अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि एक बहुत अहम मुद्दे पर आप लोगों से बात करने के लिए आए हैं, लेकिन इससे पहले कि बात शुरु करें, आपको कुछ वीडियो दिखा देते हैं, जिससे आपको संदर्भ स्पष्ट हो जाए।
(वीडियो दिखाए गए)
तो ये वक्तव्य दिखाने इसलिए जरुरी थे, जिससे कि लोगों को याद रहे कि 2014 के पहले, भाइयों और बहनों, रुपया उसी देश का गिरता है जहां की सरकार भ्रष्ट और गिरी हुई हो!
कभी कभी तो लगता है दिल्ली सरकार और रुपए के बीच में कॉम्पटिशन चल रहा है – किसकी आबरू तेज़ी से गिरती चली जा रही है – कौन और आगे जाएगा?
रुपया सिर्फ़ काग़ज़ का टुकड़ा नहीं होता, सिर्फ़ करेन्सी नहीं होती-इसके साथ देश की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई होती है। जैसे जैसे रुपया गिरता है देश को प्रतिष्ठा गिरती है
यह हमारे शब्द नहीं हैं- यह वो जुमले हैं जो इस देश के सामने 2014 से पहले जुमलाजीवी ने खूब सुनाए थे।
मोदी रुपए के लिए हानिकारक है
गिरता रुपया-मोदी जी की उजड़ती आबरू
जो इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ, मोदी जी की कृपा से उनके स्वघोषित अमृतकाल में वो दिन भी देश ने देख ही लिया। भारत का रुपया अमरीकी डॉलर के मुक़ाबले 80 पार कर गया। यह वही रुपया है जिससे प्रधानमंत्री की आबरू और प्रतिष्ठा जुड़े होने का दावा खुद मोदी जी करते थे। पर आज तो डर यह है कि जिस तेज़ी से रुपया गिर रहा है – कहीं पेट्रोल की तरह यहाँ भी शतक की तैयारी तो नहीं?
मोदी ने रुपए को इतिहास में सबसे कमज़ोर कर दिया
2014 के पहले रुपए की मज़बूती के लिए मोदी ज़रूरी है का दावा करने वाले प्रधानमंत्री तो हमारे रुपए के लिए बड़े हानिकारक साबित हुए। इन तथाकथित मज़बूत PM ने इतिहास में रुपए को सबसे कमजोर बना दिया। पिछले 6 महीने में रुपया 7% से ज़्यादा गिरा है। कभी कोरोना कभी यूक्रेन रुस की जंग के पीछे कब तक छिपते रहेंगे प्रधानमंत्री जी? क्योंकि यह वही रुपया है जिसकी क़ीमत 2014 में 1 डॉलर के मुक़ाबले मात्र 58 थी और पिछले 8 सालों में retirement, मार्गदर्शक मंडल पार करते हुए अब 80 के पार पहुँच है – 8 साल में 1 डॉलर के मुक़ाबले 22 रुपए की गिरावट! प्रधानमंत्री जी अपनी उजड़ती आबरू और गिरती हुई साख की थोड़ी तो चिंता कीजिए।
गिरता रुपया: रोक सको तो रोक लो
$1 = ₹45 (2004)
$1 = ₹58 (2014)
$1 = ₹80 (2022)
कमज़ोर ₹ और कमरतोड़ महंगाई
पर इस निरंतर गिरते हुए रुपए का आप पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा? सबसे पहले तो कमरतोड़ महंगाई और तेज़ी से बढ़ेगी। ज़रूरी चीज़ों के दाम बढ़ेंगे- पेट्रोल, डीज़ल रसोई गैस के दामों में और आग लगेगी। तेल महंगा होने की वजह से आवा गमन की क़ीमत – ट्रेन, बस का किराया बढ़ेगा। इसका सीधा असर आपकी थाली पर भी दिखेगा, खाना बनाने वाले तेल की क़ीमतें बढ़ेंगी। विदेशों से आयात किए जाने वाले छोटे से छोटे सामान पर रुपये के कमज़ोर होने का असर पड़ेगा. टीवी, फ़्रिज, मोबाइल फोन और बाक़ी इलेक्ट्रॉनिक आइटम पर लगातार टूटते रुपये का सीधा असर पड़ेगा। अब हो सकता है वित्त मंत्री अब लहसन प्याज़ ना खाने के बाद यह भी कह दें मैं तो रुपया खर्च नहीं करती!
कांग्रेस ने 2013 में ₹ को बखूबी सम्भाला
80 के पार रुपया होते ही कई विशेषज्ञ मैदान में कूद पड़े हैं- अंतरराष्ट्रीय कारणों की दलीलें दी जा रही हैं। पर यह कारण तो 2013 में और भी भयावह थे-और तब कांग्रेस सरकार ने रुपए को मज़बूत करके ही दम लिया था। 2013 के मई जून में जब taper tantrum के चलते विदेशी निवेशक देश छोड़ के जाने लगे, तब रुपया मई से अगस्त के बीच 15% गिर कर 58/$ से 69/$ पर पहुँच गया था। लेकिन UPA सरकार और तत्कालीन RBI गवर्नर रघुराम राजन ने साथ मिलकर बहुआयामी तरीक़ों से रुपए को सम्भाला – 4 महीने के अंदर ना सिर्फ़ रुपया वापस 58/$ पर ले कर आए बल्कि 1 साल के अंदर GDP ग्रोथ 5.1% से बढ़ा कर 6.9% भी लाए। यही नहीं, 12 बिलियन डॉलर का जो विदेशी निवेश देश छोड़ के गया था उसके बनिस्पत 35 बिलियन डॉलर का निवेश वापस भारत में आया
निवेशकों को मोदी में विश्वास नहीं
आज जनवरी से लेकर अभी तक RBI ने क़रीब 40 बिलियन डॉलर खर्च कर के रुपए को मज़बूत करने की कोशिश की है- तो आख़िर क्यों नहीं कर पा रहे हैं? क्योंकि निवेशकों को सरकार की नीतियों में रत्तिभर भी विश्वास नहीं है।
रुपए पर सरकार का सुई पटक सन्नाटा
देखिए एक बात साफ़ है, रुपए पर बड़ी बड़ी बातें करने वाले साहेब और उनकी चाटुकारों की फ़ौज अब जब रुपया 80 पार कर गया है – तो बिलकुल चुप हैं। पर इस सुई पटक सन्नाटे से तो काम नहीं बनेगा – स्वीकारना पड़ेगा कि कमजोर रुपए का सबसे बड़ा कारण एक ध्वस्त अर्थव्यवस्था- बेलगाम महंगाई है। सरकार हर बार की तरह दिशाहीन ही नज़र आती है। दर तो यह लगता है कहीं 80, 90 पूरे सौ करने की मंशा तो नहीं है साहेब की? मोदी रुपए के लिए तो हानिकारक है