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फरीदाबाद

फरीदाबाद :आपदा राहत प्रतिक्रिया का पूर्वानुमान मॉडल बाढ़ से जान-माल व राहत का आकलन करने में सक्षम

 अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
फरीदाबाद: वाईएमसीए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, फरीदाबाद में सहायक प्रोफेसर डॉ. संजीव गोयल द्वारा आपदा राहत प्रतिक्रिया केे लिए विकसित पूर्वानुमान मॉडल अमेरिका में नदियों की बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में जरूरी प्रारंभिक संसाधनों के आकलन में प्रभावी साबित हुआ है। डॉ. गोयन द्वारा यह मॉडल अमेरिका के पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय, पेंसिल्वेनिया में अपने पोस्टडॉक्टरल अध्ययन के दौरान विकसित किया है। पिट्स स्वानसन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में सहायक प्रोफेसर (इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग) डॉ. लुईस लुआंग केर्सोन की देखरेख में किया गया यह अध्ययन आपदा प्रतिक्रिया में पूर्वानुमान मॉडल के प्रयोग पर केेन्द्रित था जो बड़े स्तर पर आने वाली बाढ़ के बाद खाद्य सामग्री तथा आश्रय जैसी जरूरतों कोे पूरा करने में प्रभावी साबित हुआ।
मॉडल के शुरूआती परिणामों कोे अमेरिका के ओकलाहोमा तथा मिसौरी राज्यों में इसी वर्ष ग्रीष्मकाल के दौरान आई बाढ़ के दौरान प्रयोग किया गया। इस पूर्वानुमान मॉडल की मदद से अमेरिकन रैड क्रॉस शुरूआती वित्तीय आकलन करने में सफल रहा, जो नदियों के कारण आने वाली बाढ़ के ‘शून्य’ दिवस पर सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस मॉडल के कारण लोगों केे लिए जरूरी आश्रय तैयार करने तथा खाद्य सामग्री का प्रबंध करने में भी काफी मदद मिली।
वाईएमसीए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश कुमार ने डॉ. गोयल को अध्ययन की सफलता पर शुभकामनाएं दी है। डॉ. दिनेश कुमार ने कहा कि आपदा प्रतिक्रिया केे लिए जरूरी संसाधनों के पूर्व आकलन का मॉडल एक महत्वपूर्ण अध्ययन है जिससे देश में प्रतिवर्ष बाढ़ जैसी आपदाओं से होने वाली मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
ज्ञात हो कि डॉ. गोयल द्वारा यह अध्ययन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रयोजित एक वर्ष के फैलोशिप कार्यक्रम केे अंतर्गत किया गया जो अक्तूबर 2016 में शुरू हुआ था, जिसमें अमेेरिकन रैड क्रॉस सोसाइटी के गवर्नमेंट ऑपरेशन्स मैनेजर माइकल व्हाईटहेड का भी पूरा सहयोग रहा। अपने अध्ययन केे बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ. गोयल ने बताया कि किसी भी आपदा केे प्रारंभिक दिनों में आपदाग्रस्त क्षेत्र में राज्य एवं राष्ट्रीय संसाधनों की पहुंच में देरी होती है, जिसका कारण स्थानीय एजेंसियों द्वारा आकलन में लगने वाला समय होता है। हालांकि ऐसी स्थिति मेें जरूरत के मुबाबिक संसाधनों को प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचाया जा सकता है, यदि जरूरी अनुमान पहले से मिल सके। पूर्वानुमान मॉडल से इस प्रकार के आकलन आसानी से किये जा सकते है।
पूर्वानुमान मॉडल को विकसित करने के लिए डॉ. गोयल तथा डॉ. लुआंग केर्सोन ने जनसांख्यिकीय, भौतिक तथा ऐतिहासिक आंकड़ों का उपयोग किया है जोकि आपदा के पहले दिन आपदा क्षेत्र से उपलब्ध करवाये गयेे थे। यूएस आपदा नियंत्रण तथा रोकथाम केन्द्र के माध्यम से प्राप्त जनसांख्यिकीय आंकड़ों को सामाजिक भेद्यता सूचकांक के रूप लिया गया। इसी प्रकार, भौतिक नुकसान के प्रभावों को देखने के लिए ऐतिहासिक तथा मौजूदा बाढ़ के गेज आंकड़ों को राष्ट्रीय मौसम सेवा उन्नत हाइड्रोलोजी पूर्वानुमान सेवा से प्राप्त किया और ऐतिहासिक आंकड़े अमेरिकन रैड क्रॉस द्वारा उपलब्ध करवाये गये, जिसमेें पूर्व की बड़े स्तर पर आई बाढ़ केे दौरान नुकसान का आकलन, खाद्य सामग्री तथा आश्रय उपलब्ध करवाने संबंधी जानकारी शामिल है। डॉ. गोयल ने नदी  की बाढ़ केे लिए 186 से अधिक प्रांतों तथा 550 नदियों के पैमानों के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
यह मॉडल आवासीय क्षति केे पूर्वानुमान तथा इसकेे परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाली खाद्य तथा आश्रय जरूरतों के आकलन में सक्षम है। इस पूर्वानुमान को आपदा राहत के लिए जरूरी रसद, मानवबल तथा वित्तीय संसाधनों के आकलन के लिए प्रयोग किया जा सकता है। डॉ. गोयल ने दावा किया कि यदि आंकड़े उपलब्ध होने पर इसी तरह का मॉडल देश के लिए तैयार किया जा सकता है ताकि चेन्नई बाढ़ जैसी परिस्थिति उत्पन्न होने पर काफी जान बचाई जा सकती है।
उन्होेंने बताया कि वे इस मॉडल को मोबाइल एप केे रूप तैयार कर रहे है। मोबाइल एप में स्थानीय आपदा प्रबंधक को केवल स्थान अंकित करना होगा और बाढ़ की स्थिति में जानकारी हासिल हो जायेगी कि कितने लोगों को आश्रय की जरूरत होंगी, कितने मकान क्षतिग्रस्त होंगे और कितनी खाद्य सामग्री की आवश्यकता होगी। इस प्रकार, यह मॉडल न केवल काफी लोगों की जान बचाने में सक्षम है, बल्कि इससे वित्तीय प्रबंधन में भी मदद मिलेगी।

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