अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: डॉ. उदित राज (पूर्व सांसद), राष्ट्रीय चेयरमैन, दलित, ओबीसी, मॉइनोरिटीस एवं आदिवासी (डोमा) परिसंघ,ने आज प्रेस-वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि बहुजन समाज पार्टी का उत्थान अन्य दलों से भिन्न है। शुरुआत इसकी सामाजिक आंदोलन से हुई और बाद में राजनीतिक पार्टी – बहुजन समाज पार्टी बनी और अब इसका भाजपा करण हो गया है। सामाजिक न्याय और समानता की सोच रखने वाले किसी समुदाय या दल के रहे होंगे, उनकी सहानुभूति इस आंदोलन के साथ रही है। कांग्रेस पार्टी की सहानुभूति कुछ ज्यादा ही रही। पिछले चार दशक से आरोप पर आरोप कांग्रेस पर लगाते गए लेकिन कांग्रेस पार्टी ने पलट कर जवाब नहीं दिया। कांग्रेस पार्टी ने दलित, आदिवासी और पिछड़ों को हिस्सेदारी दी और उसी को अंबेडकर विरोधी और दलित विरोधी बताकर हमला बोला जाता रहा। अब जब बसपा का भाजपा करण हो गया है तो चुप बैठा नहीं रहा जा सकता। बसपा का जन्म और ताकत देने वाले ग़रीब दलित और कर्मचारी थे। इन्हें हुकुमरान बनाने का सपना दिखाया और इसी भावना और लक्ष्य को देखते हुए कार्यकर्ता कुर्बानी देता रहा। अन्य पार्टियों जैसे उसका व्यवहार न रहा, उसने कोई काम कराने और सहयोग की आकांक्षा नहीं पाली। इन्होंने अपने खून-पसीने से सींचा है। गांवों में शुरू के दौर में छुप कर प्रचार और वोट डालते थे। जब साइकिल से निकलते थे तो झंडे को जेब में रखते थे ताकि गाँव के दबंग देख न लें वरना मारेंगे। मजदूरी से निकालकर चंदा देते थे और चुनाव प्रचार के लिए जब निकलते थे तो घर से रोटी लेकर। अमीरों के पैसे से ये पार्टी नहीं बनी। जैसे सत्ता मिली, सब भूल गए, कार्यकर्ता से मिलना तो दूर की बात हो गई, कांशीराम जी द्वारा बढ़ाए गए नेतृत्व का अपमान करना और अंत में बाहर का रास्ता दिखा दिया।
जो आंदोलन डॉ अंबेडकर के विचारों के आधार पर खड़ा हुआ, आज वही विपरीत दिशा में चल पड़ा है इसलिए निम्नलिखित सवाल पूछना जरूरी हो गया है-
1.क्या यह सच नहीं है कि 2022 में उप्र. चुनाव के समय सुश्री मायावती ने कहा कि समाजवादी पार्टी नहीं जितनी चाहिए चाहे बीजेपी जीत जाए? सीधा संकेत दिया कि बीजेपी को जिताया जाए।
2.क्या यह सच नहीं है कि लोकसभा चुनाव के समय जब आकाश आनंद ने बीजेपी के खिलाफ आक्रामक भाषण दिया तो 24 घंटे के अंदर कोऑर्डिनेटर पद से हटा दिया?
3.क्या यह सच नहीं है कि यदि लोकसभा चुनाव के दौरान बसपा इंडिया गठबंधन का हिस्सा होती तो बीजेपी केंद्र में सरकार न बना पाती। इस बात को राहुल गांधी ने रायबरेली में भी कहा।
4.सतीश मिश्रा के सिवाय गत 20 वर्ष से कोई ऐसा नेता नहीं है जो प्रेस में बोलने के लिए अधिकृत हो, ऐसा क्यों? क्या मिश्रा ही एक मात्र अम्बेडकरवादी बचे हैं?
5.आकाश आनंद ने अपने एक भाषण में दर्द का बयान किया है कि पार्टी में कुछ वरिष्ठ नेता हैं जो मुश्किल पैदा करते हैं, लगता है उनका इशारा सतीश मिश्रा जी पर ही था।
6.आकाश आनंद को दो बार कॉर्डिनेटर बनाना और निकालना, दर्शाता है कि बीएसपी बीजेपी से संचालित हो रही है। बिना दबाव मायावती जी ऐसा आत्मघाती कदम नहीं उठातीं।
7.आकाश आनंद ने कहा कि कांग्रेस-सपा से आगामी विधानसभा चुनाव में समझौता करना चाहिए नहीं तो जीरो ही रहेंगे, इससे अंदरूनी रूप से बीजेपी परेशान हो गई। बीजेपी का वोट बैंक और कहीं से बढ़ने वाला नहीं है। पसमांदा मुसलमान की बात उठाकर भी लाभ नहीं मिला। बीएसपी ही रह जाती है जिसके वोट में सेंध बीजेपी लगा सकती है और आकाश आनंद के रहते यह मुश्किल होता।
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