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कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला सहित कई बड़े नेताओं ने आज मीडिया को संबोधित किया- जानिए क्या कहा -वीडियो देखें

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट   
नई दिल्ली: रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज हमारे फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के जो वर्षों तक प्रमुख रहे, जो अपने आप में एक कृषि विशेषज्ञ हैं और कांग्रेस पार्टी के सांसद हैं, सरदार अमर सिंह और उनके साथ गुजरात से किसान की बेटी, अमी बेन याज्ञनिक जी, हमारी सांसद हैं और मैं आपके बीच में महत्वपूर्ण विषय एवं मोदी सरकार का कागजों से बेईमानी का खुलासा और किसान से जो षडयंत्र किया गया है, उसकी परतें खोलने के लिए आपके बीच में उपस्थित हैं।

आदरणीय साथियों, देश का किसान और मजदूर सड़कों पर है, पर सत्ता के नशे में मदमस्त मोदी सरकार उनकी रोटी छीन खेत और खलिहान को मुट्ठी भर पूंजीपतियों के हवाले करने में लगी है। कृषि विरोधी तीन काले कानूनों ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ की झूठ और उसका पर्दा मोदी सरकार के चेहरे से उठा दिया है। अब मोदी सरकार का नया मूल मंत्र है, वो है – “किसानों को मात और पूंजीपतियों का साथ। खेत मजदूरों का शोषण और पूंजीपतियों का पोषण, गरीबों का दमन और पूंजीपतियों को नमन”। यही सच्ची वास्तविकता है। किसान आंदोलन के चलते कल आनन-फानन में मोदी सरकार ने रबी फसलों का एमएसपी घोषित करने का स्वांग और षडयंत्र रचा। एक बार फिर साफ हो गया, सीएसीपी की 2021-22 की रिपोर्ट उपलब्ध है, उसकी प्रतिलिपी मैं आपको जारी कर रहा हूं। अब उसका अवलोकन करने से साफ है कि किसानों का आंदोलन और मोदी सरकार पर खेती को खत्म करने का षड़यंत्र दोनों बिल्कुल सही हैं, क्योंकि अब मोदी सरकार एमएसपी की पूरी प्रणाली को और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को ही खत्म कर देना चाहती है। कृषि लागत और मूल्य आयोग का झूठ उनके कागजात से ही पकड़ा गया और साफ हो गया कि वो एमएसपी अब देना ही नहीं चाहते। साथियों, कुछ बिंदु मैं रखूंगा फिर अमर सिंह जी आपको बताएंगे।

पहला, याद करिए मोदी जी का वायदा था सत्ता में आने से पहले कि किसान को लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा देंगे, यानि कृषि की लागत किसान की मेहनत और जमीन का किराया, A-2 कृषि की लागत, FL फैमिली लेबर यानि उसकी मेहनत, जमीन का किराया, ये सब मिलकर बन जाते हैं C-2, मोदी जी ने कहा कि इस पर भी मैं 50 प्रतिशत मुनाफा दूंगा, ये कहकर सत्ता में आए थे। कृषि मूल्य आयोग रिपोर्ट 2021-22 जो अब हमारे सामने है, ये इस दावे और जुमले की पोल खोल देती है।

दूसरा, गेहूं के 2021-22 के एमएसपी में 2.6 प्रतिशत या ढाई प्रतिशत की वृद्धि लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा देने के मोदी जी के जुमले और आय दोगुनी करने के भाजपाई झूठ को उजागर कर देती है। इस रिपोर्ट के दो या तीन कागजों को अब मैं आपको दिखाऊंगा। कृषि लागत और मूल्य आयोग की ये 2021-22 की रिपोर्ट मोदी सरकार की बेईमानी का सबूत है। रिपोर्ट का अगर पैरा 6.26 देखें तो ये वो रिपोर्ट है, जो मैं आपको जारी कर रहा हूं। इस रिपोर्ट में लिखा है कि 2021-22 में खेती के उत्पादों की लागत, गेहूं की, मैं पढ़ रहा हूं, पहले 960 रुपए क्विटंल है और इसी रिपोर्ट का अगर आप टेबल 5.4 देखें, तो उसमें पिछले साल की भी गेहूं की लागत लिखी है। दोस्तों चौंकिए मत वो भी 960 रुपए क्विंटल है, तो इसका मतलब मोदी सरकार, कृषि लागत और मूल्य आयोग का कहना है कि एक साल में डीजल की कीमत नहीं बढ़ी, एक साल में कीटनाशक दवाई की कीमत नहीं बढ़ी, एक साल में खाद और बीज की कीमत नहीं बढ़ी, एक साल में श्रम की कीमत नहीं बढ़ी, एक साल में ट्रैक्टर, टायर, खेती के उपकरणों की कीमत नहीं बढ़ी। पिछले साल की कीमत उठा कर बेईमानी से इस साल चिपका दी और उसके ऊपर एमएसपी दे दिया। ये अपने आप में बेईमानी है।

यही नहीं, अगर आप दोनों टेबल देखें, तो अगर पिछले साल की कीमत भी देख लें, 2020-21 की, जो यहाँ है, तो इसके मुताबिक भी C2 -1,467 रुपए था, अगर इस पर 50 प्रतिशत लगाएं तो पिछले साल ही गेहूं का एमएसपी 2,200 रुपए क्विंटल होना चाहिए था, परंतु मोदी जी ने तो आज भी 1,975 रुपए पर रखा हुआ है, तो ये अपने आप में उनके झूठ और बेईमानी को साबित करता है। यही नहीं CCP, जो CACP है, कृषि लागत और मूल्य आयोग, वो ये भी कहता है केवल गेहूं नहीं, अगर मैं जौ की फसल की आपसे चर्चा करुं, तो जो 2021-22 में कीमत है, वही 2020-21 के अंदर है और लागत 971 रुपए दिखाई। ये यहाँ पर उन्होंने लिखा है, अगर आप पढ़ें तो ये बारले 971 रुपए उन्होंने लिखा है, पर उनकी अपनी ही रिपोर्ट ये कहती है कि इससे पिछले साल जो हिमाचल प्रदेश है, वहाँ जौ की लागत 1,645 रुपए थी, तो 1,645 थी तो आप 971 क्यों दिखा रहे हैं? इसी प्रकार से अगर चने को देखें, तो जो कीमत 2,860 रुपए लागत पिछले साल दिखाई थी, वही इस साल दिखा दी। तो पिछले साल की लागत उठाई और इस साल चिपका दी, ताकि ये बेईमानी पत्रकार साथी देख नहीं पाएंगे, किसान बेचारा भोला-भाला है, वो सीएसीपी की रिपोर्ट पढ़ेगा कैसे और मोदी जी की झूठ निकल जाएगी। परंतु ये देखिए चने के अंदर भी वही हेरा-फेरी की। साथ में इसी रिपोर्ट में लिखा है कि पिछले साल चने की कीमत महाराष्ट्र में 2,866 नहीं, 3,380 रुपए थी और कर्नाटक में 3,428 रुपए थी, तो आप 2,800 रुपए क्यों दिखा रहे थे? यही मसूर की दाल का एक उदाहरण दूंगा और फिर अमर सिंह जी अपनी बात कहेंगे। मसूर की दाल की लागत इस साल उन्होंने 2,864 रुपए दिखाई है जो कि किसान को आती है। पिछले साल भी 2,864 रुपए है, वो भी इस रिपोर्ट में लिखा है, पिछले साल की उठाई और यहाँ चिपका दी कि कोई देखेगा नहीं। सरेआम बेईमानी। एमएसपी को खत्म करने का षड़यंत्र और पिछले साल की रिपोर्ट में भी ये लिखा है, जिसकी कॉपी हम दे रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में मसूर दाल की कीमत 2,864 नहीं, किसान को 3,490 रुपए पड़ती है, इससे ज्यादा सरेआम बेईमानी होगी क्या?

न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी शब्द को तीनों कानूनों के अंदर ना लिखना, न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को खत्म करना है। मोदी जी जवाब नहीं देते कि जब मंडियां खत्म होंगी तो एमएसपी कहाँ मिलेगा, कैसे मिलेगा, कौन देगा? राज्यसभा में हमने पूछा, कोई जवाब नहीं। लोकसभा में हमने पूछा, कोई जवाब नहीं। हमने कहा कि अगर सबकुछ ठीक ठाक है तो आप एमएसपी की गारंटी को कानून में लिख दीजिए। अगर आप लिख देंगे तो किसान को मिल जाएगा और लिख दीजिए कि अगर कोई कंपनी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर फसल खरीदेगी तो उसे सजा मिलेगी और बाकी का पैसा देना पड़ेगा। ये दो बड़ी सीधी चीजें हैं, पर इन दोनों पर सरकार भाग रही है और इनकी बेईमानी अब इन्हीं के कागजों से अब साफ है, जिनकी प्रतिलिपी मैं आपको भेज रहा हूं।

अब डॉ अमर सिंह, जो कृषि विशेषज्ञ हैं, नेता और सांसद भी हैं, उनसे मैं कहूंगा क्योंकि एफसीआई को उन्होंने लीड किया है कांग्रेस के कार्यकाल में, वो आपको बताएंगे इस बेईमानी की कुछ परतें।

डॉ अमर सिंह ने कहा कि ये कमीशन बनाया था कांग्रेस राज में 1965 – 66 में। क्यों बनाया था, क्योंकि ये मुल्क अमेरिका से, ऑस्ट्रेलिया से, बहुत मुल्कों से गेहूं, सारा कुछ खरीदते थे, क्योंकि हमारे यहाँ प्रोडक्शन नहीं थी, इसके साथ एफसीआई को क्रियेट किया, फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को, सीएसीपी की जिम्मेदारी है कि वो एवरेज निकाल कर कि कितना किसान का खर्चा आता है, 23 फसलों का एमएसपी डिसाइड होता है, वो बताएं कि गवर्मेंट को क्या भाव करना चाहिए। जब कांग्रेस ने 1965-66 में किया था, फूड कॉर्पोरेशन बनाया, पब्लिक प्रिक्योरमेंट सरकारी खरीद के लिए, वो इसलिए खरीद थी, क्योंकि हमको पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम में लोगों को सस्ता अनाज देना होता है। ये तब का सिस्टम चलता आ रहा है और 2013 में आपको याद होगा कि यूपीए गवर्मेंट ने बड़ा एतिहासिक एक कानून लाए, जिसको नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट कहते हैं, जिसके तहत 75 प्रतिशत जनसंख्या गांव की और 50 प्रतिशत जनसंख्या शहरों की, उनको सस्ता राशन मिलता है। ऑवर ऑल मुल्क की 67 प्रतिशत पोपुलेशन को मिलता है।

अब हर साल सीएसीपी जो रिकमेंड करता है, मैं तो चाहता हूं कि यूपीए के 10 साल में जो उनकी रिकमेंडेशन थी और यूपीए ने भाव बढ़ाया, ये 100 में होता था, मैं आज वो फिगर लेकर नहीं आया, डबल, ट्रिपल किया यूपीए ने, ये कभी 10 रुपए बढ़ा देते हैं, कभी 50 रुपए, कभी 70 को कहते हैं मैंने इतिहास बना दिया। इस बार केवल ढाई प्रतिशत बढ़ाया और दूसरा मैं आपको बताऊं कि हर बार सीएसीपी की रिकमेंडेशन 500 से 800 रुपए ज्यादा होती है, गेहूं और अपनी पेडी की। वो नहीं दिया जाता है, उसको छुपाया जाता है। 500 से 800 रुपए ज्यादा होती है, जो ये कहते हैं, एमएसपी निर्धारित करते है और उसमें किसान की जमीन की कीमत नहीं लगाते, अब जब इंडस्ट्री में दूसरे भाव तय होते हैं, तब उसकी फुल इनवेस्टमेंट ली जाती है कि नहीं, ली जाती है, तो किसान की जमीन का भाव पूरा क्यों नहीं लिया जाता? वो नहीं लिया जाता है, उसको रेंट कहते हैं कि इसका रेंट ले लेंगे। बहुत इसमें लंबा खेल है।

मैं असली बात बताना चाहता हूं कि ये कर क्या रहे हैं और अभी क्या करेंगे, कह रहे हैं कि एमएसपी जारी रखेंगे। एमएसपी जारी रखेंगे लेकिन पब्लिक प्रिक्योरमेंट को कम करेंगे, मैं आज कह रहा हूं, इतिहास गवाह रहेगा। जो सरकारी खरीद होती है, उसको कम करेंगे, अगर वो कम नहीं होती है, पीडीएस में सप्लाई कम नहीं होती है, तो फिर प्राईवेट की मदद कैसे होगी, इनको पब्लिक प्रिक्योरमेंट कम करना है और मैंने पिछली बार भी कहा था कि जो वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन कहता है, जो शांता कुमाऱ कमेटी कहती है, जो ऑर्डिनेंस हैं, जो पीएम आशा स्कीम थी और जो एक्ट हैं, ये सब की वर्डिंग बराबर है। क्या कह रहे हैं कि एग्रीकल्चर सब्सिडी कम करो, फूड सब्सिडी कम करो, पब्लिक प्रिक्योरमेंट कम करो, प्राईवेट को अंदर घुसाओ, उसको अंदर चांस दो और उसकी प्रिक्योरमेंट बढ़ाओ। यही इस मुल्क में होने वाला है और वो केवल और केवल होगा जब ये पब्लिक प्रिक्योरमेंट कम करेंगे। एमएसपी की बात कर रहे हैं, हम इनसे, मोदी जी से, बीजेपी गवर्मेंट से मांग करते हैं कि आप ये कहिए कि आज जो पब्लिक प्रिक्योरमेंट हो रहा है हिंदुस्तान में, आप उसकी क्वांटिटी कम नहीं करेंगे, पंजाब में जो पब्लिक प्रिक्योरमेंट हो रहा है, उसकी क्वांटिटी कम नहीं करेंगे। पंजाब की एक बात आज बता दूं, ये इनके निर्णय से 500 करोड़ का रेवेन्यू लॉस अभी पंजाब को हो गया, क्योंकि न उनको कॉटन का टैक्स मिलना है, न उनको मक्का का मिलना है, और न कई फसलें जो बाहर बिक रही हैं उनका। ये ऐसी हालत कर देंगे कि मंडियाँ अपने आप ही 2-4-5 साल में खत्म हो जाएंगी उसमें कुछ बचेगा ही नहीं और प्राईवेट का पूरा खेल शुरु हो जाएगा, मैं इसलिए कह रहा हूँ ये प्राईवेट लोगों के लिए कर रहे हैं, बड़ी मल्टीनेशनल के लिए कर रहे हैं, पब्लिक प्रोक्योरमेंट सिस्टम और पीडीएस को डैमेज करने के लिए कर रहे हैं, सीए-सीपी की कभी भी रेकमंडेशन एक्चुअल नहीं देखते हैं, हमेशा झूठ बोलकर कम भाव देते हैं।

इतनी बात ही कहना चाहता था, बहुत-बहुत धन्यवाद।

डॉ. अमी याज्ञनिक ने कहा कि मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूँ कि ये बाहर आकर अगर आप कहते हैं कि एमएसपी को नहीं बदला है, एपीएमसी को नहीं निकाला है, तो कहीं भी अधिनियम में कोई भी जगह लिखा ही नहीं है और न तो वहाँ आपके मिनिस्टर बताते हैं कि हम इसमें लिखकर लाएंगे, क्योंकि ये कानून बन जाएगा, बाहर आकर ओरली बुलवाना अपने मिनिस्टर से और लिखा-पढ़ी न होना कहीं भी, तो न तो आप कोर्ट जा सकते हैं, उसका भी प्रावधान नहीं किया है और बार-बार किसान छोटा हो या बड़ा हो, उसको जाना पड़ेगा, एसडीएम या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास, ये कितना वैध भी है और उसको कौन कानूनी मदद देगा, वो भी एक बहुत बड़ा प्रश्न है, तो ये बाहर से अलग ओरली बताना, जुमलेबाजी जैसी बातें करना और अंदर अधिनियम में कुछ भी नहीं लिखना, कोई क्लेरिटी नहीं करना, ये उनकी खासियत रही है और जो बेसिक बातें होनी चाहिए, मैं गुजरात से आती हूँ, वहाँ हमेशा पानी और बिजली का प्रॉब्लम हमेशा रहा है, रात को बिजली आती है, दिन को पानी नहीं मिलता है, रात को पानी मिलता है, किसानों की इतनी एप्लिकेशन पड़ी हैं और सिर्फ प्राइवेट सेक्टर को हैल्प करने के लिए सारा कुछ लेकर आए हैं, वो साफ दिख रहा है।

सरदार जसबीर सिंह डिम्पा ने कहा कि मैं तीन बातें करना चाहता हूँ। जब नोटबंदी की मोदी जी ने रो-रोकर कहा- मेरे को पचास दिन दे दो। पचास बीत गए कितने लोग मरे। जब कोरोना का लॉकडाउन किया, कहते हैं, मेरे को 21 दिन दे दो, मैं सब ठीक कर दूँगा। आज एमएसपी की बात आई तो आज इस बिल में, आज जो इनके मंत्री कह रहे थे कि हमें दो साल का समय दे दो, और फिर चेंज देखना। क्या हम वो चेंज देखेंगे, जो डिमोनेटाइजेशन के बाद इकॉनमी का हाल हुआ। क्या हम वो चेंज देखेंगे, जो 21 दिन के कोरोना के लॉकडाउन के बाद इतने मरीज बढ़े हैं। हमने उनको संसद में अपील की कि आप जो मर्जी करो, हमें ये लिखकर दे दो कि जो भी एमएसपी होगी, उस पर सरकार खरीद करेगी, ये लिखकर दे दो और माइक बंद कर देतें हैं, फिर, मंत्री हाउस छोड़कर भाग जाते हैं। अगर ऐसे हालात, ऐसे मंजर मैंने कभी नहीं देखे। मैं तो आज एक अपील करना चाहता हूँ, अपने किसान भाईयों के लिए कि जो पार्टी, जो सांसद इस बिल का साथ दे रहे हैं, उनका पूर्ण तौर पर बाईकॉट करो, यही मेरी सारे किसानों से अपील है। अगर हालात बिगड़े तो उसका जिम्मेवार और कोई नहीं, मोदी जी होंगे।

आज चारों तरफ ये आग लग चुकी है, ये आग भड़क चुकी है। करनाल से लेकर पंजाब तक, हर तरफ किसान धरने पर बैठा है। मेरे को एक बहुत बड़ा जिला है, हमारे पंजाब के किसानों से, सांसदों से जो अकाली दल के सांसद हैं, हरसिमरत बादल जी ने बड़े जोर-शोर से इस्तीफा दिया कि मैं इस बिल के विरोध में अपना इस्तीफा दे रही हूँ, मगर अफसोस की बात है, जिस दिन से इस्तीफा दिया है, हम यहाँ पर लड़ रहे हैं, हम लाठियाँ खा रहे हैं पुलिस की, रात भी हम देख आए, हम लाठियाँ खा रहे हैं, हम लड़ रहे हैं, मगर वो सारे के सारे अकाली दल बादल के सांसद सदन से गायब हैं, इसकी मैं निंदा करता हूँ।

धन्यवाद।

श्री गुरजीत सिंह औजला ने कहा कि मैं आपके माध्यम से देश को और देश के किसानों से बात करना चाहता हूँ कि आप ये बिल के पीछे से भी जाकर देख सकते हैं क्योंकि हम पंजाब से आते हैं, ये बिल आपका 6 महीने- साल से शुरु नहीं हुआ, हाई पावर कमेटी की बैठक, इनके जो अडानी दोस्त हैं, उनके silos हमारे सारे पंजाब में पहले से लग चुके हैं दो साल में, एफसीआई की मंजूरी से भी और बेयरहाउस इनके बन चुके हैं, जहाँ अनाज स्टॉक करना है। पर्दे के पीछे से इन्होंने तैयारी देश के किसानों को बेचने का पहले से एग्रीमेंट हो चुका है, लेकिन कानून अब बना रहे हैं, कानून जो लेकर आ रहे हैं, उससे मजदूर खत्म होगा, जितने सहायक धंधे होते हैं पंजाब के, जितने भी लोग गांव में रहते हैं वो खत्म हो जाएंगे, छोटा व्यापारी भी खत्म होगा, कीमतें बाजार में बढ़ेंगी और अब जब दबाव बढ़ा है, राज्यसभा की तरफ से अपोजीशन का तो महज 50 रुपए गेहूँ का भाव बढ़ाया है और भी एमएसपी दी है, चने के ऊपर, अलग-अलग चीजों के ऊपर लेकिन मैं कहना चाहता हूँ, एमएसपी दी किसको, जब प्राईवेट प्लेय़र आएगा, एफसीआई पैसे नहीं दे रही तो एमएसपी लागू कहाँ होगी, ये एक जुमला मोदी जी ने 15 लाख वाले जुमले के बाद छोड़ दिया है। यदि आप चाहते हैं, यदि आप मानते हैं एमएसपी रहेगी, तो फिर मंडी कमेटी भी रहने दीजिए, फिर स्टेट को पैसे दीजिए, जिन स्टेट में नहीं है, वहाँ तो आप लगा सकते हो, वहाँ तो आप इसका एक्सपेरीमेंट कर सकते हैं, जहाँ एमएसपी नहीं है, जहाँ कम रेट में खरीदते हैं, वो तो सब फेल हैं। जहाँ पंजाब का किसान, जिसको बेचना है गेहूँ, जिसका तजुर्बा है, जो बैस्ट फार्मिंग करता है, वो तो मानता नहीं है, पार्टी और सांसद उसके मान नहीं रहे, तो ये किसके साथ एग्रीमेंट कराना चाहते हैं, किसके लिए कानून लेकर आए हैं, ये बात तो हमारी समझ से बहुत दूर पड़ रही है कि वो कह रहे हैं कि आपके लिए लेकर आए हैं, वो बोले कि हमें नहीं चाहिए लेकिन ये किसके लिए करना चाहते हैं?

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