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फरीदाबाद स्वास्थ्य

फरीदाबाद: रीनल ब्लॉकेज से पीड़ित 6 माह के नवजात शिशु का फोर्टिस एस्कॉर्ट्स में लैपरोस्कोपिक प्रक्रिया से सफल इलाज।


अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
फरीदाबाद: फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पीटल में पेल्वीयूरेटेरिक जंक्शन (पीयूजे) ऑब्सट्रक्शन, जो कि एक सामान्य कंडीशन है जिसमें किडनी के पेल्विस और यूरेटर जंक्शन पर पेशाब का प्रवाह बाधित होता है, से पीड़ित 6 माह के एक नवजात शिशु का सफलतापूर्वक उपचार किया गया। डॉ अनूप गुलाटी, डायरेक्टर, यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने एक चुनौतीपूर्ण लैपरोस्कोपिक सर्जरी की मदद से मरीज का उपचार किया और 3 दिनों के भीतर मरीज को स्थिर अवस्था में अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई। शुरुआत में रूटीन प्रीनेटल अल्ट्रासाउंड जांच के दौरान इस कंडीशन का पता चला था जिसमें पेशाब के प्रवाह में बाधा के संकेत उसी समय मिल गए थे जब वह गर्भ में ही था। नवजात की उम्र और पेट का व्यास काफी कम होने (जिसके चलते ऑपरेशन नहीं किया जा सकता था) की वजह से, 5 माह में उसका रीनल स्कैन किया गया। इस स्कैन से दायीं किडनी में पेशाब की नली बाधित होने की पुष्टि हुई और किडनी फंक्शन भी कुछ हद तक प्रभावित पाया गया। यह पेल्वी यूरेटेरिक जंक्शन (पीयूजे) ऑब्सट्रक्शन की वजह से था जो दायीं किडनी में से पेशाब के प्रवाह को प्रभावित कर रहा था। अस्पताल में भर्ती कराए जाने पर, नवजात की लैपरोस्कोपिक पायलोप्लास्टी की गई जो कि मिनीमली इनवेसिव प्रक्रिया है और यह करीब 1.5 घंटे चली। इस मामले की जानकारी देते हुए, *डॉ अनूप गुलाटी, डायरेक्टर, यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट ने बताया, “मरीज के छोटे आकार के पेट की वजह से सर्जरी के लिए काफी सीमित इंट्रा-एब्डोमिनल स्पेस था जिसके चलते यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था। साथ ही, नवजात शिशुओं के टिश्यू और अन्य अंग भी काफी नाजुक होते हैं तथा काफी छोटे आकार के सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स की मदद से सावधानीपूर्वक सर्जरी करनी होती है। इतनी कम उम्र के शिशु की इस सर्जरी के लिए अतिरिक्त लैपरोस्कोपिक रिकंस्ट्रक्टिव कौशल जरूरी होता है। पीयूजे कंडीशन जन्मजात हो सकी है या जन्म के बाद भी पैदा हो सकती है। इसकी वजह से एंटीनेटल हाइड्रोनेफ्रोसिस की आशंका बनी रहती है, जिसमें किडनी में सूजन पैदा होती है। गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड स्कैन से इसका पता लगाया जा सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि शिशु के जन्म लेने तक इस कंडीशन का निदान नहीं हो पाता या यह बच्चों की अधिक उम्र होने पर पकड़ में आती है। यदि समय पर इस कंडीशन का उपचार नहीं किया जाए, तो पेशाब प्रवाह बाधित होने की वजह से किडनी के बेकार होने का खतरा बढ़ सकता है।”*योगेंद्र नाथ अवधीया, फेसिलटी डायरेक्टर ने कहा,* “नवजात की उम्र और कंडीशन के मद्देनज़र यह काफी चुनौतीपूर्ण कंडीशन थी। लेकिन डॉ अनूप गुलाटी के नेतृत्व में डॉक्टरों की योग्य एवं अनुभवी टीम ने बेहद सटीकता के साथ इस सर्जरी को अंजाम दिया।

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