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वरिष्ठ कोंग्रेसी नेता राजीव शुक्ला ने आज आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में केंद सरकार के बारे में क्या कहा सुनियों इस वीडियो में  

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि सबसे पहले तो मैं आप लोगों का स्वागत करता हूँ कि ऐसी ठंड में आप लोग मौजूद हैं, वैसे ही मौजूद हैं जैसे पूरी रात संघर्ष करके किसान वहाँ ठंड मे बैठे हैं बॉर्डर पर, लेकिन सरकार को नहीं दिख रहा है। यहाँ सरकार रजाईयों की गरमाहट में हैं, आनन्द ले रहे हैं मंत्री, अपना बैठे हुए हैं, वहाँ किसान ठंड में परेशान हैं, उनके प्रति जो सहानुभूति होनी चाहिए वो सहानुभूति सरकार की नहीं है।

इस प्रेस कांफ्रेंस का आज जो मकसद है, कल सरकार की वार्ता किसानों से होने जा रही है ऐसा सरकार ने कहा है, लेकिन आज सुबह मैं केन्द्रीय कृषि मंत्री का इंटरव्यू देख रहा था। केन्द्रीय कृषि मंत्री ने एक भी जगह ये कमिटमेंट नहीं दिया है कि वो कानून में कोई संशोधन करेंगे, या कानून वापस लेंगे या किसानों की जो बात है, उसे कानून में शामिल करेंगे। सरकार की यही एक ट्रिक है कि ये आश्वासन देते हैं, मौखिक सब कहते हैं और सरकार के स्तर पर कानूनी रुप से लिख कर देने को तैयार नहीं हैं। इसमें टैक्निकल चीजें वो हुई हैं कि ये कानून में शामिल करने से बच रहे हैं, क्योंकि कानून में शामिल करने का मतलब बिल का हिस्सा उन बातों को बनाना पड़ेगा और पार्लियामेंट में पास करना पड़ेगा, जिससे ये बच रहे हैं। इनका है कि सिर्फ आज लिखकर सरकार दे दे जिसकी कोई वैल्यू नहीं बाद में, एक सरकार ने लिख दिया, दूसरी सरकार उस कैबिनेट के डिसीजन को उलट देती है या तीसरी सरकार उसको नहीं मानेगी और आगे कोई अफसर नहीं मानेगा इसलिए इनकी टैक्नीकल चीज जो है अवॉइड कर रहे हैं, बार-बार कह रहे हैं कि एमएसपी कहीं नहीं जाएगी, मंडियाँ कहीं नहीं जाएंगी, हमारा वचन है, हमारा वादा है। लेकिन ये वादे कुछ नहीं, वचन का कोई अर्थ नहीं होता जब तक वो कानून का हिस्सा नहीं बनता, ये कानून नहीं बनाना चाहते, इसमें सिर्फ तकनीकी दृष्टि की बात है। तो कल की जो वार्ता में भी अगर वो बात इसको कानून में शामिल करने की बात रहेगी। बड़ी सिंपल सी बात है कि एमएसपी कंटिन्यू करेंगे, मंडियाँ उसी तरह चलती रहेंगी और कोई भी प्राईवेट प्लेयर से अगर आप इसको रीफॉर्म करते हैं तो कोई भी प्राईवेट प्लेयर, कॉर्पोरेट वो एमएसपी से नीचे नहीं खरीद सकता, इतनी बात ही तो कानून में देनी है आपको, वो कानून का हिस्सा ही बनाने को तैयार नहीं हैं और उसको घुमा-घुमाकर वार्ता को बढ़ाते जा रहे हैं, पर ये बात करने को तैयार नहीं। तो हमारी मांग है कि जो भी आप करें, जो भी उनके साथ समझौता हो अगर किसान तैयार हैं, उनकी शर्तें आप मानते हो, तो कानून का हिस्सा होना चाहिए यही किसान मांग करते हैं, यही हम सबकी मांग है कि आप किसानों की मांग मानें।

दूसरी बात ये है कि एक जो बार-बार बात कही जाती है कि एक तो डेढ प्रदेश का आंदोलन है, पंजाब और आधा हरियाणा, ये इनकी गलतफहमी है, वहाँ भी यदि आप जायें, यूपी बॉर्डर पर जो बैठे हुए हैं, वो क्या पंजाब और हरियाणा के हैं? वहाँ पर जाइए आपको मध्य प्रदेश का किसान मिलेगा, वहाँ राजस्थान का किसान मिलेगा, वहाँ महाराष्ट्र का किसान मिलेगा, आज तो हमारे सहयोगी दल हैं राष्ट्रवादी कांग्रेस ने कहा कि वो किसान आंदोलन को, महाराष्ट्र तो जाना ही जाता है किसानों के लिए, वहाँ के बड़े प्रगतिशील किसान हैं, कॉपरेटिव, अगर कॉपरेटिव का सबसे बडा सहकारिता का कोई प्रयोग है तो महाराष्ट्र में हुआ है, जहाँ पर वो कर रहे हैं, इनके लोग भी दक्षिण भारत के लोग बराबर आ रहे हैं और मैंने भी सुना है कि जो किसान धरने पर बैठते हैं, फिर जाते हैं उसी गांव से दूसरे गांव के किसान भी आ जाते हैं तो इस तरह से पूरे देश से लोग आ रहे हैं। अब दक्षिण बगैरह के लोग कम हो गए क्योंकि दूर से आना जाना होता है,लेकिन उनकी बात यहाँ के लोग बुलंद कर रहे हैं और उसमें कोई इसको जो ट्विस्ट देते हैं बार-बार कि ये राज नीतिक दलों का आंदोलन है, झोलाछाप लोगों का आंदोलन, ये सब लोग जो हैं जानबूझकर आंदोलन को बदनाम करने की चेष्टा कर रहे हैं। ये आंदोलन किसानों का आंदोलन है, किसान इसको चला रहे हैं, वरना इतनी भारी संख्या में, इतनी ठंड में कितनी भी आप लगा लीजिए उनको दूध मिल रहा है और उनको ये मिल रहा है, वो मिल रहा है खाने को, आप बैठ जाइए न जाकर, आपको दूध तो क्या आपको तो आईसक्रीम और रसमलाई सब देंगे, बैठोगे आप खुले में, वहाँ पर, रात में। तो ये जो है इनका जो है कहने को है, इससे किसानों को बदनाम करने की चेष्टा है, इसकी हम कड़ी निंदा करते हैं और सरकार से भी मांग करते हैं कि किसानों से वार्ता करें, उनके प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखें और वार्ता में जो उनकी मांग है, वो पार्लियामेंट से पारित कानून का हिस्सा होनी चाहिए।

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