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जब सैंया भए कोतवाल, तो डर काहे का और एक बोला जाता है- मोहरों की लूट, का मतलब जानने के लिए- सुने लाइव वीडियो

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा- आप सबको हमारा नमस्कार। सुबह-सुबह आज मुलाकात हो रही है बड़े दिनों बाद। लेकिन एक बहुत अहम मुद्दे पर आपके पास आए हैं और जहाँ से मैं आती हूं, दो बड़े मुहावरे बोले जाते हैं। एक बोला जाता है – जब सैंया भए कोतवाल, तो डर काहे का और एक बोला जाता है- मोहरों की लूट, कोयले पर छाप। इसका अपना अर्थ जरुर होता है, लेकिन इस सरकार के कार्यकाल में इसके मायने, इसका अर्थ, इसको चरितार्थ करना बिल्कुल बदल गया है। तो सैंया भए कोतवाल, तो डर काहे का और मोहरों की लूट, कोयले पर छाप। ये दोनों कैसे चरितार्थ होते है, आज की कहानी उसी के बारे में हैं।

बैंक लोन से हम सब वाकिफ हैं। हम सब लोगों ने, आपने, मध्यम वर्ग में ज्यादातर लोगों ने, निम्न वर्ग में लोग लोन लेते हैं। आप लोन घर खरीदने के लिए लेते हैं, गाड़ी खरीदने के लिए लेते हैं, स्टूडेंट लोन लेते हैं, पर्सनल लोन लेते हैं, शादी-ब्याह में, तमाम लोन होते हैं, जो लेते हैं। खुदा ना खास्ता अगर आप उस लोन की एक किश्त ना चुका पाएं, तो आपका फोन बजना बंद नहीं होता है। बैंक वाले फोन कर करके आपकी जिंदगी दूभर कर देते हैं, पहली बात।

दूसरी जरुरी बात उसमें ये है कि अगर आप लोन की तीन किश्त ना चुका पाएं, तो आपका लोन एनपीए बन जाता है, लठैत आ जाते हैं बैंक से, आपकी गाड़ी खींचने लगते हैं औऱ वो लठैत वाकई दिखने में लठैत होते हैं, आपको डराया धमकाया जाता है, आपके नाम के पोस्टर आपके घर के बाहर चिपका दिए जाते हैं कि कितना संगीन जुर्म आपने किया है बैंक की ईएमआई ना देकर और बदकिस्मती से अगर आप किसान हैं, तो आपके खिलाफ एफआईआर होगी, कचहरी में आपकी फोटो चिपकाई जाएगी, जेल होगी और तमामों ऐसे मामले हैं, जहाँ पर एक या दो लाख रुपए के लिए किसानों को जेल की सजा काटनी पड़ी है। लेकिन ये कहानी मध्यम वर्ग और किसान की है। अगर आप इस देश के बड़े पूंजीपति हैं, और आपने एक दो लाख का नहीं, हजारों करोड़ का लोन लिया है, तो आपको बिल्कुल भी चिंता करने की जरुरत नहीं है, सरकार दरियादिल है, सरकार आपको रियायत देगी, सरकार राहत देगी और बड़ी मेहरबानी करेगी और कैसे कर रही है ये मेहरबानी, पिछले पांच साल में 10,09,510 करोड़, 10 लाख करोड़ से ऊपर का ऋण राइट ऑफ किया गया है।

मोटे तौर पर मैं इसको उद्योगपतियों की ऋण माफी मानती हूं। अब कुछ चरण चुंबक हैं, कुछ चीयर लीडर हैं सरकार के, जो कूद पड़ेंगे औऱ आपको समझाएंगे कि नहीं ये तो राइट ऑफ हैं, आप तो गुमराह कर रही हैं, ये लोन माफी नहीं है। इसका भी जवाब लेकर आई हूं और तथ्यों के साथ लेकर आई हूं। 10 लाख करोड़ से ऊपर की ऋण माफी हुई, लेकिन केवल 13 प्रतिशत जो राइट ऑफ हुआ 10 लाख करोड़ से ऊपर का, केवल 13 प्रतिशत, 1,32,000 करोड़ मात्र वसूल हो पाए। केवल 13 प्रतिशत की रिकवरी हो पाई 10 लाख करोड़ से ज्यादा के राइट ऑफ पर। तो जो पैसा 8,60,000 करोड़ के आस-पास रिकवर नहीं हो पाया, जो 87 प्रतिशत 10 लाख करोड़ का पैसा रिकवर नहीं हो पाया, अगर वो लोन माफी, कर्जा माफी नहीं है अमीरों के लिए, तो वो क्या है? तो नेक्स्ट टाइम कुछ चरण चुंबक समझाने आ जाते हैं जब टीवी पर कि कैसे ये लोन माफी नहीं है और हम गलत कह रहे हैं, उनसे ये जरुर पूछिएगा कि राइट ऑफ का 13 प्रतिशत मात्र वसूल हुआ है पिछले 5 सालों में, तो ये दरियादिली अमीरों के लिए क्यों है?लेकिन इससे भी बड़ा गोरख धंधा और कहीं चल रहा है और वो धंधा है आईबीसी और एनसीएलटी में। पहले बैंक जो थे, लोन राइट ऑफ करने से हिचकिचाते थे, घबराते थे, क्योंकि उनको जवाब देना पड़ता था आरबीआई को और जवाब देना पड़ता था मिनिस्ट्री ऑफ फाईनेंस को। अब आईबीसी की व्यवस्था के चलते बैंक जो हैं, वो एक समूह बना लेते हैं। कमेटी ऑफ क्रेडिटर बन जाती हैं, उस कमेटी ऑफ क्रेडिटर के पास एक प्लान जाता है रेजुलूशन का, वो रेजुलूशन प्लान को अप्रूव करते हैं, वो एनसीएलटी के पास जाता है और एक बड़ा हेयरकट लेकर एसेट ट्रांसफर होजाता है, लोन रफा-दफा हो जाता है। ये थोड़ा जार्गन है, तो इसको अगर आपकी अनुमति हो तो मैं जरुर बताना चाहती हूं, व्यूवर को समझाना चाहती हूं। 1,000 करोड़ का लोन था जो एनपीए बन गया, राइट ऑफ हो गया। बैंक आपस में मिलकर ये तय कर लेते हैं कि 1,000 करोड़ का लोन था, कोई बात नहीं 100-200 करोड़ लो बाकी 700-800 करोड़ कहाँ लुप्त हो गया, किसी को नहीं पता है। इसको हेयरकट बोलते हैं। हेयर कट ऐसे लिया जा रहा है कि 1,000 करोड़ का लोन 100-200 करोड़ देकर रफा-दफा कर दिया जाता है और वो एसेट सरकार के प्रिय लोगों के पास ट्रांस्फर कर दिया जाता है और ऐसे तमामों केस हैं आईबीसी में जो कि न्यायालय में लंबित हैं।मैं आपको अभी ताजा आंकड़ों के बारे में बता देती हूं। 542 केस अभी आईबीसी ने रिजॉल्व किए हैं, इन मामलों को निपटाया है, इस पर बड़ी पीठ ठोकी गई। अभी पिछले 3-4 दिन पहले आया था कि हमने कितने मामले निपटा दिए, कितने सुलझा दिए। 542 मामले थे। इन 542 मामलों में कर्जा था करीब 8 लाख करोड़ का, वसूली हुई 1 लाख 80 हजार करोड़ की। 8 लाख करोड़ का कर्जा, वसूली 1 लाख 80 हजार करोड़ की, मतलब करीब-करीब 6 लाख करोड़ से ऊपर का कर्जा कहाँ गया, किसी को नहीं पता है, एसेट ट्रांस्फर हो गया, बैंकों ने अपनी किताबें बद कर दीं और दुनिया को बता दिया गया कि कितनी बढिय़ा व्यवस्था चल रही है। तो अब ये सवाल क्यों ना बनें कि एनपीए का क्या हो रहा है? बड़ी बातें करते थे, सरकार के लोग। ये सरकार वाले लोग कहते थे कि कैसे एनपीए बन रहा है और किस तरह से दिक्कतें पेश आ रही हैं यूपीए के कार्यकाल के दौरान। थोड़ी असलियत इनके बारे में भी बयां कर देना जरुरी है, मोदी सरकार के कार्यकाल में एनपीए का क्या हो रहा है, लेकिन उससे पहले जरुरी बात कि जब आरबीआई से ये पूछा गया कि ये महानुभाव कौन हैं, जिनके 10 लाख करोड़ राइट ऑफ हुए, जिनसे सिर्फ 13 प्रतिशत वसूली की गई, तो बोला गया कि नहीं हम इनके नाम नहीं बता सकते, वो गुप्त और गोपनीय हैं। ये गुप्त और गोपनीय क्यों हैं? ये जो पैसा था, ये हमारा और आपका पैसा था, क्योंकि बैंक को रीकैपिटलाइज गवर्मेंट ऑफ इंडिया करती है। गवर्मेंट ऑफ इंडिया के पास पैसा आता है टैक्स से और सिर्फ इंकम टैक्स से नहीं, जीएसटी से भी, जो आटे पर दे रहे हैं। आता है, जो एक्साइज आप पेट्रोल पर दे रहे हैं, जो जबरदस्त टैक्स वसूली पेट्रोल-डीजल पर हो रही है। जो हम और आप इस देश का सबसे गरीब आदमी एक रिक्शा चलाने वाला, वो भी देता है। तो हर व्यक्ति का पैसा लगकर बैंक रीकैपिटलाइज होता है, जब वो लोन माफी हो जाती है, तो ये बोला जाता है कि आपको हम नाम नहीं बता सकते हैं, ये गुप्त और गोपनीय है। लेकिन अगर आप एक भी ईएमआई डिफाल्ट कर जाइए, तो आपका नाम अखबार में छप जाएगा कि फलां व्यक्ति ने डिफॉल्ट किया, इनको अब कहीं से लोन नहीं मिलना चाहिए।

मोदी सरकार के कार्यकाल का कच्चा चिट्ठा थोड़ा खुलना जरुरी है। मोदी सरकार के कार्यकाल में एनपीए जो है, वो 365 प्रतिशत बढ़ा है, 365 प्रतिशत एनपीए की उछाल हुई है। बड़ी फोन बैंकिंग की बात करते थे, जो एनपीए वित्तीय वर्ष 2015 में 5 लाख करोड़ का था, वो इनके 6 साल के कार्यकाल में शुरु-शुरु में 19 लाख करोड़ के आस-पास पहुंच गया। 365 प्रतिशत की वृद्धि। तो अब क्या सवाल नहीं बनता कि किसके फोन पर ये लोन दिए जा रहे हैं, क्या क्वीड-प्रो-को है, कौन पैसा लेकर ये लोन दे रहा है और ये लोन एनपीए क्यों बन रहे हैं? ये सवाल लाजमी है और ये सवाल जरुर पूछा जाना चाहिए। विलफुल डिफाल्टर जो पैसा दे सकते हैं, लेकिन स्वेच्छा से कहते हैं कि भईया हम पैसा नहीं देंगे। आपको और हमें रियायत नहीं है, किसान को ये राहत नहीं है कि वो कह दे कि मेरी फसल फेल हो गई, मैं पैसा नहीं दे पाऊंगा। लेकिन अगर आपने हजारों लाखों करोडों का लोन लिया है, तो आप ये कह सकते हैं कि मैं कर्जा देने में असमर्थ हूं, जबकि आपके पास पैसा हो सकता है। विलफुल डिफाल्ट 23 हजार करोड़ का होता था 2012 में, 23 हजार करोड़ का। आज वो करीब-करीब ढाई लाख करोड़ का है, 10 गुना इजाफा विलफुल डिफाल्ट में। ये क्यों हो रहा है, ये क्यों होने दिया जा रहा है, ये कौन लोग हैं जो विलफुल डिफाल्ट कर रहे हैं औऱ क्यों करने दिया जा रहा है, ये सवाल अपने आपमें बहुत गंभीर सवाल हैं?लेकिन उससे ज्यादा गंभीर सवाल ये है कि इस सरकार की नाक के नीचे और मेरा मानना है कि इस सरकार के संरक्षण के चलते एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, 38 ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े बैंक के फ्रॉड और घोटाले किए, हमारे- आपके पैसे को डुबोया, बैंक को चपत लगाई, वो आज देश छोड़कर भाग चुके हैं और मोदी जी और उनकी तमामों एजेंसी जो फ्रंटल बन चुकी हैं, वो हाथ मलती रह गई, चश्मा पहन कर। 38 ऐसे लोग हैं, एक, दो या तीन नहीं, मैं मेहुल चौकसी, मेहुल भाई, मोदी जी के मेहुल भाई और वो गलबंइया करते थे, उनके साथ नीरव मोदी और विजय माल्या की बात नहीं कर रही हूं, इनके जैसे 38 लोग ये देश छोड़कर भाग गए, इनके शासनकाल में और ये हाथ मलते रह गए और सुर्खियां चलती हैं, फलां वापस आने वाला है, ढिमकाना वापस आने वाला है।44 करोड़ रुपया खर्चा किया एक प्लेन भेजा एंटिगुवा मेहुल भाई को वापस लाने के लिए, लेकिन मेहुल भाई ने इतना चमकाया इस सरकार को कि वो चंपत हो गए और इनको पता ही नहीं चला कि वो चले कहाँ गए। 44 करोड़ का प्लेन वहाँ खड़े रहा तीन दिन एंटिगुवा में, बिलिंग हो गई, वापस ढाक के तीन पात बन कर हम घर आ गए। ये इस सरकार की असलियत है। पहले भाग जाने देते हैं, फिर किसी को लेकर नहीं आ पाते हैं, जिस दिन कोई नेगेटिव खबर आने वाली होती है, सुर्खियां चलने लगती है ब्रेकिंग न्यूज, फलाना वापस आने वाला है। तो ये हम साढ़े आठ साल से सुन रहे हैं कौन-कौन वास आने वाला है, वो सब लोग जिनको इन्होंने भगाया।

हमारे सरकार से कुछ सीधे सवाल हैं इस मामले में।

पहला सवाल हमारा है कि आखिर कैसे और किस तरह 10,09,510 करोड़, 10 लाख करोड़ से ऊपर पैसा, बैंकों का कर्जा write off किया गया?

आखिर क्यों सिर्फ 13 प्रतिशत उस राइट ऑफ की वसूली हो पाई, आगे क्या वसूली संभव है?

जिन उद्योगपतियों को ये फ़ायदा पहुँचाया गया – उनका नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है?

सरकारी बैंक जिस निरंकुशता से हेयरकट ले रहे हैं और कौड़ियों के दाम पर एसेट ट्रांस्फर कर रहे हैं, इसके ऊपर क्या निगरानी रखी जा रही है और इसकी क्या जाँच होगी? हजार-हजार करोड़ के लोन जो हैं, वो 100, 200, करोड़ देकर निपटा दिए जा रहे हैं?

आख़िर NPA में 365% की उछाल कैसे आई? कौन फोन कर रहा है, किसको लोन दिए जा रहे हैं, कौन क्वीड-प्रो-को है? इसकी जांच कौन करेगा?

अंत में विलफुक डिफाल्ट जो 10 गुना बढ़ गई, क्यों बढ़ने दी गई? 38 लोग जो देश छोड़कर चले गए, उनको वापस लाने के लिए सिर्फ आपके पास जुबानी जमाखर्च है या वाकई में कोई प्लान या स्ट्रैटेजी है?

ये सवाल पूरा देश और खासतौर से वो लोग जिनके व्यापार-धंधे, आय आपने चौपट कर दी और आज वो अपनी ईएमआई पे करने में असफल हैं, आपसे जरुर पूछते हैं।

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