अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:प्रोफेसर राजीव गौड़ा, सरदार मनप्रीत सिंह बादल एवं श्री कृष्णा बाईरे गौड़ा का बयान:- आज स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने घोषणा की कि भारत के राज्यों को वित्तवर्ष’ 21 में 6 लाख करोड़ रु.से अधिक के राजस्व का नुकसान होगा। यह नुकसान मुख्यतः मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के भारी कुप्रबंधन का नतीजा है। भारतीय अर्थव्यवस्था का पहिया पहले ही ‘मोदी निर्मित मंदी’ ने जाम कर रखा था, उस पर ‘कोविड को नियंत्रित’ करने में केंद्र सरकार की विफलता ने स्थिति को और ज्यादा गंभीर बना दिया। केंद्र सरकार की इस नाकामी का खामियाजा राज्यों को भुगतना पड़ेगा। लेकिन जिस प्रकार ‘जब रोम जल रहा था, तब नीरो बाँसुरी बजा रहा था’, उसी भांति मोदी जी, मोरों को दाना खिलाने में व्यस्त हैं।
आ रही खबरों से स्पष्ट है कि इस समय जब राज्य वित्तीय रूप से टूट गए हैं, तब मोदी सरकार ने वित्त की स्थाई संसदीय समिति को यह बताया है कि केंद्र सरकार के पास राज्यों के हिस्से का 14 प्रतिशत जीएसटी देने का पैसा नहीं, जो की राज्यों का संवैधानिक अधिकार है। यह भी कहा गया कि गूड्स एंड सर्विसेस (कंपेन्सेशन टू स्टेट्स) अधिनियम 2017, जिसके अंतर्गत केंद्र द्वारा राज्यों को मुआवज़ा देना अनिवार्य है, अटॉर्नी जनरल के कथन के अनुसार अब यह बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार उसके लिए बाध्य नहीं है। भारत के राज्य कोविड के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे खड़े हैं। ऐसे महत्वपूर्ण समय में यह आवश्यक है कि केंद्र सरकार राज्यों की आर्थिक रूप से मदद के लिए आगे आए। 6 लाख करोड़ रु. के नुकसान के बाद राज्य जन कल्याण की सभी योजनाओं, कार्यक्रमों एवं नीतियों पर खर्च की कटौती करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। देखना होगा कि इस संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार क्या कदम उठा रही है?
हैरानी की बात यह है कि राज्यों की सहायता करने की बजाय, मोदी सरकार विश्वासघात करने पर उतारू है। मोदी सरकार सहकारी संघवाद की बजाय दमनकारी संघवाद लाने की तैयारी कर रही है। केंद्र सरकार एक बार फिर विध्वंसकारी यू टर्न लेने वाली है। प्रधानमंत्री एवं पूर्व वित्तमंत्री, स्वर्गीय श्री अरुण जेटली ने वादा किया था कि राज्यों को मुआवज़ा दिया जाएगा। इसी बात पर विश्वास करके राज्यों ने टैक्स लगाने का अपना संवैधानिक आधार छोड़ दिया था और जीएसटी प्रणाली को अपनाया था। राज्यों को पहले ही नुकसान हुआ है क्योंकि उनके व्यय का अधिकांश हिस्सा वेतन व पेंशन जैसे पूर्व निर्धारित खर्चों में चला जाता है। महामारी से विगत महीनों में शराब, पेट्रोल, डीज़ल, प्रॉपर्टी की खरीद व बिक्री जैसे राज्यों के राजस्व अर्जित करने वाले अधिकांश स्वतंत्र साधनों पर बूरा असर पड़ा है । ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार की नीति राज्यों को फंड्स से वंचित रखना है। जहां चौदहवें फाईनेंस कमीशन ने सुझाव दिया था कि राज्यों को कुल बांटे जाने वाले मद (डिविज़िव पूल) में टैक्स का 42 प्रतिशत हिस्सा मिले, लेकिन केंद्र सरकार ने कुल टैक्स कलेक्शन में राज्यों का हिस्सा 32 प्रतिशत पर ही सीमित कर दिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि केंद्र सरकार ने बांटे जाने वाले टैक्स (डिविज़िव पूल) के दायरे से बाहर, यानि सेस व सरचार्ज लगाकर अपना कलेक्शन बढ़ाया। केंद्र सरकार ने ‘अन्य ट्रांसफर’ कम कर दिए। उसके बाद पंद्रहवें फाईनेंस कमीशन ने राज्यों में बांटे जाने वाले टैक्स (डिविज़िव पूल) को घटाकर 41 प्रतिशत कर दिया।
आपदा राहत के लिए मौजूदा आवंटन भी बिल्कुल अपर्याप्त है। पंद्रहवें फाईनेंस कमीशन (एफएफसी) के सुझावों के अनुसार वित्तवर्ष’21 के लिए राज्यों के आपदा राहत फंड में केंद्र सरकार का हिस्सा जीडीपी के केवल 0.1 प्रतिशत के बराबर रखा है। केंद्र सरकार उन सेस से राजस्व अर्जित कर रही है जो राज्यों के साथ साझा नहीं किए जा सकते। पीआरएस रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने 2019-20 में सेस एवं सरचार्ज द्वारा 3,69,111 करोड़ रु. का राजस्व एकत्रित किया। यदि केंद्र सरकार द्वारा एकत्रित किया गया यह टैक्स राजस्व डिविज़िव पूल का हिस्सा होता, तो इससे राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ जाती। सशर्त रियायतेंः केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए कर्ज लेने की सीमा को 2 प्रतिशत बढ़ाकर उनके जीडीएसपी का 3 से 5 प्रतिशत कर दिया है। हालांकि इस बढ़ोत्तरी के एक हिस्से, यानि 1.5 प्रतिशत के लिए उन्हें बिजली, खाद्य वितरण आदि विभिन्न सेक्टरों में सुधार कार्य शुरू करना अनिवार्य है। इन शर्तों को बहुत कम राज्य पूरा कर पाएंगे, इसलिए यह रियायत उनके लिए व्यर्थ है।
हम केंद्र सरकार से निम्नलिखित मांग करते हैंः
1.राज्यों को अनुमानित 6 लाख करोड़ रु. के नुकसान के लिए मुआवज़ा दें।
2.राज्यों को जीएसटी कंपेंसेशन अधिनियम में किए गए वादे के अनुरूप 14 प्रतिशत का मुआवजा दें और यह मुआवजा समय पर दें। इससे कम भारतीय राज्यों के साथ विश्वासघात होगा।
3.जीएसटी कंपेन्सेशन सेस कलेक्शन को दस सालों के लिए बढ़ा दें।
4.कोविड संकट से उबरने के लिए लिया जाने वाला कोई भी कर्ज केंद्र सरकार द्वारा ही लिया जाना चाहिए। इससे कम लागत में संसाधन जुटाने में मदद मिलेगी तथा केंद्र सरकार द्वारा इस कर्ज का भार राज्यों के मुकाबले ज्यादा बेहतर तरीके से वहन किया जा सकेगा।
5.सेस पर निर्भरता कम करें एवं राजस्व को निष्पक्ष तरीके से साझा करें। केंद्र व राज्य के बीच फंड साझा करने का फाईनेंस कमीशन द्वारा दिया गया सूत्र लागू करने के लिए यही उपयुक्त समय है।