अजीत सिन्हा / नई दिल्ली
राहुल गांधी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आपने इतना प्यार दिखाया, 25 किलोमीटर आप हमारे साथ चले,सर्दी में चले, इसके लिए आप सबका दिल से धन्यवाद करना चाहता हूँ और हरियाणा की जनता, जिसने हमें जबरदस्त रेस्पॉन्स दिया है, जिसने इस यात्रा को अपनी यात्रा बनाया है, खासतौर से जो हमारे युवा हैं, माताएं और बहनें हैं, आप सबको मैं दिल से अपना प्यार और धन्यवाद करना चाहता हूँ। यात्रा शुरू हुई थी, तो हमारे जो प्रेस के मित्र हैं, उन्होंने कहा कि केरल में अच्छा रेस्पॉन्स है, उत्तर भारत में यात्रा को रेस्पॉन्स नहीं मिलेगा, महाराष्ट्र में, कर्नाटक में नहीं मिलेगा, कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है। कर्नाटक पहुंचे, तो केरल से बेहतर रेस्पॉन्स कर्नाटक में मिला। फिर मीडिया ने कहा कि कर्नाटक में मिल गया रेस्पॉन्स, महाराष्ट्र में नहीं मिलेगा। महाराष्ट्र पहुंचे, कर्नाटक से बेहतर रेस्पॉन्स।
उसके बाद कहते हैं, मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है, नॉर्थ इंडिया है, वहां पर तो सवाल नहीं उठता। वहाँ पर लाखों लोग आ गए बाहर सड़कों पर, गांव के गांव, शहर के शहर बाहर आ गए, फिर कहते हैं, हां, मध्य प्रदेश में रेस्पॉन्स मिल गया, हरियाणा में नहीं मिलेगा और हरियाणा ने बाकी सब प्रदेशों को दिखा दिया कि हरियाणा क्या है, और हरियाणा क्या कर सकता है। जो हमने नफ़रत मिटाने की बात की, डर मिटाने की बात की, वो सचमुच हमें इन सड़कों पर आपने दिखाया है। इस यात्रा में किसी ने गलत तरीके से किसी से बात नहीं की। कोई गिरा, चाहे हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो, ईसाई हो, मैंने अपनी आँखों से देखा, जैसे ही गिरा, यात्रा ने उस व्यक्ति को अपनी गोद में लिया। किसी ने नहीं पूछा, भाई, तुम हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो, ईसाई हो, कौन सी जाति के हो, न। जैसे ही कोई गिरा, वैसे ही पूरी यात्रा ने, हिंदुस्तान ने उसको अपना माना, उसको उठाया, पानी पिलाया, अगर पट्टी की जरूरत थी, पट्टी की, और फिर कहा, चलो-चलो, हमारे साथ चलो, ये आपने दिखाया हमें और ये नई चीज नहीं है। ये आपका जो प्रदेश है, ये सदियों से देश को यही दिखा रहा है।
महाभारत की जमीन है, कौरव-पांडवों की जमीन है। जो उस समय लड़ाई थी, बात लोगों को अभी समझ नहीं आ रही है, मगर जो उस समय लड़ाई थी, वही आज लड़ाई है। लड़ाई किसके बीच में है? देखिए, पांडव कौन थे? अर्जुन, भीम, ये लोग कौन थे- ये लोग तपस्या करते थे। क्या पांडवों ने इस धरती पर नफ़रत फैलाई थी क्या? आपने महाभारत पढ़ी है। क्या उसमें लिखा है कि पांडवों ने किसी गरीब व्यक्ति के खिलाफ़ अपराध किया, कहीं लिखा है? पांडवों ने डीमॉनेटाइज़ेशन किया क्या, नोटबंदी की थी क्या, गलत जीएसटी लागू की थी क्या? कभी करते- कभी नहीं करते। क्यों नहीं करते- क्योंकि वो तपस्वी थे और वो जानते थे कि नोटबंदी, गलत जीएसटी, किसान बिल, इस धरती के जो तपस्वी हैं, उनसे चोरी करने का तरीका है।
एक तरफ तपस्वी थे, 5 थे। दूसरी तरफ संगठन था। एक तरफ पांच तपस्वी और भीड़, उनके साथ, पांडवों के साथ हर धर्म के लोग थे। जैसे यहाँ पर यात्रा चल रही है, इसमें कोई ये नहीं पूछता, भईया, कौन हो? कहाँ से आए हो? मोहब्बत की दुकान है ये। आप याद रखिए, पांडवों ने भी अन्याय के खिलाफ़ काम किया था। पांडवों ने भी नफ़रत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोली थी। देखिए, पुलिस वाले सिर हिला रह हैं, देखिए, मुस्कुराकर सिर हिला रहे हैं। पुलिस वाले, समझते हैं, ये। भईया, कैमरा इस साइड मत दिखा देना, फंस जाएंगे, गलती से भी मत दिखा देना (मीडिया वालों से कहते हुए)।
कौरव कौन थे, भईया? 21वीं सदी के कौरव बता देता हूँ। 21वीं सदी के कौरव खाकी हाफ पैंट पहनते हैं, हाथ में लाठी लिए होते हैं और शाखा लगाते हैं। उनके साइड में, उनकी तरफ हिंदुस्तान के 2-3 सबसे अमीर अरबपति कौरवों के साथ खड़े हैं। भाईयों और बहनों, नोटबंदी किसने करवाई? गलत जीएसटी किसने लागू की? किसके लिए की गई और किसके खिलाफ़ की गई, ये आप समझिए। नोटबंदी, गलत जीएसटी, नरेन्द्र मोदी जी ने जरूर साइन किया, मगर नरेन्द्र मोदी जी की शक्ति ने गलत जीएसटी, नोटबंदी नहीं लागू करवाई, हिंदुस्तान के 2-3 अरबपतियों की शक्ति ने, इन्होंने प्रधानमंत्री का हाथ चलाया। मानो न मानो, आपको देखने को मिलेगा।उस समय के अरबपति पांडवों के साथ खड़े थे, क्या? अगर खड़े होते तो पांडव जंगल में क्यों बैठे थे? पांडवों को घर से क्यों निकाला, क्योंकि उनके साथ अरबपति नहीं खड़े थे। मगर उनके साथ इस धरती की जनता, इस धरती के किसान, इस धरती के मजदूर, इस धरती के छोटे दुकानदार, इस धरती के स्मॉल और मीडियम बिजनेस वाले सब खड़े थे। ये देश भाईयों और बहनों, ये देश तपस्वियों का देश है। मुझे किसी ने कहा- आप 3,000 किलोमीटर चले। मैंने उससे कहा- तो क्या हुआ? मैं क्या बड़ी बात कर दी? अगर आप जाओ और इस देश के किसी भी किसान से पूछो- भाई, पिछले 4 महीनों में आप कितने किलोमीटर चले हो? वो आपको बता देगा, 3 हजार, 4 हजार, 5 हजार किलोमीटर चला हूँ। हाँ, कन्याकुमारी से दिल्ली नहीं चला हूँ, मगर अपने खेत में चला हूँ। मंडी गया हूँ, मंडी जाकर वापस आया हूँ, फिर मंडी गया हूँ, फिर वापस आया हूँ। खाद खरीदने गया हूँ। बीज खरीदने गया हूँ। मैंने क्या बड़ा काम किया, कुछ नहीं। किसी भी मजदूर से आप पूछ लो, आपको बताएगा। 24 घंटे, मैं सिर पर बोझ रखकर आगे पीछे, आगे-पीछे, आगे-पीछे चलता जाता हूँ। वो ये जो घड़ी है न, फिट-बिट वाली, ये जो मैंने पहनी है, जो किलोमीटर दिखा देती है, वो (किसान- मजदूर) नहीं पहनता है, इसलिए उसको शायद पता नहीं लगता, कितने किलोमीटर चला है।
हमारे साथ यात्री चले हैं, मुझे कहते हैं, भईया, 3,000 किलोमीटर चले। मैंने उनसे कहा- भईया, तुम्हें खाना मिला आज सुबह? भोजन खाया तुमने? कितनी बार भोजन खाया, तीन बार खाया न। वो जो चल रहे हैं, आधी रोटी खा रहे हैं और तुम, क्या बड़ी बात कर रहे हो। वो आधी रोटी पर 3,000 किलोमीटर चलते हैं, तुम भरपूर खाना खाकर, 3,000 किलोमीटर चलकर छाती फैला रहे हो, क्या मतलब है इसका?फिर ये मेरी टी-शर्ट के पीछे पड़ गए। इनको अभी तक समझ नहीं आ रही बात। उनको समझ नहीं आ रही बात, देखो ये कह रहे हैं, टी-शर्ट क्यों पहनी है? ये सफेद टी-शर्ट क्यों पहनी है? इसको सर्दी नहीं लगती? सबसे पहले मैं आपको बताता हूँ क्यों पहना है। यात्रा शुरू हुई, केरल में भयंकर गर्मी, ऐसा लग रहा था, भईया, टी-शर्ट उतार दो। मतलब, उसमें पसीने आ रहे थे, ह्यूमिडिटी बहुत थी, केरल में काफी गर्मी लगी। फिर मैं मध्य प्रदेश में गया, थोड़ी ठंड होने लगी। थोड़ी, मलतब, ज्यादा नहीं। सुबह-सुबह क्या हुआ, 6 बजे हम निकलते हैं। सुबह-सुबह तीन गरीब बच्चे मेरे पास आ गए। फटी हुई शर्ट थी, और जब मैंने उनको ऐसे पकड़ा हाथ लगाया, फोटो के लिए, फोटो लेना चाहते थे। लड़कियाँ थीं, एक इस साइड, एक उस साइड, जैसे मैंने उनको पकड़ा वो ठंड से कांप रही थीं, और फिर मैंने देखा, पतली सी शर्ट थी। उस दिन मैंने निर्णय ले लिया कि जब तक मैं नहीं काँपूंगा, मैं टी-शर्ट ही पहनूंगा। जब कांपना शुरू हो जाएगा, जब मुझे अच्छी ठंड लगने लगेगी, जब जबरदस्त कठिनाई होगी, तो फिर मैं स्वेटर पहनने का सोचूँगा, मगर उससे पहले नहीं करूँगा। मैं उन तीन लड़कियों को मैसेज देना चाहता हूँ, कि अगर आपको ठंड लग रही है, तो फिर राहुल गांधी को भी ठंड लगेगी। जिस दिन आपने स्वेटर पहन लिया, उस दिन राहुल गांधी स्वेटर पहन लेगा। नहीं, नहीं, नहीं, ये बात मत बोलो, ये फिर से आप गलत बात बोलना शुरू कर रहे हो, महात्मा गांधी नहीं हूँ मैं (जनता द्वारा महात्मा गांधी की संज्ञा देने पर कहा)। नहीं सुनो, मेरे जैसे इस देश में करोड़ों लोग हैं। ठीक है, करोड़ों लोग हैं। यहाँ पर क्या हो रहा है, यहाँ पर काम कोई कर रहा है, तपस्या कोई कर रहा है। जैसे मैंने पांडवों की बात की, यहाँ पर युद्ध हुआ था, हजारों लोग मरे थे, वो क्यों हुआ था, क्योंकि उस समय हिंदुस्तान में जो काम कर रहा था, जो तपस्या कर रहा था, उस समय किसान थे, मजदूर थे, आज किसान हैं, मजदूर हैं, छोटे व्यापारी हैं, स्मॉल और मीडियम बिजनेस चलाते हैं, आज हमारे पास माइक्रोस्कोप बनाने वाले लोग आए। आप बनाते हैं, मैन्युफैक्चरिंग है देखो इनकी (भीड़ में से एक व्यक्ति द्वारा अपनी माईक्रोस्कोप बनाने की फैक्ट्री होने के बारे में बताने पर कहा), लोगों को ये रोजगार देते हैं, ये तपस्या करते हैं, 24 घंटे। कोई माईक्रोस्कोप बनाता है, कोई यहाँ पर पोल्ट्री फ़ार्म चलाता है, कोई खेती करता है, गन्ना उगाता है, ये तपस्वी हैं, देश के और खाता कोई और है। जो खाता है, भईया, वो तो दिखते भी नहीं है।
उदाहरण देता हूँ- प्रधानमंत्री बीमा योजना। आपकी जेब में से पैसा निकलता है। आप देते हो और हिंदुस्तान की सरकार आपका पैसा उसमें जोड़ती है। आप सुबह 4 बजे उठते हो, हम 6 बजे उठते हैं, आप 4 बजे उठते हो। 4 बजे उठने के बाद आप काम शुरू करते हो। आपके साथ खेत में आपके इतने छोटे-छोटे बच्चे होते हैं, पूरा परिवार काम करता है। फिर तूफान आता है, आँधी आती है, बारिश होती है, ओले गिरते हैं और फिर आप जाते हो बीमा लेने, कहते हो भईया, चलो नुकसान हो गया, बीमा का पैसा भरा था, पता लगता है, इंटरनेट पर आपको कंपनी का (स्थानीय) दफ्तर ही नहीं मिलेगा। नाम नहीं मिलेगा। फोन करो, कोई जवाब नहीं देगा। आपकी तपस्या कोई और खा गया। जीएसटी के बारे में बताता हूँ, मजेदार बात मैंने सुनी। अगर आप, चाहे वो मैदा हो, गुड़ हो, अगर आप 25 किलो से कम मैदा, गुड़ अपनी दुकान में बेचते हो, छोटे व्यापारी की बात कर रहा हूँ, अगर 25 किलो से कम बेचते हो, तो आप पर जीएसटी लग जाती है और अगर आप 25 किलो से ज्यादा बेचते हो, तो आप पर जीएसटी नहीं है। मतलब छोटे व्यापारी पर जीएसटी, अडानी पर जीएसटी नहीं! क्यों, आपने क्या गलती की? अगर आप पर लग रही है, तो उन पर लगनी चाहिए। अगर उन पर न लगे, तो आप पर न लगे।किसान आए हमारे पास, एमएसपी की बात की। हिमाचल प्रदेश में मैंने आज अखबार में पढ़ा, सेब का पूरा का पूरा व्यापार एक उद्योगपति के हाथ में। जम्मू-कश्मीर जाएंगे, पूरा का पूरा सेब का व्यापार उसी उद्योगपति के हाथ में। नहीं, नहीं हुए भईया, क्योंकि शहीद जो होता है, उसको शहीद का दर्जा मिलता है (जनता द्वारा किसान आंदोलन में किसानों के शहीद होने का जिक्र करने पर कहा)। पार्लियामेंट हाउस में मैंने बात उठाई, कांग्रेस पार्टी ने बात उठाई कि भईया, ये 700 लोग शहीद हुए हैं, इनका नाम तो ले लीजिए, पार्लियामेंट हाउस में। शहीद का दर्जा तो दे दीजिए। प्रधानमंत्री कहते हैं, कोई शहीद नहीं हुआ। हमने मौन करा दिया, वहाँ पर। मैं खड़ा हो गया, मैंने कहा, भईया, हम तो मौन करेंगे। स्पीकर गुस्सा हो गए मुझसे। कहते हैं, देखिए, पार्लियामेंट हाउस में जो 700 किसान शहीद हुए हैं, उनके लिए दो मिनट मौन नहीं रखा जा सकता है। हम जानते हैं कि शहीद हुए हैं, उनके परिवार जानते हैं कि शहीद हुए हैं, हिंदुस्तान की सरकार नहीं जानती है। उनके लिए नहीं शहीद हुए हैं।मगर वैसे मैं उनकी बुराई इतना नहीं करना चाहता, वो जो कर रहे हैं, करने दो उनको। मैं क्या चाहता हूँ, जो तपस्वी है, चाहे वो किसान हो, मजदूर हो, छोटा व्यापारी हो, जो वो तपस्या करे, गीता में लिखा है। क्या लिखा है, गीता में तपस्या के बारे में- तपस्या करो और फल मत देखो। मगर गीता में ये नहीं लिखा है कि तपस्या करो और फल नहीं मिलेगा। तो गीता में लिखा है- तपस्या करो और ये देश तपस्या कर रहा है और इस देश की सरकार को उस तपस्वी की मदद करनी चाहिए। उस तपस्वी की रक्षा करनी चाहिए। ऐसा हिंदुस्तान मैं देखना चाहता हूँ। यात्रा का यही लक्ष्य है। यात्रा का लक्ष्य ये है, यात्रा देश को ये बता रही है कि आपकी तपस्या ज़ाया नहीं जानी चाहिए। मैं जानता हूँ कि जिस दिन हिंदुस्तान के किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी, इनको इनकी तपस्या का फल मिल जाएगा, उस दिन इस देश के सामने कोई देश नहीं खड़ा हो सकता।ये आप अपने मोबाइल फोन के पीछे देखो, इस पर लिखा है, ‘मेड इन चाइना’। पुलिस वालों के जूतों के नीचे लिखा होगा, ‘मेड इन चाइना’। शर्ट के पीछे, ‘मेड इन चाइना’, माइक्रोस्कोप के नीचे, ‘मेड इन चाइना’। तंग आ गया हूँ, मैं ‘मेड इन चाइना’ से। जहाँ देखो, ‘मेड इन चाइना’, ‘मेड इन चाइना’। मैं चाहता हूँ वहाँ पर बीजिंग में एक चीन का युवा फोन देखो, उस पर लिखा हो, ‘मेड इन कुरुक्षेत्र’। ऐसा हिंदुस्तान चाहता हूँ और जिसने अंबाला में माइक्रोफोन बनाया, उसकी जेब में चीन के युवा के पैसे आएं, ये चाहता हूँ, मैं। मगर सबसे पहला कदम, डर और नफ़रत को मिटाने का है।
देखिए, हरियाणा में युद्ध हुआ था, पांडवों ने डर और नफ़रत को मिटाने का काम किया था। जैसे मैंने कहा- नफ़रत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोली थी और ये मैं नहीं कह रहा हूँ। ये मत सोचिए कि ये मेरा नारा है। ये मेरा नारा नहीं, उनका नारा है। ये पांडवों का नारा है, ये भगवान राम का नारा है, ये इस देश का नारा है और हजारों सालों से ये नारा चल रहा है। ये कुछ नया काम नहीं किया मैंने। आखिरी बात कहना चाहता हूँ और ये आपको मालूम होना चाहिए। देखिए, जब भी मैं चल रहा हूँ, जहाँ भी मैं जाता हूँ। राजस्थान में, ‘जय सियाराम’। अच्छा, ये आरएसएस वाले, ‘हर-हर महादेव’ तो कभी नहीं कहते। आप देखो, नोट करो, कभी नहीं कहते ये। क्यों नहीं कहते? नहीं, मैंने सोचा इसके बारे में, ये क्यों नहीं कहते, ‘हर-हर महादेव’ क्यों नहीं कहते- क्योंकि शिव जी तपस्वी थे और ये (भाजपा) हिंदुस्तान की तपस्या पर आक्रमण कर रहे हैं, इसलिए ये ‘हर-हर महादेव’ नहीं कह सकते। मगर बात मैं ‘जय सियाराम’ की कर रहा हूँ। यहाँ पर ‘राम-राम’ सुना मैंने, ‘राम-राम’, ‘जय सियाराम’। अब ‘जय सियाराम’ ये कभी नहीं कहते। इन्होंने सीता जी को नारे से निकाल दिया। उठाकर बाहर फेंक दिया। कहा- हम नहीं कहेंगे। ये हमारी हिस्ट्री, हमारे संस्कार, हमारे इतिहास के खिलाफ काम किया इन्होंने और जब भी कांग्रेस पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता, आरएसएस के कार्यकर्ता के सामने आए, उससे कहो, तुम ‘जय सियाराम’ कहोगे, और उससे ‘जय सियाराम’ कहलवाओ, क्योंकि जितने जरूरी राम थे, उतनी ही जरूरी सीता थी। तो आप सब यहाँ आए, इतने प्यार से आपने मेरी बात सुनी, दिल से आपका धन्यवाद करना चाहता हूँ और आज एक कमी रह गई, हमने आज वो जो बीजेपी के लोग करते हैं, देखिए, उनके संगठन में महिलाएं तो होती नहीं हैं, अलाउड ही नहीं है। अभी तक नहीं समझ आया मुझे, उनके संगठन में महिलाएं क्यों नहीं हैं, वो अलग बात है, मगर आज हमने पूरा दिन महिलाओं का कर दिया। तो जो हमारे पुरुष हैं, उनको आज थोड़ी मुश्किल हुई,
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