अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सबको हमारा नमस्कार! 3 दिन से ज्यादा हो गए हैं, जिसको सदी का सबसे भयावह रेल हादसा कहा जा रहा है और आज भी सरकार की तरफ़ से सिर्फ और सिर्फ ध्यान भटकाने का काम किया जा रहा है, लेकिन कुछ बोलने से पहले कुछ आंकड़े आपके सामने रखना ज़रूरी है और क्या कोशिशें चल रही हैं… उसके बारे में बात करनी चाहिए। भारतीय रेल रोज़ाना करीब 2.2 करोड़ से ज़्यादा यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाती है… मतलब ऑस्ट्रेलिया की पूरी जनसंख्या के लगभग लोग इस देश की रेल की पटरियों से रोज़ सफ़र करते हैं और ऐसे लोगों के सफ़र की चिंता करने के बजाय मोदी सरकार दोष मढ़ने, कहानियाँ रचने और इन्द्रजाल बनाने में लगी हुई है। 3 दिन पहले 288 लोग मतलब क़रीब 300 लोगों की जान चली गई है और आज भी इस सवाल का जवाब नहीं है लेकिन सरकार किसी भी तरह की ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ने में मशगूल है। तो कल जब हम और आप रेल से सफ़र कर रहें हो तो याद रखियेगा आप अपने रिस्क पर हैं क्योंकि कल किसी की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी।
कहाँ नैतिकता लेकर, नैतिक जिम्मेदारी का वाहन करते हुए सरकार को और उनके मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए और कहां नई-नई थ्योरी, एक इंद्रजाल रच दिया गया है deliberate interference मतलब जानबूझकर हस्तक्षेप किया गया इसलिए ट्रेन डीरेल हो गई और अब सीबीआई को जांच सौंपी जाएगी, लेकिन अगर ये दुर्भाग्यपूर्ण नहीं होता तो शायद हास्यास्पद होता कि जब अभी राहत का, बचाव का कार्य चल ही रहा था तो एक मालगाड़ी भी वहीं पर डीरेल हो जाती है तो ये भी साजिश थी, ये भी नेहरू जी की गलती थी,ये भी कांग्रेस की सरकारों की गलती थी कि अभी राहत कार्य चल रहा है और वहां पर एक ट्रेन और डीरेल हो जाती है, जवाबदेही का ‘ज’ नहीं है इस सरकार में, अब सीबीआई को जांच सौंपी गई है और सवाल आज ये है कि क्या सीबीआई और एनआईए जैसी एजेंसीज़ वाकई में कुछ कर पाएंगी।लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है – आपको याद होगा कैसे 2016 में कानपुर ट्रेन हादसा हुआ था जिसमें 152 लोगों की जान चली गई थी और फिर 2017 में कुनेरु आँध्रप्रदेश में ट्रेन हादसे में 40 लोगों की मौत हुई। इन दोनों ही हादसों में आतंकी साज़िश की कहानी रच कर सरकार ने जाँच NIA को सौंपी थी। लेकिन आज सात साल बाद भी NIA को साज़िश का कोई पुख़्ता सबूत नहीं मिला और कोई भी chargesheet दायर नहीं हुई है, मतलब उन 192 लोगों की मौत का ज़िम्मेदार कौन है ये आज भी तय नहीं हो पाया है। सरकार ने सिर्फ़ अपने ऊपर से ध्यान हटाकर NIA जैसी संस्था को इसमें तब और CBI को अब शामिल किया है। बल्कि असलियत यह है कि ये हादसे और ये मौतें सिग्नल सिस्टम की विफलता, इंटरलॉकिंग की विफलता, ट्रैक के रखरखाव के फंड में कटौती, सरकार की सुरक्षा के प्रति उदासीनता और ग़लत प्राथमिकताओं का नतीजा है, लेकिन सीबीआई और एनआईए जैसी उत्कृष्ट एजेंसीज़ जो एक्चुअली इंटरपोल की नोडल एजेंसीज़ यहां पर हैं, जिनका काम है बड़े-बड़े अपराधों की तफ़्तीश करना उनको इसमें शामिल करके अपने ऊपर से ध्यान भटकाया जाता है। ये पूरी तरह से साफ़ है कि Commissioner of Railway Safety CRS को इस जाँच से दूर क्यों रखा जा रहा है। उनके पास टेक्नीकल एक्सपर्टीज हैं इसकी जांच करने के लिए, क्यों नहीं उनसे जांच कराई जा रही? आख़िर क्यों अब CRS सिर्फ़ 8-10% हादसों की जाँच ही करता है?अभी बालासोर में राहत का काम चल ही रहा था कि एक मालगाड़ी पटरी से उतर कर पलट जाती है – क्या यह भी साज़िश है? शायद इसके लिए भी नेहरू ज़िम्मेदार हैं। मोदी सरकार ने इस देश और शासन को मज़ाक़ बना कर रख दिया है। कहीं कोई ज़िम्मेदारी, कोई जवाबदेही नहीं। कठघरे में खड़ा करो तो ख़राब मौसम का हवाला देते हैं।मेरे कुछ सवाल हैं। आप सीबीआई से नहीं, आप एनआईए से, आप किसी से भी जांच करा लीजिए, लेकिन अब क्या CBI ढूँढेगी कि ट्रैक की मरम्मत और नए ट्रैक बिछाने का बजट जो 2018-19 में 9607 करोड़ रुपए था वो 2019-20 में घट कर 7417 करोड़ रुपए – मतलब 23% कम क्यों हो गया?क्या CBI ये ढूँढेगी कि हाल ही में हुए रेल चिंतन शिविर में जहाँ हर ज़ोन को सुरक्षा पर बोलना था वहाँ सिर्फ़ एक ही ज़ोन से क्यों बुलवाया और सारा ध्यान वन्दे भारत और कितना रेवेन्यू रेलवे से निकल सकता है पर केंद्रित क्यों किया? सुरक्षा की बात क्यों नहीं हो रही थी? क्या CBI यह ढूँढेगी कि CAG (Comptroller and Auditor General) की ताज़ा ऑडिट रिपोर्ट में इस बात का खास उल्लेख है कि 2017-18 से 2020-21 के बीच 10 में से क़रीब 7 रेल दुर्घटनाएँ Train Derailment की वजह से हुई। लेकिन इस बीच East Coast रेलवे में सुरक्षा के लिए रेल और वेल्ड (Track Maintenance) का शून्य परीक्षण क्यों हुआ? 10 में से 7 हादसे डीरेलमेंट की वजह से होते हैं और ईस्ट जोन जहां बालासोर में एक्सीडेंट हुआ वहां पर इसका परीक्षण तक नहीं किया जाता है 4 सालों में… क्या सीबीआई ये ढूँढेगी?
क्या CBI यह ढूँढेगी कि CAG की रिपोर्ट के मुताबिक़ राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (RRSK) में 79% फंडिंग कम किए जाने का कारण क्या है?
क्या CBI यह ढूँढेगी कि राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (RRSK) के लिए सालाना 20,000 करोड़ रुपए के जिस बजट का वादा किया गया था, वो क्यों नहीं आवंटित हुआ ट्रैक की मेंटेनेंस के लिए?क्या CBI यह ढूँढेगी कि 3,00,000 से ज़्यादा पद रेलवे में रिक्त क्यों पड़े हुए हैं?
क्या CBI ये ढूँढेगी कि 8,000 पद जो पीएमओ और कैबिनेट कमेटी द्वारा भरे जाने थे, वे क्यों नहीं भरे गए?
क्या CBI ये ढूँढेगी कि लोको चालक, जो अत्यंत संवेदनशील और सुरक्षा से संबंधित कार्य करता है, उससे 12 घंटे से ज़्यादा ड्यूटी क्यों कराई जा रही है? लोको चालकों को कमी क्यों है?
आज सवाल ये है कि सीबीआई का काम क्या है? एनआईए का काम क्या है? 7 साल पहले आपने एनआईए को 2 जांचें दी थीं, आज तक चार्जशीट नहीं दाखिल हो पाई तो क्या उन परिजनों को पूछने का हक़ नहीं है कि क्या ये सरकार की विफलताओं के कारण हुआ? दोष कहीं और क्यों मढ़ा जा रहा है?
और एक बात और है ऐसी उत्कृष्ट एजेंसियों को जब आप इस तरह की जांच देते हैं, जिनमें उनकी कोई टेक्नीकल एक्सपर्टीज़ नहीं है तो आप कहीं न कहीं उनके ऊपर भी एक सवाल या निशान लगवाने की कोशिश करते हैं, सबको लगता है एनआईए क्यों… एनआईए का काम है टेरर को इंवेस्टीगेट करना। जो आपके ट्रैक के चलते हो रहा है, जो इंटरलॉकिंग की विफलता के चलते हो रहा है, जो सिस्टम फ़ेल होने के चलते हो रहा है, जो मेंटेनेंस की दिक्कत से हो रहा है… उसके बारे में क्या होगा? और एक बात… ये सच है कि लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार आज लगातार जवाबदेही से भाग रही है। और एक ये भी सच है, दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि जब मंत्री या प्रधानमंत्री वहां जाते हैं तो ऐसा स्वांग रचा जाता है जैसे भगवान अवतरित हो गए हों, अरे उनका काम है… चुने हुए प्रधानमंत्री हैं, रेल मंत्री हैं… अगर वो जहां पर 300 लोगों की मौत हो गई क़रीब-क़रीब, उस हादसे की जगह पर नहीं जाएंगे तो क्या करेंगे? ये अलग बात है कि वहां कूलर लगा हुआ है, ये अलग बात है कि शव गाजर-मूली की तरह डम्पर में फेंके जा रहे हैं और उनके लिए तकिया लगाकर इंतजाम किया गयाा है, ये अलग बात है कि रेल मंत्री के फोन पर 7 बजे शाम दिख रहा है, हमारे मीडिया के कुछ साथी 11:30 बजे उनको ज़मीन पर तैनात दिखा रहे हैं।तो चुनी हुई सरकार को जब-जब आप कटघरे में खड़ा करते हैं तो हमेशा ध्यान भटकाया जाता है और इसीलिए हम सिर्फ और सिर्फ एक बात कह रहे हैं कि जांच जो है वो टेक्नीकल एक्सपर्टीज़ के जो लोग हैं, उनसे कराई जानी चाहिए और जवाबदेही तय होनी पड़ेगी कि क्यों नहीं ट्रैक मेंटेन किए जा रहे हैं। क्यों भारतीय रेलवे जो करीब 2 करोड़, 20 लाख लोगों को रोज अपने गंतव्य पर पहुंचाती है… आज लोगों को रेलगाड़ी में बैठने से डर लगा रहा है? अगर इन सवालों के जवाब सरकार नहीं देगी तो क्या सीबीआई और एनआईए जैसी एजेंसीज़ देंगी, जिनके पास न टेक्नीकल एक्सपर्टीज़ हैं और एक ये सच है कि पूरी साजिश का जो मायाजाल है वो सिर्फ इसलिए रचा जा रहा है कि लोगों के मन में डर भर जाए और सरकार की कोई जवाबदेही न हो। नैतिकता तो ये कहती है कि 3 घंटे के अंदर रेल मंत्री को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था, लेकिन हो क्या रहा है – एक नया स्वांग रचा जा रहा है और इसीलिए कहीं न कहीं ये प्रतीत होता है कि यहां पर भी तथ्य से मुंह मोड़ा जा रहा है, यहां पर भी बचा रहा है और यहां पर भी सरकार जवाबदेही अपनी न तय करने का मन बना चुकी है।