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वीडियो सुने: “भारत जोड़ों यात्रा” अब तक आधा पड़ाव पार कर चूका, इसमें महंगाई का मुद्दा सबसे ज्यादा आया-कन्हैया लाल

अजीत सिन्हा /नई दिल्ली
कांग्रेसी नेता कन्हैया कुमार ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि सबसे पहले तो मैं भारत जोड़ो यात्रा की तरफ से, सारे यात्रियों की तरफ से भारत यात्री, अतिथि यात्री, इंटर स्टेट यात्री और सेवा दल के जो कार्यकर्ता हैं और वो सारे लोग जो किसी कैटेगरी में नहीं है, लेकिन इस यात्रा में चल रहे हैं एक यात्री के तौर पर। आप सभी पत्रकार साथियों का अभिनंदन करता हूं और आप सब लोग आज आए हैं, वैसे तो पत्रकारिता में कोई दिन छुट्टी का होता नहीं है, लेकिन आज हमारी भी छुट्टी है (भारत जोड़ो यात्रा), रविवार भी है और आप लोग मेरे ख्याल से हिमाचल से भी आए होंगे। तो बड़ी मुश्किल रही होगी, फिर भी आप आए हैं, इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और मैं बस आपसे कुछ चीजें यात्रा को लेकर साझा करना चाहता हूं, बाकी आप जो भी प्रश्न करेंगे, उनका जवाब देंगे।

एक तो ये यात्रा हमारी उम्मीदों से बढ़कर अपने उद्दश्यों को पूरा करने में कामयाब होती हुई दिख रही है। जैसे जब हम लोग 7 सितम्बर, 2022 को इसका प्रोपर इनोग्रेशन हुआ, उद्घाटन हुआ, तो बहुत सारे सवाल थे मन में, लोग आएंगे कि नहीं आएंगे, लोगों का रिस्पोंस क्या होगा। हम लोग अपने ऊपर भी सवाल खड़ा कर रहे थे कि कैसे 25 किलोमीटर चलेंगे क्योंकि किसी को भी इतना चलने की आदत है नहीं और हम लोग फॉरेस्ट गंप तो हैं नहीं कि एक जूते का लैस बांधकर दौड़ना शुरु किया, तो दौडते रहेंगे, तो ये सारे सवाल मन में थे। लेकिन एक वो बात जो स्कूल में पढ़ा करते थे कि कई बार इंसान पैरों से नहीं हौंसलों से चलता है, वो इस यात्रा में जाकर सही साबित हुआ है।

कैसे यात्रा के 60 से ज्यादा दिन कट गए सचमुच पता नहीं चला। तकलीफें हुई, अलग-अलग तरह की तकलीफें लोगों को हुई, लेकिन अब लोग अपने शारीरिक संघर्षों से ऊपर उठ चुके हैं, मतलब कभी तो ऐसा होता है कि मजाक-मजाक में दैनिक यात्रा पूरी हो गई है और अब अपने कैंप में वापस लौटना है, लोगों को इतना चलने की आदत है कि गाड़ी सामने हो, बस सामने हो, फिर भी पैदल चलने लगते हैं। तो बीच में एक जब छुट्टी होती है, तो कई सारे लोग घर गए, बहुत सारे यात्री बीच में, दीपावली थी, तो लोग अपने घर गए, लेकिन मैं उस वक्त भी कैंप साइड में ही था। तो कुछ जो लोग घर से लौटकर आए तो उन्होंने बड़ी मजेदार कहानी सुनाई। हम लोग जा रहे थे मार्केट मैं, तो घर वालों ने कहा कि हम लोग तो कार में चलते हैं, तुम तो पैदल चलो, आराम से 20-25 किलोमीटर तो चल ही लेते हो, अब 20-25 किलोमीटर चलने में कोई दिक्कत नहीं है। तो आज भी जब मैं इस प्रेस वार्ता के लिए आ रहा था, तो मेरे कुछ दोस्तों ने कहा कि इंतजार किस बात का है, शुरु कर दो, 12-13 किलोमीटर है 24 अकबर रोड़ पहुंच जाओगे मॉर्निंग सेशन में वैसे भी तुम लोग 15 किलोमीटर चलते ही हो।

तो ये यात्रा मेरे ख्याल से बहुत सहज हो चुकी है, अब। भारत यात्रियों के लिए भी बहुत सहज हो गई है और ये जो बार-बार मन में सवाल था कि लोग आएंगे कि नहीं आएंगे, लोग भी बहुत सहज हो गए हैं। दो तरह के लोग हैं, मैं आपको साफ-साफ बता दूं। एक तो वो लोग हैं जो पार्टी से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं और एक वो लोग हैं जो पार्टी से नहीं जुड़े हैं, लेकिन इस यात्रा से जुड़ चुके हैं और उन लोगों को देखना और उनके अनुभव के आधार पर ही कुछ चीजें मैं आपसे साझा करना चाहता हूं कि जो लोग अपने घरों में खड़े हैं, अपनी छतों पर, दुकान के आगे, किसी कॉर्नर पर, जहाँ गाँव शुरु होता है, उसके मुख्य द्वार के पास, मोबाईल से वीडियो बना रहे हैं। उनकी आंखों को पढ़ने से इतना महसूस होता है कि ऐसी यात्रा की जरुरत थी इस देश को और यही कारण है कि चाहे जितनी भी चुनौतियां रही हों, यह यात्रा स्वाभाविक तौर पर उन सारी चुनौतियों को एक-एक करके पार करते जा रही है। कई ऐसी परिस्थितियां थी, जैसे जहाँ गर्मी बहुत होनी थी, ऐसी अपेक्षा थी कि बहुत गर्मी होगी, वहाँ बारिश हो गई। जहाँ लगा कि यहाँ पर चलना बहुत मुश्किल होगा, कई सारी कठिनाईयां होगी, वहाँ पर कुछ ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई की सब राह आसान हो गई। तो एक बात जो कुल मिलाकर हम इस यात्रा के बारे में कह सकते हैं कि यह यात्रा अपने पहले पड़ाव को पूरी तरह से पूरा कर चुकी है और वो पहला पड़ाव है कि यात्री यात्रा के लिए सहज हो चुके हैं। यात्रा देश के लिए सहज हो चुकी है और देश यात्रा के लिए सहज हो चुका है। मैं आपसे कोई शिकायत नहीं कर रहा हूं क्योंकि जैसे प्रोफेशन होता है और आपका भी प्रोफेशन है, हर किसी की मजबूरी होती है, लेकिन आप जानते हैं कि यात्रा को जितना दिखाया जाना चाहिए, जितना बताया जाना चाहिए, उतना दिखाया और बताया नहीं गया है। फिर भी एक खास बात आप सारे लोगों ने महसूस की कि जब मोबाईल, टीवी नहीं था, तब भी समाज में संवाद था, कम्यूनिकेशन था और सिर्फ इंसानों में ही कम्यूनिकेशन नहीं होता है, पक्षियों में भी कम्यूनिकेशन होता है। आज भी हमारे समाज में वो कम्यूनिकेशन मौजूद है और इस यात्रा में चलते हुए हमें महसूस हुआ कि भले बहुत ना दिखाया गया हो, लेकिन इस देश के लगभग हर व्यक्ति को ये पता है कि यात्रा हो रही है। इसका मतलब कि हमारा Internal communication beyond WhatsApp, टीवी, अखबार आज भी जिंदा है। देश की चाय के नुक्कडों पर, बसों में, ट्रेनों में, खेतों में, खलिहानों में, दफ्तरों में हर जगह किसी ना किसी रुप में, किसी ना किसी दिन सुबह या शाम यह चर्चा निकल आती है कि भारत यात्रा हो रही है। तो भारत यात्रा ने अपना पहला पड़ाव पूरा कर लिया है। पूरे देश को पता है कि उनके सवालों को लेकर ये यात्रा हो रही है।ये जो हमने कहा उनके सवाल, ये भी हमारे दिमाग में जो था, वो अपनी जगह पर है। लेकिन यात्रा के दौरान जो हमने कलेक्ट किया, वो ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रासांगिक है। उनके सवाल कहने का मतलब है कि जब महिलाएं यात्रा में आकर जुड़ती हैं और मैं बार-बार कह रहा हूं कि जो हमारी पार्टी वर्कर नहीं हैं, वो बोलती हैं महंगाई के बारे में कि 400 का सिलेंड़र 1,000 रुपए से ज्यादा का हो गया है। घर चलाना मुश्किल हो रहा है। जो नौजवान जुड़े हुए हैं आपके स़ॉफ्टवेयर इंजीनियर के पेशे से या जो सर्विस सेक्टर से जुड़े हुए हैं, जिस तरह से उनकी नौकरियां कम हो गई हैं, जाब की इनसिक्योरिटी बढ़ी है, उसके बारे में वो बात करते हैं। जो स्टूडेंट पढ़ रहे हैं, तैयारियां कर रहे हैं, रास्ते में कई ऐसी प्राईवेट एकेडमी मिली, जहाँ आर्मी में भर्ती की ट्रेनिंग दी जाती है। वहाँ के बच्चे बाहर निकल कर आए और बात की। सुबह हम लोग भी वॉक करते हैं और आप देखेंगे इस देश में संस्कृति मौजूद है कि सड़क के किनारे आपके दौड़ते हुए नौजवान मिलेगें। तो वो यात्रा से आकर जुड़ते हैं और वो बेरोजगारी के बारे में बताते हैं। किसान बड़े पैमाने पर अलग-अलग इलाके के किसान अपनी अलग-अलग समस्याओं को लेकर जैसे कपास की खेती करने वाले किसान, सोयाबिन की खेती करने वाले किसान, वो सब आकर अपनी परेशानी बता रहे हैं। गन्ना की खेती के किसान बड़े पैमाने पर आकर अपनी परेशानी बताई। तो महिलाएं, किसान, नौजवान, सिविल सर्विस सेक्टर में काम करने वाले लोग हैं या जो प्रोफेशनल हैं, जिनके पास ऑलरेडी स्कील है, जिन्होंने बीएड की डिग्री कर रखी है, जिन्होंने बीई कर रखी है, बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग कर रखा है, उनको किस तरह से जोब नहीं मिल रही है। जो आर्मी एस्पिरेंट हैं, उनको किस तरह से जॉब नहीं मिल रही है। तो ये मेजर इशू निकल कर सामने आए हैं। नारी सुरक्षा, किसान की फसलों का दाम, मजदूरों के सही मजदूरी, नौजवानों को रोजगार, महंगाई ये सारे मुद्दे जो हैं, भारत जोड़ो यात्रा में प्रोमिनेंटली हम लोगों को पता चला है और भारत जोड़ो यात्रा जो एक उद्देश्य लेकर चली थी, क्योंकि बार-बार ये सवाल किसी ना किसी रुप में पूछा जाता है। आज हमारे एक पत्रकार दोस्त ने फोन किया और कहा कि कितना जोड़े, भारत कितना जोड़े? तो हम बोले कि टेलर की दुकान चलाते हैं क्या कि 2 मीटर जोड़ दिया, साढ़े तीन मीटर जोड़ दिया। कितना टूटे हुए हैं आप ये सवाल पहले खुद से पूछिए, फिर पता चलेगा कि कितना जुड़ा है। जब यही महसूस नहीं हो रहा है कि कितना टूटा हुआ है, तो क्या जोड़ रहे हैं, ये भी पता नहीं चलेगा।हमने कहा कि जब आपको ये महसूस होता है कि आपने अपनी पूरी जिंदगी किसी एक प्रोफेशन को दी, लेकिन चैन नहीं है, सुख नहीं है, शांति नहीं है, हर वक्त दिमाग पर ये प्रेशर रहता है कि कब नौकरी चली जाएगी। तो यह जो असुरक्षा है, इस असुरक्षा की भावना को खत्म करके सुरक्षा की भावना को जोड़ना चाहते हैं। ये भारत जोड़ो यात्रा का लक्ष्य है। जो नौजवान अपनी पढाई कर रहा है, उसकी जो उम्मीद है, जो उम्मीद टूटती है, जब भर्ती नहीं निकलती है या प्रश्न पत्र लीक हो जाता है, उस टूटी हुई उम्मीद को जोड़ना इस भारत जोड़ो यात्रा का लक्ष्य है। जो महिलाएं आ रही हैं, उस भावनात्मक तस्वीर को आप सबने देखा होगा कि कैसे, ये आसान बात नहीं है किसी गैर मर्द के साथ उतनी सहजता से कोई महिला मिले। तो महिलाओं को जो आज नारी सुरक्षा की स्थिति है, जिस तरह से बलात्कारियों की प्रशंसा की जा रही है, ऐसी परिस्थिति में महिलाओं की उस टूटी हुई उम्मीद को जोड़ना ये भारत जोड़ो यात्रा का लक्ष्य है और हमारा ये मानना है कि जितनी सहजता से ये यात्रा आगे बढ़ रही है और लोगों के मुद्दों को कनेक्ट कर रही है, लोगों की आंखों में देखने से ये बार-बार महसूस होता है कि इस यात्रा की जरुरत थी। भारत जोड़ो ने अपने पहले पड़ाव को पूरा किया है। भारत जोड़ो को अपने दूसरे पड़ाव को भी पूरा करना है और दूसरा पड़ाव ये है कि हम इस देश की सरकार को, इस देश की सत्ता को जो देश के लोगों के मुद्दे हैं, उस पर उनको जवाबदेही तय करनी पड़ेगी। ये भारत जोड़ो का दूसरा पड़ाव होगा और हमें पूरी उम्मीद है कि उस पड़ाव को भी हम लोग पूरा करेंगे।

आप सब लोग आए, हमारी बात सुनी, इसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, बहुत- बहुत धन्यवाद।

आप सब प्रश्न पूछेंगे, उनका जवाब दिया जाएगा।

भारत जोड़ो यात्रा के कारण श्री राहुल गांधी के प्रति नजरिए में बदलाव के बारे में पूछे एक प्रश्न के उत्तर में श्री कन्हैया कुमार ने कहा कि ये बहुत ही मौजू प्रश्न आपने पूछा है, मैं इसको ऐसे कहूँगा। क्योंकि पहले जब मैं लोगों से बात करता था और कहता था कि हम भारत जोड़ो यात्रा में जा रहे हैं, तब राहुल जी तो हमारे नेता हैं, हमारे दोस्तों को भी ये भरोसा नहीं होता था कि हम लोग 25 किलोमीटर रोज पैदल चलेंगे। यहाँ से शुरु हुआ है ये पूरा कन्वर्सेशन, जो आप सवाल पूछ रहे हैं और राहुल जी को लेकर तो पता नहीं क्या-क्या कहा गया है।एक पत्रकार ने हमको कहा कि इस यात्रा से राहुल जी की छवि सुधरेगी। हमने कहा कि आप गलत तरीके से बात को रख रहे हैं। राहुल जी की छवि सुधरेगी नहीं, राहुल जी की जो एक्चुअल रियलिटी है न, उनकी जो वास्तविकता है, वो देश के आगे दिखेगी। वैसे ही जैसे कहते हैं न, कि हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरुरत नहीं होती है।व्हाट्सएप पर जो मैसेज आया है, टीवी डिबेटों में खड़ा करने का जो एक चरित्र और जो छवि खड़ी करने की जो कोशिश की गई है, उसको जनता अपनी आँखों से देखकर समाप्त कर लेगी। अब उसके पास उसका फर्स्ट हैंड इंफोर्मेशन होगा, जो उसने अपनी आँखों से देखा है क्योंकि इस यात्रा में जितनी भी बातें राहुल जी को लेकर बोली जातीं थी- सीरियस नहीं हैं, विदेश चले जाएंगे, पैदल नहीं चलेंगे, छुट्टी मनाने चले जाएंगे, छुट्टी होगी तो दिल्ली आ जाएंगे। अरे कैसी बातें करते हो? कंटेनर में थोड़े ही रहना है, कैसी बातें करते हो? 25 किलोमीटर पैदल थोड़े ही चलेंगे, ये सारी चीजें समाप्त हो गई हैं।हम कहते हैं उनकी छवि बिगाड़ने के लिए करोड़ों रुपया खर्च करना पड़ा। उनकी जो वास्तविकता है न, उसके लिए उनको निकलकर रोड़ पर पैदल चलना पड़ा। कितना फर्क है। बस आप जनता के बीच में आप गए और आपको लेकर जितनी कोशिशें थीं, उन सब पर पानी फिर गया औऱ आज वही लोग, मैं आपको यह कहना चाहता हूँ कि जो हमको सवाल पूछते थे न कि चलोगे, कि नहीं चलोगे, राहुल जी को लेकर तो उनके सारे सवाल अपने आप समाप्त हो गए हैं।इतनी मार्मिक तस्वीरें आती हैं, बच्चों के साथ, महिलाओं के साथ, बूढ़ों के साथ और इस देश के वो लोग, जो महसूस करते हैं कि उनकी उम्मीदें टूट रही हैं, चाहे वो किसान हो, नौजवान हों, महिलाएं हों, चाहे इस देश की सिविल सोसाइटिज़ हों, रिटायर्ड जज हों, फिल्म में काम करने वाले लोग हों, पत्रकार हों, लेखक हों, साहित्यकार हों और चाहे वो फैमिली, जिनके परिवार से किसी न किसी की शहादत हुई है। आप लोगों को मालूम होगा कि हम जिस भी स्टेट में जा रहे हैं, उस स्टेट से जुड़ा हुआ एक कहते हैं न कि जिस मुद्दे को लेकर समाज में बड़ी बहस हुई हो, या जिस मुद्दे ने इस समाज को बहुत ज्यादा उद्धेलित किया हो, उस मुद्दे से संबंधित परिवार भी हमारी यात्रा से आकर जुड़ा है। मसलन, आप जानते हैं कि कर्नाटक में गौरी लंकेश जी का परिवार आया। तेलंगाना में रोहित वेमुला जी का परिवार आया और आने वाले समय में भी वो सारे लोग, जिनको लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है, न्याय के लिए वो लोग इस यात्रा में शामिल हो रहे हैं।

तो ये जो प्रश्न आपने पूछा कि राहुल जी का कद बड़ा होगा। मैं समझता हूँ कि एक बात कही जाती है न कि बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल। रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥ ये उनका कद बड़ा होगा, छोटा होगा ये प्रश्न नहीं है, उनकी जो वास्तविकता है, उनकी जो रियलिटी है, उनको लेकर जो एक झूठ का जो वातावरण, एक आवरण जो खड़ा किया है, वो अपने आप धराशायी हो गया है। वो सारी- चीजें सीरियस नहीं है, विदेश चले जाएंगे, छुट्टी पर चले जाएंगे, कंसिस्टेंसी नहीं है, वो सारे सवाल निराधार साबित हुए हैं।भारत जोड़ो यात्रा में सामने आए मुख्य मुद्दों को लेकर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री कन्हैया कुमार ने कहा कि महंगाई और बेरोजगारी, ये दो ऐसे सवाल थे, जो हर जगह, मतलब आप यूँ समझ लीजिए, जैसे हम कर्नाटक में हैं, तो वहाँ एक समूह वो उन राज्यों से आया, जहाँ हमारी यात्रा नहीं जा रही है, तो वो प्रतिनिधित्व जो है, जो डेलिगेशन था, वो भी यही सवाल उठा रहा था और महंगाई को लेकर एक्रोस द बोर्ड सारे लोगों ने सवाल किए, ये दो मुद्दे प्रॉमिनेंट हैं।इसके अलावा साउथ में हमने देखा कि एक और सवाल जो कि अब हम जब महाराष्ट्र में आ गए हैं, तो ये सवाल नहीं है, लेकिन साउथ में ये सवाल कहीं न कहीं बार-बार आ रहा था, फेडरलिज्म का। साउथ में इस सवाल को भी बहुत सारे लोगों ने आकर उठाया कि हमारे साथ कहीं न कहीं सेंटर पूरी तरह से न्याय नहीं कर रहा है। ये जो पॉलिटिकल डेलीगेशन होता था, उसमें कई लोगों ने सवाल उठाया, जो मुझे लगता है कि अलग सवाल है।

बाकी जो दो सबसे कॉमन मुद्दे अगर आप कहेंगे, तो वो महंगाई और बेरोजगारी का सवाल है फिर स्पेसिफिक समुदाय के सवाल आए, जैसे किसानों के सवाल, महिलाओं के सवाल और जो स्पेसिफिक चीजों की तैयारी करते हैं, जैसे बीएड किए हुए जो ट्रैंड टीचर हैं, वो कई राज्यों में मिले कि उनकी बहाली नहीं हुई। कई जगह संविदाकर्मियों का ग्रुप आकर मिला कि कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने की क्या परेशानी होती है। खासकर लॉकडाउन के बाद ये रियलाइज हुआ है कि अचानक से मैनेजमेंट कॉल करता है और वो कहता है कि कल से आप नौकरी पर मत आइए, तो उसकी पूरी की पूरी जिंदगी अंधकार में चली जाती है।उसने ईएमआई पर अपना वॉशिंग मशीन से लेकर, कार से लेकर घर तक ले रखा है, तो वो ईएमआई कैसे भरेगा? और आत्म हत्या एक बहुत ही एक दुखद परिस्थिति हमारे देश में पैदा कर रहा है कि किसानों की आत्महत्या से मामला अब जवानों की आत्महत्या तक पहुंच गया है। बेरोजगारी के कारण भी लोगों ने आत्महत्या शुरु कर दी है। कोरोना के दौरान लोगों को फैसिलिटीज नहीं मिली, ऑक्सीजन नहीं मिला, बैड नहीं मिला, मुआवजा नहीं मिला, ये सवाल भी कई सारे लोगों ने आकर बताए हैं। भारत जोड़ो यात्रा के संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री कन्हैया कुमार ने कहा कि मैं बार-बार कह रहा हूँ और हमारे सारे सीनियर लीडर हैं कि इस यात्रा का उद्देश्य राजनीतिक भी है, सिर्फ राजनीतिक ही नहीं है। ये बात न, हम लोग बार-बार इसको क्लियर कर रहे हैं कि अगर हम इस यात्रा को सिर्फ राजनीतिक ही मानेंगे, तो राजनीतिक बात भी उसमें सारे डायमेंशन कवर नहीं होते हैं, सिर्फ चुनाव की बात होती है, बाकी सारे जो डायमेंशन हैं, उन्हें छोड़ दिया जाता है। हमारी नीति जो थी, सबसे पहले जहाँ से ये यात्रा शुरु हुई कि लोग परेशान हैं, लोगों के अंदर गुस्सा है, लोगों के भीतर डर पैदा किया जा रहा है, नफ़रत पैदा की जा रही है, इससे देश भावनात्मक रुप से कमजोर होता है और कोई भी देश जब भावनात्मक रुप से कमजोर होता है, जब वो आपस में युनाईटेड नहीं होते हैं, तो बाकी सारी प्रोग्रेस की बात पीछे चली जाती है और जो हम लोग सवाल उठा रहे हैं एक मजबूत विपक्ष के तौर पर, जो हमारी रेस्पॉन्सिबिलिटी है, वो भी लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है कि हम उनके लिए लड़ रहे हैं। तो जब आपके करंट कम्युनिकेशन के टूल्स काम नहीं कर रहे हों, तो कहते हैं न, बैक टू बेसिक्स, बैक टू क्लासिक और ये बैक टू बैसिक या बैक टू क्लासिक जो है, हम कहते हैं कि ये एक गांधीयन मैथड है कि गांधी जी दांडी यात्रा पर चले या इस देश में कई बार यात्राएं की गईं, तो उसमें मुख्य सवाल ये था कि हम लोगों के बीच में जाएंगे, हम उनके सवालों को लेकर लड़ रहे हैं, उनको ये भरोसा होगा और हम अपनी सुनाएंगे नहीं, उनकी सुनेंगे। वहाँ से जब हम लोगों ने ये यात्रा शुरू की जो पॉलिटिकल स्ट्रेटजी एक मात्र थी, कि जन को तंत्र से जोड़कर रखना। जन और तंत्र जो हैं, वो अलग न हो जाएं। तंत्र जो है, वो जन पर हावी न हो जाए। सिर्फ इतनी सी बात थी, इसलिए हम उन राज्यों में भी गए, जिन राज्यों में हम कहीं न कहीं सरकार चलाने में सहयोगी हैं, जैसे तमिलनाडु, वहाँ सरकार चलाने में हम सहयोगी हैं। क्योंकि मुद्दे जो हैं, वो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कुछ कॉमन हैं। चाहे हमारी सरकार हो या किसी और की सरकार हो। तो प्राईमरी टास्क ये था कि उन इशूज को लेकर लोगों के बीच में जाना। उनकी बातों को सुनना। साउथ से नॉर्थ की तरफ जब हम बढ़ रहे हैं, तो कुछ मुद्दे ऐसे हैं, जो पूरी तरह से बदल गए। जैसे मैंने आपको कहा कि साउथ में फेडरलिज्म का क्वेश्चन था, लेकिन जब हम नॉर्थ की तरफ आ रहे हैं, तो इस सवाल को अब कोई उठा नहीं रहा है, लेकिन जो बाकी सवाल हैं, वो एज इट इज हैं, जैसे महंगाई का सवाल, बेरोजगारी का सवाल, किसानों को उनकी फसल के दाम न मिलने का सवाल, नारी सुरक्षा का सवाल, ये सवाल हैं जो हर जगह मिलते जा रहे हैं। अब ये सवाल कैसे हल होंगे, उनको कैसे पूरा किया जाएगा, उस पर हम लोग एक बात कर रहे हैं कि अगर हम इस नीति को बदल दें कि आप टैक्स ले रहे हैं, देश के सभी लोगों से और बेल आउट कर रहे हैं, केवल अपने दोस्तों को। नारा लगा रहे हैं देश का, खजाना भर रहे हैं दोस्त का। इस नीति को अगर बदल दिया जाए तो बड़े पैमाने पर रोजगार क्रिएट किया जा सकता है और महंगाई का भी जहाँ तक सवाल है कि सरकार अगर अपनी भूमिका नहीं निभाएगी, तो स्वभाविक रुप से पूरी तरह से अगर आप मार्केट के भरोसे हर चीज छोड़ देंगे, तो जनता का दायित्व कौन उठाएगा और फिर जनता का दायित्व सरकार न उठाए, तो सरकार का दायित्व जनता क्यों उठाए? अगर आप हमारे टैक्स के पैसे से मुझे शिक्षा नहीं देंगे, तो हमारे टैक्स के पैसे से जो आप साढ़े आठ हजार करोड़ का प्लेन क्यों खरीदेंगे? अब आप देखिए, कि एलआईसी में देश के आम लोगों का पैसा जमा है। एलआईसी का सबसे ज्यादा शेयर जो है, वो अडानी जी के पास है, तो हमारा पैसा लेकर आप अमीर हो रहे हैं और हमारे पास न जॉब की गारंटी है, न हमारे पैसे की गारंटी है, न जो हमारी जरुरत की चीजें हैं, उनको हम एक्सेस कर पा रहे हैं, रोज महंगाई बढ़ रही है। तो ये चीजें हम लोगों को समझ में आ रही है, तो उसमें ये समझ में आता है कि नॉर्थ से लेकर साउथ तक पॉलिटिकल मोबिलाइजेशन किया जा सकता है अगर हम सोशल डायवर्सिटी को इंटैक्ट रखें और जो डिवीजन क्रिएट किया जा रहा है, on the basis of identity उस पॉलिटिकल चैलेंज को अगर हम लोग बीट कर सकें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कथित रुप से स्वयं को 2-3 किलो गालियाँ मिलने के बयान के संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री कन्हैया कुमार ने कहा कि एक तो नरेन्द्र मोदी जी बहुत कुछ कहते हैं। आजकल हम लोग उन चीजों पर जा नहीं रहे हैं, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा से ये सवाल अलग है, लेकिन मैं भारत जोड़ो यात्रा से जोड़कर इस सवाल का जवाब आपको देता हूँ। भारत जोड़ो यात्रा को लेकर आप में से एक साथी ने सवाल किया कि राहुल जी की छवि पर लोगों का क्या नजरिया है। तो हमने यही कहा न कि उनकी जो वास्तविकता थी, वो वास्तविकता भी लोगों को नहीं मालूम थी। मोदी जी का जो झूठ है न, वो भी लोगों को मालूम है। मसलन, बीजेपी के प्रेसीडेंट ने हिमाचल चुनाव के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री जी ने फोन करके यूक्रेन युद्ध रुकवा दिया। एक बागी विधायक प्रधानमंत्री के फोन से बैठ नहीं रहा है, एक एमएलए का कैंडिडेट प्रधानमंत्री के फोन से नहीं बैठा और यूक्रेन का युद्ध रुक गया! तो झूठ का कोई सिर-पैर नहीं होता है, साहब। प्रधानमंत्री जी हमेशा झूठ का इस्तेमाल करते हैं, देश के बेसिक

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