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कांग्रेस, राजयसभा सांसद डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने आज आयोजित प्रेस वार्ता में किया बड़े घोटाले को उजागर -वीडियो देखें

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
राजयसभा सांसद डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज कुछ दाल के बारे में बात होगी और ये तड़के वाली दाल नहीं, इसमें तड़का रिवर्स डायरेक्शन में है। मोदी जी ने कहा था कि ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’, लेकिन आज मोदी जी दाल और अनाज…, उनकी सरकार खा भी रही है और खाने दे भी रही है, खिला भी रही है।

‘भाजपा सरकार देखिए करती है कैसे कमाल,

अपनी जेब भरने को खा गई है गरीबों की चावल और दाल’।

ये थीम है आज की और ये थीम संबंधित है इस बात से कि –

‘पिछले 8 वर्षों में किस नेता ने कैसे कमाया है, माल,

छीनकर कटोरे से और कटोरी से रोटी और दाल’।

ये किस्सा और कहानी ‘नाफेड’ (NAFED) के सिलसिले में शुरु होती है। जैसा आप जानते हैं ये एक राष्ट्रीय कॉपरेटिव है, जो कल्याणकारी योजनाओं के लिए जो लाभार्थी होते हैं, जो ऑब्जेक्ट्स होता है कार्यक्रमों के लिए, उनको सहूलियत से सामान पहुंचाने के लिए बनाई गई है। अब जो मैं आपसे आज बात कर रहा हूं, वो बहुत ही संक्षिप्त बात है, बड़ी सरल बात है। इसलिए मैं पहले आपको संक्षिप्त में समझा दूं कि क्या बात है, इसलिए मैंने ये अभी कुछ मुहावरे कसे।

बात बड़ी सरल इसीलिए है कि 2018 के पहले क्या नीति थी और 2018 के बाद किस प्रकार से एक नीति बदलाव करके इस सरकार की नाक के नीचे उन्होंने हजारों करोड़ रुपयों का घोटाला किया, बल्कि उसको प्रोत्साहन दिया, उसको फैसिलिटेट किया। ये ऐसे हुआ कि 2018 के पहले दाल के विषय में बड़ा एक सरल नियम था, इसी ‘नाफेड’ के सिलसिले में। अगर उदाहरण के तौर पर 100 किलोग्राम चना उपलब्ध होता, तो वो दिया जाता था जो लोग बिड करते थे, उनको चने से दाल बनाने के लिए। वो बिड करते थे कि इस प्रक्रिया कि हम चने से दाल बनाएंगे, इसके लिए आप सरकार हमें ‘X’ रुपया दीजिए। वो ‘X’ रुपया जो न्यूनतम बिड करता था, उसको कॉन्ट्रैक्ट मिल जाता था। रुपए के आधार पर था। आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूं कि कन्वर्ट करने के लिए जो सबसे लोएस्ट बिड होगी वो जीतेगी, एल- वन। साथ-साथ एक और कंडीशन थी कि अगर मैं 100 किलोग्राम इनको दे रहा हूं तो उसमें से आप कितना निकाल कर दाल देंगे वापस।

70 किलोग्राम की दाल निकालेंगे, 75 की निकालेंगे, 80 की निकालेंगे और तीसरी कंडीशन महत्वपूर्ण थी कि इस दाल निकालने के आंकड़े में एक न्यूनतम मापदंड दिया था कि दाल तो निकालेंगे आप, हम आपको पे करेंगे और जो एल-वन होगा, वो जीतेगा बिड, लेकिन दाल निकालेंगे आप, तो वो कम से कम इतना, कभी 80 किलोग्राम, कभी 70 किलोग्राम, कभी 65 किलोग्राम का एक न्यूनतम मापदंड था, इससे कम आप दाल नहीं निकाल सकते। ये थी स्कीम पहले की। ये चल रही थी सरकार के आदेश के अंदर, ‘नाफेड’ के आदेश के अंदर। इसको कहा जाता था फ्लोटर रेट या लोअर रेट प्रोसेस। इसमें एक अहमियत थी कि मिनिमम कितनी दाल निकालेंगे, उसकी एक सीमा बनी थी न्यूनतम लेवल पर। 2018 के बाद ये जो बदलाव हुआ नियम का, उससे ये स्कैम उजागर हुआ। उसके कारण ये स्कैम पैदा हुआ। बदलाव ये हुआ कि उन्होंने पहले तो एल-वन न्यूनतम वाली बिड का सिस्टम खत्म कर दिया। अगर मैं इनको 100 किलोग्राम चना दूंगा और ये उसको कन्वर्ट करके दाल देंगे, तो उस प्रोसेस के लिए ये बिड करेंगे, 10 रुपए, 20 रुपए, 50 रुपए, वो न्यूनतम बेसिस पर जीतेगा आदमी बिड। ये सिस्टम हट गया। जो 2018 के पहले था। दूसरा चेंज, अब ये बात हुई कि आप सिर्फ ये बताइए कि मैं आपको 100 किलो ग्राम चना दे रहा हूं, आप कितनी दाल निकाल कर देंगे मुझे और जो सबसे ज्यादा दाल निकालेगा, उसको मिलेगा कॉन्ट्रैक्ट, ये 2018 के बाद के बदलाव हैं। ये दो सरल बदलाव थे। इससे घोटाला कैसे हुआ – सबसे बड़ा घोटाला इसमें इस कारण से हुआ कि जब मैंने कहा कि मान्यवर आपको मैं दे रहा हूं 100 किलोग्राम, आप मुझे सबसे ज्यादा कितना देंगे, बताइए तो मैंने एक न्यूनतम लिमिट नहीं रखी। जो न्यूनतम लिमिट पहले थी, तो आदमी अगर आपस में अगर बड़े-बड़े लोग कोई कार्टल बना लें या एक सहूलियत के लिए साझेदारी बना लें, तो कैसे हम इससे ज्यादा निकाल नहीं सकते, 60 है सबसे हाईएस्ट। अब जो हाईएस्ट होगा 60 किलोग्राम, वो मानना पड़ेगा सरकार को। ये नहीं कहा कि आप हमें बता सकते हैं हाईएस्ट कौन होगा, लेकिन न्यूनतम 70 होना चाहिए, न्यूनतम 75 होना चाहिए, वो हटा दी गई कंडीशन। दूसरी प्रॉब्लम इसमें ये हुई कि लोएस्ट बिडर हट गया, क्योंकि अब बिडर के आधार पर होता नहीं था, अब होता था कि कौन कितनी दाल निकालकर देगा।

नंबर तीन, इसका दुष्प्रभाव क्या हुआ, तीसरा दुष्प्रभाव ये था कि जो 10, 15 बड़े मिलर होते हैं, ये इनके काबू में पूरा सिस्टम आ गया। जब आप 100 क्विंटल देते हैं, मतलब 100 क्विंटल या 1,000 क्विंटल होते थे, तो सिर्फ बड़े मिलर ही इसको जल्दी कर सकते थे, आसानी से कर सकते थे। बड़े मिलर तीन-चार सिर्फ, अगर साथ हो जाते, तो आपको एक फिगर देते कि हम तो 100 किलोग्राम का 60 ही बनाएंगे और आपके पास कोई न्यूनतम मापदंड नहीं था कि मिनिमम आपको 75 तो बनाना ही पड़ेगा। इससे सब जो मैंने आपको प्रक्रिया समझाई, इसका पूरा फिगर जो सीएजी ने, ये मैं नहीं कह रहा हूं, ये बहुत महत्वपूर्ण है। इसके कारण जो नुकसान हुआ वो 4,600 करोड़, 2018 के बाद इस बदलाव से लगभग 4 साल में हुआ है, 4 साल से कम में, 2018 से 2022 के पहले। 4,600 करोड़ लगभग 5.4 लाख टन का मामला था दालों का।

अब कितना दाल में काला है, कितना चोर की दाढ़ी में तिनका है, कितना काला ही काला है, उसमें वो ऑकेजनल थोड़ी बहुत दाल है या सिर्फ दाल में काला है, इसका अनुमान आप लगा सकते हैं। साढ़े चार हजार करोड़ हम अभी पौने चार वर्ष की बात कर रहे हैं और 2018 के बाद कर रही है, ये हमारे आंकड़े नहीं है, ये सरकार का है, सब कुछ इस सरकार के दौरान हुआ है। एजेंसी सरकार की है, ऑडिटर सरकार की है, ‘नाफेड’ सरकार का है, जहाँ तक नियंत्रण का सवाल है। अब इसके ऊपर लिखित रुप से विरोध भी हुआ कि आपने ये क्यों बदल दिया। आप वापस पुराने वाला करिए नियम, जो मैंने आपको समझाया था। 2021 में ये लिखित रुप से ये 11 अक्टूबर, 2021 में खुद ‘नाफेड’ ने 11 अक्टूबर, 2021 में ये विरोध किया लिखित रुप से चिट्ठी द्वारा। जहाँ तक आंकड़ों का सवाल है, इस तारीख यानी अक्टूबर, 2021 के बाद भी लगभग 875 करोड़ का और नुकसान हुआ है, क्योंकि नियम बदला नहीं गया। अब बाकी आंकड़े आपको देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मोटी बात समझनी है। जो कालापन है इस दाल में वो 4,600 करोड़ का, 4 वर्ष से कम में, पौने चार वर्ष में है। ये निकला कैसे बाहर – कई बार हमें कई चीजों के लिए कोविड का शुक्रिया देना पड़ता है, नहीं तो ये घोटाला चलता ही रहता। कोविड का शुक्रिया इसलिए क्योंकि कोविड के वक्त बात हुई कि कुछ दाल, कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ मुफ्त में दिए जाएं, वितरण किए जाए, असहाय लोगों को पहुंचाए जाए, तब मालूम पड़ा, जब दाल पर ध्यान गया कि ये दाल नहीं ये तो कालापन ही है सिर्फ। ये आटे में नमक नहीं, नमक में आटा है। दोस्तों, आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितने जुमले आपने सुने कि हम ये कनक रखेंगे, हम ये नहीं खाएंगे

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