अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:दिल्ली के डिप्टी सीएम एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने सरकारी स्कूलों के 126 प्रिंसिपल्स के पदों को पुनः सृजित करने के एलजी ऑफिस के दावे को खारिज करते हुए एलजी से इस मामले पर राजनीति नहीं करने की अपील की है। उन्होंने एलजी ऑफिस के दावे को झूठ करार देते हुए कहा कि एलजी ने ’व्यापक अध्ययन’ का बहाना बनाकर सरकारी स्कूलों के 244 प्रिंसिपल्स के पदों की बहाली रोकी दी। स्कूल बिना प्रिंसिपल्स के चल रहे हैं, लेकिन एलजी चाहते हैं कि ’व्यापक अध्ययन’ कर आकलन किया जाए कि प्रिंसिपल्स की जरूरत है या नहीं। डिप्टी सीएम ने कहा है कि हर स्कूल को एक प्रिंसिपल की जरूरत होती है और अगर कोई पद खाली है तो उसे जरूरत का अध्ययन करने के बजाय भरा जाना चाहिए। एलजी श्रेय लेने के बजाय फाइलों को सार्वजनिक डोमेन में रखें और समझाएं कि प्रिंसिपल्स की नियुक्ति में देरी क्यों कर रहे हैं? एलजी नौकरशाही का बहाना करना बंद करें और कोई एक तारीख बताएं कि कब तक प्रिंसिपल के शेष पदों को बहाल किया जाएगा।
दरअसल एलजी कार्यालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए दावा किया है कि एलजी ने स्कूलों के प्रिंसिपल्स के 126 पदों को पुनः सृजित करने को मंजूरी दे दी है, जो ‘‘आप’’ सरकार की उदासीनता और निष्क्रियता के कारण समाप्त हो गए थे। एलजी ऑफिस के इस दावे को खारिज करते हुए डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कई बिंदुओं में जवाब दिया है। उन्होंने कहा है कि उपराज्यपाल कार्यालय का यह दावा पूरी तरह से झूठा है। साथ ही यह दावा इस तथ्य को छिपाने का प्रयास है कि केंद्र सरकार और उपराज्यपाल कार्यालय ने दिल्ली सरकार के स्कूलों में प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति को 7 साल से अधिक समय से रोककर रखा है।
यह तथ्य और घटनाएं एलजी कार्यालय के झूठे दावों की पोल खोलती हैं-
1. तथ्य यह है कि 2015 में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के ठीक बाद सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल्स के 370 रिक्त पदों को भरने के लिए यूपीएससी से संपर्क किया गया।
2. इस बीच, 2015 में ही सर्विस विभाग को असंवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार के दायरे से हटाकर एलजी को सौंप दिया गया। इसलिए, प्रभावी रूप से एलजी ही इन नियुक्तियों के लिए जिम्मेदार थे।
3. एलजी ऑफिस को अच्छी तरह से पता है कि इन नियुक्तियों को किसी न किसी बहाने से नहीं होने दिया गया। इतना ही नहीं, बिना प्रिंसिपल्स के चल रहे सरकारी स्कूलों की दिक्कतों को समझते हुए शिक्षा मंत्री ने सर्विस विभाग के साथ लगातार बैठकें की, लेकिन उन्हें प्रक्रिया में तेजी नहीं लाने के सीधे निर्देश दिए गए। एलजी के निर्देशों के तहत सर्विस विभाग द्वारा इन पदों की आवश्यकता पर “व्यापक अध्ययन“ जैसे बहाने किए गए।
4. एलजी के बार-बार रोकने के बावजूद शिक्षा मंत्री ने काफी कोशिशें की और अब एलजी कार्यालय बेशर्मी से दावा कर रहा है कि उन्होंने 126 पदों को पुनः सृजित कर दिया है। इस तथ्य को छिपाया गया है कि एलजी ने 244 स्कूल प्रधानाध्यापकों के पदों को इस आधार पर समाप्त कर दिया है कि वे पद पिछले 5 वर्षों से अधिक समय से खाली पड़े हैं।
5. हालांकि, हम शिक्षा मंत्री के बार-बार के प्रयासों के बाद प्रिंसिपल्स के 126 पदों को पुनर्जीवित करने का स्वागत करते हैं, लेकिन अगर एलजी वास्तव में इसे लेकर गंभीर हैं और राजनीति नहीं कर रहे हैं, तो उन्हें एक तारीख तय कर देनी चाहिए कि कब शेष 244 पदों को पुनर्जीवित किया जाएगा। उन्हें स्कूलों में प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति में बाधा डालने के लिए “व्यापक अध्ययन“ या इस तरह के बहाने नहीं करने चाहिए।
6. गौरतलब है कि प्रिंसिपल्स के 244 पद इसलिए भी पुनर्जीवित करने चाहिए, क्योंकि इतने वर्षों से बिना प्रिंसिपल के चल रहे स्कूलों में ये पद मौजूद हैं। किस तरह से तथाकथित “व्यापक अध्ययन“ इस तथ्य को और अधिक महत्व देगा कि एक स्कूल में प्रधानाध्यापक की आवश्यकता है, जबकि वो स्कूल बिना प्रधानाध्यापक के चल रहा है।
7. इसके अलावा, सबसे पहले तो उन्होंने खुद इसमें देरी की है। इस काम का श्रेय लेने का दावा करने की बजाय उन्हें सभी फाइल की नोटिंग को सार्वजनिक डोमेन में रखना चाहिए और इतने सालों तक देरी के लिए अपनी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
8. अंत में, हम एलजी से गंदी राजनीति करना बंद करने का अनुरोध करते हैं। पहले उन्होंने फ़िनलैंड में ट्रेनिंग लेने के लिए टीचर्स की विदेश यात्रा को रोक दिया और अब वे 126 पदों को पुनर्जीवित करने का झूठा दावा कर स्कूलों के प्रिंसिपल्स के 244 पदों को समाप्त करना चाहते हैं।