अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद:: फोर्टिस एस्कॉर्ट्स के डॉक्टरों ने एंडोमेट्रियॉसिस के कारण पेट में गंभीर रूप से हो रहे रक्त स्राव (ब्लीडिंग) से जूझ रही 32-वर्षीय गर्भवती की सफल सर्जरी कर उन्हें जीवनदान दिया है। एंडोमीट्रियॉसिस एक प्रकार की क्रोनिक कंडीशन है जिसमें गर्भाशय की भीतरी सतह की तरह के टिश्यू गर्भाशय के बाहर भी पनपने लगते हैं। यह कंडीशन गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलावों से जुड़ी है और एंडोमीट्रियॉसिस की वजह से क्रोनिक इंफ्लेमेशन की समस्या भी पैदा होती है जो अचानक तथा गंभीर रक्त स्राव का कारण बनती है। गर्भावस्था की बाद की अवस्था (लेट प्रेग्नेंसी) में ऐसे मामले काफी दुर्लभ होते हैं और जटिलता पैदा करते हैं, आमतौर से 10,000 प्रेग्नेंसी में लगभग 1 ही ऐसा मामला दर्ज होता है। इसमें मां और बच्चे दोनों की जान को काफी खतरा होता है।
डॉ नीति कौतिश, डायरेक्टर एवं हेड, डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी के नेतृत्व में डॉक्टरों की कुशल टीम ने इस चुनौतीपूर्ण सर्जरी को लगभग 2.5 घंटे में पूरा किया और मरीज को 5 दिनों के बाद स्थिर अवस्था में अस्पताल से छुट्टी दी गई। मरीज को 29 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के साथ अस्पताल में भर्ती किया गया था और उस वक्त उन्हें पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द तथा बार-बार उल्टी की शिकायत थी। अल्ट्रासाउंड एवं अन्य जांचों से पता चला कि उन्हें पैरेलिटिक इलियस की शिकायत थी – इस कंडीशन में आंतें अस्थायी रूप से काम करना बंद कर देती हैं, जिसके कारण पाचन नली में रुकावट आती है, और एंडोमीट्रियॉसिस की वजह से उनके गर्भाशय में भी ठोस सिस्ट्स मौजूद थे। उनकी कंडीशन की जांच और तमाम जोखिमों का मूल्यांकन करने के बाद, डॉक्टरों ने उनके शिशु का प्रीमैच्योर प्रसव करवाने और इसके बाद लैपरोटोमी सर्जरी करने का फैसला किया। इस सर्जरी से उनकी बायीं ओवरी, सिस्ट्स तथा फैलोपियन ट्यूब को निकाला गया। दोनों ही सर्जरी सफल रहीं और इस तरह मां तथा बच्चे का जीवन बचाया जा सका।
इस मामले के बारे में जानकारी देते हुए, डॉ नीति कौतिश ने कहा, “हमने इमरजेंसी लैपरोटॅमी सर्जरी की जिसमें पेट की दीवार पर एक बड़े आकार का चीरा लगाया था ताकि अंदर के अंगों की जांच कर ब्लीडिंग के सही-सही स्रोत का पता लगाया जा सके। इस प्रक्रिया की सहायता से, हमने मरीज की बायीं ओवरी (डिंबग्रंथि), सिस्ट्स और फैलोपियन ट्यूब को सर्जरी से निकाला ताकि तेज रक्तस्राव को रोका जा सके। हालांकि मरीज का करीब 3.5 लीटर खून बहने की वजह से शुरू में उनकी तबीयत बिगड़ने लगी थी लेकिन ऑपरेशन के बाद इंटेंसिव केयर के साथ-साथ 4 यूनिट खून चढ़ाने पर उनकी हालत स्थिर हो गई। यदि उन्हें समय पर इलाज नहीं मिलता तो अत्यधिक खून बहने की वजह से उनकी मृत्यु हो सकती है, और उनके गर्भ में पल रहे भ्रूण की भी मृत्यु होने तथा देरी से प्रसव का खतरा था।”
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