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दिल्ली: जाने माने अर्थशास्त्री व देश के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम व रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पीएम मोदी के बारे में क्या कहा-देखें वीडियो

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि देश के सबसे जाने-माने अर्थशास्त्री, लंबे समय तक देश के वित्त मंत्री के तौर पर जिन्होंने देश की सेवा की और आज भी पूरा देश अर्थशास्त्र के मुद्दों पर, देश की अर्थव्यवस्था के मुद्दों पर जिनकी बात को बड़े गौर और ध्यान से सुनता है, कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य पी चिदंबरम और मैं आज एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा जिससे इस देश के 130 करोड़ लोगों की जिंदगी प्रभावित होती है और जिसे चोर दरवाजे से लाया जा रहा है, उसे लेकर आपके बीच में पेश हुए हैं। सबसे पहले मैं चिदंबरम साहब से अनुरोध करुंगा कि वो इस मुद्दे को आपके समक्ष रखेंगे और फिर मैं हिंदी रुपांतरण आपको दूंगा।

P. Chidambaram said- The Congress party welcomes and supports the statement of Dr Raghuram Rajan and Dr Viral Acharya stoutly opposing the proposal of the BJP government to allow corporates and business houses to enter the banking sector and establish banks.The proposal, ostensibly based on a report of an RBI Internal Working Group (IWG) has the fingerprints of the Modi government written all over it.This proposal, along with some other recommendations, is part of a deeper game plan to control the banking industry. The proposal, if implemented, will completely reverse the enormous gains made in the last 50 years of retrieving the banking sector from the clutches of business houses.

All over the world, especially in developed economies, three principles govern banking:

1. Broad based shareholding reflecting shareholder democracy;

2. Strict separation of ownership and management: ownership with shareholders and management in professional hands; and

3. Prohibition of connected lending; building a wall between lender and borrower.

All three principles will be thrown out of the window if corporates and business houses are allowed to set up banks.

Bank funds belong to the depositors who are the people of this country. As a proportion of total deposits, the equity of a bank is minuscule. The total deposits in the banking industry is of the order of Rs 140 lakh crore. If business houses are allowed to own banks, they will, with a small equity investment, control very large amounts of the nation’s financial resources. This must not happen and the Congress will strive its utmost to ensure that this will not happen.

It is on record that the idea, when first mooted, was opposed by all but one experts who were consulted. Dr Rajan and Dr Acharya have given cogent and convincing reasons why the idea is totally retrograde and why it will lead to concentration of economic and political power. It is shocking that such an idea should have been presented to the people as though it has the imprimatur of experts and the endorsement of the RBI. Just as the RBI was the cat’s paw of the government in the saga of Demonetisation, the RBI is being used by the government to push through its dangerous agenda. This is another example of the Modi government pandering to the aggrandizement and acquisitive ambitions of the business houses of India. If the proposal goes through, it is no secret which politically connected business houses will get the first licences and increase their monopolistic power.

There are some other proposals of the IWG that are controversial and highly debatable. They require a separate analysis and exposition. We shall reserve them for another day because, today, we want you and your readers and viewers to focus on the core proposal of allowing corporates and business houses to set up banks. The Congress party condemns the proposal and demands that the government, unequivocally and forthwith, declare that it has no intention of pursuing the proposal. We call upon all the people of India and all political parties and trade unions to join us in resolutely opposing the retrograde idea of allowing corporates and business houses to enter the banking sector and set up banks.
रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा सरकार और रिजर्व बैंक के इंटर्नल वर्किंग ग्रूप द्वारा बड़े-बड़े धन्ना सेठों और चुनिंदा उद्योगपतियों द्वारा बैंक खोले जाने की अनुमति देने का आरबीआई के पूर्व गवर्नर डॉ. रघुराम राजन और डॉ. विरल आचार्य ने कड़ा विरोध किया है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस प्रपोजल के कड़े विरोध में है और ऐसे किसी कदम को जनहित के लिए घातक मानती है। अगर बैंकिंग व्यवस्था को मुट्ठी भर धन्ना सेठों को सौंप दिया गया, तो जैसा मोदी सरकार चाहती भी है, तो पिछले 50 सालों से बैंकिंग व्यवस्था को साधारण जनमानस, किसान और गरीब तक पहुंचाने की सारी कोशिशें और कवायद पूरी तरह से बेकार और खत्म हो जाएंगी। पूरी दुनिया में बैंकिंग प्रणाली 3 आधारों पर या 3 स्तभों पर आधारित है।

पहला, ज्यादा से ज्यादा लोग बैंक के मालिक हों ताकि एक व्यक्ति का आधिपत्य ना हो पाए।

दूसरा, बैंक कि मलकियत और संचालन अलग-अलग हो यानि शेयर होल्डर मालिक हों और प्रोफेशनल्स बैंक का संचालन करें ताकि सही तरीके से बैंकिंग प्रणाली लोगों के लिए फायदेमंद हो पाए

और तीसरा, कर्ज देने वाले बैंक के मालिक और कर्ज लेने वाले अलग-अलग व्यक्ति हों। यानि बैंक का मालिक खुद अपने व्यवसाय के लिए जनता का पैसा इस्तेमाल कर खुद को कर्ज ना दे पाए।

बैंकों में जनता की गाढी कमाई और बचत का पैसा है। जिसे महफूज रखना ही सबसे बड़ा राष्ट्रहित है। आज बैंकों के पास जैसा पी. चिदंबरम जी ने कहा लगभग 140 लाख करोड़ रुपए देश के 130 करोड़ लोगों का जमा है। यदि कुछ उद्योगपतियों को बैंक खोलने की इजाजत दे दी, तो वो थोड़ा सा पैसा लगाकर 130 करोड़ भारतीयों के इस पैसे को प्रभावित भी कर सकते हैं और खुद के फायदे के लिए इस्तेमाल भी कर सकते हैं, पर कांग्रेस पार्टी ये कभी भी होने नहीं देगी। अगर मोदी सरकार का प्रपोजल मान लिया तो देश की राजनीतिक और आर्थिक ताकत मुट्ठीभर लोगों के हाथों में सिमट कर रह जाएगी। हालांकि सब एक्सपर्ट ने एक स्वर से इस आईडिया का विरोध किया, फिर भी मोदी सरकार ने इसे जबरदस्ती थोपने की कोशिश की है।

ये किसके लिए किया जा रहा है, किन लोगों के लिए किया जा रहा है औऱ बैंकों का लाइसेंस किनको देने के लिए किया जा रहा है, ये पूरा देश जानता है ताकि मुट्ठीभर लोगों के हाथ में देश की पूरी आर्थिक ताकत और फायदा पहुंच सके। आरबीआई का दुरुपयोग नोटबंदी के समय भी किया गया और आरबीआई का दुरुपयोग अब भी एक कठपुतली की तरह मोदी सरकार द्वारा किया जा रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इसका कड़ा विरोध करती है। हम देश के सभी अर्थशास्त्रियों, देश के सभी राजनीतिक दलों, देश के हर उस व्यक्ति जो देशहित का पक्षधर है और सभी ट्रेड यूनियन को कहते हैं कि वो कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े होकर जनहित में इस निर्णय का विरोध करें।

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