अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने “चीन के साथ भारत के संबंधों में हालिया विकास” पर संसद के दोनों सदनों में विदेश मंत्री द्वारा अपनी ओर से दिए गए बयान का गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया है। यह दुर्भाग्य पूर्ण है, लेकिन मोदी सरकार की चिर-परिचित राजनीति का हिस्सा है, कि सांसदों को किसी तरह की स्पष्टीकरण की मांग नहीं करने दी गई। संसद को चीन के साथ सीमा पर चुनौतियों से निपटने के सामूहिक संकल्प को प्रतिबिंबित करने का अवसर नहीं दिया गया।
भारत-चीन सीमा संबंधों के कई पहलुओं की संवेदनशील प्रकृति की पूरी तरह से क़दर करते हुए, कांग्रेस पार्टी के पास मोदी सरकार से पूछने को 4 सीधे सवाल हैं।
1. बयान में कहा गया कि “सदन उन परिस्थितियों से अच्छी तरह वाक़िफ़ है जिनके कारण जून 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई।” यह एक दुर्भाग्य पूर्ण रिमाइंडर है, क्योंकि इस गंभीर संकट पर देश का पहला आधिकारिक बयान 19 जून 2020 को तब आया जब प्रधानमंत्री ने चीन को क्लीन चिट दी थी और पूरी तरह से झूठ झूठ बोलते हुए कहा था: “न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है।” यह न सिर्फ़ हमारे शहीद सैनिकों का अपमान था बल्कि उसके बाद की बातचीत में भारत की स्थिति भी कमजोर हुई। आख़िर वो कौन सी बात थी जिसने प्रधानमंत्री को यह बात जोर देकर बोलने के लिए मजबूर किया?
2. 22 अक्टूबर 2024 को सेनाध्यक्ष जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने भारत की दीर्घकालिक स्थिति को दोहराया: ”जहां तक हमारा सवाल है, हम अप्रैल 2020 की पूर्व की स्थिति पर वापस जाना चाहते हैं… उसके बाद हम सैनिकों की वापसी, तनाव कम करने और LAC के नॉर्मल मैनेजमेंट की बात करेंगे।” लेकिन, 5 दिसंबर 2024 को भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (WMCC) की 32वीं बैठक के बाद विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया कि “दोनों पक्षों ने सबसे हालिया विघटन समझौते के कार्यान्वयन की सकारात्मक पुष्टि की है जो 2020 में उभरे मुद्दों का समाधान करने वाला है।” क्या इससे हमारे आधिकारिक पोजीशन में बदलाव का पता नहीं चलता?
3. संसद में विदेश मंत्री के बयान में कहा गया है कि “कुछ अन्य स्थानों पर जहां 2020 में टकराव हुआ था, वहां आगे ऐसी स्थिति को टालने के लिए स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर अस्थायी और सीमित तरीक़े के कदम उठाए गए हैं”। यह स्पष्ट रूप से तथाकथित “बफर जोन” को संदर्भित करता है जहां हमारे सैनिकों और पशुपालकों को पहले की तरह जाने से वंचित कर दिया गया है। इन बयानों को एक साथ मिलाकर देखें तो पता चलता है कि विदेश मंत्रालय एक ऐसे समझौते को स्वीकार कर रहा है जो सेना और राष्ट्र की इच्छानुसार वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को अप्रैल 2020 की पूर्व की स्थिति पर वापस नहीं लाता है। क्या मोदी सरकार अप्रैल 2020 से पहले के “ओल्ड नॉर्मल” को चीन द्वारा एकतरफा डिस्टर्ब किए जाने के बाद नई स्थिति पर सहमत हो गई है और “न्यू नॉर्मल” को मानने के लिए तैयार हो गई है?
4. चीन की सरकार ने अभी तक देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी को लेकर किसी भी विवरण की पुष्टि क्यों नहीं की है? क्या भारत के पशुपालकों के लिए चराई के लिए उनके पहले जैसे अधिकार बहाल कर दिए गए हैं? क्या पारंपरिक गश्त बिंदुओं तक बिना रोक-टोक के पहुंच होगी? क्या पिछली वार्ता के दौरान छोड़े गए बफर जोन भारत ने वापस ले लिए हैं?भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पिछले कुछ वर्षों से जो मांग कर रही है उसे फिर से दोहराती है – संसद को चीन मामले में सामूहिक राष्ट्रीय संकल्प प्रतिबिंबित करने के लिए बहस का अवसर दिया जाना चाहिए। इस चर्चा में रणनीतिक और आर्थिक दोनों ही नीतियों पर विशेष रूप से फोकस होना चाहिए – ऐसा इसलिए क्योंकि चीन पर हमारी निर्भरता आर्थिक रूप से बढ़ी है और उसने चार साल पहले एकतरफा ढंग से हमारी सीमाओं पर पूर्व की स्थिति को बदला है।
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