अजीत सिन्हा
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता प्रो. पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि साथियों, बहुत गंभीर विषय है। पिछले 24 घंटों में जो देश में एक विवाद पैदा करने की चेष्टा की जा रही है, जैसे कि देश की छवि जिसमें धूमिल हो। देश की जो सुरक्षा एजेंसी हैं, अलग-अलग जिम्मेदारी है उनके पास, उनकी छवि धूमिल हो। देश के एक बहुत महत्वपूर्ण प्रदेश पंजाब और एक बहुत महत्वपूर्ण संस्कृति जिससे पूरा देश क्या पूरा विश्व सीखता है पंजाबियत, कैसे उसकी छवि को रौंदा जा रहा है, एक षडयंत्र के तहत। मैं तो कहूंगा कि उसको रौंदा जा रहा है। ये पूरा विश्व देख रहा है। आखिर कारण क्या है कि आप सरेआम और देश के आप राजा हैं, प्रधानमंत्री हैं, दूसरा टर्म चल रहा है आपका, 303 सीटें हैं आपके पास, कई राज्यों में आपकी सरकार है, लेकिन आप देश की छवि के साथ खिलवाड़ करने में एक मिनट नहीं लगाते, आप, आपकी पूरी पार्टी और आपके कुछ करीबी मीडिया के साथी। ये क्या हाल बना रखा है देश का?
तथ्य सबके सामने हैं। कोई तथ्य छुपा नहीं है किसी से भी। यह तथ्य है कि आखिरी मौके पर हेलीकॉप्टर की जगह सड़क मार्ग पर जाने का निर्णय बठिंडा एयरपोर्ट से फिरोजपुर जाने का लिया गया। यह भी तथ्य है कि एक एसपीजी प्रोटेक्टी मूवमेंट का रुट, इन सबका निर्णय, अंतिम निर्णय एसपीजी लेती है और बाकी एजेंसियां उनकी सहायता करती है, राज्य की पुलिस उनकी सहायता करती है। सब तथ्य हैं, मुझे बार-बार दोहराने की आवश्यकता नहीं है। आप हमसे ज्यादा समझते हैं और प्रधानमंत्री यहाँ आप और हमसे ज्यादा समझते हैं। उन्हें मालूम है ये तथ्य हैं। फिर इन तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, जो शब्द कल प्रधानमंत्री ने कहे, कहा जाता है कि उन्होंने कहे बठिंडा एयरपोर्ट पर, अधिकारियों को, थैंक्यू कह देना मुख्यमंत्री को कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट पर जिंदा लौट आया हूं। ये शब्द शोभा देते हैं? ये शब्द पूरे विश्व ने सुने होंगे। क्या आप संदेश देना चाह रहे हैं विश्व को? क्या हम एक बनाना रिपब्लिक हैं? किस तरह की जुबान है ये? आप बिना बताए, बिना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के पाकिस्तान चले जाते हैं, वहाँ आप सुरक्षित महसूस करते हैं। अपने ही देश के पंजाब में आपको, अपने ही देश के नागरिकों से आपको ऐसी क्या घबराहट है, नफरत है कि आप इस तरह के शब्द इस्तेमाल करेंगे एक पूरे प्रदेश के लिए?
साथियों, तथ्य यह भी हैं और इन तथ्यों से कोई नावाकिफ नहीं है। खासतौर पर प्रधानमंत्री कि किसान कुछ मांगों को लेकर दुखी हैं, व्यथित हैं, परेशान हैं। तथ्य यह भी हैं कि आपके गृह राज्यमंत्री टेनी साहब, आज भी आपके गृह राज्यमंत्री बने हुए हैं। तीन दिन हो गए हैं चार्जशीट में उनके पुत्र का नाम आए हुए, आपने एक्शन नहीं लिया। तथ्य यह भी हैं कि 700 मृत किसान, मुआवजे के लिए उनके परिवार आज भी प्रतीक्षारत हैं, आपने एक्शन नहीं लिया, एमएसपी पर कमेटी नहीं बनी, ये तमाम तथ्य आपके सामने हैं। तो विरोध होता है। राजनीति में, लोकतंत्र में विरोध का सामना किसने नहीं किया। लेकिन आप एक पूरी एक कौम को, पूरे एक प्रदेश को, पूरी एक पंजाबियत को, पूरी संस्कृति को बदनाम कर देंगे?
मैं कुछ और उदाहरण आपके सामने रखना चाहता हूं, तारीखों के साथ।
22 सितंबर,2017, बड़े ध्यान से सुनिएगा, लंका गेट नामक इलाका है वाराणसी में, प्रधानमंत्री की कॉन्स्टिट्यूंसी है। प्रधानमंत्री जी अपने लोकसभा क्षेत्र के दौरे पर थे। 22 सितंबर, 2017, लंका गेट पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की कुछ छात्राएं, 500 के लगभग छात्राएं यौन उत्पीड़न के खिलाफ प्रदर्शन करने आ गई। प्रधानमंत्री जी को वहीं से गुजरना था। पुलिस के आला अधिकारी गए, मनाने की चेष्टा की, वो नहीं हटी। वो नारेबाजी कर रही थी, वो अपना विरोध व्यक्त कर रही थी, उनका अधिकार था, लोकतांत्रिक अधिकार था। क्या आपने सुना कि प्रधानमंत्री ने वाराणसी एयरपोर्ट पर जाते हुए ये संदेश दिया हो कि थैंक्यू आदित्यनाथ जी, मैं जिंदा वाराणसी एयरपोर्ट पर लौट आया हूं, सुना आपने?
उदाहरण नंबर दो, 15 सितंबर, 2018 स्वच्छता श्रमदान के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का काफिला पहाड़गंज जाते हुए दिल्ली के ट्रैफिक जाम में फंस गया। बीजेपी के ट्विटर हैंडल पर तारीफ की गई कि देखिए कितने आम आदमी की तरह से प्रधानमंत्री जी भी रुके हुए हैं लाल बत्ती पर या ट्रैफिक जाम में। क्या आपने सुना कि संदेश दिया हो अरविंद केजरीवाल जी को कि अरविंद जी थैंक्यू, मैं सकुशल सात लोककल्याण मार्ग पर जिंदा लौट आया हूं? नहीं सुना।
मैं आपको एक उदाहरण और देता हूं। मैजेंटा लाइन, गौतम बुद्ध नगर, तारीख थी 25 दिसंबर, 2017, उसके उद्घाटन पर प्रधानमंत्री जी जा रहे थे। वहाँ कहीं रास्ता भटक गए, कुछ मिनटों का विलंब हुआ। एक छोटा अधिकारी पुलिस का सस्पेंड हुआ। क्या आपने सुना कि आदित्यनाथ जी धन्यवाद, थैंक्यू मैं जिंदा लौट आया हूं? ये शब्द शोभा देते हैं प्रधानमंत्री को? तो जहाँ-जहाँ आपके अपनों की सरकार है या आपकी अपनी सरकार है, वहाँ आपकी जान को कोई खतरा नहीं है। वहाँ आप बर्दाश्त कर लेते हैं ट्रैफिक जाम में फंसना, अपनी तारीफ और करवा लेते हैं। जो अपना आपका लोकसभा क्षेत्र है, वहाँ प्रदर्शन आपके खिलाफ हो रहा था, आपने तब नहीं कहा आपकी जान को खतरा है। पंजाब को आपसे क्या नफरत है?एक उदाहरण और देता हूं ये साबित करने के लिए कि आपको पंजाब से कुछ दिक्कत है। 2017 का गुजरात का चुनाव। ये देश नहीं भूलेगा कि देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह, देश के पूर्व सेना अध्यक्ष, दीपक कपूर; जनरल दीपक कपूर, देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के विरुद्ध गुजरात के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री ने क्या कहा था कि पाकिस्तान के साथ मिलकर मेरे खिलाफ षडयंत्र रच रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ। देश के पूर्व सेना अध्यक्ष के खिलाफ। उसके बाद अरुण जेटली साहब, अब हमारे बीच नहीं रहे हैं। उन्होंने लोकसभा में, राज्यसभा में खड़े होकर संसद में माफी मांगी, खेद व्यक्त किया प्रधानमंत्री की इस बदजुबानी पर।आप चुनाव जहाँ हो रहा है, आप किस स्तर पर उतर कर राजनीति करना चाहते हैं, हमें इस बात का जवाब दीजिए? जहाँ आपको देश की छवि की चिंता नहीं है, देश के संस्थानों की छवि की चिंता नहीं है। अरे प्रधानमंत्री आप भारतीय जनता पार्टी के नहीं हैं, हम सबके प्रधानमंत्री हैं। आपकी जान की कीमत इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है और आप उस राज्य का, उस पंजाबियत का अपमान कर रहे हैं। अरे जितने तिरंगे आपने, आपकी पार्टी ने और संघ ने जिंदगी में नहीं फहराए होंगे, उतने तिरंगे हमारे पंजाब के सपूतों की लाश पर लपेटे जाते हैं। शर्म आनी चाहिए आपको उस पंजाब का अपमान करने के लिए। वो जवान हो, वो किसान हो, उसने इस देश का नाम रोशन किया है पंजाब ने और मैं तीन करोड़ पंजाबियों की तरफ से नहीं बोल रहा हूं, मैं पूरे विश्व के पंजाबियों की तरफ से बोल रहा हूं कि आज हमारा सिर प्रधानमंत्री जी ने झुका दिया। इस तरह का अपमान करेंगे आप हमारे राज्यों का? इस तरह का अपमान करेंगे आप हमारे महत्वपूर्ण राज्य की संस्कृति का, जिसका पूरे विश्व में बोल बाला है? क्यों – क्योंकि आपकी रैली में भीड़ नहीं आई, क्योंकि किसान आपसे नाराज हैं।1982 में इंदिरा जी, प्रधानमंत्री थी। उत्तर प्रदेश गई, रास्ते में उनका काफिला बेरोजगार नौजवानों ने रोका। मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी थे। रुकी, ज्ञापन लिया। उनको गवर्नर हाउस में बुलाया, उनसे चर्चा की और खुशी-खुशी वो चले गए। 80 के ही दशक में मैं उदयपुर में था, पढ़ता था, राजीव गांधी जी आए थे। गांधी ग्राउंड में भाषण दे रहे थे। अचानक सभा स्थल में छात्रों ने नारेबाजी शुरु कर दी उनके खिलाफ। उन्होंने वहीं माइक से संवाद शुरु कर दिया। फिर सर्किट हाउस में उनको बुलाया, उनसे बात की। अरे अपने ही देश के हैं ये प्रदर्शनकारी। अगर चलिए आप नहीं मिलना चाहते हैं, आपको आपत्ति है प्रदर्शनकारियों से मिलने में। ये आपकी इच्छा, हम उसमें नहीं बोलना चाहते, ये शैली है आपकी। नहीं आप विश्वास रखते लोकतंत्र में, मान लेते हैं। आप 15 मिनट तो देंगे स्थानीय पुलिस को रास्ता साफ करने में। आपको नहीं मालूम था कि पूरे प्रदेश में बड़ी मुश्किल से किसानों को हटाया जा रहा था, मनाया जा रहा था मुख्यमंत्री द्वारा। क्या चाहते थे आप, उन पर गोली चला देते? आपने तो कीलें बिछा दी थी ना यहाँ सड़कों पर, क्या चाहते थे आप? आप नहीं मिलना चाहते थे, मत मिलिए, 15 मिनट दे देते, साफ हो जाता, चले जाते। तीसरी च्वाइस थी आपके पास कि आप कोई और रास्ता ले लेते। आपने क्या चुना – पूरे पंजाब को, पूरी पंजाबियत को सबको बदनाम करना, अरे मेरे खिलाफ साजिश हो गई, अरे मेरे खिलाफ साजिश हो गई। शर्म आनी चाहिए इस तरह की भाषा बोलते हुए। एक-एक पंजाबी अपनी जान पर खेलकर रक्षा कर सकता है अपने प्रधानमंत्री की। वो किसी पार्टी का हो प्रधानमंत्री, कोई फर्क नहीं पड़ता है इस बात से।बड़ा दुख होता है कि आज इस तरह का विवाद देश का प्रधानमंत्री पैदा कर रहा है। सिर्फ इसलिए, कुर्सी की लड़ाई है, वो खाली कुर्सी की लड़ाई हो या जिस कुर्सी पर वो बैठे हैं, उसकी लड़ाई हो, हमें उसमें कोई मतलब नहीं। आप कुर्सियां नहीं भर पा रहे, आप समय चाहते थे, जो भी चाहते थे कि कुर्सियां भर जाएं, नहीं भर पाए। तो आप इस तरह से हल्की राजनीति पर उतर आएंगे, ये अच्छी बात नहीं।