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गुडगाँव

जी-20 समिट की चौथी शेरपा बैठक: सांस्कृतिक संध्या में विदेशी मेहमानों ने हरियाणा की समृद्ध पारंपरिक विरासत को समझा


अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नूंह/ गुरुग्राम: जिला नूंह के तावडू उपमंडल के आईटीसी ग्रैंड भारत में चल रही जी-20 समिट की चौथी शेरपा बैठक में विदेशी डेलीगेट्स ने मंगलवार को हरियाणा की समृद्ध परंपरा व विरासत को सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए समझा। भले ही वे हरियाणवी बोली को ना समझ पाए हों लेकिन उनके चेहरे के हाव-भाव साफ बता रहे थे कि हरियाणवी पारंपरिक गीतों की धुन उन्हें खूब पसंद आ रही है। वे हरियाणवी लोक गीतों की धुन व संगीत से इतने प्रभावित हुए कि अपने आप को थिरकने से नहीं रोक पाए और हरियाणवी कलाकारों के साथ नाचने लगे।

इस तरह के वैश्विक मंच पर अपनी प्रस्तुति देना हरियाणा के कलाकारों को भी गर्व और गौरव की अनुभूति करा रहा था। सूचना, जनसंपर्क, भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित इस सांस्कृतिक संध्या में जब 110 कलाकारों ने बारी-बारी से नॉन स्टॉप प्रस्तुति दी तो विदेशी डेलीगेट  मंत्रमुग्ध हो गए। भारत के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने सांस्कृतिक टीमों की परफॉर्मेंस की सराहना की।

सांस्कृतिक कार्यक्रम में देसी धुन और गीतों पर मेहमानों ने तालियों की गड़गड़ाहट से हरियाणवी पारंपरिक वेशभूषा में प्रस्तुति दे रहे कलाकारों की हौसला अफजाई की। साथ ही उन्होंने हरियाणा सरकार द्वारा परंपरा और संस्कृति को संरक्षित रखने की प्रतिबद्धता की सराहना भी की। कलाकारों ने जब देसी धुनों पर हमारे तीज त्यौहार की परंपरा से जुड़े गीत सुनाए तो दर्शकों में सावन की मस्ती का अहसास कराया। वहीं पनिहारी, खोडिया व रशिया के रश घोलकर माहौल को खुशनुमा कर दिया। इस सांस्कृतिक रंगत के बाद मेहमानों ने सुभाष घोष के मंद-मंद म्यूजिक का आनंद लेते हुए डिनर किया।
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गीतों के बोल से हरियाणा के गौरवशाली अतीत को दर्शाया
जी-20 समिट की चौथी शेरपा बैठक की सांस्कृतिक संध्या में मंगलवार को हरियाणा के कई पारंपरिक गीतों के बोल सुनने को मिले। इसमें पुरातनता और आधुनिकता का सामंजस्य देखने को मिला। इसमें हरियाणा के गौरवशाली अतीत को दर्शाया गया। हरियाणा की वैदिक भूमि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के उद्गम स्थल के रूप में जानी जाती है। ‘पृथ्वी पर हरि ( ईश्वर) का निवास ‘ कहे जाने वाले हरियाणा के इतिहास को कलाकारों ने अनोखे अंदाज में प्रस्तुत किया।
‘मेरे सिर पै बंटा टोकणी”, “इसी गजब की बहू बणूंगी”, “सुथरा सा भरतार मेरे दिल नै घणा लुभावै सै” और “म्हारी आई कोथली सामण मै ” आदि पारंपरिक गीतों को आधुनिकता की स्टेज से पेश करके परंपरा और प्रगति की तस्वीर पेश की।
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इन परंपराओं को दर्शाया गीतों के जरिए
सावन (मानसून सीज़न) पर आधारित नृत्य :
यह नृत्य तीज महोत्सव के उत्सव का प्रतीक है (यह मध्य हरियाणा में एक बहुत प्रसिद्ध त्यौहार है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने मायके जाती हैं जहां माता-पिता उपस्थित होते हैं ।बरसात के मौसम में विवाहित महिलाओं को उनके पीहर यानी माता पिता के घर से “कोथली” भेजी जाती है, जिसमें चूड़ियाँ, बिंदी, सिन्दूर, मेहंदी और मिठाई जैसी श्रृंगार सामग्री होती है।  महिलाएं झूला झूलती हैं और मानसून के मौसम के आगमन का जश्न मनाती हैं।
पनिहारी (वह महिला जो दूर से पानी लाती है) :
हरियाणा में पुराने जमाने में रोजमर्रा की गृहस्थी की वेदी पर महिलाएं दूर-दराज के स्थानों से पानी लाने के लिए जाते समय पनिहारी का जाप करती थी।  यह एक मधुर लय है जो रेगिस्तान में पानी की आवश्यकता, बहती नदियों और उछलती लहरों के महत्व को बयान करती है।
खोरिया :-
यह नृत्य मध्य हरियाणा में बहुत प्रसिद्ध है और यह विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है।  यह सबसे बहुमुखी विवाह अनुष्ठान और अन्य महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है।  नर्तकों का एक समूह इस नृत्य को करता है जिसकी गति सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है।  इसे हरियाणा के सबसे तेज़ नृत्यों में से एक माना जाता है।
रसिया : –
भारतीय लोक नृत्य की एक शैली, यह हरियाणा के फरीदाबाद, होडल, पलवल और मेवात जिलों में लोकप्रिय है।  इस नृत्य में कृष्ण के रूप में सजे पुरुषों और राधा के रूप में सजी महिलाओं के बीच एक मनमोहक बातचीत को दर्शाता है।  यह ढोलक (ड्रम), सारंगी और हारमोनियम जैसे विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों के साथ बजाए जाने वाला एक अद्भुत दृश्य अनुभव प्रदान करता है।

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