अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज हम लोगों का जो मुख्य मुद्दा, पहले जब हमने अनाउंस किया था, तो दिल्ली की लिकर पॉलिसी पर और दिल्ली सरकार के भ्रष्टाचार पर, लिकर पॉलिसी को लेकर करना था, लेकिन जैसे ही यहाँ पर 12 बजे से पहले हम लोग आ रहे थे, तो गुलाम नबी आजाद का लैटर और उनके इस्तीफे को मीडिया के अंदर देखा, तो आज की हमारी प्रेस वार्ता इसी के ऊपर है और दिल्ली के मसले के ऊपर कल फिर से हम लोग प्रेस वार्ता करके, अलग से उसके बारे में आप लोगों के बीच में चर्चा करेंगे।
जैसा मैंने कहा कि आजाद का जो पत्र मीडिया में रिलीज हुआ है, उसको हम लोगों ने देखा है। गुलाम नबी आजाद कांग्रेस पार्टी के बहुत ही वरिष्ठ नेता थे और कांग्रेस पार्टी में और प्रशासन में देश के अंदर और प्रदेश के अंदर कांग्रेस पार्टी के माध्यम से उन्होंने बहुत सारे महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित भी किया। लेकिन ये बहुत ही अत्यंत दुख की बात है कि ऐसे समय में, जब कांग्रेस पार्टी, राहुल गांधी के नेतृत्व में, हमारी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता और संगठन सड़क पर महंगाई, बेरोजगारी और ध्रुवीकरण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं; हम लोगों ने 4 सितम्बर को महंगाई पर हल्ला बोल की राष्ट्रीय रैली दिल्ली के रामलीला मैदान में रखी है और 7 सितम्बर को भारत जोड़ो यात्रा, जो कि महंगाई, बेरोजगारी और ध्रुवीकरण के खिलाफ, भाजपा के खिलाफ सीधी-सीधी लड़ाई है; हम लोगों ने 29 तारीख को 22 प्रेस कांफ्रेंसेज़ पूरे देश में रखी हैं, 5 सितम्बर को 32 प्रेस कांफ्रेंस पूरे देश में भारत जोड़ो यात्रा के बारे में रखी है, अत्यंत दुख की बात ये है कि गुलाम नबी आजाद ने ऐसे समय में कांग्रेस को छोड़ने का और इस लड़ाई के अंदर साथ छोड़ने का फैसला किया है।
हम ये उम्मीद करते थे कि ये लड़ाई, जो जनता के मुद्दों के लिए हम लड़ रहे हैं, महंगाई के मुद्दों के लिए हम लड़ रहे है, बेरोजगारी के मुद्दों के लिए लड़ रहे हैं, ध्रुवीकरण के खिलाफ लड़ रहे हैं और कांग्रेस पार्टी सबसे प्रमुख विपक्षी पार्टी होने के नाते लड़ रही है; इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि सबसे मुखर नेता अगर कोई पूरे देश में है, तो वो राहुल गांधी है, तो ऐसे समय में हम ये उम्मीद करते थे कि गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ नेता कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर विपक्ष की आवाज और जनता की आवाज को अपना बल देते, दुख की बात ये है कि वो इस आवाज के अंदर अपना हिस्सा नहीं बनना चाह रहे, ये बड़े दुख की बात है। इतना ही हम लोग आज इसके ऊपर कहना चाहेंगे।
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