अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: प्रो. गौरव वल्लभ ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा- नमस्कार साथियों। आज की इस प्रेस वार्ता में मैं आप सभी का स्वागत करता हूं।
साथियों, पिछले दो सप्ताह में हमने देखा कि एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट आज सरकार की ‘एनफोर्स्ड डायरेक्टिव्स’ की एक संस्था बन गई है। ED had become ‘Enforced Directives’ from the Modi government. हम पूछना चाहेंगे एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट से कि आपके एनफोर्स्ड डायरेक्टिव्स जो आपको मिलते हैं, मोदी सरकार से, हम पूछना चाहेंगे सरकार से भी कि कुछ मामलों में आपकी इतनी लंबी और इतनी गहरी चुप्पी क्यों है? कौन लोग हैं सरकार में, जो आपको ऐसा करने से रोक रहे हैं?
साथियों, पिछले 8 साल में हमने देखा कि भारत सरकार के जो भी झूठे, भ्रामक क्लेम्स थे, वो एक-एक करके ढहते रहे। Tall and false claims of Government, एक-एक करके गिरते रहे। पिछले दो सप्ताह में कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और हमारे नेता श्री राहुल गांधी जी से 54 घंटे तक ईडी ने पूछताछ की, पर दो मामले, बहुत-बहुत लेटेस्ट मामले आपके सामने रखूंगा, वहाँ पर ईडी चुप है। हम पूछना चाहते हैं कि उन मामलों में इतना सन्नाटा क्यों है, भाई?
पहला मामला आता है, ये मैं भी नहीं कह रहा, सरकार भी नहीं कह रही, देश की कोई एजेंसी नहीं कह रही, पर श्रीलंका की स्टेट ओन्ड, श्रीलंका की सरकारी इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, जिसका नाम है सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, उसके चेयरमैन, जो उनकी बिजली आपूर्ति करती है श्रीलंका में, उसके चेयरमैन वहाँ की संसद के पैनल के सामने खड़े होकर, कोई छोटी-मोटी जगह भी नहीं, श्रीलंका की संसद के पैनल सामने खड़े होकर कहते हैं कि हमारे राष्ट्रपति श्री राजपक्षे को मोदी जी ने प्रेशर डाला। ये मैं नहीं कह रहा, श्रीलंका बिजली विभाग के चेयरमैन कह रहे हैं कि मोदी जी ने श्रीलंका के बिजली बोर्ड पर प्रेशर डाला, उनके राष्ट्रपति के मार्फत कि विंड पॉवर प्रोजेक्ट का काम श्रीलंका में अडाणी ग्रुप को दे दिया जाए। मैंने भी नहीं कहा ये, ये उनके बिजली बोर्ड के चेयरमैन कह रहे हैं।
क्या हमारे देश के प्रधानमंत्री प्राइवेट पार्टियों को ठेका दिलाने के लिए बने हैं? क्या हमारे देश के, भारत जैसे महान देश के प्रधानमंत्री किसी कंपनी के एजेंट के रुप में काम कर रहे हैं, कि ठेका अडाणी ग्रुप को दिलवा दिया जाए? क्या ईडी और दूसरी एजेंसियों ने इस पर जांच करना उपयुक्त नहीं समझा? वहाँ पर इतनी खामोशी क्यों रखी गई? अरे, हम तो 54 घंटे की जांच का सामना करके भी आ गए और आगे भी हर अग्नि परीक्षा दे देंगे, हमें कोई चिंता नहीं है, पर वो लोग, जिनका नाम श्रीलंका के बिजली बोर्ड के चेयरमैन पार्लियामेंट के पैनल के सामने कहते हैं कि मोदी जी उन पर दबाव डाल रहे हैं, श्रीलंका की सरकार पर कि विंड पावर का प्रोजेक्ट अडाणी को दे दिया जाए, क्या उनके ऊपर ईडी की पूछताछ नहीं होनी चाहिए?
क्या एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट, जो कि आज सरकार की एनफोर्सिंग डायरेक्टिव्स बन चुकी है, क्या उन्होंने इसका संज्ञान लेकर मोदी जी को समन दिया? क्या इसकी जांच की कि इस बात में कितनी सच्चाई है कि श्रीलंका का बिजली बोर्ड का चेयरमैन खुलेआम अपनी संसद के पैनल के सामने बोलते हैं कि मोदी जी उन पर दबाव डालते हैं, उनके राष्ट्रपति पर कि विंड एनर्जी का प्रोजेक्ट अडाणी को दे दिया जाए? क्या इस बात का संज्ञान ईडी ने लिया? इतना सन्नाटा उनमें इस बात के लिए क्यों रह गया, कौन उनको रोक रहा था? ये तो हो गया प्वाइंट नंबर वन।
दूसरा प्वाइंट भी लाया हूं और दो ही प्वाइंट की बात करुंगा।
जैसे ही 2014 में मोदी जी ने सत्ता संभाली, उस 2014 में सत्ता संभालते ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने एक ड्राफ्ट एमओयू बनाया और उस ड्राफ्ट एमओयू के तहत एक बिलियन डॉलर अर्थात् 7,825 करोड़ रुपए उस एमओयू के तहत स्टेट बैंक ने और दुनिया के सारे बैंकों ने एक कन्सोर्शियम बनाकर अडाणी को फंडिंग देने का सोचा और ये कहाँ पर फंडिग दे रहे थे अडाणी को, ऑस्ट्रेलिया में, माइन्स के लिए। जब इसका विरोध देश में हुआ, जब इसका विरोध ऑस्ट्रेलिया में हुआ, तो इस एमओयू को खत्म कर दिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई। उसके पश्चात 2020 में पुन: स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 5,000 करोड़ की फंडिग का प्रपोजल Adani’s Carmichael coal project in Australia के लिए दिया, जब इसका भी वहाँ पर क्लाइमेट एक्टिविस्ट्स ने विरोध किया, जब इसका भी वहाँ पर इनवेस्टर्स like Amundi and AXA ने विरोध किया, तो स्टेट बैंक ने इसको भी रोक दिया। इस समय क्या स्थिति है मुझे नहीं पता।
सत्ता संभालते ही 7,825 करोड़ का, एक बिलियन डॉलर की फंडिग अडाणी को ऑस्ट्रेलिया की माइन्स में देने का निर्णय किया। एमओयू बनाया स्टेट बैंक ने। विरोध हुआ तो उस एमओयू को वहीं रोक दिया। 2020 में पुन: ऑस्ट्रेलिया की एक कोल माइन्स के लिए 5,000 करोड़ की फंडिग का निर्णय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया करती है। जब इसका विरोध वहाँ के इनवेस्टर करते हैं, तो वो डील स्टक हो जाती है। अभी इस डील की क्या स्थिति है, हमें नहीं पता।
हमारा सवाल है कि क्या ईडी ने कभी अडाणी को बुलाकर पूछा कि आप किससे प्रेशर डलवा रहे हैं, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से लोन लेने के लिए?
क्या ईडी ने स्टेट बैंक को बुलाकर पूछा कि वित्त मंत्रालय में बैठे कौन से मंत्री आपके ऊपर दबाव डाल रहे हैं कि आप अडाणी को लोन दो?
ऐसे और भी कई किस्से हैं, लिस्ट बहुत लंबी है। 5-6 इशू आपको जस्ट पासिंग रिमार्क्स के तौर पर कर रहा हूं।
क्या ईडी ने कभी ईश्वरप्पा को बुलाकर पूछा कि ये 40 प्रतिशत कमीशन, जो कर्नाटक सरकार, ये मैं नहीं कह रहा, वहाँ के कॉन्ट्रैक्टर्स एसोशिएसन के चेयरमैन ने प्रेस वार्ता करके बोला?
क्या ईडी ने बोम्मई साहब को बुलाकर पूछा, कर्नाटक के मुख्यमंत्री को कि आपके ऊपर चार्ज है कि आप जो भी काम करते हैं, उस पर 40 प्रतिशत कमीशन लेते हैं? क्या वहाँ पर ईडी ने पूछताछ की?
क्या ईडी ने कभी बुलाकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को पूछा कि व्यापम घोटाले के दोषी कौन-कौन हैं?
क्या ईडी ने कभी गुजरात के मुख्यमंत्री को बुलाकर पूछा कि कांडला बंदरगाह पर 260 किलो ड्रग, कांडला, जो बंदरगाह है, वहाँ पर कैसे मिली, उसका क्या सोर्स था?
क्या ईडी ने कभी हेमंत बिस्वा सरमा को बुलाकर पूछा कि ये पीपीई किट का घोटाला कैसे हुआ?
क्या ईडी ने गोवा सरकार को बुलाकर पूछा, जब सत्यपाल मलिक ने स्वयं, जो कि गोवा के गवर्नर थे, कहा पब्लिकली कि गोवा सरकार जो भी करती है, इस धरती के ऊपर, उसमें करप्शन है? इतना सन्नाटा वहाँ ईडी को क्यों आ जाता है, ऐसा उनके ऊपर क्या दबाव है? हम पूछना चाहते हैं।
तीन सवाल सरकार से –
पहला, भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री एक इंडिविजुअल कंपनी की पैरवी विदेशी सरकार को क्यों कर रहे हैं? इस बात का संज्ञान कौन लेगा?
हम पूछना चाहते हैं कि कौन से मंत्री और ब्यूरोक्रेट्स ईडी के ऊपर इस इनवेस्टिगेशन को नहीं करने का दबाव डालते हैं?
हमारा दूसरा प्रश्न है कि क्या ईडी, अडाणी ग्रुप को बुलाकर पूछेगा कि आपको 7,825 करोड़ रुपए की, एक बिलियन डॉलर की फंडिग का एमओयू एसबीआई साइन करता है और उसको जब चारों तरफ से दबाव आता है, तो उसको निरस्त किया जाता है, पुन: 5,000 करोड़ का लोन देने का एक एमओयू वापस बनाता है, फिर जब इनवेस्टर विरोध करते हैं, तो फिर उसको वापस करते हैं। कौन लोग हैं वित्त मंत्रालय में और प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठे हुए, जो स्टेट बैंक पर दबाव डालते हैं बार-बार कि अडाणी ग्रुप को फंडिग की जाए। क्या ईडी इसका संज्ञान लेगा?
हमारा तीसरा सवाल है कि क्या ईडी की विश्वसनीयता धूमिल नहीं होती है, जब ईडी सिर्फ निराधार, बिना तर्क के, बिना सबूत के विपक्षी दलों के नेताओं को सुबह से शाम तक बुलाकर रात के डेढ़-डेढ़ बजे तक, 12:30, 1-1 बजे तक पूछताछ करता है? क्या उनकी विश्वनीयता ऐसे मामलों में, जो मैंने आपके सामने रखे, दो तो बड़े केस और बाकी स्टेट गवर्मेंट में जो करप्शन का खुलेआम नंगा नाच हो रहा है, क्या उसमें ईडी ने अभी तक कोई भी जांच की?
ये हमारे तीन प्रश्न हैं।