अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने शनिवार को दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) के जर्नल “चिल्ड्रन फर्स्ट-जर्नल ऑन चिल्ड्रन लाइव्स” के दूसरे अंक का विमोचन किया। ये एक समावेशी जर्नल है जो डिस्कशन, बेहतर प्रैक्टिसेज को साझा करने, रिफ्लेक्शन, आलोचना-समालोचना, पालिसी व विभिन्न बुक रिव्यू और रिसर्च पर आधारित है. इसका उद्देश्य बच्चों के अधिकारों से जुड़े कई मुद्दों, उनसे जुड़े पॉलिसी प्रैक्टिसेज पर फोकस करना है| यह शिक्षकों, हेल्थ प्रोफेशनल्स, सिविल सोसाइटीज आर्गेनाइजेशनस आदि को भारत में बच्चों की स्थिति पर अपने विचार और राय साझा करने के लिए मंच प्रदान करता है। वीर.सावरकर.एस.के.वी में आयोजित जर्नल लांच के इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.वी. नागरत्ना बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। जर्नल का दूसरा अंक कोरोना के प्रभाव में बच्चों के विभिन्न मुद्दों और उनके अधिकारों पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। इस अंक का थीम “बाधित बचपन, बाधित शिक्षा”
इस मौके पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि, “डीसीपीसीआर जर्नल का दूसरा अंक बच्चों के मुद्दों पर महत्वपूर्ण रूप से केंद्रित है और महामारी के दौरान विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में उनके अनुभवों को प्रदर्शित करता है, जो भविष्य में भारत में बच्चे के लिए सरकारों को बेहतर नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगा। “बच्चों के लिए भारत की पुनर्कल्पना” विषय पर अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने कहा कि ,”मैं भविष्य में भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखना चाहता हूं, जहां बच्चों और उनके परिवारों को शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य, सुरक्षा और न्याय के लिए दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए हमें अपने देश को ऐसी जगह के रूप में विकसित करना होगा जहां दूसरे देशों के माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर नौकरी के अवसरों और बेहतर जीवन के लिए भारत में भेजने के विषय में सोचेंगे। ”
उपमुख्यमंत्री ने कहा, “आज, भारतीय परिवारों में माता-पिता द्वारा बच्चों के भविष्य के बारे में चर्चा करते हुए उन्हें बेहतर शिक्षा व नौकरी के लिए के लिए उन्हें विदेशों में भेजने के विषय में सोचना आम हैं। देश में बच्चे को पालने और भविष्य बनाने की सोच दिन-ब-दिन कम होती जा जा रही है। हम विभिन्न स्तरों पर विभिन्न पहलों के माध्यम से इस परिदृश्य को बदलने के लिए अपने सभी प्रयासों को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन इसमें बड़ा बदलाव केवल स्कूलों, कक्षाओं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से ही लाया जा सकता है।”उन्होंने कहा कि इस दिशा में केजरीवाल सरकार प्रत्येक बच्चे को बेहतर भविष्य प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और दिल्ली भर में अपने स्कूलों और कक्षाओं के माहौल में सकारात्मक बदलाव लाते हुए इसे सुनिश्चित कर रही है। सरकार न केवल अपने करिकुलमों के माध्यम से बच्चों जिम्मेदार बना रही है बल्कि उन्हें खुशहाल व्यक्ति भी बना रही है। उनकी शिक्षा में अभी निवेश करने से भविष्य में देश को बेहतर परिणाम मिलेंगे।सिसोदिया ने कहा, “हमारी कक्षाओं में बच्चों के लिए देश का भविष्य बदलने की काफी संभावनाएं हैं और हमें इसके लिए अपने सभी प्रयास करने चाहिए। अभिभावक या माता-पिता के रूप में हम हमेशा वही करते हैं जो हमारे बच्चों के लिए सबसे अच्छा और लाभदायक होता है। लेकिन साथ ही हमें उनके लिए न्याय, सच्चाई और जिम्मेदारी सुनिश्चित करने की भी जरूरत है। मुझे यकीन है कि इस जर्नल ने बच्चों की स्थिति पर चर्चा की शुरुआत की है और आगे भी इसे और बेहतर करता रहेगी|उल्लेखनीय है कि, जर्नल के दूसरे संस्करण में, डीसीपीसीआर को बीस से अधिक राज्यों के शिक्षाविदों, बाल अधिकार कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं, शिक्षकों से 100 से ज्यादा प्रविष्टियां प्राप्त हुईं, जिसमें हिमाचल प्रदेश से कर्नाटक तक, उत्तर प्रदेश से झारखंड, दिल्ली से लेकर तमिलनाडु तक के बच्चों के जीवन को शामिल किया गया। इसके अलावा आयोग को देशभर के बच्चों से पेंटिंग और विभिन्न राइट-अप की 3000 प्रविष्टियां प्राप्त हुईं।इनमें से 23 लेख (बच्चों के 9 लेख सहित) जर्नल में प्रकाशित हुए हैं जिसमें ओरिजिनल अकेडमिक रिसर्च, बेस्ट प्रैक्टिसेज, वॉइस फ्रॉम ग्राउंड, रिफ्लेक्शन, टिप्पणियां, आलोचनाएं, नीति विश्लेषण और पुस्तक समीक्षा शामिल हैं। जर्नल में देश भर के बच्चों की 10 पेंटिंग भी शामिल हैं। इसमें शामिल लेखक किंग्स कॉलेज, लंदन यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स, यॉर्क यूनिवर्सिटी, आईआईटी, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी, अंबेडकर यूनिवर्सिटी, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी और क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, बैंगलोर आदि जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से आते हैं।
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