अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद: एनआईटी के तिकोना पार्क स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर में तीसरे नवरात्रि पर भी मां चंद्रघंटा की धूमधाम से पूजा अर्चना की गई.आज रविवार को भी मंदिर में मां चंद्रघंटा की पूजा की गई.शास्त्रों के अनुसार तीसरा नवरात्रा दो दिनों का रहा है, इसलिए रविवार को भी माता चंद्रघंटा की भव्य पूजा की गई है.मंदिर में सुबह से ही भक्तों की लंबी-लंबी लाइन लगी रही. मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने प्रातः कालीन आरती का शुभारंभ करवाया. इस अवसर पर मंदिर संस्थान के चेयरमैन प्रताप भाटिया, प्रीतम धमीजा, विमल कुमार, विनोद पांडे, नेतराम गांधी, अनिल ग्रोवर एवं सुरेंद्र झाम ने माता के दरबार में माथा टेका और माता का आशीर्वाद लिया मंदिर के प्रधान जगदीश भाटिया ने आए हुए सभी अतिथियों को नवरात्रों की शुभकामनाएं दी. इस अवसर पर भाटिया ने श्रद्धालुओं को मां चंद्रघंटा की महिमा सुनाई. भाटिया ने बताया कि इस दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा की जाती है । देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां दुर्गा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा है। मां दुर्गा की यह शक्ति तृतीय चक्र पर विराज कर ब्रह्माण्ड से दसों प्राणों व दिशाओं को संतुलित करती है और महाआकर्षण प्रदान करती है। इनकी उपासना से भक्तगण समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन जाते हैं।नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा जी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है। इन देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला और वाहन सिंह है। इस देवी के दस हाथ माने गए हैं और ये कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं। इनके कंठ में श्वेत पुष्प की माला और शीर्ष पर रत्नजड़ित मुकुट विराजमान है। माता चंद्रघंटा युद्ध की मुद्रा में विराजमान रहती है और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं।माना जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और इससे न केवल इस लोक में अपितु परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है। इनके वंदन से मन को परम सूक्ष्म ध्वनि सुनाई देती है, जो मन को बहुत शांति प्रदान करती है। चूंकि उनका वर्ण स्वर्ण जैसा चमकीला है और ये हमेशा आसुरिक शक्तियों के विनाश के लिए सदैव तत्पर रहती हैं, इसलिए इनकी आराधना करने वाले को भी अपूर्व शक्ति का अनुभव होता है। मां चंद्रघंटा की पूजा में दूध का प्रयोग कल्याणकारी माना गया है।मां दुर्गा का पहला शैलपुत्री और दूसरा ब्रह्मचारिणी स्वरूप भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए है, जब माता भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती है और चंद्रघंटा बन जाती हैं। देवी पार्वती के जीवन में तीसरी सबसे बड़ी घटना के रूप में उनको प्रिय वाहन वाघ प्राप्त होता है। इसलिए माता बाघ पर सवार होकर भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। माता को लाल रंग बहुत प्रिय है इसलिए माता की पूजा में लाल रंग के वस्त्र पहनें जाते है.
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