अजीत सिन्हा / नई दिल्ली
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती. सोनिया गांधी ने आज लोकसभा के शून्यकाल में तत्काल ध्यान देने का मामला उठाया। श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा कि चेयरपर्सन महोदया, महात्मा गांधी नरेगा, जिसका कुछ साल पहले कई लोगों ने मजाक उड़ाया था, उसी मनरेगा ने कोविड और बार-बार के लॉकडाउन में प्रभावित करोड़ों गरीब परिवारों को ठीक समय पर सहायता प्रदान करते हुए सरकार के बचाव में एक सार्थक भूमिका निभाई है।
फिर भी, मनरेगा के लिए आवंटित बजट में लगातार कटौती की जा रही है, जिसके कारण काम मिलने और समय पर मजदूरी के भुगतान की कानूनी गारंटी कमजोर पड़ रही है। इस साल मनरेगा का बजट 2020 की तुलना में 35 प्रतिशत कम है, जबकि बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। बजट में कटौती से कामगारों के भुगतान में देरी होती है, जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने ‘फोर्स्ड लेबर’ माना है। इसी वर्ष 26 मार्च को, दूसरे सभी राज्यों ने इस योजना के तहत अपने खाते में नकारात्मक संतुलन दिखाया है, जिसमें कामगारों को भुगतान का लगभग 5,000 करोड़ रुपए बकाया है।
चेयरपर्सन महोदया, अभी हाल में सभी राज्यों से कहा गया है कि उनके सालाना श्रम बजट को तब तक मंजूरी नहीं दी जाएगी, जब तक कि वे लोकपालों की नियुक्ति और सोशल ऑडिट से संबंधित शर्तों को पूरा नहीं करेंगे। सोशल ऑडिट को निश्चित रुप से प्रभावी बनाया जाना चाहिए, लेकिन इसे लागू करने में कमियों को आधार बनाकर, इस योजना के लिए पैसे का आवंटन रोककर कामगारों को दंडित नहीं किया जा सकता है। यह अनुचित है और अमानवीय है। सरकार को इसमें बाधा डालने के बजाए इसका समाधान निकालना चाहिए।
चेयरपर्सन, ग्राम सभा द्वारा सोशल ऑडिट पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है, इसलिए मैं आपके माध्यम से केंद्र सरकार से आग्रह करती हूं कि-
पहला, मनरेगा के लिए उचित बजट का आवंटन किया जाए;
दूसरा, काम के 15 दिनों के भीतर कामगारों को मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित हो;
तीसरा, मजदूरी भुगतान में देरी की स्थिति में कानूनी तौर पर मुआवजे का भुगतान भी सुनिश्चित हो और इसके साथ ही राज्यों की वार्षिक कार्य योजनाओं को बिना किसी देरी के तुरंत निर्धारित किया जाए।