अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
गुरुग्राम: पॉक्सो एक्ट में यह प्रावधान किया गया है कि जुल्म से पीड़ित बच्चे से बात करते समय पुलिस अधिकारी या कर्मचारी अपनी वर्दी में ना हो। पुलिस बच्चों के साथ थाने में बनाए गए बाल मित्र कक्ष में परिवार की तरह बातचीत करे। जिससे कि बच्चे में किसी प्रकार का भय उत्पन्न ना हो और वह अपनी बात को खुल कर कह सके। अपने साथ हुए अत्याचार का बच्चों के मन-मस्तिष्क पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। इस मनोस्थिति से बाहर आने में उसे काउंसलिंग की जरूरत होती है।
लघु सचिवालय के सभागार में आज बाल कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए बुलाई गई बैठक में हरियाणा राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य अनिल कुमार लाठर ने ये शब्द कहे। उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश में बच्चों के प्रति अपराध को कम करने के लिए सरकार ने कड़ा रुख अपनाया हुआ है। बच्चों के साथ अनैतिक व्यवहार करने वाले दोषियों के साथ सरकार सख्ती से निपट रही है और उनके विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाती है। उन्होंने कहा कि किसी बच्चे के साथ अनाचार किया जा रहा है और इसकी जानकारी आसपास रहने वाले किसी आदमी को है तो उसे इसकी सूचना तुरंत पुलिस को देनी चाहिए। अन्यथा उसे भी जुर्म में शरीक माना जाएगा और उसको 6 महीने तक की सजा हो सकती है। कोई नाबालिग किशोर अपराध करता है तो जेजे बोर्ड उसे तीन साल तक की सजा सुना सकता है, जिसे पुनर्वास माना जाएगा।
बाल अधिकारों से संबधित विभागीय अधिकारियों, पुलिस अधिकारी, गैर सरकारी संगठनों के संचालक, जस्टिस जुनाईल बोर्ड के सदस्य, बाल कल्याण समिति व श्रम अधिकारियों को संबोधित करते हुए अनिल कुमार लाठर ने कहा कि किसी भी बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी होनी चाहिए। इसके लिए जिलास्तर पर उपायुक्त को यह अधिकार दिया गया है कि उनकी अनुमति से गोद लेने की कार्यवाही पूरी होगी। कोई नाबालिग लडक़ी अपनी गलती से गर्भवती हो जाती है और बच्चे को जन्म देती है तो जिला बाल कल्याण समिति की मदद से दो माह में उस शिशु को गोद लेने की कार्यवाही पूरी की जानी चाहिए। शिशु की मां स्वयं भी बच्चे को अपने पास रखने का निर्णय ले सकती है। उन्होंने कहा कि जिला बाल कल्याण समिति को सरकार ने यह अधिकार दिया है कि असहाय अवस्था में मिले पीडि़त बच्चे को यह संस्था 25 हजार रूपए तक की आर्थिक सहायता दिलवा सकती है।
बाल संरक्षण आयोग के सदस्य अनिल कुमार लाठर ने कहा कि दुष्कर्म से पीडि़त बालक का अस्पताल में मेडिकल करवाया जाना है तो डॉक्टर को जांच करने से पहले बच्चे को इसके विषय में बताना चाहिए। यह बालक लडक़ी है तो उसके साथ महिला पुलिस ऑफिसर होनी चाहिए। इसके अलावा पुलिस यह ध्यान रखे कि कभी भी पीडि़त बच्चे और आरोपी व्यक्ति दोनों को साथ ना रखा जाए और ना ही एक गाड़ी में बैठाया जाए। उन्होंने कहा कि सभी पुलिस थानों में चाइल्ड फ्रेंडली रूम बनाए जाने चाहिए। हरियाणा बाल संरक्षण आयोग के सदस्य ने कहा कि चौराहे या सडक़ पर किसी बच्चे को भीख ना दें। भीख मांगना एक मानवीय अपराध है और इसने बच्चों की तस्करी को बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार ने बच्चों की पढ़ाई के लिए ई-अधिगम योजना के तहत स्कूलों में टैब बंटवाए हैं। इन टैब का कोई बच्चा दुरूपयोग ना करें। बाजारों में कोई भी मोबाइल शॉप का मालिक स्कूल टैब में कोई एप डाउनलोड ना करें, यदि पकड़ा गया तो उसके विरूद्घ कानूनी कार्यवाही की जाएगी। सरकारी स्कूलों के प्रिसिंपल इन टैब की अपने स्तर पर जांच करें। अनिल लाठर ने कहा कि 14 से 18 साल तक के बच्चे अपने माता-पिता की मर्जी से या अपनी दुकान पर साफ-सफाई का काम करें तो इसे बाल श्रम कानून की अवहेलना नहीं माना जाएगा। इस मौके पर एसीपी डा. कविता, अधिवक्ता मुनमुन गोयल, जिला बाल संरक्षण अधिकारी आबिद कुमार, उप श्रम आयुक्त दिनेश कुमार, बाल कल्याण परिषद की अधीक्षक समिता बिश्नोई, मुकेश देवी, ममता इत्यादि मौजूद रहे।
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