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दिल्ली स्वास्थ्य हाइलाइट्स

दिल्ली ब्रेकिंग: देश में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही है लेकिन भाजपा शासित केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है-सीएम आतिशी


अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली पूरे उत्तर भारत में पराली जलने से बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों का सांस लेना दुश्वार हो गया है। बच्चे-बुजुर्गों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। लेकिन भाजपा शासित केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। भाजपा शासित केंद्र सरकार के इस लापरवाह रवैये को सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए साझा करते हुए सीएम आतिशी ने कहा कि, देश में पराली जलाने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन भाजपा शासित केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। प्रदूषण के कारण बुजुर्ग सांस नहीं ले पा रहे है, छोटे-छोटे बच्चे एस्ट्रॉयड, इनहेलर लेने को मजबूर है। उन्होंने कहा कि, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश में पिछले 6-7 सालों में लगातार पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी लेकिन केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सीएम आतिशी ने कहा कि, पंजाब इकलौता ऐसा राज्य जहां पराली जलाने की घटनाएं कम हुई है; पराली जलाने की घटनाएं 2021 में 73,300 से घटकर 2024 में 8,404 रह गई जबकि भाजपा शासित मध्य प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं सबसे ज़्यादा है। 15 सितंबर से 17 नवंबर तक 9600 घटनाएँ हुई है। जिससे यहाँ के शहरों में हवा की गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में है। 
सीएम आतिशी के भाजपा शासित केंद्र से सवाल पूछते हुए कहा कि,अगर पंजाब सरकार पराली जलाने की घटनाओं को 80% तक कम कर सकती है तो बाक़ी राज्य क्यों नहीं? क्यों पूरे उत्तर भारत को मेडिकल इमरजेंसी की ओर धकेल दिया गया है? केंद्र सरकार प्रदूषण के मुद्दे पर सिर्फ़ राजनीति क्यों कर रही है? पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठा रही है? उन्होंने कहा कि, भाजपा शासित केंद्र राजनीति करना बंद करें और अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए पराली जलाने की घटनाओं पर रोकथाम लगाएं। सीएम आतिशी ने कहा कि, “आज दिल्ली के लोग बहुत परेशान है। मेरी दिल्ली के लोग सांस नहीं ले पा रहे है। कल रात भर मुझे लोगों के फोन आते रहे। किसी को अपने बुजुर्ग माता-पिता को साँस लेने की दिक्कत के कारण अस्पताल में एडमिट करवाना था तो किसी पेरेंट को अपने छोटे-छोटे बच्चे को देर रात एस्ट्रॉयड के इनहेलर दिलवाना था।”उन्होंने कहा कि, “प्रदूषण के कारण बुजुर्ग सांस नहीं ले पा रहे है, उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट होना  पड़ रहा है। बच्चे सांस नहीं ले पा रहे है। छोटे-छोटे बच्चों को एस्ट्रॉयड, इनहेलर की जरूरत पड़ रही है। ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि देशभर में पराली जल रही है। एक एक राज्य पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा आज हर राज्य में पराली जलाई जा रही है और केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। “सीएम आतिशी ने कहा कि, “आज पूरे उत्तर भारत को मेडिकल इमरजेंसी में धकेल दिया गया है। चाहे दिल्ली हो, चंडीगढ़ हो, राजस्थान में बीकानेर हो, भोपाल हो, पटना हो, लखनऊ हो। आज पूरे देश में वायु की गुणवत्ता(एक्यूआई) बहुत ख़राब और गंभीर श्रेणी में है।”उन्होंने कहा कि, “केंद्र सरकार की संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रोज़ एक आँकड़े निकालती है कि, किस शहर में प्रदूषण का स्तर कितना है। कल शाम 7 बजे तक का डेटा देखे तो पूरे उत्तर भारत में हवा की क्वालिटी बहुत ज़्यादा ख़राब, गंभीर श्रेणी में है। बहादुरगढ़ में एक्यूआई 445, बल्लभगढ़ में 301, भिवानी में 415, बीकानेर में 403, चूरू में 375, बुलंदशहर में 310, गाजियाबाद-ग्रेटर नोएडा में 362, हाजीपुर में 367, हापुड़ में 351, हिसार में 365 उत्तर भारत के हर शहर में हवा की क्वालिटी बहुत खराब है और देशभर में लोग सांस नहीं ले पा रहे है।”सीएम आतिशी ने कहा कि, “यदि पराली जलाने की घटनाएं देखे तो हरियाणा,उत्तर-प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान हर जगह पराली जलाने की घटनाएं बढ़ती जा रही है। और केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।”उन्होंने कहा कि, “पूरे देश में कोई राज्य है जिसनें पराली जलाने की घटनाओं को कम किया है तो वो पंजाब है। आँकड़े देखे तो पंजाब में जहाँ 2021 में पराली जलाने की 73,300 घटनाएँ हुई थी वो घटकर पिछले साल तक 36,650 हो गया और इस साल तक जब तक़रीबन 90% तक पराली जलाने की घटनाएँ हो चुकी है, पंजाब में मात्र 8404 पराली जलाने की घटनाएँ हुई है।” उन्होंने साझा किया कि, “वही दूसरी तरफ़ अन्य राज्यों के आंकड़े देखे तो उत्तर प्रदेश में पिछले साल की तुलना में पराली जलाने की घटनाएँ 60% बढ़ी है। जहाँ पिछले साल पराली जलाने की 1533 घटनाएँ हुई वो इस साल बढ़कर 1926 हो गई।  राजस्थान में भी पराली जलाई जा रही है। 2020 में राजस्थान में पराली जलाने की सिर्फ़ 430 घटनाएं सामने आई वही इस साल ये बढ़कर 1926 पहुँच गया है। और आज देशभर में कहीं सबसे ज़्यादा पराली जलाई जा रही है तो वो मध्य-प्रदेश में जलाई जा रही है। यहाँ 15 सितंबर से 17 नवंबर तक पराली जलाने की 9,600 घटनाएं हुई है यानी रोज़ 700 से ज़्यादा पराली जलाने की घटनाएं मध्य प्रदेश में हो रही है। यही कारण है कि, मध्य प्रदेश के शहरों में हवा की गुणवत्ता देखे तो वो भी बहुत गंभीर श्रेणी में पहुंच गए है।”सीएम आतिशी ने कहा कि, आज मैं केंद्र सरकार से जानना चाहती हूँ कि, देशभर में पिछले 6-7 साल से पराली जलाना बढ़ता जा रहा है, चाहे हरियाणा हो, उत्तर प्रदेश हो, मध्य प्रदेश हो या राजस्थान। पिछले 6-7 साल में केंद्र सरकार एक कदम बताए जो उन्होंने पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए उठाया।”उन्होंने कहा कि, “अगर पंजाब की सरकार पराली जलाने की घटनाओं को 80% तक कम कर सकती है तो बाक़ी राज्यों में ये क्यों बढ़ रही है? क्यों पूरे उत्तर भारत को मेडिकल इमरजेंसी की ओर धकेल दिया गया है? आज पूरे उत्तर भारत में चाहे हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार के किसी भी राज्य के किसी भी शहर के के किसी भी अस्पताल में जाए तो वहाँ बुजुर्ग-छोटे बच्चे एडमिट दिखेंगे क्योंकि उन्हें सांस लेने में मुश्किल हो रही है।”सीएम आतिशी ने कहा कि, “क्यों केंद्र सरकार इस मुद्दे पर सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनीति कर रही है? क्यों केंद्र सरकार पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है? आज मैं भाजपा शासित केंद्र से अपील करना चाहती हूँ कि, पराली का धुआँ राज्यों की सीमाओं को नहीं देखता, किसी पार्टी को या उसके समर्थक को नहीं देखता। हर राज्य में हर बुजुर्ग-हर बच्चे को साँस लेने में दिक्कत हो रही है चाहे वहाँ आम आदमी पार्टी की सरकार हो या भाजपा की सरकार हो।”उन्होंने कहा कि, “ये केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है जब देशभर में पराली जलाने से मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात हो गए है तो केंद्र सरकार को सामने आना पड़ेगा और कदम उठाना पड़ेगा। इसलिए भाजपा राजनीति करना बंद करें और सामने आकर उत्तर भारत के सभी राज्यों में पराली जलाने की घटनाएँ कम करें।”सीएम आतिशी ने अपने एक्स(ट्विटर) हैंडल से पोस्ट करते हुए कहा कि, “पूरे उत्तर भारत में मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति पैदा हो गई है क्योंकि देश भर में पराली जलाना अनियंत्रित रूप से जारी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश और दिल्ली – प्रदूषण के गंभीर स्तर से जूझ रहे हैं। और फिर भी पिछले 5 सालों से पूरे भारत में पराली जलाने की घटनाओं के बढ़ने के बावजूद, केंद्र सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। पूरा उत्तर भारत इसकी कीमत चुका रहा है, खासकर बच्चे और बुजुर्ग जिन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है।”

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