Athrav – Online News Portal
टेक्नोलॉजी दिल्ली नई दिल्ली

बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए तैयार करने पर पैनल चर्चा में शामिल हुए भारत, जर्मनी और फिनलैंड के विशेषज्ञ

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली:दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 2021 के दूसरे दिन फिनलैंड, जर्मनी और भारत के विशेषज्ञों ने बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए तैयार करने पर पैनल चर्चा की। प्रो. विनिता कौल ने कहा कि नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के आलोक में दिल्ली सरकार को खास तौर पर प्रशिक्षित शिक्षकों का एक कैडर तैयार करके उन्हें स्कूल प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए। प्रो. कौल सेंटर फॉर अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन एंड डेवलपमेंट, अम्बेडकर विश्वविद्यालय की संस्थापक निदेशक रह चुकी हैं। इस पैनल चर्चा में डॉ. दिव्या जालान (एक्शन फाॅर एबिलिटी डेवलपमेंट एंड इनक्लूजन की संस्थापक सदस्य), सेबेस्टियन सुग्गेट (रेगन्सबर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी में वरिष्ठ व्याख्याता, शिक्षा), तुली मेकिनेन (प्री-स्कूल एजुकेटर, फिनलैंड) ने भी हिस्सा लिया। पैनल चर्चा का संचालन दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय की प्राथमिक शिक्षा और पुस्तकालय शाखा प्रभारी मैथिली बेक्टर ने किया।

मैथिली खुद दिल्ली सरकार के स्कूल में टीचर और प्रिंसिपल रह चुकी हैं। इस सत्र की शुरूआत इंग्लैंड की लेखिका लुसी क्रेहन के वक्तव्य से हुई। वह अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा सलाहकार हैं तथा उनकी पुस्तक ‘क्लेवर लैंड्स‘ काफी चर्चित है।बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा और औपचारिक शिक्षा पर इस पैनल चर्चा में चार प्रमुख बिंदु शामिल थे- स्कूली शिक्षा शुरू करने की उम्र, पूर्व-शैक्षणिक और सामाजिक कौशल, सीखने के शुरुआती अंतराल को कम करना, एनईपी की सिफारिश के अनुरूप स्कूलों को तैयार करके मजबूत बुनियाद रखना। बच्चों की औपचारिक शिक्षा शुरू करने की उपयुक्त उम्र पर तुली मेकिनेन (फिनलैंड) ने कहा कि फिनलैंड में सात साल की उम्र में बच्चे स्कूल जाने को तैयार किए जाते हैं और वे काफी प्रेरित महसूस कर रहे हैं। वे पढ़ने और सीखने में काफी रुचि दिखाते हैं क्योंकि उन्हें पहले से ही आवश्यक सामाजिक, भावनात्मक कौशल दिए गए हैं। इसलिए हमें लगता है कि यह सही उम्र है और पिछले 50 वर्षों से हम ऐसा ही कर रहे हैं। मेकिनेन ने शिक्षक प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने का सुझाव देते हुए कहा कि शिक्षकों को अपनी कक्षाओं में बाल व्यवहार के सभी पहलुओं के लिए तैयार रहना चाहिए। फिनलैंड में शिक्षक बच्चों का अवलोकन करते हैं, उनके पढ़ने और सीखने संबंधी क्रियाओं को ध्यान से देखते हैं। प्रारंभिक शिक्षा के लिए व्यक्तिगत लक्ष्य निर्धारित करना जरूरी है। हम बच्चों की क्षमता और चरित्र पर अधिक ध्यान केंद्रित करके सकारात्मक शिक्षा का प्रयास करते हैं। दिल्ली सरकार को प्रारंभिक शिक्षा पर सुझाव देते हुए मेकिनेन ने कहा कि शिक्षकों का अच्छा प्रशिक्षण और उन्हें प्रोत्साहित करना उपयोगी होगा। उन्होंने कहा कि कि खेल-आधारित शिक्षा को पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए। फिनलैंड में शिक्षक प्रशिक्षण के प्रारंभिक वर्षों में काफी सैद्धांतिक ज्ञान दिया जाता है। साथ ही, खेल-आधारित शिक्षा भी सिखाई जाती है। इस व्यावहारिक ज्ञान से वास्तविक परिवर्तन पैदा होता है, जो काफी उपयोगी होता है। डॉ. दिव्या जालान ने बच्चों की शिक्षा संबंधी विशेष आवश्यकताओं में अंतराल दूर करने संबंधी सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि भारत में देखभाल करने वालों और माता-पिता में दिव्यांगता की जानकारी की कमी सबसे बड़ी बाधा है। उन्हें चीजों को स्वीकार करने और काफी समर्थन की आवश्यकता है। लेकिन चीजें बदल रही हैं क्योंकि वे समावेशी स्कूलों और सेवाओं की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चे के जीवन में शिक्षा और अनुभवों के अंतराल को समझना महत्वपूर्ण है। अनुभवों से उनकी समझ को आकार मिलता है।

इसलिए शिक्षण तकनीकों को अधिक विविधतापूर्ण और रचनात्मक बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को कक्षाओं में बच्चों की भागीदारी बढ़ाने पर काम करना चाहिए। भारत में स्कूलों की बुनियादी संसाधनों संबंधी तैयारी के साथ ही बच्चों और अभिभावकों को संवेदनशील बनाना भी महत्वपूर्ण है। सेबेस्टियन सुग्गेट ने कहा कि भारतीय परिवारों में अक्सर बच्चों को गीत और कहानियां सुनाने की परंपरा है। ऐसे अनुभव बच्चों को काफी प्रेरित करते हैं। उल्लेखनीय है कि श्री सुग्गेट बाल विकास के शोधकर्ता हैं। उन्होंने पढ़ने और स्कूल की शुरुआती उम्र पर शोध किया है कि पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी बचपन की शिक्षा से कैसे लाभ उठा सकते हैं। उन्होंने कहा कि प्रारंभिक शिक्षा में संवेदनात्मक कौशल और शैक्षणिक शिक्षा जुड़ी होती है। आप बच्चों के संवेदनात्मक कौशल के कुछ हिस्सों को बाद में गणित, बोलने और गतिविधियों से जोड़ सकते हैं। प्रो. कौल ने भी 3 से 8 वर्ष की आयु के छात्रों के लिए एक समग्र पाठ्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि एनईपी ने प्राथमिक शिक्षा में सहज संक्रमण की बात कही गई है जिसके आलोक में 3 से 8 साल की उम्र के लिए एक समग्र पाठ्यक्रम जरूरी है। यह शिक्षकों के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा। जब तक बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षण नहीं मिलता, तब तक उनके लिए अपनी तरफ से सोचना मुश्किल होगा। प्रोे. कौल ने कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए भी मिश्रित प्रशिक्षण पर ध्यान देना चाहिए। उनके कार्यभार का आकलन करना जरूरी है क्योंकि उनकी भूमिका केवल शिक्षण तक सीमित नहीं है। चर्चा का समापन करते हुए पैनल ने दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को सलाह दी – मजबूत शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करें, शिक्षकों को प्रोत्साहित करें, और खासकर इस डिजिटल युग में बच्चों को अपना पर्यावरण महसूस करने योग्य बनाएं।

Related posts

बच्चों में वायरस फैलने की संभावना को रोकने के लिए 31 मार्च तक एहतियातन स्कूलों के बंद करने के निर्देश: मनीष सिसोदिया

Ajit Sinha

सभी 11 हजार हॉटस्पॉट लग जाने के बाद एक समय में 22 लाख लोग एक साथ फ्री वाईफाई का इस्तेमाल कर सकेंगे: सीएम

Ajit Sinha

यमुना में बढ़ते जलस्तर को देख दिल्ली सरकार ने सभी तैयारियां की तेज, सभी विभाग हाई अलर्ट पर

Ajit Sinha
error: Content is protected !!