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वामपंथी सरकार जिन जिन राज्यों में सत्ता में रही वहां खेती-किसानी नष्ट ही नहीं हुई बल्कि इन्होंने किसानों पर कई अत्याचार भी किए हैं-डा. पात्रा 

नई दिल्ली / अजीत सिन्हा 
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ संबित पात्रा ने आज किसान दिवस के मौके पर पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित एक पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए लेफ्ट पार्टियों द्वारा किसान आंदोलन की आड़ में फैलाये जा रहे दुष्प्रचार और उनके दोहरे रवैये पर कड़ा प्रहार किया.डॉ. पात्रा ने कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी जी की सरकार और स्वयं मोदी जी, जो हिंदुस्तान के मुख्य सेवक हैं, किसानों को अन्नदाता और भगवान मानते हैं। आज बहुत से किसान संगठन तीन कृषि बिलों के समर्थन में उतरे हैं, कृषि मंत्री से उन्होंने मुलाकात भी की और प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद भी दिया है। डॉ पात्रा ने वामपंथी दलों पर सीधा प्रहार करते हुए कहा कि कुछ वामपंथी दल किसानों के कंधों पर बंदूक रखकर अपनी राजनीति साधने की कोशिश कर रहे हैं। इनसे ज्यादा दोहरा रवैया अपनाने वाली और पाखंडी पार्टी अन्य कोई नहीं। वामपंथी सरकार जिन जिन राज्यों में सत्ता में रही वहां खेती-किसानी नष्ट ही नहीं हुई बल्कि इन्होंने किसानों पर कई अत्याचार भी किए हैं। लेकिन आज वे दिखावा कुछ और कर रहे हैं। केरल के मुख्यमंत्री पीनराई विजयन
कृषि बिल को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की कोशिश कर रहे थे।

मगर उनको यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर क्यों केरल में एपीएमसी का कानून नहीं है? वामपंथियों का यह दोहरा चरित्र ही है कि ये पूरे हिंदुस्तान में एपीएमसी कानून को लेकर भ्रमजाल फैला रहे हैं।  डॉ पात्रा ने लेफ्ट पार्टियों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि लेफ्ट पार्टियां किसान आंदोलन के पीछे खड़े होकर सिर्फ और सिर्फ राजनीति करना चाहती है. उन्होंने कहा कि केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने 2009 में एपीएमसी एक्ट में बदलाव करके प्राइवेट एंटिटी को प्रवेश दी थी जिसमें रकम अदायगी की कोई निश्चित अवधि नहीं थी. जबकि नए कृषि कानूनों में तीन दिनों के अंदर ही किसानों को रकम अदायगी की व्यवस्था की गयी है. नए कृषि कानून के तहत यदि तीन दिनों के अंदर रकम अदायगी नहीं होती है तो ऐसी स्थिति में किसानों को कोर्ट जाने का अधिकार है. क्या केरल की लेफ्ट सरकार किसानों के इन अधिकारों के खिलाफ है? आखिर केरल सरकार नए कृषि क़ानून को क्यों रद्द करवाना चाहती है? क्या वे प्राइवेट एंटिटी को बचाना चाहती है? उन्होंने कहा कि केरल में लेफ्ट के गुंडे कार्यकर्ताओं के हाथों में निजी मंडियां हैं जो फसलों की खरीद बिक्री निर्धारित करते हैं. इसके माध्यम से किसानों पर घोर अत्याचार किया जाता है. डॉ पात्रा ने कहा कि वर्ष 1993 से 2018 तक 25 वर्षों तक त्रिपुरा में वामपंथ की सरकार रही। लेकिन त्रिपुरा में इन 25 वर्षों तक किसी भी फसल पर कोई भी एमएसपी नहीं थी। 25 वर्षों तक वामपंथ शासन के अंतर्गत त्रिपुरा एकमात्र ऐसा राज्य था जहां पर एमएसपी लागू नहीं होती था। लेकिन आज ये तमाम वामपंथी नेता किसान हितैषी बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि 2017-18 में त्रिपुरा में कृषि विकास दर 6.4% थी जो अब मात्र दो साल में भाजपा शासन के अंतर्गत बढ़कर 13.5 % हो गयी है. त्रिपुरा में भाजपा की सरकार आने के बाद पहली बार 27 हजार किसानों से 4780 मीट्रिक टन धान की खरीद की गई.

डॉ पात्रा ने पश्चिम बंगाल की पूर्ववर्ती लेफ्ट और वर्तमान तृणमूल सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि इन दोनों का शासन काल किसानों के लिए घातक रहा है. पश्चिम बंगाल में वामपंथी शासन काल में एपीएमसी एक्ट केवल पैसा उगाहने के लिए ही बनाया गया था. मंडियां थीं लेकिन किसानों के मंडी पहुँचने से पहले उनसे टोला चार्ज लेने के बाद ही किसानों को फसल बेचने की अनुमति होती थी. पश्चिम में आलू की उपज बहुतायत से होती है. आलू
से बनने वाले अन्य उत्पाद के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पश्चिम बंगाल में बहुत पहले से चलते आ रही है.जब पश्चिम बंगाल सरकार में किसानों सेकॉन्ट्रैक्ट किया तो ठीक वो उचित था,लेकिन अब केंद्र की मोदी सरकार किसानों के लाभ के लिए इसे लागू कर रही है तो ये दुष्प्रचार कर रहे हैं कि ऐसा करने से जमीन किसानों के हाथों से प्राइवेट एंटिटी के पास जाने का डर है. डॉ पात्रा ने ममता जी के कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा धरने पर बैठे किसानों से मुलाक़ात किये जाने पर निशाना साधते कहा कि देश के करोड़ों किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि योजना की सातवीं किस्त प्रधानमंत्री द्वारा 25 दिसंबर को भेजी जा रही है जिसके तहत सरकार किसानों के बैंक खातों में हर साल 6000 रुपये जमा करती है.लेकिन ममता बनर्जी कह रही हैं कि इस धनराशि का भुगतान राज्य सरकार को किया जाय, वो तय करेंगीं कि इस धनराशि को कहां और कैसे खर्च किया जाए. डॉ पात्रा ने एक दैनिक अंग्रेजी अखबार के 13 दिसंबर, 2020 के अंक में प्रकाशित एक पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि उक्त पत्र में किसानों द्वारा 6 मांगें किसान संगठन द्वारा की गई जिनमें- लेखकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, कवियों को जेल से रिहा करने की बात की गई है. इतना ही नहीं, उमर खालिद और शर्जिल इमाम जैसे आरोपियों को भी रिहा करने की मांग की गई है. पत्र में एक ऐसे माओवादी संगठन के संस्थापक की रिहाई की मांग की गई है जिसे पिछली यूपीए सरकार ने भी प्रतिबंधित किया था. पत्र के माध्यम से अर्बन नक्सलियों को रिहा कराने की मांग की गई. उन्होंने कहा की किसान आंदोलन में कुछ ऐसे
अवांछित तत्व, वामपंथी तत्व घुस गए हैं जिनसे सतर्क रहने की आवश्यकता है अन्यथा किसानों के मुद्दे गौण हो जायेंगे.

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