रिक टन/प्रतिदिन

इसका मतलब है कि हम तकरीबन सारे अस्पतालों को ऑक्सीजन दिलवाने की स्थिति में थे और सिर्फ प्रतिदिन 1500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की कमी थी, जोकि ऑक्सीजन निर्यात कम करने से या पहले से ऑक्सीजन आयात की तैयारी करके आसानी से पूरी की जा सकती थी। फिर गलती कहाँ हुई?

कौन है इसका जिम्मेदार?

• महामारी वाले वर्ष यानि 2020 में मोदी सरकार ने ऑक्सीजन का निर्यात 700% से अधिक बढ़ा दिया। ज्यादातर सप्लाई बांग्लादेश को गई और सरकार ने समय पर अतिरिक्त ऑक्सीजन आयात करने का कोई प्रयास नहीं किया।

• अपने नाकारेपन को मिसाल बनाते हुए मोदी सरकार ने, ऑक्सीजन संकट की स्थिति में ऑक्सीजन उत्पादक केंद्रों से देश के अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुँचाने के साधनों का प्रबंध करने का कोई प्रयास ही नहीं किया।

• महामारी आने से पहले उत्पादित ऑक्सीजन का प्राथमिक रूप से औद्योगिक इस्तेमाल होता था, भारत के पास ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट में इस्तेमाल होने वाले विशेष क्रायोजेनिक टैंकरों की संख्या अनुमानतः 1200-1600 थी। कोरोना की पहली लहर एवं दूसरी लहर के बीच मोदी सरकार ने इन टैंकरों की संख्या बढ़ाने या औद्योगिक प्रयोग में आ रही ऑक्सीजन को मेडिकल सुविधाओं में प्रयोग में लाने के लिए आकस्मिक योजना की बारीकियां तैयार करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया

• पहली लहर के ख़ात्मे तक यह पता चल चुका था कि कोविड के इलाज में मेडिकल ऑक्सीजन जरूरी है। फिर भी केंद्र सरकार को ऑक्सीजन उत्पादन के लिए 150 प्लांट्स के टेंडर आमंत्रित करने में 8 महीने लग गए और आज भी ज्यादातार प्लांट चालू हालत में नहीं हैं।

• मोदी सरकार के अपने एम्पावर्ड ग्रुप-6 ने एक साल पहले अप्रैल 2020 में निकट भविष्य में होने वाले ऑक्सीजन संकट की चेतावनी दी थी। मोदी सरकार ने इस चेतावनी को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया।

• स्वास्थ्य मामलों की संसदीय समिति ने पिछले साल अक्टूबर में सरकार को ऑक्सीजन की कमी के बारे में चेतावनी देते हुए ऑक्सीजन का रिजर्व रखने व ऑक्सीजन सिलेंडर का मूल्य नियंत्रित करने की बात भी कही थी। हालाँकि सरकार की देखरेख में हुआ इसका ठीक उलटा। ऑक्सीजन सिलेंडर की कीमत पिछले साल 4000 रू थी वहीँ एक साल में बढ़कर 7000 रू हो गई। पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों के चलते एक ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिल कराने की कीमत एक साल में 500 रू से बढ़कर 2000 रू हो गई।

• राज्यों के मुख्यमंत्री ऑक्सीजन की कमी प्रधानमन्त्री को बताते रहे मगर केंद्र सरकार अपनी गलती न मानकर न्यायालयों में राज्य सरकारों की ऑक्सीजन मांग का कोटा कम कराने को लेकर लड़ने लगी। वास्तव में, मोदी सरकार ने ऑक्सीजन आपूर्ति का मनमानेपन और विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों के साथ बेवजह भेदभाव करके राजनीतिकरण कर डाला। यह स्पष्ट है कि दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों का असल ज़िम्मेदार मोदी सरकार का नाकारापन और कार्ययोजना का अभाव है।

अब, उन्हें जनता के सवालों का जवाब देना है।

 ऑक्सीजन की आकस्मिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्यों कोई कदम नहीं उठाये गए? एम्पावर्ड ग्रुप-6 की सलाह को पूरी तरह से नजरअंदाज क्यों किया गया? कोरोना की दूसरी लहर का अंदाजा होने के बावजूद ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल होने वाले क्रायोजेनिक टैंकरों की संख्या बढ़ाने के लिए क्यों कोई प्रयास नहीं किया गया?

 कोरोना महामारी ने जिस साल में पूरे विश्व में तबाही मचाई आखिर क्यों उसी साल 2020 में मोदी सरकार ने ऑक्सीजन का निर्यात बढ़ाकर 700% कर दिया?

 स्वास्थ्य मामलों की संसद की स्थाई समिति की सलाहों को नजरअंदाज कर क्यों ऑक्सीजन सिलेंडर एवं सिलेंडर रिफिलिंग के दाम पर नियंत्रण नहीं किया गया?

Related posts

सरकारी नौकरी: 300 से ज्यादा पदों पर वैकेंसी, जानिए कितनी मिलेगी सैलरी और कैसे करें आवेदन

Ajit Sinha

जरा हटके हैं:सोने की टैक्सी, करोड़ों में कीमत, सवारी करने के लिए चुकाने होंगे इतने पैसे,जरूर पढ़े

Ajit Sinha

फरीदाबाद:गाँवों के विकास के लिए पैसे की कोई कमी नहीं : कृष्णपाल गुर्जर

Ajit Sinha
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
error: Content is protected !!
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x