अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद:नेपाल की राजधानी काठमांडू में हाल ही में आयोजित भारत-नेपाल शिक्षा शिखर सम्मेलन,2024 में जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद के कुलपति प्रो. सुनील कुमार तोमर भी शामिल हुए। यह कार्यक्रम भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) -उत्तरी क्षेत्र द्वारा आयोजित किया गया था,जिसका उद्देश्य 150 से अधिक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और लीडर्स को एक साथ लाना था। इस सम्मेलन का उद्देश्य उच्च शिक्षा संस्थानों पर वैश्वीकरण के प्रभाव को समझने , अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और नेटवर्किंग तथा साझेदारी बनाने और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करना था। शिखर सम्मेलन द्वारा विभिन्न क्षेत्रों विशेषकर दक्षिण एशियाई क्षेत्र के शैक्षणिक समुदायों के बीच अंतर-सांस्कृतिक सहयोग को भी बढ़ावा दिया गया।
कुलपति प्रो. सुशील कुमार तोमर ने कहा कि भारत को एक वैश्विक अध्ययन केन्द्र के रूप में विकसित करने और शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में विभिन्न सुझाव दिये गये है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाले विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ अनुसंधान और शिक्षण सहयोग और संकाय और छात्र आदान-प्रदान की सुविधा शामिल है। इसी के अनुरूप, जे.सी. बोस विश्वविद्यालय ने विभिन्न पाठ्यक्रमों के तहत विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए विश्वविद्यालय में अलग से अंतर्राष्ट्रीय मामले प्रकोष्ठ का गठन किया गया है तथा कार्यालय स्थापित किया है। विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष विदेशी श्रेणी में छात्रों के लिए दाखिले के अवसरों की पेशकश कर रहा है, जिसमें सार्क देशों पर मुख्य फोकस है। शिखर सम्मेलन के दौरान, कुलपतियों ने छात्र गतिशीलता, संयुक्त अनुसंधान और पाठ्यक्रम विकास सहित उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए प्रभावी रणनीतियों पर चर्चा की। शिखर सम्मेलन में तीन तकनीकी सत्र जिसमें ‘अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी के माध्यम से उच्च शिक्षा के लिए संपर्क बनाना, ‘वैश्विक उच्च शिक्षा नीति और विनियम मानकों का सामंजस्य’ और ‘छात्र गतिशीलता और विविधता द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अनुभव को बढ़ावा देना शामिल है। शिखर सम्मेलन द्वारा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के सहयोग से उच्च शिक्षा, छात्र गतिशीलता, संयुक्त अनुसंधान और पाठ्यक्रम विकास के अंतर्राष्ट्रीयकरण पर बल दिया गया है।
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