अजीत सिन्हा /नई दिल्ली
राहुल गांधी ने विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि स्टेज पर वरिष्ठ नेता, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता, विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेतागण, हमारे प्यारे कार्यकर्ता, भाइयों और बहनों, प्रेस के हमारे मित्रों, आप सबका यहाँ बहुत-बहुत स्वागत। आप आज यहाँ बर्फबारी में खड़े हैं, मगर आपमें से किसी को सर्दी नहीं लग रही है। आप बारिश में खड़े हुए, कोई भीगा नहीं, गर्मी में आपको गर्मी नहीं लगी, सर्दी में आपको सर्दी नहीं लग रही है, क्योंकि देश की शक्ति आपके साथ है।
प्रियंका की बात मैं सुन रहा था, प्रियंका ने कहा, मेरे मैसेज के बारे में प्रियंका ने कहा नॉर्मली होता नहीं है, मगर मेरी आंख में आंसू आए, क्योंकि मैं कन्याकुमारी से चला, शुरुआत की और पूरे देश में हम पैदल चले। मैं सच बताऊं आपको अजीब लगेगा,मगर बहुत सालों से मैं हर रोज 8-10 किलो मीटर दौड़ता हूं। तो मैंने सोचा था कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक चलना इतना मुश्किल नहीं होगा, मेरे दिल में था कि आसान होगा। मैंने सोचा था कि फिजिकली मेरे लिए ये मुश्किल काम नहीं होगा। शायद मैं काफी वर्जिश करता हूं, थोड़ा सा अहंकार आ गया, जैसे आ जाता है। मगर फिर बात बदल गई। जब मैं छोटा था फुटबाल खेलता था और कॉलेज में जब मैं फुटबाल खेल रहा था,एक बार मुझे बहुत जोरों से घुटने में इंजरी हुई थी। मैं उसको भूल गया था। घुटने में दर्द नहीं होता था, भूल गया था उसको, दर्द गायब हो गया था,
मगर कन्याकुमारी से 5-7 दिन बाद घुटने में प्रॉब्लम आई और जबरदस्त प्रॉब्लम आई, पूरा अहंकार उतर गया और मैं सोचने लगा कि क्या मैं ये जो 3,500 किलोमीटर हैं, क्या मैं इनको चल पाऊंगा या नहीं। तो जो मैंने सोचा था आसान काम होगा, वो काफी मुश्किल हो गया। मगर फिर मैंने किसी ना किसी तरीके से ये काम पूरा कर दिया। बहुत कुछ सीखने को मिला, मैं आपको बोलूं तो दर्द सहना पड़ा काफी, मगर सह लिया। रास्ते में एक दिन मुझे दर्द हो रहा था, काफी दर्द हो रहा था और मैं सोच रहा था कि 6-7 घंटे और चलने हैं और उस दिन मुझे लग रहा था कि आज मुश्किल है और एक छोटी सी बच्ची आई। दौड़ती हुई आई मेरे पास और मुझे कहती है कि मैंने तुम्हारे लिए कुछ लिखा है। मगर तुम अभी मत पढ़ो, इसको बाद में पढ़ना और फिर वो मुझसे गले लगकर भाग गई। फिर मैंने सोचा अब पढ़ता हूं क्या लिखा है। तो उसने लिखा था कि मुझे दिख रहा है कि आपके घुटने में दर्द है, क्योंकि आप जब उस पैर पर वजन डालते हैं, तो आपके चेहरे पर दिखता है कि दर्द है। मगर मैं आपको बताना चाहती हूं कि मैं आपके साथ कश्मीर नहीं चल सकती हूं, क्योंकि मेरे माता-पिता नहीं चलने दे रहे हैं, मगर मैं दिल से आपके साथ, आपकी साइड में चल रही हूं, क्योंकि मैं जानती हूं कि आप अपने लिए नहीं चल रहे हैं, आप मेरे लिए चल रहे हैं और आप मेरे भविष्य के लिए चल रहे हैं और उसी सेंकेड में पता नहीं अजीब सी बात है, उसी सेंकेड मेरा दर्द उस दिन के लिए गायब हो गया।
दूसरी बात, मैं चल रहा था और उसी समय वहाँ पर थोड़ी सर्दी बढ़ रही थी। सुबह का समय था और 4 बच्चे आए। पता नहीं कहना चाहिए या नहीं, तो कह देता हूं- छोटे से बच्चे थे, भिखारी थे और मेरे पास आए, कपड़े नहीं थे, मैंने देखा। शायद मजदूरी भी करते थे, तो थोड़ी मिट्टी थी, उन पर। खैर मैं ये चीजें देखता नहीं हूं, तो मैं उनके गले लगा। घुटनों पर गया और ऐसे उनको पकड़ा मैंने, क्योंकि मैं उनके लेवल पर रहना चाहता था और फिर, मैं ये बात कहना नहीं चाह रहा था, मगर कह दूंगा, तो उनको ठंड लग रही थी, वो कांप रहे थे। शायद उनको खाना नहीं मिला था, छोटे बच्चे मजदूरी कर रहे थे। तो मैंने सोचा कि अब अगर ये स्वेटर नहीं पहनते हैं, अगर ये जैकेट नहीं पहन रहे हैं, तो मुझे भी नहीं पहनना चाहिए। मगर मैं झिझका क्यों, आपको बताना चाहता हूं, जब मैंने ये खत्म किया, मैं चल रहा था, तो हमारे साथ एक व्यक्ति थे, उन्होंने मेरे कान में बोला, राहुल जी, ये बच्चे गंदे हैं, इनके पास आपको ऐसे जाना नहीं चाहिए। तो मैंने उनसे कहा, वो आपसे और मुझसे, दोनों से साफ हैं।
तो देश में कभी-कभी ये विचारधारा दिखाई दे जाती है। दूसरी बात आपको बता देता हूं, शायद लोगों को अच्छी ना लगे। जब मैं चल रहा था, आपने देखा होगा कि बहुत सारी महिलाएं रो रहीं थीं। आपने देखा? आपको मालूम है क्यों रो रही थी? नहीं, उसमें से बहुत सारी महिलाएं इमोशनल थी, मुझसे मिलकर रो रही थीं। मगर उसमें बहुत कुछ ऐसी भी महिलाएं थी, जिन्होंने मुझे बोला कि उनके साथ बलात्कार हुआ है, उनको किसी ने मोलेस्ट किया है, उनके किसी रिश्तेदार ने उनको मोलेस्ट किया है और जब मैं उनसे बोलता था, बहन, मैं पुलिस को बताऊं, तो वो मुझे कहती थी, राहुल जी पुलिस को मत बताइए। हम चाहते हैं कि आपको ये बात मालूम हो, मगर पुलिस को मत बताइए, हमारा और भी नुकसान हो जाएगा। तो हमारे देश में ये भी एक सच्चाई है।
ऐसी और भी बहुत सारी कहानियां मैं आपको बता सकता हूं। तो फिर मैं कश्मीर की ओर आ रहा था और मैं सोच रहा था कि इसी रास्ते पर मैं नीचे से ऊपर जा रहा हूं। मैं सोच रहा था कि इसी रास्ते से सालों पहले मेरे रिश्तेदार ऊपर से नीचे आए। कश्मीर से इलाहाबाद, गंगा की ओर गए और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं वापस अपने घर जा रहा हूं। घर मेरे लिए, जब मैं छोटा था, मैं सरकारी घरों में रहा हूं, मेरा अपना घर नहीं है। तो मेरे लिए घर जिसका जो स्ट्रक्चर होता है, उसको मैंने कभी घर नहीं माना। वो मेरे लिए मैं कहीं भी रह लूं, वो एक इमारत होती है, वो घर नहीं होता है। घर मेरे लिए एक सोच है, एक जीने का तरीका है, एक सोचने का तरीका है और यहाँ पर जिस चीज को आप कश्मीरियत कहते हैं, उसको मैं अपना घर मानता हूं। अब ये कश्मीरियत है क्या – ये जो शिव जी की सोच है, एक तरफ और थोड़ी सी गहराई में जाएंगे तो उसको शून्यता कहा जा सकता है। अपने आप पर, अपने अहंकार पर, अपने विचारों पर आक्रमण करना और दूसरी तरफ, इस्लाम में जिसको शून्यता यहाँ कहा जाता है, वहाँ फ़ना कहा जाता है। सोच वही है। इस्लाम में फ़ना का मतलब अपने ऊपर आक्रमण, अपनी सोच पर आक्रमण। जो हम अपना किला बना देते हैं कि मैं ये हूं, मेरे पास ये है, मेरे पास ये ज्ञान है, मेरे पास ये घर है, उसी किले पर आक्रमण करना, वही है शून्यता, वही है फ़ना और इस धरती पर ये दो जो विचारधाराएं हैं, इनका एक बहुत गहरा रिश्ता है और ये सालों से रिश्ता है, जिसको हम कश्मीरियत कहते हैं। यही सोच बाकी स्टेट्स में भी है।
गांधी जी ‘वैष्णव जन तो’ की बात करते थे, जिसको हम यहाँ शून्यता, फ़ना कहते हैं, उसको गुजरात में ‘वैष्णव जन तो’ कहा जाता है। असम में शंकरदेव जी ने भी यही बात कही। कर्नाटक से हमारे यहाँ जो लोग आए हैं, वहाँ बसवा जी ने यही बात कही। केरल में नारायण गुरु ने यही बात की। महाराष्ट्र में ज्योतिबा फूले जी ने ये बात की और यहाँ इसको हम कश्मीरियत कहते हैं। लोगों को जोड़ना और दूसरों पर आक्रमण नहीं करना, अपने आप पर आक्रमण करना, अपनी कमी देखना। मैंने आपको कहा कि मेरा परिवार कश्मीर से गंगा की ओर गया था। इलाहाबाद संगम के बिल्कुल किनारे वहाँ पास में हमारा घर है। तो जब यहाँ से वो वहाँ गए, उन्होंने कश्मीरियत की जो सोच थी, उसको गंगा में मिलाया था। गंगा में लेकर गए उस सोच को और उत्तर प्रदेश में उस सोच को फैलाया था। जिसको उत्तर प्रदेश में गंगा-जमुनी तहज़ीब कहा जाता है। तो उन्होंने, मेरे परिवार ने छोटा सा काम, कोई बड़ा काम नहीं किया। जो आपने उनको सिखाया, जो जम्मू-कश्मीर के लोगों ने उनको सिखाया, लद्दाख के लोगों ने सिखाया, क्योंकि उसमें बौद्ध धर्म भी है, उनके पास भी वही सोच, शून्यता की सोच उधर भी है, वो उसको ले गए और उस विचारधारा को, सोच को गंगा में मिलाया। तो मैं ये सोच रहा था, जब यहाँ आ रहा था, पैदल चल रहा था और मुझे सिक्योरिटी वालों ने कहा था कि देखिए, आप पूरे हिंदुस्तान में चल सकते हो, जम्मू में भी चल सकते हो, मगर आखिरी जो 4 दिन हैं, कश्मीर में आपको गाड़ी से जाना चाहिए। वेणुगोपाल जी ने मुझे कहा पहले, और जो ऑर्गेनाइज कर रहे थे, उन्होंने कहा, 3-4 दिन पहले एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा, शायद डराने के लिए कि देखिए, अगर आप पैदल चलेंगे, तो आपके ऊपर ग्रेनेड फेंका जाएगा। तो मैंने सोचा कि ऐसा करते हैं, मैं अपने घर वापस जा रहा हूँ, 4 दिन पैदल चलूँगा, अपने घर के जो लोग हैं, उनके बीच में चलूँगा और मैंने सोचा कि जो मुझसे नफ़रत करते हैं, उनको क्यों न मैं एक मौका दूँ कि मेरी सफेद शर्ट का रंग बदल दें, लाल कर दें। क्योंकि मेरे परिवार ने मुझे सिखाया है, गांधी जी ने मुझे सिखाया है कि अगर जीना है, तो डरे बिना जीना है, नहीं तो जीना नहीं है। तो मैंने मौका दिया, मैंने कहा कि मैं 4 दिन चलूँगा, बदल दो टी-शर्ट का रंग, लाल कर दो, देखा जाएगा, मगर जो मैंने सोचा था, वही हुआ। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने मुझे हैंड ग्रेनेड नहीं दिया, अपने दिल खोलकर प्यार दिया, गले लगे और मुझे बहुत खुशी हुई कि उन सबने मुझे अपना माना और प्यार से, बच्चों ने, बुजुर्गों ने, आँसुओं से मेरा यहाँ स्वागत किया।
मैं अब जम्मू-कश्मीर के लोगों से और जो यहाँ हमारी सेना के लोग काम करते हैं, सीआरपीएफ के लोग काम करते हैं, उनको मैं कुछ कहना चाहता हूँ सबको, जम्मू-कश्मीर के युवाओं को, बच्चों को, माताओं को, सबको, सीआरपीएफ के, बीएसएफ के, आर्मी के जवानों को, उनके परिवारों को, उनके बच्चों को मैं कहना चाहता हूँ, देखिए, मैं हिंसा को समझता हूँ। मैंने हिंसा सही है, देखी है। जो हिंसा नहीं सहता है, जिसने हिंसा नहीं देखी है, उसे ये बात समझ नहीं आएगी। जैसे, मोदी जी हैं, अमित शाह जी हैं, आरएसएस के लोग हैं, उन्होंने हिंसा नहीं देखी है, डरते हैं। यहाँ पर हम 4 दिन पैदल चले, मैं आपको गारंटी देकर कह सकता हूँ कि बीजेपी का कोई नेता ऐसे नहीं चल सकता और इसलिए नहीं क्योंकि जम्मू-कश्मीर के लोग उनको चलने नहीं देंगे, बल्कि इसलिए क्योंकि वो डरते हैं। खैर, मैं अपने जम्मू-कश्मीर के लोगों को, युवाओं को, बुजुर्गों को और आर्मी के लोगों को, सीआरपीएफ, बीएसएफ के लोगों को थोड़ा सा बताना चाहता हूँ। देखिए, मैं जब 14 साल का था, स्कूल में था, सुबह, ज्योग्राफी की क्लास में था, मैं पढ़ रहा था, सामने बैठा था। मेरी एक टीचर आई, अंदर आई और उन्होंने कहा कि राहुल, तुम्हें प्रिंसीपल बुला रहे हैं। मैं बदमाश था, बहुत बदमाश था, जब छोटा था, बहन से पूछ सकते हो, क्या-क्या करता था मैं, अभी भी करता हूँ। मैंने सोचा, प्रिंसीपल बुला रहे हैं, मैंने कुछ गलती की होगी, या मार पड़ेगी, वहाँ पर केनिंग होती थी, मैंने सोचा था, केनिंग होगी मेरी, मगर मैं जब चल रहा था, जिस टीचर ने मुझे बुलाया, उसको देखकर मुझे अजीब सा लगा। जब मैं प्रिंसीपल के ऑफिस पहुंचा, तो प्रिंसीपल ने कहा कि राहुल तुम्हारे घर से फोन कॉल है। जब मैंने उनके शब्द सुने, मुझे पता लग गया कुछ गलत हो गया है। मेरे पैर कांपे और मैंने जैसे ही फोन अपने कान पर लगाया, तो मेरी माँ के साथ एक औरत काम करती हैं, वो चिल्ला रही थी- राहुल, दादी को गोली मार दी, दादी को गोली मार दी, दादी को गोली मार दी, 14 साल का था। देखिए, ये जो मैं अभी कह रहा हूँ, ये बात प्रधानमंत्री को नहीं समझ आएगी, ये बात अमित शाह जी को नहीं समझ आएगी, ये बात डोभाल जी को भी नहीं समझ आएगी, मगर ये बात कश्मीर के लोगों को समझ आएगी, ये बात सीआरपीएफ के लोगों को समझ आएगी, ये बात आर्मी के लोगों को समझ आएगी, उनके परिवारों को समझ आएगी। उन्होंने मुझे कहा, नाम ओमू है उसका, उसने कहा- दादी को गोली लग गई, दादी को गोली लग गई और फिर मुझे गाड़ी में वापस ले गए। प्रियंका को मैंने स्कूल से उठाया, हम वापस गए और फिर मैंने वो जगह देखी, जहाँ मेरी दादी का खून था। पापा आए, माँ आईं, माँ बिल्कुल हिल गईं थीं, बोल नहीं पा रही थीं। हम लोग हैं, जिन्होंने हिंसा देखी है। ये जो है न, इसको हम बिल्कुल दूसरे तरीके से देखते हैं (फोन को हाथ में दिखाते हुए कहा), ये आप सबके लिए टेलीफोन है, ये हमारे लिए सिर्फ टेलीफोन नहीं है। उसके बाद, 6-7 साल बाद मैं अमेरिका में था और फिर से टेलीफोन आया 21 मई को टेलीफोन आया, जैसे पुलवामा में हमारे सैनिक शहीद हुए थे, उनके घर टेलीफोन आया होगा, हजारों कश्मीरी लोगों के घर टेलीफोन आया होगा, सेना के परिवारों को टेलीफोन आया होगा, वैसा ही टेलीफोन आया, पिता के एक दोस्त थे, उन्होंने मुझे फोन किया और कहा- राहुल, बुरी खबर है। मैंने उनसे कहा मैं जानता हूं पापा मर गए। कहते हैं- हाँ, मैंने कहा धन्यवाद, फोन रख दिया। तो मेरा कहना है, जो हिंसा करवाता है जैसे मोदी जी हैं, अमित शाह जी हैं, अजीत डोभाल जी हैं, आरएसएस के लोग हैं वो इस बात को समझ नहीं सकते हैं, वो दर्द को समझ नहीं सकते हैं, हम समझ सकते हैं। पुलवामा के जो सैनिक थे, उनके बच्चों के दिल में क्या हुआ होगा मैं जानता हूं, मेरे दिल में वही हुआ है। जो यहां पर कश्मीर में लोग मरते हैं, उनके दिल में क्या होता है जब फोन कॉल आता है, क्या लगता है वो मैं समझता हूं, मेरी बहन समझती है। तो कल किसी जर्नलिस्ट ने मुझसे पूछा यात्रा का क्या लक्ष्य है? कहा कि यात्रा क्या अचीव करना चाहती है, जम्मू-कश्मीर में क्या अचीव करना चाहती है? मेरे उस समय दिमाग में आया, मगर मैंने कहा, नहीं बोलता हूं, कल भाषण में बोलूंगा।
यात्रा का लक्ष्य है कि ये जो फोन कॉल हैं चाहे ये आर्मी के हो, चाहे ये सीआरपीएफ के हो, चाहे ये कश्मीर के लोगों के हो ये फोन कॉल बन्द हो जाएं। ये फोन कॉल किसी बच्चे को, किसी माँ को, किसी बेटे को न लेना पड़े, तो मेरा लक्ष्य ये जो फोन कॉल हैं, इनको बंद करने का है। अब देखिए बीजेपी, आरएसएस के लोग आक्रमण किस चीज पर कर रहे हैं। मुझे गाली देते हैं,मैं उनका धन्यवाद करता हूं। क्योंकि जो मैंने आपसे शून्यता की बात की, शिव की बात की उसको मैं समझता हूं और मैं दिल से उनका धन्यवाद करता हूं कि जितना भी वो मेरे ऊपर प्रेशर डालें, जितनी भी गाली दें, जो भी वो करें, उससे मैं सिर्फ सीखता हूं। तो मैं एक प्रकार से उनका धन्यवाद करता हूं,मगर जो मैंने आपको एक बात बोली पहले चाहे वो कश्मीरियत है, चाहे वो ‘वैष्णव जन तो’ है, चाहे वो शंकर देव जी हैं, बसवा जी हैं, नारायण गुरु हैं, तिरुवल्लुवर हैं, जो तमिलनाडु के बड़े कवि हैं, फुले जी हैं और जो कश्मीरियत है, ये इस विचारधारा पर आक्रमण कर रहे हैं और ये जो विचारधाराएं हैं ये इस देश की नींव हैं, इस देश की फाउंडेशन हैं और आपने जो किया, जो यात्रियों ने किया, हम सबने किया इस विचारधारा की रक्षा के लिए किया है। मैंने ये काम अपने लिए नहीं किया, मैं ऐसा काम अपने लिए कभी कर ही नहीं सकता हूं। मैंने ये काम…, हमारे कांग्रेसी मित्रों को ये अच्छा न लगे, मगर मैंने ये काम कांग्रेस पार्टी के लिए भी नहीं किया है। मैंने ये काम और हम सबने ये काम हिन्दुस्तान की जनता के लिए किया है और हमारी कोशिश है कि जो विचारधारा इस देश की नींव को तोड़ने की कोशिश कर रही है, उसके खिलाफ हम खड़े हों, मिलकर खड़ें हों, नफ़रत से नहीं, क्योंकि वो हमारा तरीका नहीं है, मोहब्बत से खड़े हों।
मैं जानता हूं कि अगर हम मोहब्बत से खड़े होंगे, प्यार से बात रखेंगे तो हमें सफलता मिलेगी और उनकी जो विचारधारा है, उसको हम सिर्फ हराएंगे नहीं, मगर उस विचारधारा को हम उनके दिलों से निकाल देंगे। तो आपने, देश की जनता ने हमारा समर्थन किया। हमें बीजेपी ने एक जीने का तरीका, राजनैतिक तरीका दिखाया है, हमारी कोशिश है कि हम एक और तरीका जो हिन्दुस्तान का तरीका है, मोहब्बत का तरीका है वो हम देश को दिखाएं, हम देश को याद दिलाएं कि हिन्दुस्तान मोहब्बत का देश है, इज्जत का देश है, भाईचारे का देश है तो हमने जो कहा था, छोटा सा कदम लिया है, बड़ा कदम नहीं है। ‘नफ़रत के बाजार में मोहब्बत की दुकान’ खोलने की कोशिश की है।
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