अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज किसान आंदोलन अपने 100 दिन समाप्त कर चुका है। इन 100 दिनों में 255 मौतें हुई; एक दिन में दो से भी अधिक। आपमें से किसी ने मोदी जी के मुँह से, किसी मंत्री के मुँह से कोई संवेदना का एक शब्द भी अगर सुना हो, तो हम सबको स्मरण करा दीजिए, हमने नहीं सुना, किसानों ने नहीं सुना। उनका अपमान किया गया, ताने कसे गए,उनके आंसूओं तक की हंसी उड़ाई गई। लेकिन इतने किसान बारिश, ओले, सर्दी और अब गर्मी झेलते हुए वहाँ बैठे हैं। दिल्ली के चारों तरफ बॉर्डर्स पर बैठे हैं। लेकिन सरकार के उस फोन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिस फोन का वायदा प्रधानमंत्री जी ने स्वयं किया था। आज तक वो फोन नहीं गया।
मीडिया पर क्या दबाव है, ये तो अब हम बखूबी जान चुके हैं! पिछले कुछ दिनों में, कि जो मीडिया देख रहा है, वह अब दिखा पाने की स्थिति में नहीं है। सबको मालूम है कि क्या हो रहा है, आंदोलन दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, लेकिन खबरों से आंदोलन गायब है। बार-बार किसान आंदोलन को बदनाम करने के प्रयास किए गए, वो आप सबसे सुने, देखे, महसूस किए। तमाम षडयंत्र रचे गए। भाजपा नेताओं की वो टिप्पणियां आप सबने सुनी, बार-बार उनको दोहराना ठीक नहीं रहेगा। विमर्श के दायरे से कैसे किसानों को, उनके आंदोलन को निकाल बाहर किया जाए, उसके लिए तमाम षडयंत्र रचे गए, हर हथकंडा अपनाया गया। उन हथकंडों के लिए सरकार जानी जाती है। मध्यम वर्ग का ध्यान व समर्थन किसान आंदोलन की तरफ नहीं जा पाता, जाहिर सी बात है, क्योंकि सरकार ने हमें और आपको व्यस्त रखने का तमाम इंतजाम कर रखा है। जब हम और आप अपनी ही उधेड़बुन में लगे रहेंगे, तो हम किसी और की सुध कैसे लेंगे। यह बात सरकार बहुत अच्छी तरह समझती है। इसलिए आज अगर समाज का एक बहुत महत्वपूर्ण वर्ग, किसानों का वर्ग अगर 100 दिन से आंदोलन कर रहा है, तो हमें उसका समर्थन इसलिए भी करना चाहिए कि वो, वह काम कर रहे हैं, जो हम और आप, जिस आपाधापी में जी रहे हैं, हम नहीं कर पाते। अगर हम अपने घर की किश्तें भरने में संघर्ष कर रहे हैं, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, अपनी नौकरी ढूंढने के लिए या बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पेट्रोल-डीजल, एलपीजी गैस, प्याज, खाद्य तेल, तमाम कीमतें बढ़ रही हैं, उससे हम संघर्ष कर रहे हैं। तो एक वर्ग ऐसा है जो आपके और मेरे संघर्ष को सड़क पर लाया है। सिर्फ एक काम हमें करना है कि उस संघर्ष का सम्मान करें, उसका समर्थन कर पाएं। तो इस देश पर और इस लोकतंत्र पर आप सबकी बहुत बड़ी कृपा होगी। आज सरकार की नीतियों के खिलाफ कई लोगों के मन में आक्रोश है।
अलग-अलग वर्ग हैं, व्यापारी वर्ग है। महिला सुरक्षा को लेकर हम आंदोलित है, लेकिन नहीं कुछ कर पा रहे हैं, क्योंकि जैसा कि मैंने कहा हम आपा धापी में लगे हुए हैं। तो कम से कम संवेदना है आपके मन में, हम सबके मन में, पीड़ा भी हैं। हाँ, अभाव है तो समय का है। तो किसी एक वर्ग ने वो समय निकाला है। सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही, वो हम सब देख रहे हैं। वो टीकरी बॉर्डर हो, सिंधु बॉर्डर हो, गाजीपुर हो, शाहजहांपुर हो, सब जगह एक वर्ग बैठा है, अडिग है, संघर्ष कर रहा है। उसको कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, उसके खिलाफ क्या षडयंत्र रचे जा रहे हैं, कैसे उसका अपमान करने की चेष्ठा की जा रही है, वो फिर भी वहीं डटा हुआ है। देश उनके साथ भले चुप है, लेकिन खड़ा है। आज काला दिन मनाने का किसानों ने आह्वान किया है। ये काला अध्याय है हमारे लोकतंत्र के इतिहास में। आदोंलन पहले भी बहुत हुए, हर सरकार में हुए। जब राजीव गांधी जी की सरकार थी, वोट क्लब पर किसान जमा हो गए थे,लाखों किसान थे। इंदिरा जी की पुण्य तिथि में बहुत बड़ा कार्यक्रम यहीं होना था, वोट क्लब पर। राजीव जी ने वो कार्यक्रम का स्थान बदला, किसानों को नहीं हटाया। सरकारें ऐसे चलती हैं। तो उम्मीद सरकार से तो नहीं है। उम्मीद आप सबसे है, उम्मीद इस पूरे देश से इस किसानों को है कि और कुछ करें या ना करें, अपना समर्थन इन किसानों को जरुर दें। भले ही आप बोलने में सक्षम नहीं हैं, सड़क पर आने में सक्षम नहीं हैं। एक साइलेंट, एक मौन समर्थन भी अगर आप देंगे, तो इस देश का बहुत-बहुत भला होगा।