अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद: फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने 74 वर्षीय मरीज की साइनस में फ्लूड (तरल पदार्थ) से भरी हुई सिस्ट को हटाने के लिए सफल सर्जरी को अंजाम दिया है। यह सिस्ट मरीज की साइनस से होते मस्तिष्क और बायीं आंख तक में फैल चुकी थी जिसकी वजह से उनकी दृष्टि भी प्रभावित हो रही थी। डॉ सुरेंद्र कुमार, कंसल्टेंट, ईएनटी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने एक चुनौतीपूर्ण सर्जरी के माध्यम से म्युकोसील (तरल पदार्थ से भरी हुई सिस्ट) को हटाकर आंख पर पड़ने वाले दबाव को कम किया, और साथ ही, मस्तिष्क से निकल रहे सेरिब्रोस्पाइनल फ्लूड के रिसाव को भी बंद किया। इस सर्जरी को करीब 2 घंटे में पूरा किया गया और 2 दिनों बाद ही मरीज को स्थिर अवस्था में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। म्यूकोसील काफी दुर्लभ होती हैं, जो प्रति 1 मिलियन की आबादी में 2.4 लोगों को प्रभावित करती हैं।
मरीज की साइनस में यह सिस्ट लगभग एक साल पहले बनी थी और फोर्टिस में भर्ती होने से करीब 7-8 महीने पहले एक अन्य अस्पताल में भी वह इसका उपचार करवा चुके थे, लेकिन कोई खास सुधार नहीं हुआ था। इसके बाद उन्हें फोर्टिस में लाया गया और यहां भर्ती होने पर उनका CT–PNS (पैरानेसल और साइनसेस) तथा ब्रेन एमआरआई किया गया जिससे म्यूकोसील की पुष्टि हुई जो बढ़कर आंखों, मस्तिष्क और आसपास की हड्डियों तक को प्रभावित कर रही थी। यह बेहद दुर्लभ किस्म का मामला है। इस जांच के बाद, म्यूकोसील को एंडोस्कोपी की मदद से निकाला गया, और बायीं आँख का डिकम्प्रेशन करने के साथ-साथ मस्तिष्क से सेरिब्रोस्पाइनल फ्लूड रिसाव को रोकने के लिए रिपेयरिंग की गई। मरीज की सर्जरी सफल रही और धीरे-धीरे उनकी रिकवरी भी हो रही है।
इस मामले की जानकारी देते हुए, डॉ सुरेंद्र कुमार, कंसल्टेंट, ईएनटी ने कहा, “ऐसे दुर्लभ मामले क्रोनिक साइनस इंफेक्शन की वजह से तब होते हैं जबकि साइनस का ऑस्टियम (जो कि नाक गुहा यानि नेसल कैविटी में साइनस को कनेक्ट करने वाला छोटा छिद्र होता है) बाधित होता है, जिसकी वजह से म्यूको सील बनता है। इस मामले में, मरीज को स्थायी विज़न नष्ट होने का खतरा था, क्योंकि सूजन की वजह से ऑप्टिक नर्व पर दबाव पड़ रहा था। दूसरे, इस सूजन में फ्लूड भी था जो कि सिर की हड्डी में काफी क्षति होने की वजह से पैदा हो रहा था, और ऐसे में मस्तिष्क से सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूड के रिसाव का जोखिम बढ़ गया था और मेनिंजाइटिस तथा अन्य कई किस्म की जटिलताओं का भी खतरा था। लेकिन सही उपचार मिलने से मरीज स्वास्थ्य लाभ कर सके। यदि उनका सही समय पर उपचार नहीं होता, तो यह सिस्ट उनके मस्तिष्क तक पहुंच सकता था और मस्तिष्क के अगले भाग की जरूरी संरचनाओं पर दबाव बढ़ा सकता था। साथ ही, न्यूरोलॉजिकल तथा कॉग्निटव कमी होने तथा बायीं आंख में स्थायी दृष्टि दोष का खतरा भी था।”अवधिया, फैसिलिटी डायरेक्टर,योगेंद्र नाथ ने कहा, “यह मरीज की नाजुक हालत के चलते काफी चुनौती पूर्ण मामला था। लेकिन डॉ सुरेंद्र कुमार के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने इस पूरे मामले को बेहद सावधानी और देखभाल के साथ अंजाम दिया। इस जटिल सर्जरी को सटीकता पूर्वक पूरा किया गया ताकि किसी भी किस्म भी जटिलता से बचाव हो सके। इस प्रकार के मामलों में सही डायग्नोस्टिक एप्रोच और मैनेजमेंट की जरूरत होती है।
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